– पशुओं की शाला को नियमित रूप से सफाई की जानी चाहिये । मल-मूल को एकत्रित नहीं होने देना चाहिये। – थनों को दुहने से पहले साफ़ करने चाहिये। – दुग्ध दोहन स्वच्छ हाथों से करना चाहिये। – दुग्ध दोहन दिन में दो बार अथवा नियमित अंतराल पर करना चाहिये। – शुरू की दुग्ध-धाराओं को गाढ़ेपन एवं रगँ की जांच कर लेनी चाहिये। – थन यदि गर्म , सूजे एवं दुखते हो टो पशुचिकित्सक से परीक्षण करा लेना चाहिये।
विषय
पशुओं में गर्भपात के लिये बहुत से जीवाणु एवं विषाणु उत्तरदायी होते हैं। गर्भपात गर्भवस्था के विभिन्न चरणों में संभव है। प्रमुख जीवाणु एवं विषाणु जो गर्भपात का कारक है: ब्रूसेला,लेप्टोस्पाइरा, कैलमाइडिया एवम् IBR , PPR विषाणु इत्यादि।
पशुपालन के दौरान पशुओं में कई तरह के रोग पनपने लगते हैं। जिनमें से कुछ तो बहुत खतरनाक और लाइलाज होते हैं। जबकि कुछ पूरी तरह ठीक किए जा सकते हैं। ऐसा ही एक रोग है जो अक्सर दुधारू पशुओं में देखने को मिलता है। आप समझ गए होंगे कि हम थनैला के बारे में बात कर रहे हैं। थनैला रोग बहुत से पशुपालकों की रातों की नींद उड़ा देता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस रोग के होने पर पशु के थन तक काटने की नौबत आ सकती है।
जब पशु के थन काट दिए जाते हैं तो वह बिल्कुल उपयोगी नहीं रहता। जिसके चलते पशुपालक को एक बड़ा आर्थिक नुकसान होता है। आज हम अपने इस लेख में थनैला के कारण या थनैला के जीवाणु के बारे में जानकारियां हासिल करेंगे। अगर आप जानना चाहते हैं कि थनैला रोग के जीवाणु का नाम क्या है और इससे किस तरह से छुटकारा पाया जा सकता है तो लेख पर अंत तक बने रहें।
किस जीवाणु की वजह से होता है थनैला
थनैला रोग हर साल लाखों पशुओं की दूध देने की क्षमता को प्रभावित करता है। आपको बता दें कि यह रोग अमूमन वर्षा ऋतु के समय होता है। इस रोग के पीछे कुछ जीवाणुओं का हाथ है जैसे स्टैफाइलोकोकस, स्ट्रैप्टोकोकस , माइकोप्लाज्मा, कोराइनीबैक्टिरीयम, इ.कोलाई, और फफूंद आदि।
थनैला से पशु बचाए रखने का तरीका
थनैला रोग से पशु को बचाना ही सबसे ज्यादा फायदेमंद रहता है। क्योंकि यह ऐसा रोग है जिसका कोई ठोस इलाज नहीं है। ऐसे में इस रोग से पशु को बचाने के लिए पशुपालक को कुछ जरूरी कदम उठाने चाहिए।
- पशुपालक को पशु के थनों पर हमेशा बारिक नजर बनाकर रखनी चाहिए। अगर पशुपालन करने वाले लोग थनों के आकार पर नजर नहीं बनाकर रखते तो ऐसे में पशु को यह रोग हो सकता है।
- किसान या पशुपालन करने वाले लोग जब गाय या भैंस का दूध पूरी तरह नहीं निकालते तो ऐसे में दूध भीतर ही खराब होने लगता है जिसकी वजह से पशु के थनों में सूजन आने लगती है और पशु थनैला रोग का शिकार हो जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए दूध दुहने का काम सही तरह से करना बहुत जरूरी है।
- बारिश के दौरान पशु को गिली मिट्टी में न रहने दे। मिट्टी में मौजूद जीवाणुओं की वजह से पशु थनैला रोग से संक्रमित हो सकता है।
- किसान भाई अगर पशुओं को थनैला रोग से बचाना चाहते हैं तो पशु के द्वारा प्राप्त दूध की जांच करा सकते हैं। समय – समय पर दूध की जांच के जरिए पता चल जाता है कि पशु थनैला से संक्रमित है या नहीं।
- अगर आपके पशु को यह रोग हो गया है तो बिना वक्त गवाएं डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और उपचार प्रक्रिया को शुरू करा देना चाहिए।
आशा करते हैं हमारे द्वारा दी गई थनैला रोग की जानकारी से आप संतुष्ट होंगे। अगर आप इसी तरह की महत्वपूर्ण जानकारियां पढ़ना चाहते हैं तो आप हमारी Animall App भी डाउनलोड कर सकते हैं। इस ऐप के जरिए पशुपालक आसानी से न केवल हमारे ब्लॉग पढ़ सकते हैं। बल्कि अपने लिए पशु खरीद भी सकते हैं और अपना पशु बेच भी सकते हैं। यही नहीं पशु को किसी तरह की समस्या होने पर डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। हमारी एनिमॉल ऐप डाउनलोड करने के लिए इस विकल्प पर क्लिक करें।
बहुत से जीवाणु रोग बछड़ों में दस्त रोग का कारण है। वर्षा ऋतु की यह एक प्रमुख समस्या है। कोलिबैसिलोसिस, बछड़ों में दस्त एवम आंतों कि सूजन का एक प्रमुख कारक है, जिसमें बहुत से बछड़ों की मृत्यु भी हो जाती है।
पशुओं में चर्मरोग कई कारणों से होते है जिनमें से संक्रामक रोग भीएक प्रमुख कारण है। बहुत से जीवाणु रोग एवं बाहय अंगों को प्रभावित करते हैं। चर्मरोग का एक प्रमुख जीवाणु कर्क स्टैफाइलोकोकस है जो बालों का गिरना चमड़ी का खुरदुरापन एवं फोड़े-फुन्सियों का कारण बनता है। पशुओं में चर्म रोग का एक प्रमुख कर्क फँफूद भी होता है (ड्रमटोमाइकोसिस)।