गोबर से ईंट बनाकर कमा सकते हैं करोड़ों रुपए। जानिए गोबर से ईंट बनाने की विधि।

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किसान और पशुपालन से जुड़े लोगों की आय बढ़ाने और उन्हें बल देने के लिए आए दिन सरकारें अपने स्तर पर काम करती रहती हैं। लेकिन फिर भी किसानों और पशुपालकों की आय में कुछ खास इजाफा नहीं हो रहा है। लेकिन कहते हैं न कि जहां चाह वहां राह। ऐसी ही एक चाह ने कुछ ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जिसके जरिए पशुपालक भाई साल के 12 महीने गोबर से ही पैसा कमा सकते हैं।

हम गोबर के जरिए कोई दिए, प्लेट या फिर खाद बनाने की बात नहीं कर रहे। बल्कि हम बात कर रहे हैं गोबर के जरिए ईंट बनाने की। ये सुनने में जितना अजीब है, इस पर विश्वास करना उतना ही मुश्किल है। लेकिन ये सच है और आज के इस लेख और वीडियो में हम आपको बताएंगे कि गोबर की ईंट किस तरह बनाई जाती है और इसके क्या फायदे एवं नुकसान हो सकते हैं। 

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किस पशु के गोबर से बन सकती है ईंट 

ऐसे किसान या पशुपालक भाई जो अपने घरों में गाय और बैल पालते हैं, वो गोबर से ईंट तैयार कर सकते हैं। इस तकनीक की खोज करने वाले डॉक्टर शिव दर्शन ने गोबर के जरिए न केवल ईंट बल्कि कई दूसरी चीजें भी तैयार की हैं जैसे गोबर की ईंट को चिपकाने वाला मसाला, प्लास्टर, मड फ्लोरिंग और छत बनाने की वस्तु आदि।

गोबर की ईंट का फायदा 

किसान और पशुपालक भाइयों को बता दें कि गोबर की ईंट से न केवल आर्थिक लाभ होगा। बल्कि इसके जरिए कार्बन के उत्सर्जन को भी कम किया जा सकता है। बताया जाता है कि एक घर के निर्माण की वजह से करीब 20 हजार किलो कार्बन उत्सर्जित होता है, जो प्रदूषण को बढ़ाने का काम करता है। 

वहीं अगर बात करें गोक्रीट के जरिए बने घर की, तो इसमें जरा भी कार्बन उत्सर्जित नहीं होता। यही नहीं गोबर इकलौती ऐसी चीज है जो पशुपालक रोजाना प्राप्त कर सकता है। अगर बात करें कि एक बैल या गाय के गोबर से कितनी ईंट सालाना बनाई जा सकती है, तो बता दें कि एक 3 कमरों के घर के लिए जितनी ईंट की जरूरत होती है, उतनी ईंट गाय के गोबर से बनाई जा सकती है। 

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गोबर के गुण से ईंट कैसे 

गाय के गोबर के अंदर ऐसे कई गुण होते हैं जो उन्हें ठोस और लंबे समय तक मजबूत रख सकते हैं। डॉक्टर शिवदर्शन के मुताबिक गाय के गोबर में एंजाइम, प्रोटीन, डेड सेल, नाइट्रोजन, फाइबर जैसे तत्व पाए जाते हैं। ऐसे में जब ये गुण मिट्टी से मिलते हैं तो किसी प्लास्टिक के जोड़ की तरह काम करते हैं  और इससे मजबूत ईंट तैयार हो जाती है। 

मिट्टी के घर कितने समय तक टिक सकते हैं 

देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी बहुत से घर मिट्टी के जरिए ही बने हुए हैं। इन घरों की अवधि देखें तो मालूम होता है कि ये लगभग 200 से 300 साल पुराने तक भी हैं। यही नहीं विश्व हेरिटेज में शिवम नाम के शहर की कुछ ऐसी इमारतों का जिक्र भी किया गया है, जो मिट्टी के जरिए ही बनी है और इनका निर्माण आज से पहले 15वीं 16वीं शताब्दी के समय पर हुआ था। यानी इस आधार पर कहा जा सकता है कि मिट्टी के जरिए बनी इमारते लंबे समय तक रह सकती हैं।

मिट्टी से जुड़ा वैज्ञानिक तथ्य 

ऐसे कई अध्ययन हो चुके हैं, जो बताते हैं कि दुनिया में मौजूद हर वस्तु या धातु समय के साथ अपनी ऊर्जा और क्षमता खोने लगती है। उदाहरण के तौर पर देखें तो जैसे लोहे को जंग लगता है और वो मिट्टी में तब्दील हो जाता है। ऐसा ही कुछ हाल होता है लगभग दूसरी धातुओं का लेकिन जब बात मिट्टी की आती है, तो वो हमेशा एक न्यूट्रल स्टेट में रहती है। यानी उसकी ऊर्जा और क्षमता कम नहीं होती। इस वैज्ञानिक तथ्य के आधार पर भी कहा जा सकता है कि मिट्टी और गोबर से बनी ईंट मजबूत हो सकती हैं। 

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गोबर की ईंट बनाने का तरीका 

सबसे पहले इस ईंट को तैयार करने के लिए गाय या बैल का गोबर चाहिए और इसके साथ तालाब या गांव की मिट्टी और चूने की जरूरत पड़ती है। 

  • गोबर 24 घंटे से पुराना नहीं होना चाहिए। 
  • इसमें 70 से अधिक ईंट तैयार करने के लिए आपको 100 किलो गोबर, 50 किलो मिट्टी और 6 किलो चूने की जरूरत होती है। 
  • वहीं अलग – अलग स्थानों के हिसाब से ईंट में कुछ और सामग्री जोड़ी जा सकती है। जो सामग्री आपको बताई गई है ये राजस्थान या कम वर्षा वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। 
  • इन तीनों चीजों को अच्छी तरह से मिलाकर गूंथ लिया जाता है। इसके बाद इन्हें 15 दिन तक धूप में सुखाया जाता है। ध्यान रहे कि इसमें पानी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। 
  • इस तरह ये ईंट तैयार हो जाती हैं। 

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जानिए किस घरेलू कचरे से बनाया जा सकता है फर्टिलाइजर (उर्वरक)

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हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन आज भी किसानों की आर्थिक हालत बेहद खराब है। ऐसे में किसानों की आय को बढ़ाने और उनकी जेब पर पड़ने वाले भार को कम करने के लिए हम एक खास तरकीब लेकर आए हैं। हम सभी जानते हैं कि किसान खेतों में बेहतर फसल के लिए अक्सर फर्टिलाइजर या उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन यही फर्टिलाइजर किसानों को 1000 रुपए किलो तक पड़ता है। ऐसे में अगर घर के कचरे से फर्टिलाइजर तैयार किया जाए तो न केवल ये किसानों के पैसे बचेंगे। बल्कि इससे कचरे का सही उपयोग भी होगा। 

आज हम आपको इसी बारे में बताने वाले हैं। घबराइए नहीं इसके लिए आपको ज्यादा मेहनत करने की भी जरूरत नहीं है। ये तरीका किसानों के सालाना हजारों रुपए तक बचा सकता है। अगर आप जानना चाहते हैं कि घर के कचरे से कैसे फर्टिलाइजर या उर्वरक बना सकते हैं, तो इसके लिए हमारे लेख पर अंत तक बने रहें या हमारी वीडियो को अंत तक देखें।

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क्या करता है फर्टिलाइजर 

फसल के लिए फर्टिलाइजर ठीक वैसे ही काम करता है जैसे कि इंसानों के लिए पोषक तत्वों से भरा खाना। इस फर्टिलाइजर के जरिए फसल को पोषक तत्व मिलते हैं और फसल की ग्रोथ बहुत तेजी से होती है। बिना फर्टिलाइजर के फसल के खराब होने की संभावना भी बेहद बढ़ जाती है। कुल मिलाकर फर्टिलाइजर खेती के लिए सबसे जरूरी चीजों में से एक है। ऐसे में इसे किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 

कचरे से फर्टिलाइजर क्यों 

देश के अलग – अलग हिस्सों में आपने कूड़े के बड़े – बड़े पहाड़ देखे होंगे। ये पहाड़ न केवल प्रदूषण को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। बल्कि इन्हीं पहाड़ों की वजह से इसके आस पास रहने वाले लोगों का सांस तक लेना मुश्किल हो गया है। ऐसे में घरेलू कचरे का उपयोग करके कूड़े को फैलने से भी रोका जा सकेगा और इसके जरिए मिट्टी को उपजाऊ भी बनाना संभव होगा।

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फर्टिलाइजर के  लिए कौन सा कचरा

  • प्याज के छिलके
  • अंडे के छिलके
  • इस्तेमाल की गई चाय पत्ती

इस सामग्री के गुण और फायदे 

  • चाय की पत्ती के अंदर क्लोराइड, सल्फेट, टोटल फॉसफोरस, ऑर्गेनिक मैटर, कैल्शियम, और मैग्नीशियम होता है। पत्ती के यही गुण फसल को तेजी से फलने फूलने में सहायता करते हैं फसल की गुणवत्ता को निखारते हैं। 
  • प्याज के छिलके आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और कॉपर का एक अच्छा स्रोत हैं। ये फल और सब्जियों के अंदर पाए जाने वाले पोषक तत्वों की मात्रा को तेजी से बढ़ाने का काम करते हैं। 
  • अंडे के छिलके  अमूमन हम अक्सर फेंक देते हैं. लेकिन इसके छिलकों में मौजूद कैल्शियम फसल या पौधे की ग्रोथ में एक अहम भूमिका निभाता है। कैल्शियम इंसानों या पशु की तरह फसल के लिए भी जरूरी होता है और यही अंडे के छिलके फसल को कैल्शियम मुहैया कराते हैं। ये जड़ों को मजबूत करते हैं फल सब्जियों में कैल्शियम की मात्रा को बढ़ाते हैं। 

फर्टिलाइजर बनाने की विधि 

  1. सबसे पहले आप अंडे के छिलके को मिक्सर ग्राइंडर के जरिए पीस लें। 
  2. इसके बाद एक बड़े बर्तन या तसले में इस्तेमाल की गई चाय पत्ती और प्याज के छिलके डाल दें। 
  3. अब पिसे हुए अंडे के छिलकों को इसमें डाल दें और अच्छी तरह किसी चम्मच या अन्य किसी चीज के जरिए मिला लें। 

जब यह अच्छी तरह मिल जाए तो इसे अपनी फसल के आस पास की जगह पर डाल दें और मिट्टी के साथ मिला दे। इस तरह आप फर्टिलाइजर बना भी पाएंगे और कचरे को इस्तेमाल में भी ले पाएंगे। 

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सामग्री अधिक मात्रा में कैसे एकत्रित करें 

अब ज्यादातर किसानों को यही चिंता सता रही होगी कि प्याज के छिलके, अंडे के छिलके और इस्तेमाल की गई इतनी सारी चाय पत्ती कहां से आएगी। आपको बता दें कि ये सारी सामग्री आप अपने आस पास के रेस्टोरेंट, ढाबे या चाय की ठेली और अंडे की ठेली से एकत्रित कर सकते हैं। 

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6 से 7 दिन में 30 किलो तक हरा चारा पैदा कर सकती है कंबाला मशीन

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आज देशभर में हरे चारे की किल्लत बढ़ती जा रही है। ये एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से पशुपालन करने वाले लोगों ने पशुओं को पालना तक बंद कर दिया है। वहीं मानसून के दौरान ये समस्या अक्सर अधिक बढ़ जाती है और हरा चारा गीला हो जाता है ऐसे में सही हरे चारे की व्यवस्था करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन अब ये समस्या पूरी तरह से खत्म हो सकती है। 

ऐसा इसलिए क्योंकि हाल ही में बैंग्लोर की एग्रीटेक कंपनी ने एक ऐसी मशीन इज़ाद की है। जिसके जरिए पशुओं का हरा चारा बहुत जल्दी उगाया जा सकता है। आज हम आपको अपने इस लेख और वीडियो के जरिए इसी मशीन से जुड़ी जानकारी देंगे। अगर आप इस तरह की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पंर अंत तक बने रहें। इसके अलावा आप चाहें तो वीडियो भी देख सकते हैं। 

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क्या है ये कंबाला मशीन

ये एक ऐसी मशीन है जो हाइड्रोपोनिक तकनीक पर काम करती है। ये मशीन दिखने में लगभग एक फ्रीज की तरह है जिसके सामने के हिस्से पर एक जाली लगी हुई है वहीं मशीन के अंदर माइक्रो स्प्रिंकलर लगे हैं जो हरे चारे को समय – समय पर पानी मुहैया कराते हैं। मशीन की ऊंचाई 7 फुट तक होती है। इस मशीन के अंदर 4 ट्रे लगाई गई हैं।

चारा उगाने वाले मशीन का नाम 

इस हाइड्रोपोनिक मशीन का नाम कंबाला रखा गया है। फसल उगाने वाले इस मशीन का नाम  कंबाला नाम रखने की वजह कर्नाटक में होने वाली एक प्रतियोगिता है। दरअसल ये कर्नाटक में भैंस की दौड़ प्रतियोगिता होती है। इस प्रतियोगिता का नाम ही कंबाला है। इसी के नाम से प्रेरित होकर मशीन का नाम भी कंबाला रखा गया है।  

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कंबाला कैसे काम करती है

ये मशीन फसल उगाने के लिए मिट्टी की जगह पानी का इस्तेमाल करती है। कंबाला मशीन के अंदर 4 ट्रे लगई हैं। इन ट्रे में फसल के बीज डालने होते हैं। बीज डालने के बाद मशीन में पानी रहता है। मशीन के सामने की ओर लगी जाली मशीन के अंदर के तापमान को बढ़ने से रोकती है। 

कंबाला मशीन की उत्पादन क्षमता

इस मशीन के अंदर एक समय पर 700 ग्राम बीज डालने होते हैं और महज एक सप्ताह में 25 से 30 किलो हरा चारा पैदा हो जाता है। मशीन के जरिए पैदा होने वाले चारे से 2 से 3 पशुओं का पेट भर सकती है। 

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कंबाला मशीन के मॉडल

इस मशीन के दो मॉडल बाजार में उतारे गए हैं। एक बिजली से चलता है और दूसरा सौर ऊर्जा के जरिए चलता है। इसमें बिजली मॉडल की कीमत 30 हजार रुपए है। वहीं सौर ऊर्जा वाली मशीन की कीमत 45 हजार रुपए रखी गई है। ये मशीन महज साल भर में 70 रूपए ही बिजली की खपत करती है। वहीं इसमें एक किलो चारे पर केवल 50 लीटर ही पानी खर्च होता है। 

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मानसून में रोगी पशु की देखभाल का तरीका और जरूरी सावधानियां।

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ऐसा अक्सर कहा जाता है कि इलाज से बेहतर बचाव है। ये बात इंसानों पर ही नहीं  बल्कि अन्य जीवों  पर भी लागू होती है। इंसान तो अपनी समझ के मुताबिक रोग से बचाव और इलाज दोनों ही करा लेते हैं। लेकिन  पशु ऐसा करने में सक्षम नहीं होते। ऐसे में इस बात की पूरी जिम्मेदारी पशुपालकों के सिर पर होती है। वहीं जब मौसम बदलता है तो पशु के रोग की चपेट में आने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।

ऐसे में अगर पशु रोग की चपेट में आ गया है, तो पशु  की देखभाल करने के लिए कुछ जरूरी इंतजाम करने अनिवार्य हो जाते हैं। आज हम अपने इस लेख और वीडियो के जरिए पशुपालक भाइयों को इसी दुविधा का अंत करने वाले हैं। हमारे इस लेख में हम बताएंगे कि एक रोगी पशु की देखभाल में क्या करना चाहिए और क्या नहीं। अगर आप इस तरह की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पर अंत तक बने रहें। 

मानसून में पशु को होने वाले रोग

मानसून के दौरान पशु खुरपका मुहंपका, लंगड़ा बुखार, थनैला, दाद खाज खुजली जैसे कई रोगों से संक्रमित हो जाते हैं। ऐसे में रोगी पशु की देखभाल कैसे करनी चाहिए और इस दौरान किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए। ये आपको पता होना चाहिए।

मानसून में रोगी पशु की देखभाल का तरीका

  • मानसून  में अगर पशु किसी भी रोग की चपेट में आ जाए तो ऐसे में सबसे पहले पशुपालकों को पशु के स्वस्थ पशुओं से दूर बांधना चाहिए और रोगी पशु के खानपान की व्यवस्था अलग से करनी चाहिए। 
  • इसके अलावा पशु को कौन सा रोग हुआ है या वो किस तरह की जीवाणुओं से संक्रमित है। इसके बारे में पता करना चाहिए।
  • इसके लिए पशुपालक भाई किसी डॉक्टर या जानकार की सलाह ले सकते हैं। 
  • एक बार पता चल जाए कि पशु को कौन सा रोग हुआ है तो पशुपालक भाई को इससे संबंधित उपचार प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। 
  • इसके अलावा पशुपालक भाई चाहे तो उपचार प्रक्रिया के साथ घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। 
  • मानसून के दौरान अगर पशु रोग की गिरफ्त में आ गया है तो पशुपालक भाइयों को कुछ अन्य काम भी करने होंगे। 
  • इसमें सबसे पहला है कि पशु को बारिश से बचाए रखने के लिए एक सही शेड में रखें। 
  • पशु के आस पास गीला या गंदगी बिल्कुल भी न रहने दें. 
  • पशु को सही समय और सही मात्रा में हरा चारा और सूखा चारा दें। 
  • पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो जाए इसके लिए प्रोटीन, विटामिन सी, जिंक युक्त आहार खिलाएं। 
  • पशु को समय – समय पर डॉक्टर को दिखाते रहें।  
  • पशु को पीने का पानी समय – समय पर देते रहें। 
  • मानसून के दौरान पशु को नीम के पानी से नहलाना चाहिए। 
  • पशु को थनैला जैसा रोग होने पर उसके दूध का उपयोग न करें

मानसून के दौरान कुछ अन्य बातों का ध्यान जरूर रखें। 

  • स्वस्थ पशु को रोगी पशु के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए। 
  • रोगी पशु का झूठा आहार या पानी स्वस्थ पशु को नहीं देना चाहिए। 
  • पशुओं को इस दौरान खुले में चरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। 
  • पशुओं का मानसून से पहले टीकाकरण करवा लेना चाहिए। 
  • मानसून से पहले पशुशाला की मरम्मत करा लेनी चाहिए। 
  • बारिश का पानी और अन्य कचरा पशुओं के आस पास एकत्रित न हो इसका ख्याल रखना चाहिए। 
  • अगर पशु को रोग किसी चोट की वजह से हुआ है तो पशु के घाव का इलाज कराएं

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मानसून में पशु खरीदते समय रखेंगे इस बात का ध्यान तो नहीं होगा नुकसान

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पशुपालन जगत से जुड़े हुए लोग भारत की जीडीपी में एक अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में पशुपालकों को अगर किसी तरह का आर्थिक नुकसान होता है, तो ये नुकसान देश की जीडीपी का भी है। पशुपालकों को इस तरह के नुकसानों से बचाने के लिए सरकार और कुछ निजी संस्थान बड़े प्रयास करते रहते हैं। लेकिन बावजूद इसके पशुपालकों किसी न किसी वजह से आर्थिक नुकसान हो ही जाता है। आज हमारे इस लेख के जरिए हम पशुपालक भाइयों की आय को बढ़ाने और नुकसान से बचाने का एक तरीका बताएंगे।

 पशुपालकों की आय का बड़ा हिस्सा पशु खरीदने पर ही जाता है। ऐसे में गलत मौसम के दौरान खरीदा गया गलत पशु पशुपालक को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए आज के इस लेख में हम अपने पशुपालक भाइयों को बताएंगे कि वह मानसून के दौरान किस तरह का पशु खरीदें और किस तरह के पशु को बिल्कुल भी न खरीदें। अगर आप एक पशुपालक हैं ये महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख पर अंत तक बने रह सकते हैं।

मानसून में पशु खरीदते समय सावधानी क्यों जरूरी 

मानसून के दौरान पशुओं को रोग की चपेट में आने का खतरा अधिक होता है। ये रोग इतने संक्रामक और खतरनाक होते हैं कि ये पशु की जान रातों रात ले लेते हैं। आज हम इसलिए जरूरी है कि पशुपालक भाई मानसून के  दौरान एक सही पशु का ही चुनाव करें। वरना पशु पर लगाई गई पूरी धनराशि बर्बाद हो सकती है।

मानसून में कैसा पशु न खरीदें 

डेयरी उद्योग में काम करने वाले पशुपालक भाई मानसून के दौरान एक ऐसा पशु बिल्कुल भी न खरीदें जो 7 से 8 महीने के गाभिन हो। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भावस्था के इस समय पशु के रोग की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहद कमजोर हो जाती है। इसके अलावा रोग के चलते पशु का गर्भपात होने का खतरा भी अधिक रहता है। इस मौसम में लगने वाले गलघोटू जैसे रोग पशु को रातों रात मौत की नींद सुला देते हैं। इसलिए मानसून में ऐसा पशु न खरीदें जो 7 से 8 महीने का गाभिन हो।

मानसून में कैसा पशु खरीदें और क्यों

  1. पशुपालक भाइयों को मानसून के समय ऐसा गाय या भैंस खरीदनी चाहिए जो 2 से 3 माह की गाभिन हो। 
  2. ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भावस्था के इस काल में पशु को अधिक देखभाल की जरूरत नहीं होती। 
  3. इसके साथ ही पशु का प्रसव फरवरी से मार्च के बीच होता है। जिस समय बाजार में दूध और उससे बने उत्पादों की मांग काफी हद तक बढ़ जाती है। और दूध के दाम भी बढ़ने लगते हैं।
  4. अगर इस दौरान पशु का प्रसव हो जाता है तो बाजार की डेयरी उत्पादों की मांग का पशुपालक भाई लाभ उठा सकते हैं। पशुपालक भाई अगर इस छोटी सी बात का ध्यान रखें तो वह अपनी आय में इजाफा कर सकते हैं।

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