(BEE VENOM) मधुमक्खी के जहर को बेचकर बन सकते हैं करोड़पति। BEE FARMING

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एक ग्रामीण क्षेत्र में रहते हुए अपनी आय को बढ़ाना किसानों को सबसे मुश्किल लगता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। किसान भाई अगर अपनी सोच को बदल दें और तकनीक में कुछ नई चीजें शामिल कर लें, तो वे न केवल अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। बल्कि अपना भविष्य भी सुरक्षित कर सकते हैं। आज हम आपको अपने इस लेख और वीडियो में Bee Venom से जुड़ी एक जानकारी देने वाले हैं। 

ये बी वैनम यानी मधुमक्खी का जहर बाजार में करोड़ों रुपए में बिकता है। आज के समय में आपने लोगों को मधुमक्खी का शहद बेचते हुए देखा होगा। लेकिन बता दें कि अधिकतर लोग मधुमक्खी पालन शहद के लिए नहीं बल्कि उनके जहर के लिए करते हैं। आइए आज विस्तार से जानते हैं आखिर क्यों मधुमक्खियों के जहर की कीमत करोड़ों में है और ये किस काम में आता है।

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क्या है बी वैनम और क्यों है इतना महंगा 

आप सभी को कभी न कभी मधुमक्खी ने जरूर काटा होगा। इसके काटने के बाद आपके शरीर में एक डंक रह जाता है और जहां ये डंक लगा रह जाता है, वहां सूजन और खुजली होने लगती है। ऐसा इसलिए क्योंकि मधुमक्खी के इस डंक में जहर होता है। इसी जहर की कीमत की करोड़ों में होती है। मधुमक्खी का ये जहर कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा एक मधुमक्खी अपने जीवन में बेहद कम ही मात्रा में जहर छोड़ सकती है। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से BEE Venom की कीमत बहुत ज्यादा है। 

बी वेनम या मधुमक्खी के जहर के फायदे 

मधुमक्खी के जहर का उपयोग बहुत सी दवाओं में और बीमारियों के इलाज में किया जाता है। आपको बता दें कि कुछ लाइलाज बीमारी जैसे गठिया, ब्रेस्ट कैंसर और कई दूसरी तरह के कैंसर की दवाओं में ये जहर उपयोग में लिया जाता है। ऐसे कई देसी उपाय भी हैं, जिनके मुताबिक गठिया को ये बी वेनम पूरी तरह से ठीक कर सकता है। 

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बी वेनम को एकत्रित करने की मशीन 

बाजार में ऐसी कई कंपनियां है जो मधुमक्खियों के जहर को एकत्रित करने की मशीन मुहैया कराती है। ये मशीन बेहद छोटी होती हैं और इनके ऊपर कुछ पतले से तार लगे होते हैं। ये मशीन बिजली के जरिए चलती है। इस मशीन के तारों के नीचे एक कांच ग्लास या शीशा लगा होता है। इस मशीन को मधुमक्खियों के छत्ते के गेट पर लगाया जाता है।

यहां जैसे ही मधुमक्खी बैठती है तो इस मशीन के तारों से उन्हें करंट लगता है। ये बेहद हल्का होता है। जिससे मधुमक्खी को कुछ नहीं होता, बस वे गुस्सा हो जाती हैं। इसके बाद वो मशीन पर डंक मारती है। इससे उनका जहर तो शीशे पर रह जाता है। लेकिन डंक नहीं टूटता। इससे मधुमक्खियां जीवित भी रहती हैं और लंबे समय तक बार – बार जहर छोड़ सकती हैं।  

मधुमक्खी के जहर की कीमत 

अगर आप बी वेनम एकत्रित कर कमाई करना चाहते हैं तो बता दें कि इसकी कीमत आपको 8 से 10 हजार रुपए ग्राम में बिक सकता है। यानी अगर आप इस जहर की मात्रा एक किलो रखें तो इससे आपको 80 लाख से 1 करोड़ रुपए तक मिल सकता है। हालांकि इसमें जहर की गुणवत्ता का बेहतर होना बहुत जरूरी है। इसके अलावा आप मधुमक्खी का जहर कितना एकत्रित कर पाते हैं, ये भी इसकी कीमत को बढ़ा या घटा सकता है। 

मधुमक्खी का जहर एकत्रित करने में लागत

अगर आप पहले ही मधुमक्खी पालन कर रहे हैं तो जहर एकत्रित करने के लिए आपको ये जहर एकत्रित करने वाली मशीन खरीदनी होगी। इस एक मशीन की कीमत करीब 10 से 12 हजार रुपए है। ऐसे में अगर आप ये मशीन 100 से 200 खरीदें तो आप अच्छी मात्रा में जहर एकत्रित कर पाएंगे। 

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जानिए कैसे Aeroponics तकनीक से हवा में की जाती है आलू की खेती।

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अगर भारत को एक विकसित देश बनाना हैं तो इसके लिए जरूरी है कि किसानों की आय बढ़े। इसके अलावा कृषि क्षेत्र में हो रहे आधुनिक बदलावों को छोटे – छोटे स्तर पर भी अपनाया जा सके। इसलिए आज हम एक ऐसी तकनीक लेकर आए हैं। जिसके जरिए आप आसानी से हवा में आलू की खेती कर सकते हैं। ये बात सुनने में अजीब लग सकती है। लेकिन है पूरी तरह सच। 

आज के समय में बहुत सी जगह पर एरोपोनिक्स तकनीक के जरिए आलू की खेती की जा रही है। आज हम इसी तकनीक को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे। इसके साथ ही एरोपोनिक्स तकनीक के जरिए खेती करने के फायदे और लागत क्या है, ये भी जानेंगे। अगर आप भी हवा में आलू की खेती करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें।

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क्या है एरोपोनिक्स तकनीक 

ये आज के युग की एक ऐसी तकनीक है जिसमें बिना मिट्टी के खेती की जाती है। इसमें पौधों की जड़ों को एक अंधेरी जगह में हवा में रखा जाता है। वहीं फसल के ऊपरी भाग को सूरज कके सामने रखा जाता है। इसमें फसल की जड़ों को सीधा पोषक तत्व दिए जाते हैं और इससे फसल तेजी से बढ़ने लगती है और आलू जैसी सब्जी की फसल भी 40 से 70 दिन में तैयार हो जाती है। 

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एरोपोनिक्स तकनीक से खेती के फायदे 

इस तकनीक के जरिए खेती करने के कई फायदे हैं। जिनमें से सबसे बड़ा फायदा ये है कि इस तरीके से खेती करने से पानी की बचत हो सकेगी और ऐसी जगह भी आलू उगाया जा सकेगा। जहां पानी की कमी बहुत ज्यादा है। 

एरोपोनिक्स तकनीक के जरिए खेती करने का दूसरा बड़ा फायदा ये है कि आलू की गुणवत्ता बहुत बेहतर होगी। इसके अलावा आलू का आकर भी एक जैसा होगा। जिसके चलते इन्हें चिप्स कंपनियों के जरिए बेचा जा सकेगा। 

एरोपोनिक्स तकनीक से खेती करने के लिए आपको उपजाऊ मिट्टी की जरूरत भी नहीं होती। ऐसा इसलिए क्योंकि ये खेती हवा में होती है और इस तकनीक में मिट्टी का योगदान नहीं होता। 

कैसे काम करती है एरोपोनिक्स तकनीक 

  • इसमें फसल का जड़ वाला हिस्सा अंधेरे में और हवा में रहता है। इसके ठीक नीचे कुछ नोजल लगे होते हैं। 
  • ये नोजल समय – समय पर पोषक तत्वों का छिड़काव फसल पर करते हैं। 
  • इन नोजल में मौजूद पोषक तत्व एक टैंक से पानी के जरिए फुहार के रूप में आते हैं। 
  • टैंक में पोषक तत्वों का घोल डाला जाता है और हर दो सप्ताह में बदला जाता है। 
  • फसल पर हर 5 मिनट बाद 30 सेकंड तक पोषक तत्वों की फुहार पड़ती रहती है। 
  • फसल की ताजगी बनाए रखने के लिए इसके पत्तों पर पानी की फुहार ऊपर से छोड़ी जाती है। 
  • ये पूरी यूनिट इलेक्ट्रिसिटी से चलती है और पूरी तरह ऑटोमेटिक होती है। 
  • इसके अलावा फसल को कीड़ो से बचाने के लिए समय – समय पर कीटनाशक डाला जाता है। 

एरोपोनिक्स तकनीक में लागत 

खेती करने की ये तकनीक थोड़ी महंगी जरूर है। लेकिन ये एक बार का निवेश किसान भाइयों को 10 साल तक आराम दे सकता है। इस यूनिट की लागत 6 से 10 लाख रुपए हो सकती है। 

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पशुपालन करने वालो की आय को दोगुना कर सकती है WE STOCK की मशीन

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पशुपालक अक्सर पशु की उत्पादन क्षमता और उसकी सेहत को लेकर फिक्रमंद रहते हैं और रहे भी क्यों न। हर साल देश में न जाने कितनी गाय और भैंस सही समय पर बीमारी के न पता चलने की वजह से जान गंवा देती हैं। ऐसे में पशुओं की देखभाल सही तरह से कैसे की जाए, ये सवाल सभी को परेशान करता है। लेकिन अब और नहीं, इस समस्या का अंत अब हो गया है।

 दरअसल भारत की ही एक ब्रेनवायर्ड नाम की कंपनी ने एक ऐसी तकनीक खोज ली है। जिससे गाय की सेहत से जुड़ी हर छोटी बड़ी जानकारी आपको मिल जाएगी। आज हम आपको अपने इस लेख और वीडियो में इसकी जानकारी देंगे। अगर आप भी अपनी गाय की सेहत और उसकी उत्पादकता की जानकारी समय – समय पर प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारी इस वीडियो को अंत तक देखें।

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क्या है ये मशीन

आपको बता दें कि केरल के दो युवाओं ने इस मशीन को बनाया है। इस मशीन को वी स्टॉक का नाम दिया है। इस मशीन के दो हिस्से हैं। जिनमें से एक पशु के कान पर लगता है और ये पशु के जबड़े के जरिए पशु की सेहत हीट साइकिल, सेहत आदि का पता लगाता है। इसके बाद मशीन का दूसरा हिस्सा किसी रिसीवर की तरह काम करता है। ये रिसीवर पशु फार्म पर लगाया जाता है। एक पशु फार्म पर केवल एक रिसीवर से ही बहुत सी गाय की जानकारी संग्रहित की जा सकती है। 

वी स्टॉक की ऐप 

जब मशीन पशु की जानकारी एकत्रित कर लेती है और रिसीवर तक पहुंचा देती है। इसके बाद पशु की सारी जानकारी इस मशीन के लिए मुहैया कराई गई ऐप पर दिखाई देने लगती है। इस ऐप पर पशु की हीट साइकिल से लेकर पशु के पूरी दिनचर्या और खानपान की जानकारी भी मिल जाती है। इस ऐप पर हर 10 सेकंड में जानकारी अपडेट होती है। जिसकी वजह से पशुपालक को पता चलता रहता है कि पशु ठीक है या नहीं। 

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वी स्टॉक मशीन के फायदे 

ये मशीन एक ऐसी पहल है जिसके जरिए लाखों पशुओं को मौत से और गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है। यही नहीं वी स्टॉक के जरिए पशुओं की हीट साइकिल का पता समय पर चल जाता है। जिसकी वजह से गाभिन समय पर कराया जा सकता है। जब पशु का गर्भाधान समय पर नहीं हो पाता तो ऐसे में उसकी हीट साइकिल 25 दिनों के बाद आती है। इस स्थिति में पशु को काफी आर्थिक नुकसान होता है। लेकिन इस मशीन से इस स्थिति से बचा जा सकता है और पशु को समय पर गाभिन कराया जा सकता है। 

वी स्टॉक मशीन की कीमत 

अगर आप के पशु के लिए इसे खरीद रहे हैं तो इसके लिए आपको 4500 रुपए खर्च करने होंगे। लेकिन अगर आप अधिक पशुओं के लिए ये खरीद रहे हैं तो आपको रिसीवर केवल एक ही चाहिए होगा और कान में लगने वाली मशीन पशु जितनी ही खरीदनी होगी। केवल कान में लगाई जाने वाली ये मशीन 1500 रुपए में आपको मिल जाएगी। 

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कहां से ले ये वी स्टॉक मशीन 

इस मशीन को खरीदने के लिए आपको इस कंपनी की साइट पर जाकर संपर्क करना होगा। इसके लिए गूगल पर ब्रेनवायर्ड सर्च करना होगा। इसके बाद कंपनी की साइट आपको दिख जाएगी। यहां जाने के बाद आपको कंपनी से संपर्क कर के मशीन खरीद सकते हैं। 

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Aquaponic तकनीक से खेती का तरीका, खर्च और फायदे

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आज के आधुनिक युग में सब कुछ तकनीक के माध्यम या मॉडर्न तरीके से किया जा सकता है। ऐसा ही एक मॉडर्न तरीका खेती के लिए उपयोग में लिया जा रहा है। ये एक ऐसा तरीका है जिसके जरिए फसल दो से तीन गुना तेजी से बढ़ने लगती है। हम बात कर रहें है Aquaponic Technology के बारे में। ये एक ऐसी तकनीक है जिसमें न तो अधिक भूमि की जरूरत है और न ही खाद, फर्टिलाइजर और कीटनाशकों की। इस तकनीक में मिट्टी का उपजाऊ होना भी जरूरी नहीं है। 

यानी कि ये तकनीक पूरी तरह से पानी पर ही काम करती है। आज हम आपको एक्वापोनिक तकनीक से खेती करने का तरीका भी बताएंगे। इसके अलावा एक्वापोनिक तकनीक में कितना खर्च आ सकता है और इसके जरिए कितनी आय अर्जित की जा सकती है। इसके बारे में भी बताएंगे। अगर आप एक्वापोनिक तकनीक से जुड़ी किसी भी प्रकार की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें। 

क्या है एक्वापोनिक तकनीक 

एक्वापोनिक दो शब्दों के जोड़ से मिलकर बना है। इसमें पहला शब्द है एक्वा और दूसरा है पोनिक। एक्वा का अर्थ होता है पानी। वहीं पोनिक का अर्थ होता है बढ़ना। इसे जोड़ें तो पानी के माध्यम से बढ़ना या ग्रो करना। इस तकनीक में किसान भाई खाद के तौर पर मछली के मल से भरे हुए पानी का उपयोग करते हैं। इस एक्वापोनिक तकनीक में मछली के कंटेनर या टब को फसल से जोड़ा जाता है। इसके बाद मछली के मल वाला पानी फसल तक पहुंचकर उन्हें पोषक तत्व देता है। चलिए विस्तार से समझते हैं इस तकनीक के बारे में। 

एक्वापोनिक तकनीक कैसे काम करती है 

इस तकनीक के लिए आपको कुछ अलग – अलग चीजों की जरूरत पड़ती है। इस तकनीक को हम आपको कुछ चरणों में समझाते हैं। चलिए शुरू करते हैं पहले चरण से। 

सबसे पहले एक्वापोनिक तकनीक से खेती करने के लिए आपको कुछ बड़ी टंकी ये कंटेनर चाहिए होते हैं। इस कंटेनर के अंदर आपको मछलियां रखनी होती हैं और उन्हें समय – समय पर अधिक मात्रा में आहार देना होता है। इसी कंटेनर के अंदर आपको वॉटर पंप रखना होता है जो इस पानी को फसलों तक पहुंचाने का काम करता है। 

अब वाटर पंप से निकला हुआ पानी पूरी फसल तक पहुंचे। इसके लिए आपको एक ऐसी फिटिंग करानी होती है। जिससे फसल तक पानी पहुंचकर अंत में घूमकर वापस मछलियों के वाटर कंटेनर में आ जाए। 

फसल की बेहतर उपज के लिए उनकी जड़ों का हिस्सा पानी में रहता है और ऊपरी हिस्सा हवा में रहता है। फसल को आधा पानी में रखने के लिए एक बोर्ड और कुछ ऐसे प्लास्टिक के पॉट्स की जरूरत होती है, जो नीचे से थोड़े खुले हों ताकि उसमें पानी जा सके और जड़ों को पोषक तत्व मिल सकें। 

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान फसल को पोषक तत्व मिल जाते हैं और फसल पानी से पोषक तत्व ले लेते हैं। इसके बाद फिल्टर हुआ पानी वापस मछलियों के कंटेनर में चला जाता है। इसी तरीके से ये एक्वापोनिक खेती की जाती है। 

फसल को पोषक तत्व कैसे मिलते हैं

साधारण खेती में फसल को पोषक तत्व फर्टिलाइजर और खाद के जरिए मिलते हैं। वहीं इस तकनीक में जब मछलियों को अधिक मात्रा में अच्छा आहार दिया जाता है, तो आहार के अंदर जो  पोषक तत्व होते हैं। वो मछलियों के मल में भी मिल जाते हैं। अब ऐसे जब ये मल वाला पानी फसल तक पहुंचता है तो फसल को जरूरी पोषक तत्व इसी के जरिए मिल जाते हैं। वहीं इसके साथ ही पानी भी अपने आप ही फिल्टर हो जाता है। 

एक्वापोनिक तकनीक से खेती करने के फायदे 

इस तकनीक के जरिए फसल 2 से 3 गुना तेजी से बढ़ती है। जिसके जरिए किसान भाई अधिक आय अर्जित कर सकते हैं। इसके इस तरह की खेती में मौसम का बदलना भी उतना असर नहीं डालता।  इसके अलावा ये तकनीक कम भूमि पर भी आजमाई जा सकती है। इसके जरिए किसान भाइयों को पता चल जाता है कि ये तकनीक उनके लिए कारगर है या नहीं। 

फसल के बढ़ने के अलावा किसान भाई मछलियों को बेचकर भी पैसा कमा सकते हैं। ऐसा बड़े स्तर पर बहुत से किसान कर रहे हैं। इस खेती के जरिए ऐसे कई किसान है जो साल में 5 करोड़ रुपए तक कमा रहे हैं। 

एक्वापोनिक में खर्च 

इस तकनीक के जरिए खेती करने में 5 लाख से अधिक तक का खर्च आ सकता है। ऐसे में हर किसान इस तकनीक के जरिए खेती कर पाए, ये कहना संभव नहीं है। लेकिन ये पूरी तरह फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि इस तकनीक का एक बार का निवेश किसान भाई को जिंदगी भर कमाई करा सकता है। 

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जानिए इस Muck Spreader Machine के फायदे, कीमत और उपयोग के तरीके।

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भारत देश एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन बावजूद इसके हमारे देश में खेती से जुड़ी कई समस्याएं हैं जिनका समाधान अब भी खोजा रहा है। ऐसी ही एक समस्या है जिसका समाधान हाल ही में निकाला गया है। हम बात कर रहे हैं खेतों में फर्टिलाइजर और खाद फैलाने के बारे में। इस काम में किसान भाइयों का समय और पैसा दोनों ही खर्च होता है।

लेकिन अब इस समस्या को वो मक स्प्रेडर मशीन के जरिए खत्म कर सकते हैं। इस मशीन का इस्तेमाल न केवल बहुत सरल है। बल्कि इसके जरिए 15 लोगों को काम महज 4 मिनट के अंदर – अंदर किया जा सकता है। आज हम आपको अपने इस लेख और वीडियो में इसी मशीन के बारे में बताने वाले हैं। इस मशीन से जुड़ी जानकारी हासिल करने के लिए आप इस लेख पर अंत तक बने रह सकते हैं। 

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कैसे काम करती है फर्टिलाइजर और खाद स्प्रेडर मशीन 

इस मशीन को ग्रीन लैंड एग्रो नाम की एक कंपनी ने बनाय़ा है। ये मशीन ट्रैक्टर से अटैच होकर काम करती है। ये मशीन देखने में ट्रेली की तरह है। इसके बाहरी ओर बड़ी गोलाकार रोड लगी हैं और उन पर कुछ ब्लेड लगे हैं। इनके पीछे एक हाइड्रोलिक गेट है। जिसे ड्राइवर रिमोट के जरिए खोल सकता  है। जैसे ही ये गेट खुलता है तो ये गोलाकार रोड और इस पर ब्लेड घूमने लगते हैं। जिससे ट्रेली में रखी गई खाद और फर्टिलाइजर तेजी से खेत में दूर तक फैलने लगता है। 

Muck Spreader Machine की क्षमता 

इस मशीन में एक समय पर 150 स्क्वैर फुट माल भरा जा सकता है। वहीं इस माल को जमीन पर खाली करने में महज 4 मिनट का ही समय लगता है। ये मशीन उन सभी लोगों के लिए एक उम्मीद बन सकती है जिन्हें समय पर लेबर या काम करने वाले लोग नहीं मिलते। 

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मशीन का फायदा 

ये मशीन महज 4 मिनट में उतना काम कर देती है। जितना 15 लोग दिनभर में करते हैं। इसके इस्तेमाल का सबसे बड़ा फायदा है समय की बचत। वहीं अगर बात करें खर्च की तो इसके जरिए 15 लोगों को दी जाने वाली ध्याड़ी को कम किया जा सकता है। ये एक बारी का निवेश है। जिसे किसान भाई लंबे समय तक इस्तेमाल कर सकते हैं। 

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Muck Spreader की कीमत 

ये मशीन आप गुजरात से मंगवा सकते हैं। इस मक स्प्रेडर मशीन की कीमत करीब 6 लाख रुपए हैं। इस मशीन को खरीद कर बड़े जमींदार छोटे किसानों को किराए पर भी दे सकते हैं। इससे मशीन पर खर्च की गई राशि को जल्दी ही वापस पाया जा सकता है। 

हमें उम्मीद है कि आपको हमारा ये लेख और वीडियो पसंद आई होगी। अगर आपको ये वीडियो पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। इसके अलावा आप चाहें तो हमारी एनिमॉल ऐप को डाउनलोड भी कर सकते हैं। हमारी एनिमॉल ऐप आपके बहुत काम आ सकती है। इस ऐप के जरिए न केवल आप पशुपालन से जुड़ी जानकारी हासिल कर सकते हैं। बल्कि अगर आप चाहें तो गाय भैंस खरीदने और बेच सकते हैं। इसके अलावा पशु से जुड़ी समस्या होने पर पशु चिकित्सक से भी सहायता ले सकते हैं। ऐप को डाउनलोड करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

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