बीमारियों से बचाए रखने के लिए गाय का टीका कब लगाना चाहिए

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भारत देश में गाय को महज एक पशु नहीं, बल्कि माता के तौर पर भी देखा जाता है। गाय का उपयोग न केवल दूध निकालने और खेती के लिए किया जाता है। बल्कि हिंदू धर्म के वाचक इस पशु की पूजा भी करते हैं। यही कारण भी है कि गाय की सेहत का ध्यान रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई गाय का टीका का अभियान भी चलया जाता है। 

आपको बता दें कि जिस तरह से किसी शिशु का समय – समय पर टीकाकरण कराना जरूरी होता है। उसी तरह गाय का टीकाकरण भी बहुत जरूरी होता है। आज हम आपको अपने इस लेख में गाय के टीकाकरण से जुड़ी तमाम जानकारियां साझा करेंगे। इसके साथ ही आप पशुपालकों को यह भी समझाएंगे कि आखिर क्यों गाय का टीकाकरण आवश्यक है। अगर आप भी एक पशुपालक हैं और गाय के टीकाकरण से जुड़ी किसी प्रकार की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख पर अंत तक बने रहें। 

गाय का टीकाकरण क्यों है महत्वपूर्ण

हम सभी जानते हैं कि पशुपालकों के लिए गाय केवल खेती बाड़ी का ही जरिया नहीं है। बल्कि गाय के द्वारा प्राप्त दूध, घी आदि बेचकर भी पशुपालक पैसा कमाते हैं। ऐसे में अगर गाय अस्वस्थ हो जाए तो इससे उनकी दूध देने की क्षमता पर असर पड़ता है। इसके अलावा कई बार गाय कुछ ऐसे रोगों से संक्रमित हो जाती है। 

जिसमें उनके थनों तक को काटना पड़ता है। यही नहीं कई बार कुछ रोगों के चलते गाय की मौत तक हो जाती है। गाय की मृत्यु होने पर या उनके बीमार होने पर गाय के जरिए कमाई जाने वाली आय कम हो जाती है। इसके अलावा पशुपालकों की खेती बाड़ी का काम भी सही तरह से नहीं हो पाता। ऐसे में गाय को खतरनाक रोगों से बचाने के लिए और उन्हें  स्वस्थ बनाए रखने के लिए उन्हें टीके लगवाना जरूरी हो जाता है। 

गाय को लगाए जाने वाले टीके 

गाय एक दुधारू पशु है जिसे समय – समय पर कई टीके देने की आवश्यकता होती है। अब हम ऐसे ही कुछ सामान्य टीकों के बारे में जानेंगे, जो गाय को समय समय पर दिलवाने चाहिए।

गाय को दिया जाने वाला गलघोटू टीका 

गलघोटू रोग एक संक्रामक और खतरनाक रोग है। जिसके दौरान गाय के मुंह से लार गिरती है और सांस लेने में भी दिक्कत होती है। ऐसे में गाय को गलघोटू रोग से बचाने के लिए इन्हें साल में दो बार टीके लगवाए जाते हैं। इस टीके में 5 एमएल एलम दवा होती है, जो चमड़ी के ठीक नीचे इंजेक्ट की जाती है। यूं तो आमतौर पर गलघोटू का टीका जून और दिसंबर के दौरान घर – घर जाकर मुफ्त में  लगाया जाता है। लेकिन अगर कोई पशुपालक अपनी सुविधा के अनुसार गाय का  टीकाकरण कराना चाहते  हैं, तो ऐसा वह कर सकते हैं। लेकिन इसमें डॉक्टर की राय लेना बहुत जरूरी है। 

मुंह खुर (एफ.एम.डी) 

मुंह खुर एक बहुत संक्रामक और खतरनाक रोग है। इस रोग के दौरान पशु के मसूड़ों के पास छोटे – छोटे दाने हो जाते हैं। यह दाने कुछ समय में बड़े छाले और घाव का रूप ले लेते हैं। इसके अलावा कई बार पशु के मुंह में भयंकर दर्द रहने लगता है। जिसकी वजह से वह कुछ खा पी भी नहीं पाता। इस संक्रामक रोग से गाय को बचाए रखने के लिए मुंह खुर का टीका लगाया जाता है। यह टीका पशु को साल में दो बार मई एवं नवंबर में दिया जाता है। आपको बता दें कि पशुओं को मुंह खुर से बचाए रखने के लिए सरकार टीकाकरण का मुफ्त अभियान बड़े स्तर पर चलाती है। इस अभियान में गाय को टेट्रावेलेंट नामक दवा के टीके का 5 एमएल डोज दिया जाता है। यह गाय की चमड़ी के नीचे दिया जाता है।

संक्रामक गर्भपात का टीकाकरण 

गाय और भैंस के गर्भापात की स्थिति ब्रूसेलोसिस नामक जीवाणु के चलते होती है। इस स्थिति में पशु के गर्भधारण करने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है और अधिकतर 6 से 8 वे महीने के दौरान गाय का गर्भपात भी हो जाता है। गाय को इस खतरनाक रोग से बचाए रखने के लिए उसके जन्म के 6 महीने से लेकर 8 महीने की आयु के बीच गाय को यह टीका दिया जाता है। गाय को दिए जाने वाले इस टीके का नाम कोटन -19 स्ट्रेन है। गाय को यह टीका चमड़ी के नीचे दिया जाता है। इसकी मात्रा केवल 5 एमएल ही होती है। 

लंगड़ा बुखार 

लंगड़ा बुखार जिसे लोग काला बुखार के नाम से भी जानते हैं। आपको बता दें कि यह रोग अमूमन गाय भैंस जैसे अधिक वजन वाले जीवों को ही होता है। ऐसे में पशु को लंगड़े बुखार की समस्या से बचाने के लिए समय पर एलम नामक दवा का टीका दिया जाता है। यह टीका पशु को केवल 5 एमएल ही होता है। इसके अलावा लंगड़े बुखार का ह टीका पशु को हर 6 महीने में एक बार दिया जाता है।

गाय के लिए चलाए जाने वाले टीकाकरण अभियान 

हमने जैसा कि आपको बताया था कि देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी पशुपालन के जरिए ही अपना गुजारा करता है। ऐसे में इन पशुओं की देखरेख ठीक से हो और पशु लंबे समय तक स्वस्थ रहें। इसके लिए कई टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं। ऐसे ही कुछ टीकाकरण अभियान हैं जो सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं। इस टीकाकरण अभियान में गाय को गलघोटू, लंगड़ा बुखार, और मुंह खुर जैसे रोगों से बचाने के लिए मुफ्त टीकाकरण देश भरे में हो रहे हैं। 

 

गाय को लगाए जाने वाले सामान्य टीके 

रोग  टीका  डोज टीकाकरण का समय 
गलघोटू एलम  5 एम एल  हर 6 महीने में 
मुंह खुर टेट्रावेलेंट  5 एम एल 6 महीने या इससे कम आयु में
लंगड़ा बुखार  एलम 5 एम एल हर 6 महीने में
संक्रामक गर्भपात कोटन -19 स्ट्रेन 5 एम एल 6 से 8 माह की आयु में

 

गाय को होने वाले अन्य रोग और टीके 

ब्लैक क्वार्टर और इलाज 

यह रोग गाय को बारिश के दिनों में मिट्टी की वजह से होता है। इस रोग के दौरान पशु को तेज बुखार हो जाता है और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। यह रोग होने पर इसकी शुरुआत में ही पशु को पेनिसिलिन का टीका दिया जाता है। 

एनाप्लाजमोसिस और इलाज 

यह रोग गाय को एनाप्लाजमा मार्जिनल जीवाणु के कारण होता है। इस रोग के दौरान पशु के शरीर से खून निकलने लगता है। जिसकी वजह से खून की कमी भी होने लगती है। इस रोग से राहत दिलाने के लिए पशु को अकार्डीकल दवा दी चाहती है। 

थनैला रोग और इलाज

थनैला रोग गाय के थनों से जुड़ा हुआ है। इस दौरान पशु के थन का आकार बड़ा हो जाता है और गाय के दूध निकालने का रास्ता छोटा हो जाता है। इसके अलावा दूध के साथ पस और खून भी निकलने लगता है। थनैला रोग का उपचार केवल समय रहते ही किया जा सकता है। पशु को इस रोग से बचाने के लिए समय – समय पर डॉक्टर से दूध की जांच कराएं। 

तिल्ली रोग और इलाज

तिल्ली रोग पशु को खराब खाना पीना देने से होता है। इस रोग के दौरान पशु शरीर से लुक जैसा रक्त बहने लगता है। इसके अलावा पशु को बुखार भी होता है और शरीर भी अकड़ने लगता है। इस रोग का इलाज केवल यही है कि पशु को खाना पीना साफ सुथरा दिया जाए।

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जानिए गाय और भैंस को मोटा तगड़ा करने के जबरदस्त उपाय

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एक स्वस्थ और तंदुरुस्त पशु न केवल लंबे समय तक जीवित रहता है। बल्कि उसकी दूध उत्पादन क्षमता भी अधिक होती है। यही नहीं एक दुबला पतली गाय या भैंस  को बीमारी लगने का खतरा भी अधिक रहता है। यही कारण भी है जिसकी वजह से अक्सर पशुपालक ऐसे आहार या चारे के बारे में जानना चाहते हैं।

जिसके जरिए गाय और भैंस मोटी तगड़ी हो जाएं। क्या आप भी ऐसे ही आहार और उपाय के बारे में जानना चाहते हैं। अगर हां तो बता दें कि आज आपकी यह खोज पूरी होने वाली है। आज हमारे इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आप अपनी गाय भैंस को मोटा तगड़ा कैसे बना सकते हैं। गाय को मोटा तगड़ा करने के इन उपाय को जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें। 

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गाय और भैंस को मोटा तगड़ा बनाने के उपाय 

शारीरिक रूप से मजबूत इंसान हो या गाय दोनों ही अधिक मेहनत कर सकते हैं। यही नहीं शारीरिक रूप से मजबूत पशुओं के जरिए प्राप्त खाद्य सामग्री की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। इसलिए पशुपालक भाइयों के लिए जरूरी है कि वह अपनी गाय और भैंस को मोटा तगड़ा बनाएं। अब हम आपको नीचे पशु को मोटा तगड़ा बनाने के कुछ घरेलू उपाय और नुस्खे बता रहे हैं। जिन्हें आप आजमा सकते हैं। 

पशु के लिए बाई फैट 

गाय भैंस को शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के लिए और उनकी क्षमता को बेहतर करने के लिए बाई फैट देना फायदेमंद हो सकता है। यह पशु का आहार है जो आपको आपके आस पास की कई दुकानों पर मिल जाएगा। इस बाई फैट को आप अच्छी तरह रोस्ट करके अपनी गाय और भैंस को नियमित रूप से दे सकते हैं।

आप शुरुआत में बाई फैट केवल रोजाना 100 ग्राम ही दें। बाद में इसकी मात्रा को 600 ग्राम तक कर दें। ऐसा कहा जाता है कि बाई फैट देने के कुछ ही समय बाद गाय और भैंस का शारीरिक रूप से मजबूत और मोटी तगड़ी होने लगती है। इसके अलावा पशु को रोजाना इसे देने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर हो जाती है। 

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गाय भैंस को दें बिनौले 

अक्सर पशुपालक और किसान कहते नजर आ जाते हैं कि हरियाणा की गाय भैंस बहुत मोटी और तगड़ी होती हैं। इसके साथ ही यहां के पशु की त्वचा भी बेहद चमकदार होती है। आपको बता दें ऐसा इसलिए है, क्योंकि हरियाणा के लोग अपनी गाय और भैंस को बिनौला खिलाते हैं। आप भी भैंस या गाय को मोटा और तगड़ा करने के लिए बिनौला खिला सकते हैं।

लेकिन ध्यान रहे कि किसी भी सूरत में पशु को कच्चा बिनौला न खिलाएं। ऐसा करने से पशु की तबीयत बिगड़ सकती है। वहीं बिनौला भी रोस्ट या अच्छी तरह पका कर ही पशु को खिलाएं। अगर आप रोजाना ऐसा करते हैं तो इससे कुछ ही समय में आपकी गाय और भैंस मोटी तगड़ी हो जाएंगी। 

सोयाबीन से होगी भैंस मोटी तगड़ी 

किसान और पशुपालक भाई अगर अपनी गाय भैंस को बाईपास फैट और बिनौले नहीं दे पा रहे, तो वह उन्हें सोयाबीन खाने को दे सकते हैं। आपको बता दें कि सोयाबीन किसी भी साधारण दुकान से मिल जाएगी। सोयाबीन को रोजाना पशु को अच्छी तरह रोस्ट करके खिलाएं। आप शुरुआत में गाय या भैंस को केवल 100 ग्राम ही सोयाबीन खिलाएं। इसके बाद धीरे – धीरे उन्हें इसकी अधिक मात्रा देना शुरू करें। ऐसा करने से गाय भैंस मोटी तगड़ी हो जाएंगी। 

सरसों का तेल और दाना

गाय और भैंस को तगड़ा करने का सबसे बेहतर और आसान तरीका है कि आप उसे सरसों के तेल के साथ दाना और खल देना शुरू करें। अगर आप रोजाना सुबह शाम पशु को सरसों का तेल और दाना देते हैं तो इससे पशु में शारीरिक बदलाव देखने को मिलेंगे। इसके सेवन से पशु जल्दी ही मोटा तगड़ा हो जाएगा। 

किसान और पशुपालक भाई इस ब्लॉग पर पढ़ी गई जानकारी को ऐप के माध्यम से भी पड़ सकते हैं। हमारे द्वारा तैयार की गई Animall App न केवल आपको पशु स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करेगी। बल्कि आप पशु खरीदने और बेचने के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। यही नहीं पशु चिकित्सक से राय लेने के लिए भी आप इस ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर आप Animall App डाउनलोड करने की सोच रहे हैं तो आप इस लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं। 

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कैसे लाये अपनी गाय या भैंस को हीट में ?

पशुओं के गर्मी में ना आने के कारण

  • मादा गर्मी के लक्षण तब नहीं दिखा सकती है जब वह बहुत बूढ़ी हो या वह बिना मालिक के ज्ञान के मेल-मिलाप हो जाए I
  • कभी-कभी पशु किसी भी संकेत के बिना गर्मी में आते हैं इसे “चुप्प गर्मी” कहा जाता है और भैंसों में ये आम तौर पर पायी जाती है ।
  • यदि फ़ीड पर्याप्त नहीं है या प्रोटीन, लवण या पानी की कमी है, तो पशु गर्मी में आने में विफल हो सकता है। गर्मी में लाने के लिए आपको मादा की फीड में सुधार करने की आवश्यकता होगी।
  • पशुओं के पेट में कीड़ों क होना या बच्चेदानी में संक्रमण के कारण भी पशु गर्मी में नहीं आते I

पशुओं को गर्मी में लाने के लिए देशी इलाज

  • “बड़ा गोखरू (पेडलियम म्युरेक्स)” 500 ग्राम किण्वित चावल के पानी के 1000 मिलीलीटर में धोया जाता है जो एक तेलीय उत्सर्जन प्रदान करता है। यह पशुओं के मदकाल की शुरुआत से तीन दिन पहले मौखिक रूप से दिया जाता है। स्पष्ट योनि स्राव को देखने के बाद पशु को टीका लगवाया जा सकता है I

बड़ा गोखरू

  • “अश्वगंधा” (विदेनिया सोमनीफेरा) के राइज़ोम्स 150 ग्राम, जिन्जेली बीज 150 ग्राम को अच्छी तरह से 2 मुर्गी के अण्डों और 2 केले के फलों में मिलाकर पेस्ट तैयार करें और पशु को 7 दिनों के लिए दें I यदि पशु तब भी गर्मी में नहीं आता तो 7 दिनों के अंतराल पर फिर से इलाज (केवल 1 दिन के लिए) दोहराएं।

अश्वगंधा

  • पशुओं को गर्मी में लाने के लिए प्रजना या जनोवा नामक गोलियों का सेवन करायें I ये गोलियां केवल पशु चिकित्सक की निगरानी में अपने पशु को दें I

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अन्य नुस्खे

  • यदि गाय या भैंस गर्मी में नही आती है तो कुछ गर्म पदार्थ खिलाना चाहिए। जैसे बाजरा, भूसी, खली, मसूर, चुन्नी, अरहर, अण्डा कबूतर का मल इत्यादि। ये सब खिलाने से जानवर को अवश्य ही लाभ मिलेगा।
  • इसके साथ ही साथ खनिज मिश्रण पर्याप्त मात्रा में (20 से 30 मिलीग्राम प्रतिदिन 20 दिनों के लिए) पशु के आहार में जरूर सम्मिलित करना चाहिए।
  • कभी भी गाय या भैंस को गाभिन (टीका लगवाने) कराने के बाद ठण्ड में या छाया वाले स्थान पर रखना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि गाभिन होने के तुरन्त बाद जानवर को बैठने नहीं देना चाहिए, क्योंकि गाभिन होने के तुरन्त बाद बैठ गया तो सारा वीर्य बाहर निकल जाएगा और वो गाभिन नहीं हो पायेगी। गाभिन होने पर जानवर को कुछ ठण्डा चारा खिलाना चाहिए। जैसे चरी, पुआल, बरसीम, जौ, उर्द, चुन्नी इत्यादि।
  • पशुओं को हर 3 महीने बाद पेट के कीड़ों की दवाई दें I

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जानें गाय भैंस को ठंड में होने वाले रोग के बारे में और उनसे बचाव के तरीके!

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सर्दियों के मौसम का लुत्फ इंसान तो लेते हैं। लेकिन यह मौसम पशुओं के लिए बहुत खतरनाक होता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस दौरान गाय भैंस को कई खतरनाक बीमारियां लग जाती हैं। यह बीमारियां इतनी खतरनाक होती है कि जिसकी वजह से पशुओं की जान तक चली जाती है। जिसके चलते पशुपालकों को आर्थिक नुकसान भी होता है। 

इसलिए पशुपालकों के लिए जरूरी है कि वह सर्दियों के मौसम में होने वाली बीमारियों से पशुओं को बचाकर रखें। आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि ऐसे कौन से रोग हैं जो  गाय भैंस को सर्दियों के दौरान लग सकते हैं। इसके अलावा किस तरह इन रोगों से पशुओं को बचाया जा सकता है। 

दुधारू पशुओं के 10 प्रमुख रोग और उनके उपचार

अफारा रोग 

पशुओं को होने वाला यह रोग पशुपालकों की लापरवाही का नतीजा है। आमतौर पर पशुपालक गाय या भैंस को सर्दियों के दौरान अधिक हरा चारा या बचा हुआ और खराब खाना दे देते हैं। जिसके चलते उन्हें अफारा रोग हो जाता है। आपको बता दें कि इस रोग की स्थिति में पशु के पेट में गैस बन जाती है। जिसकी वजह से पशु खासा परेशान रहता है और चिड़चिड़ा हो जाता है। यही नहीं इसकी वजह से पशु की दूध उत्पादन क्षमता भी कम हो जाती है।  

पशुपालक भाई अपने पशु को इस रोग से बचाए रखने के लिए घर का बचा हुआ खाना कम मात्रा में या कभी – कभी ही दें। इसके अलावा हरे चारे के साथ सर्दियों के दौरान गाय भैंस को गुड़ भी खिलाएं। अगर पशुपालक इन छोटी बातों को ध्यान में रखते हैं तो वह पशु को अफारा रोग से बचा पाएंगे।  

निमोनिया रोग

किसान अक्सर कई बार शेड का निर्माण कुछ इस तरह करा देते हैं, जिसमें हवा की आवा जाही सही प्रकार नहीं हो पाती। इसके अलावा शेड में मौजूद गंदगी या धूल मिट्टी के चलते पशु इस रोग से पीड़ित हो जाता है। इस रोग के दौरान पशु की आंख और नाक से पानी गिरने लगता है।

किसान भाई पशु को निमोनिया के रोग से बचाए रखने के लिए उन्हें एक साफ वातावरण में रखे। इसके अलावा पशु के शेड का निर्माण ही तरह से कराएं। ताकि शेड को साफ भी आसानी से किया जा सके और हवा की आवा जाही भी बाधित न हो। 

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ठंड लगना 

सर्दियों के दौरान अगर पशु को बाहर रखा जाए या उसके ऊपर शेड मौजूद न हो तो ऐसे में उसके शरीर पर ओस गिरती रहती है। जिसकी वजह से पशु बीमार पड़ जाता है और उसका नाक बंद हो जाता है। जिसकी वजह से पशु को सांस लेने में भी खासी दिक्कत होने लगती है। 

पशु को ठंड से बचाए रखने के लिए उन्हें एक अच्छे शेड में रखें। जहां वह सूखे रह सकते हैं। इसके अलावा पशु को ठंड लग जाने की स्थिति में उन्हें भांप दिलाएं। भाप दिलाने के लिए सबसे पहले एक बाल्टी में खौलता हुआ पानी लें और उसके ऊपर घास रख लें। अब पशु के नाक पर एक भारी कपड़ा रखें ताकि पानी से उठता हुई भांप उसके नाक को खोल सके। ऐसा करके आप अपने पशु को सर्दियों में होने वाली बीमारियों से बचा सकते हैं। 

किसान भाइयों को अगर हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी पसंद आई हो, तो इसे अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें। आपको बता दें कि हमारे द्वारा Animall App भी बनाई गई है। आप इस ऐप से पशु खरीद और बेच तो सकते ही हैं। इसके अलावा आप पशुओं के डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं। हमारी ऐप डाउनलोड करने के लिए या तो प्ले स्टोर पर जा सकते हैं या फिर इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं। 

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जानिए गाय के बछड़े की देखभाल किस तरह से करें

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कहा जाता है कि एक पौधे का जितना अच्छी तरह ध्यान रखा जाएगा, वह उतना ही मजबूत पेड़ बनेगा। इसी तरह पशुपालक जितनी अच्छी तरह बछड़े का ध्यान रखेंगे वह उतना ही तंदुरुस्त बैल या गाय बनेगी। पशुपालक अक्सर गाय के ब्याने के बाद बछड़े के ऊपर ध्यान ही नहीं देते।
जिसकी वजह से न केवल बछड़ा कमजोर रह जाता है। बल्कि कई बार बछड़े की मौत तक हो जाती है। जिसका असर गाय के ऊपर भी पड़ता है और कई बार तो गाय दूध तक देना बंद कर देती है।
इसलिए जरूरी है कि बछड़े के जन्म के साथ ही उनकी देखरेख अच्छी तरह की जाए।
अगर आप भी एक पशुपालक हैं और आपकी गाय ब्याने वाली है, तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि बछड़े की देखभाल किस तरह की जाती है। आज हम आपको अपने इस लेख में बछड़े की देखरेख से जुड़ी संपूर्ण जानकारियां मुहैया कराएंगे। अगर आप यह जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो लेख पर अंत तक बने रहें।
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बछड़े की शुरुआती देखरेख का तरीका

  1. बछड़े के पैदा होने के साथ ही उसके नाक और मुंह में श्लेष्मा होता है। जिसे कुछ लोग कफ भी कहते हैं। इसे बछड़े के पैदा होने के तुरंत बाद ही साफ कर देना चाहिए। अगर ऐसा ना किया जाए तो बछड़े को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। 
  2. पशुपालकों ने अक्सर यह देखा होगा की गाय ब्याने के बाद अपने बछड़े को चाटने लगती है। गाय ऐसा इसलिए करती है ताकि बछड़े की त्वचा आसानी से सूख जाए। लेकिन अगर गाय बछड़े को चाटे ही ना, तो आप बिना वक्त गवाएं, बछड़े के शरीर को टाट से या फिर सूखे कपड़े से साप कर दें। इसके अलावा बछड़े को छाती दबाकर सांस दिलाने की कोशिश करें। 
  3. जिस स्थान पर बछड़े को रखें वह पूरी तरह सूखा रहना चाहिए। गीले स्थान पर रहने से बछड़े को कई गंभीर रोग हो सकते हैं। 
  4. एक स्वस्थ शिशु की पहचान के लिए हम अक्सर उनके वजन पर नजर बनाकर रखते हैं। ठीक उसी तरह आपको बछडे़ के वजन को भी देखना होगा। अगर बछड़े का वजन कम हो तो आप उसके स्वास्थ्य को लेकर डॉक्टर से बात करें। 
  5. एक शिशु के लिए जिस तरह मां का पहला दूध बेहद महत्वपूर्ण होता है। उसी तरह बछड़े के लिए गाय का पहला दूध जिसे खीस भी कहते हैं। वह पीलानी चाहिए। इस पहले आहार के जरिए बछड़ा कई तरह के रोग से बचा रह सकता है। 
  6. गाय के ब्याने के बाद उसके थनों को क्लोरीन के घोल से धोना चाहिए।
  7. अमूमन गाय के ब्यान के एक घंटे बाद ही बछड़ा दूध पीने का प्रयास करने लगता है। लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता तो आप इसमें बछड़े की सहायता करें। 

बछड़े का आहार कैसा होना चाहिए 

पशुपालकों को सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बछड़े को पहला आहार खीस ही मिले। आपको बता दें कि गाय के ब्याने के 3 से 7 दिन बात तक भी खीस का निर्माण होता रहता है। यह खीस बछड़े के शारीरिक और मानसिक विकास में तो एक अहम भूमिका निभाता ही है। इसके साथ ही बछड़े की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है। इसलिए बछड़े के जन्म तीन दिन बाद तक कोशिश करें कि बछड़े को यह खीस ही दें। 

एक शिशु के लिए जिस तरह शुरुआती समय में मां का दूध महत्वपूर्ण होता है। उसी तरह बछड़े को भी कम से कम 3 से 4 सप्ताह मांक का दूध पीने दें। इसके बाद आप आगे चाहें तो बछड़े को कुछ हल्का चारा देना शुरू कर सकते हैं। वैसे ज्यादातर समय तक बछड़े के लिए गाय का दूध ही फायदेमंद रहता है। लेकिन यह अनाज और चारे के मुकाबले काफी महंगा पड़ता है। इसलिए कुछ ही समय बाद पशुपालक बछड़े को अन्य आहार देने लगते हैं। 

बछड़े की देखभाल में किसी तरह की कोई लापरवाही ना हो इस बात का खास ध्यान रखें। इसके अलावा जिस भी बरतन में बछड़े को खाना या पानी दें और उस कुछ – कुछ समय में धोते रहें। 

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बछड़े के पीने का पानी 

अमूमन पशुपालक बछड़े के खाने पर तो थोड़ा बहुत ध्यान दे देते है। लेकिन उनके पीने के पानी का ध्यान नहीं रखते। इसलिए ध्यान रहे कि किसी भी स्थिति में बछड़े को पीने का पानी साफ दें। इसके अलावा बछड़ा अधिक मात्रा में पानी न पिए इस बात का भी खास ख्याल रखें। 

बछड़े को खिलाने की व्यवस्था रखें कुछ ऐसे 

  1. अगर गाय का हाल ही में प्रसव हुआ है तो ऐसे में बछड़े के खाने पीने का अधिक ध्यान रखना चाहिए। आप बछड़े को ऐसे में कुछ पेय पदार्थ दे सकते हैं। 
  2. बछड़े को आप मक्खन निकाला हुआ दूध दे सकते हैं। 
  3. आप बछड़े को कुछ अन्य द्रव पदार्थ भी दे सकते हैं जैसे छाछ, दही, मीठा पानी, दलिया आदि। 
  4. बछड़े को पूरी तरह दूध पर भी पाला जा सकता है।
  5. बछड़े को पोषक गाय को दूध पिलाना।
  6. एक नए बछड़े को जिसकी आयु 15 दिन है, उसे सूखे पदार्थ की आवश्यकता अधिक होती है। ऐसे में उसे रोजाना तीन महीने तक डीएम 1.43 किग्राम ही दें।
  7. कोशिश करें की बछड़े को हरे चारे की जगह सूखा चारा दें। 
  8. बछड़े की उम्र तीन महीने से अधिक होने के बाद अगर गाय का दूध अधिक नहीं है तो बछड़े को मक्खन निकाला हुआ दूध, छाछ और अन्य तरल पदार्थ दे सकते हैं। 

बछड़े की विकास से जुड़ी कुछ अहम बातें 

  1. बछड़े का शारीरिक विकास सही तरह से हो रहा है या नहीं, यह कुछ बातों पर निर्भर करता है जो कुछ इस प्रकार हैं। 
  2. बछड़े के वजन की समय – समय पर जांच करते रहें। अगर बछड़े का वजन कम है तो किसी चिकित्सक से बात करें और उसके आहार में कुछ बदलाव करें। 
  3. बछड़े के जन्म के शुरुआती तीन महीनों में उसके आहार का खास ध्यान रखें। 
  4. गर्भावस्था के दौरान गाय को अच्छी मात्रा में और पोषक तत्वों से भरा आहार दें। 
  5. जन्म के समय बछड़े का वजन कम से कम 20 से 25 किलो होना चाहिए। 
  6. जन्म के कुछ घंटे बाद अगर बछड़ा दूध न पी पाए तो उसे उठाकर दूध पीलाने में मदद करें। 
  7. बछड़े को समय – समय पर टीके लगवाते रहें। 

बछड़े को रखने का स्थान 

बछड़े को एक अलग बाड़े में तब तक बांधना चाहिए, जब तक वह दूध पूरी तरह न छोड़ दें। बछड़े को अलग इसलिए भी बांधना जरूरी है क्योंकि अगर बछड़े एक ही जगह पर रहते हैं तो एक दूसरे को चाटने लगते हैं। जिसकी वजह से कई रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा बछड़े को जिस बाड़े में बांधे वहां साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें। इसके साथ ही बछड़े के बाड़े में वैंटिलेशन का पूरा इंतजाम करके रखें।  नन्हे बछड़े के बाड़े में एक बिस्तर रखें और कोशिश करें कि वह सूखा ही रहे। 

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