कौन से संक्रामक रोग प्रजजन क्षमता को प्रभावित करते है?

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पशुओं की प्रजनन प्रणाली में बहुत से जीवाणु एवं विषाणु फलित-गुणित होते हैं जोकि प्रजनन क्षमता में कमी एवम् गर्भसपात का कारण होता है। निम्न प्रमुख संक्रामक रोगवाहक हैं जोकि प्रजनन सम्बंधी समस्याएं उत्पन्न करते हैं:- ब्रूसेला, लिसिटरिया, कैलमाइडिया और IBRT विषाणु इत्यादि हैं।

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बारिश के दौरान पशुओं में होने वाले रोग और बचाव के तरीके

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किसान और पशुपालन से जुड़े हुए लोगों के जीवन से जुड़ी कई समस्याओं को समाप्त करने की कोशिश हम कर चुके हैं। आज हम फिर से इसी ओर एक कदम बढ़ाने जा रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि पशुपालन से जुड़े हुए लोगों की आय का एक बड़ा हिस्सा पशुओं की देखरेख में चला जाता है। लेकिन पशुपालक भाई अपनी कमाई के एक मोटे हिस्से को बचा भी सकते हैं। पर जरूरी है कि वह इसके लिए कुछ सावधानी बरतें। 

दरअसल पशुओं में सबसे अधिक रोग या बीमारियां बारिश के मौसम के दौरान ही देखने को मिलती है। ऐसे में अगर पशुपालन से जुड़े लोग बारिश के मौसम के दौरान पशुओं की देखरेख सही तरह से करें तो वह अपनी मेहनत की कमाई को बचा भी सकते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं आखिर वह कौन से रोग हैं जो पशुओं में बारिश के दौरान होते हैं और पशुओं को कैसे इन बीमारियों से बचाया जा सकता है। 

बारिश के दौरान होने वाले रोग 

किसान भाइयों को यह बात समझनी होगी कि बारिश के मौसम के दौरान कई तरह के जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं और यह परजीवी पशुओं को रोग से संक्रमित कर देते हैं। चलिए जानते हैं बारिश के दौरान पशुओं को कौन – कौन सी बीमारियां हो सकती है। 

गलघोंटू 

पशुओं में बारिश के दौरान गलघोंटू नामक रोग पैदा हो सकता है। आपको बता दें कि यह रोग Multocida नामक जीव के कारण होता है। इस रोग का यह जीव बारिश के दिनों में पशुओं को अपनी चपेट में ले लेता है। आपको बता दें कि इस रोग के दौरान पशु के शरीर का तापमान बहुत तेजी से बढ़ने लगता है, आंखें लाल हो जाती है और दोनों टांगों के बीच सूजन पैदा हो जाती है।

लंगड़ा बुखार

लंगड़ा बुखार या ब्लैक क्वार्टर यह एक बेहद संक्रामक और खतरनाक रोग है जो बारिश में मिट्टी के अंदर पैदा होता है। इस रोग का खतरा उन पशुओं को अधिक रहता है जिनके शेड का फर्श मिट्टी वाला होता है। गीली मिट्टी में इस रोग का जीवाणु बीजाणु पैदा करता है और सालों तक मिट्टी में रहता है और दशकों तक पशुओं को संक्रमित करता रहता है। 

खुरपका और मुंहपका रोग 

यह रोग भी बारिश के दिनों में पशुओं को अधिक परेशान करता है। इस रोग के दौरान पशु के मुंह और जीभ के आस पास छाले पड़ने लगते हैं। यूं तो इस रोग का उपचार संभव है। लेकिन इसमें पशुपालक का पैसा अधिक खर्च हो सकता है। इसलिए बारिश के दौरान पशुओं का ध्यान अधिक रखें। 

दस्त 

बारिश के मौसम के दौरान पशुओं की स्थिति बिगड़ने का खतरा अधिक रहता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस मौसम में पशुआहार में भी कीड़े या जीवाणु मिल जाते हैं। यह जीव पशु का पेट खराब कर देते हैं। जिसकी वजह से पशुओं को दस्त हो सकते हैं। 

बारिश में पशुओं को रोग से बचाने का तरीका

किसान भाइयों को बारिश के दौरान इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि पशुओं को गीली मिट्टी पर न रहने दें। इसके अलावा उनके आस पास अधिक सफाई बनाकर रखें और पशुशाला गीली न रहे। इसके अलावा बारिश से पहले पशुओं को रोग से बचाने वाले टीके जरूर लगवाएं। 

हमें उम्मीद है कि पशुपालकों को यह लेख पसंद आया होगा। अब अगर पशुपालक भाई पशुओं को इस तरह के रोग से बचाना चाहते हैं तो जरूरी इंतजाम करके रखें। इसके अलावा अगर पशुपालक भाई इस तरह की जानकारी पढ़ते रहना चाहते हैं तो हमारी एनिमॉल ऐप को डाउनलोड कर लें। ऐप के जरिए पशु बेचने और खरीदने का काम भी किया जा सकता है। इसके साथ ही पशु चिकित्सक से भी सहायता ली जा सकती है। 

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संक्रामक किसानों/पशुपालकों की आर्थिक स्थिती को कैसे प्रभावित करते है?

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मुख्यतः विभिन्न संक्रामक रोग पशुओं के विभिन्न अंगों को प्रभावित करके अंततः कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है। भेड़-बकरियों में उन का उत्पादन प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त ये रोग मास उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता को कम करते है। इसके अतिरिक्त ये रोग गर्भपात एवं प्रजनन क्षमता को कम करता हैं।

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संक्रामक रोगों के प्रमुख लक्षण क्या है?

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संक्रामक रोगों के प्रमुख लक्षण निम्न है:- – तीव्र ज्वर – भूख ना लगना – सुस्ती – सूखी थोंथ – कमजोर रूमिनल गति अथवा पूर्ण रूप से स्थिर होना – दुग्ध उत्पादन में अचानक कमी – नाक-आँख से स्त्राव – दस्त या कब्ज का होना – जमीन पर गिर जाना – लेट जाना

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राजस्थान में गाय-भैंस के प्रमुख विषाणु जनित रोग कौन-कौन से है?

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गाय-भैंस के प्रमुख विषाणु जनित रोग- – फुट एवं माउथ (मुहँ-खुर पका) रोग – इन्फैक्सियस बोआइन राइनोट्रैकाईटिस (IBRT) – बोआइन वाइरल डायरिया (B.V.D) – इपैम्हरल फीवर

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