जानिए कैसे गाय भैंस के गोबर से बनता है वर्मी कंपोस्ट।

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किसान और पशुपालक भाई अगर अपने आस पास के संसाधनों का उपयोग सही प्रकार करें तो वो आसानी से एक अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। आज हम पशुपालक भाइयों को ऐसी ही एक चीज का बेहतरीन उपयोग बताने वाले हैं। हम सभी जानते हैं कि गाय भैंस का दूध भले ही साल के कुछ माह न मिले। 

लेकिन गोबर हर रोज कई बार मिलता है। ऐसे में पशुपालक भाई इसी गोबर से वर्मी कंपोस्ट कैसे बना सकते हैं। इसी की जानकारी हम अपने इस लेख और वीडियो में देने वाले हैं। अगर आप भी गाय भैंस के गोबर से एक अच्छी आय कम लागत पर कमाना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख और वीडियो पर बने रहें। 

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गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि

गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर न केवल किसान भाई मोटी आय अर्जित कर सकते है। बल्कि इसी के जरिए भूमि के पोषक तत्वों को भी जीवित किया जा सकता है। आइए जानते हैं इसकी प्रक्रिया के बारे में। 

  1. इसके लिए सबसे पहले आपको एक ऐसा गोबर लेना होगा। जो कम से कम 10 से 15 दिन पुराना हो। 
  2. इस गोबर को आपको दो से तीन दिन तक पानी देना है। ताकि इसकी सारी गर्मी बाहर निकल जाए। 
  3. इसके बाद आपको वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए जमीन के ऊपर एक प्लास्टिक की शीट बिछानी है। 
  4. इस पर 4 फुट चौड़ा, 1.5 फुट ऊंचा और 24 फुट लंबा बैड बनाना है। इस पर आपको गोबर डालना है। 
  5. ध्यान रहे कि बेड के ऊपर शेड हो या फिर हरी रंग की जालीदार चादर हो। ताकि ये धूप से बचें रहे। 
  6. इसके बाद आपको कुछ अच्छी नस्ल के केचुंए लेने हैं और इस  बैड पर डाल देने हैं। 
  7. इसके बाद एक गिली बोरी इस बैड पर अच्छे से ढकनी है और बैड के ऊपर ड्रिप सिस्टम का पाइप लगाना है। ताकि इस बैड पर नमी बनी रहे। इसके लिए आप गर्मियों में रोजाना 15 मिनट पानी चलाए और सर्दियों में एक दिन छोड़कर एक दिन पानी दें। 
  8. इसके 60 दिन बाद आपको आपका वर्मी कम्पोस्ट मिल जाएगा। 

वर्मी कम्पोस्ट की जांच कैसे करें 

अब बात आती है कि आप कैसे देखेंगे कि वर्मी कम्पोस्ट तैयार हुआ या नहीं। इसे देखने के लिए आपको बैड के ऊपर से बोरी हटानी है अगर बैड पर बिछा गोबर पूरी तरह काल हो गया है तो वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो गई है। इसे पूरी तरह देखने के लिए आप नीचे तक हाथ मारकर देखें। ऐसा करने से आपको सही अनुमान हो जाएगा। 

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वर्मी कम्पोस्ट से केंचुए अलग करने की विधि

अब केंचुए और वर्मी कम्पोस्ट को अलग करने के लिए आप बेड के साइड में 15 से 20 दिन पुराने गोबर को रख सकते हैं। इससे केंचुए इस बैड से निकलकर गोबर में आ जाएंगे और वर्मी कम्पोस्ट खुद ही अलग हो जाएगा।

वर्मी कम्पोस्ट से होने वाली आय 

अब बात करें कि एक ट्राली गोबर से आपकी कितनी कमाई हो सकती है। अगर आप एक ट्राली गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाते हैं तो इससे आपको 9 हजार रुपए का वर्मी कम्पोस्ट मिल जाता है। वहीं इसके अलावा इसमें केंचुए की संख्या भी बढ़ जाती है और केंचुए बेचकर भी आप 20 हजार रुपए तक कमा सकते हैं। आपको इसमें लागत 2 से 5 हजार रुपए के बीच में आ सकती 

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दोगली गाय कौन सी होती है?

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दोगली गाय

भारत में गाय पालन एक बेहद ही बड़ा रोजगार का जरिया है। ऐसे में कई नस्लें भारत में पाई जाती है। इन्हीं में से एक है दोगली नस्ल। ये नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। इतना ही नहीं भारत के विभिन्न मौसमों में भी ये रह पाती है।

दोगली गाय की पहचान 

दोगली गाय विदेशी नस्लों से अलग दिखती हैं। कई छोटी और मुड़ी हुई सींगे होती हैं तो कई दोगली गायों में मध्यम और खड़ी सींग होती है। छोटी और सुंदर टांगें होती हैं। माथा भी मध्यम होता है। जो दिखने में सुंदर बनाती हैं।

दोगली गाय के दूध की जानकारी

भारतीय मौसम के अनुकूल दोगली गाय काफी अच्छा दूध देती है। ये गाय रोजाना 10 से 20 लीटर की क्षमता में दूध दे सकती है। दोगली गाय 10 से 15 सालों तक दूध दे सकती है। Animall ऐप पर दोगली गाय बेहद ही किफायती दाम पर मिल सकती है। इस नस्ल के दूध में 4 से 5 प्रतिशत फैट पाया जाता है। बिना अधिक खर्च किए गौपालन के लिए पशुपालक दोगली नस्ल का उपयोग कर सकते हैं।

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दोगली गायों की देख रेख कैसे करें ?

दोगली गायों के रखने के स्थान को नियमित रूप से पानी से साफ करते रहें सफाई रखने से पशुओं को कई गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है। साफ सफाई रखने से गौशाला में पनपने वाले जीवाणु और परजीवीयों का खतरा नहीं बना रहता है। साफ सुथरे गौशाला वातावरण में रहने से पशु के दूध के उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है जहाँ दोगली नस्ल को बांध कर रखा जाता है वहां पर पानी से साफ करने के बाद रोगाणु नाशक दवाई (5ग्राम पोटाशियम परमेगनेट या 50 एम.एल फिनाईल/बाल्टी पानी) से सफाई करें। इसके अलावा डेटॉल से भी गौशाला की  सफाई कर सकते हैंखुरपका मुंह पका,लंगड़ी रोग,एवं थिलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए गौशाला की साफ़ सफाई का महत्वपूर्ण योगदान है।

गौशाला में साफ़ सफाई नहीं रखने से पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है।  फेफड़ों और आंत सम्बन्धी बीमारियाँ होने का खतरा बढ़ जाता है। गोबर और अन्य ठोस पदार्थ जैसे नीचे गिरा हुआ भूसा आदि को गौशाला में से दिन में कम से कम 2 बार हटाना चाहिए इन्हें कम से कम 100 मीटर दूरी पर किसी गड्ढे में इकट्ठा करें, जिसे खाद बनाकर  खेतों में डाला जा सके।

स्वस्थ पशुओं की आंखें चमकीली होती हैं। इसमें किसी भी तरह के तरल पदार्थ जैसे पानी या खून के धब्बे नजर नहीं आते। स्वस्थ दोगली गायें बहुत ज्यादा खांसती नहीं हैं, घर्राने की आवाजें भी नहीं आती है। इसमें सांस लेने की प्रक्रिया बिल्कुल सामान्य होती है। आपको स्वस्थ दोगली गाय का चमड़ा भी चमकदार दिखाई देगा, शरीर पर कहीं से भी जूं-चीचड़ नहीं दिखाई देगा। स्वस्थ पशु को चलने-फिरने या उठने-बैठने में परेशानी नहीं होती है।

चारा 

दुधारू दोगली गाय को ये पशु आहार दें

दोगली गाय की क्षमता का पूरा उपयोग करने के लिए 40 से 50 किलोग्राम हरा चारा और 3 किलो दाना प्रति किलोग्राम दूध देने के लिए दें। जब पशु आहार में प्रोटीन, वसा और खनिज लवन मिलता है तो दूध में बढ़ोतरी देखने को मिलती है।

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गाभिन दोगली गाय को ये पशु आहार दें

एक 250 किलोग्राम वजन के गाय को एक दिन में कितना पशु आहार दें। 

भूसा – 4 किलो 

दाना मिश्रण – ढाई किलो 

चारा बाँट कर दिन में 3-4 बार खिलाएं। साथ में दाना मिश्रण भी 2 बार बराबर मात्रा में खिलाएं। हरा और सूखा चारा दोनों मिलाकर खिलाएं। चारा के दाना मिश्रण के अलावा प्रतिदिन 35- 40 लीटर पानी गाय को जरुर पिलायें।

 

दोगली गायों में होने वाली बीमारियां 

 

  • ब्रुसेला बीमारी : घर की सभी दोगली नस्ल के गायों को ब्रुसेला का टीका लगायें। यदि दोगली   नस्ल की गाय ने बछड़ी को जन्म दिया है तो पैदा होने के 6 महीने बाद ब्रुसेला बीमारी का टीका लगायें। ब्रुसेला एक जानलेवा बीमारी है, जो मनुष्यों से गायों में फैलता है। इसकी चपेट में आने पर गायें तुरंत बीमार हो जाती हैं। भारत में ही बने टीका  ब्रुसेला S-19  पशुओं को  लगाया जाता है।

 

  • दोगली गायों में ब्रुसेला बीमारी के क्या लक्षण हैं?: पशुपालक साथी अभी हम आपको दोगली नस्ल के गायों में होने वाले ब्रुसेला बीमारी के लक्षण के बारे में बताने जा रहे हैं। अगर आपकी दोगली  गाय इस बीमारी से ग्रसित है तो उसे बुखार की शिकायत रहेगी। उस गाय का वजन भी लगातार कम होता जायेगा। रात में गाय को पसीना भी आएगा। अगर आपकी गाय को ये सारे लक्षण दिखे तो तुरंत पशु चिकित्सक से बात करें।

 

  • सर्रा बीमारी : यह एक परजीवी से होने वाला रोग है। ट्रिपैनोसोमा ईवांसी नामक सूक्ष्म परजीवी से ये बीमारी फैलता है। इस बीमारी के फैलने से पशुओं की उत्पादन क्षमता में भारी कमी आती है। तुरंत ही पशुओं की मृत्यु हो जाती है जिससे पशुपालकों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। सबसे पहले साल 1885 में सर्रा बीमारी को देखा गया था। मान लीजिए अगर कोई पशु सर्रा बीमारी से ग्रसित है अगर मक्खी उसका खून चूसकर स्वस्थ पशु को काट लेगा तो उसे ये बीमारी फ़ैल जाएगी। पशु विज्ञान में सर्रा रोग के लिए जिम्मेदार मक्खी को टेबनेस मक्खी कहते हैं। भारत में पशुओं को काटने वाले मक्खी को लोग डांस मक्खी के नाम से जानते हैं।

 

  • दोगली गाय में सर्रा रोग के क्या लक्षण हैं ?: आपके दोगली गाय को रुक रुक कर बुखार आएगा। वो बार बार पेशाब करेगी। इतना ही नहीं आपकी दोगली गाय गोल गोल चक्कर भी काटने लगेगी। सर्रा बीमारी से ग्रसित आपकी जर्सी गाय को भूख भी कम लगेगा। गाय के मुंह से लार गिरने लगेगा । उसके आंख और नाक से पानी गिरने लगेगी।सर्रा बीमारी से ग्रसित आपके दुधारू दोगली गाय का दूध कम हो जायेगा। वो  धीरे धीरे कमज़ोर होते चली जाएगी। कई बार गायों का पिछला भाग लकवाग्रस्त हो जाता है। अगर कोई दोगली  गाय इस बीमारी से ग्रसित है तो आँखों में सफेदी आने लगता है। उस पशु के निचले भाग में भी सूजन आने लगता है।

 

  • थनैला रोग: पशुओं के बांधे जाने वाले स्थान और दूध दुहने के स्थान की सफाई का विशेष ध्यान रखें। दूध दुहने की तकनीक सही होनी चाहिए जिससे थन को किसी प्रकार की चोट न पहुंचे। थन में किसी प्रकार की चोट (मामूली खरोंच भी) का तुरंत इलाज कराएं। थन का उपचार दुहने से पहले व बाद में दवा के घोल में (पोटेशियम परमैगनेट 1:1000 या क्लोरहेक्सिडीन 0.5 प्रतिशत) डुबो कर करें। दूध की धार कभी भी फर्श पर न मारें। रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें तथा उन्हें दुहने वाले भी अलग हों। अगर ऐसा संभव न हो तो बीमार  पशु का दूध सबसे बाद में निकालें। समय-समय पर दूध की जाँच करवाते रहें। अगर थनों में सुधार न दिखें तो पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें।

 

कुछ ही मिनटों में दोगली गाय  को  Animall ऐप से कैसे खरीदें?

 Animall ऐप पर अपने आसपास की ढेर सारी दोगली गाय खरीद सकते हैं। दोगली   गायों की खरीदारी करने के लिए अपने मोबाइल फ़ोन में गाय-भैंस वाला Animall ऐप डालें। ऐप में अपन मोबाइल नंबर दर्ज करा कर गाय पर दबाएँ। दबाते  ही आप ढेर सारी गायों के नस्ल के नाम देख पाएंगे । यहाँ दोगली  नस्ल  चुने और अपने घर मनचाहे ब्यात और दूध क्षमता वाली गाय ले जायें। 

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अपनाएं ये तीन आसान तरीका अपनाएं

  • अपने गाँव या जिले का नाम या पिनकोड डालें।
  • पिनकोड डालने के बाद  गाय  पर दबाएँ । यहाँ दोगली का चयन करें । क्लिक करने  के बाद  यहाँ आप नस्ल के साथ साथ अपने मन के अनुसार दूध क्षमता और ब्यात का का चुनाव भी कर सकते है।
  • अब आपको अपने आसपास की सारी  दुधारू दोगली  नस्ल गाय दिखने लगेंगी । इनमे से अपने पसंद का पशु चुनकर ख़रीदार से बात करें और  घर ले जायें नया पशुधन।

ऐप पर दोगली गाय बेचें

आपको अपनी दोगली गाय बेचनी है ?  Animall ऐप पर  ऐसे अपना पशु बेचें

इन सरल तरीकों को अपनाकर दोगली गाय Animall ऐप पर बेचें। ऐसे Animall ऐप से तुरंत दोगली गाय बेचें। ऊपर लिखे गये तरीके से Animall ऐप में खुद को रजिस्टर कर लें। इसके बाद पशु बेचें पर दबाएँ। इस बटन पर दबाते ही आप  दोगली गाय की दूध क्षमता, ब्यात और कीमत लिख सकते हैं। अपने दोगली   गाय की  सभी जानकारियाँ डालने के बाद आपका पशु ऐप पर दर्ज हो जायेगा।  मुबारक हो, आपकी दोगली गाय ऐप पर दर्ज हो गया है। अब ख़रीदार आपको गाय  के लिए कॉल करेंगे।

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Here is everything you need to know about Holstein Friesian

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Holstein Friesian Cow

Holstein Friesians are native to the Dutch regions of North Holland and Friesland, as well as Schleswig-Holstein in Northern Germany. These are known as the world’s most productive dairy cattle.

In North America, it is referred to as Holsteins, whilst in the United Kingdom and Ireland, it is referred to as Friesians. These cattle are well known for the black spots on their white colour body. They are the most popular breed in the dairy industry because of their status as being the highest milk-producing cattle in the world.

Originated from North Germany and Dutch regions, these cattle are now easily found in more than 150 countries of the world. Their main food source is grass. They are the crossbreed of the Holstein cow and the Friesian cow. A healthy calf i.e. a baby Holstein Friesian cow weighs around 40 kg to 50kg and the adult ones 680kg to 780kg in weight. Read more

 

How To Identify HF Cow?

The Holstein Friesian cows are recognizable because of their unique colour patterns. They have black or red (in some cattle) spots on their white colour body. Few of them also have a kind of bluish tint because of the mixing of white and black hair. Their bellies are large and their faces are thin in shape. They are about 145cm to 165cm tall by the shoulder and weigh up to 680kg or more when it gets mature.

 

Milk Production & Lactation

 The Holstein Friesian cattle have the highest milk yielding capability in the entire world. This is what makes them very costly and in demand. They can yield up to 10,000kg of milk every year. That means they can produce up to 10-25 litres of milk yield per day. The fat content of the milk they provide is about 3.1%.  Holstein Friesian cows’ prices are high because of their good milk yielding ability and less eating habits.

 

How to maintain Holstein Friesian cows?

Like all animals, they require suitable weather conditions to function at their best. Make sure they are kept under concrete walls or tin shade shelter to defend themselves from heavy rainfall, sunlight, snowfall, parasites, and frost. The house should be properly oxygenated and a clean air and water facility must be there.

Cleaning should be done regularly to avoid the spreading of parasites and incubation of mosquitoes and as well as viruses.  Give them proper nutrient supplements like –  Protein, Calcium, Vitamin A, and Phosphorus with their food. Manage them properly and provide proper care whenever the cow gets pregnant. Good management practices will result in a healthy calf and also gives a high milk yield. 

 

Where can I get Holstein Friesian cows?

 If you are looking to purchase a Holstein Friesian cow, pick up your mobile phone, go to the play store, and download the “Animall” app. Register yourself by verifying your phone number and then tap on the cow section where you will find different-different breeds of cow.

Then filter out the Holstein Friesian cow breed, calving, and milk capacity, and then select the best cow from the options available.

Bring home the best Holstein Friesian cow by following these 3 easy steps.

  • Enter your district or village name or Pincode. 
  • After entering, tap on the cow section. Here choose the breed of Holstein Friesian cow and select the calving and milk capacity as per your preference.
  • Now you will start seeing all the cows around you. You can then select any cow of your preference. Go ahead and bring your most preferred Holstein Friesian cow to your home.

 

How to list my Holstein Friesian cows for sale?

 If you wish to sell your Holstein Friesian cow, then for that also you need to install our “Animall” app. First, you need to register yourself and then go to the sell animals section. After that, enter the milk capacity, rate, and price of your Holstein Friesian cow. After you are done filling in all the required details, your cow will be registered on the “Animall” app. Anyone interested in purchasing your cow will call you directly.

Apart from selling and purchasing cattle, you can also get all the necessary information related to all the cattle by installing our app. If your cow is not keeping well then you can directly talk to veterinary doctors through our app. You can get the verified cattle at the best quality and affordable rates and that too without paying any commission to any middleman.

 

 Common Diseases & Treatments:

The Holstein Friesian cows often suffer from various diseases, especially reproductive diseases. Both the adults and calves die most of the time after being infected. But many of them can be treated by using antibiotics. Some of the common diseases that the Holstein Friesian cows suffer from and their treatments are:

 

  • Mastitis: Mostly affecting these dairy cattle, Mastitis infects the udder area of the female cattle and reaches the mammary glands, the glands helpful in reproduction, due to an increase in white blood cells.  This leads to problems for the cows to breed further as well as low or no milk yielding.  It is a disease that can be treated by the use of antibiotics at the right time.
  • Reproductive Tract Infections: The many reproductive tract infections like BVD (Bovine Virus Diarrhoea), IBR (Infectious Bovine Rhinotracheitis), etc. are some of the diseases that dairy cattle like Holstein Friesian suffer from. The best way to control the disease is by injecting them with antibiotics and keeping them in quarantine.
  • Lameness: This is one of the most common diseases in dairy cattle. Foot lameness means the improper functioning of the foot in the cow. It is generally found in the cows that have to walk long distances from their shed to the grazing areas, especially when the areas are hard and uneven for walking. It can be treated by the use of anti-inflammatory drugs.

 

  • Treatment of acidic indigestion: Avoid feeding acidic fodder to animals. During the start of this disease, feed animals saline elements like baking soda and medicines which will help to energize their liver.
  • Treatment of simple indigestion: Feed them spices which will help them to increase their hunger. Provide them feed which digests easily.

 

  • Enteritis/Calf scours/ Diarrhoea: In this disease first, the excessive loss of water occurs then acidosis and dehydration and then the cattle die. The disease mainly occurs when cattle drink unclean water, when they are in unclean hygiene conditions, and when they are fed poorly.
  • Treatment:   proper ventilation and dry bedding are required.

 

These cows are the queen of the dairy industry because of their high milk-producing capability. The Holstein Friesian variety is widely spread, however, it is mainly focused in places with active dairy markets. These cattle are becoming a more essential aspect of the dairy industry in the United Kingdom and the United States.

 

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Here is everything you need to know about Bargur Cow

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BARGUR COW

Originated from down south, in the Erode District of Tamil Nadu state, Bargur Cows are known to be aggressive and excel in endurance and strength. They are named after the Bargur forest hills in the Anthiyur Taluk of Tamil Nadu state in India. They fall in the draught cattle category because of their fiery nature and strong body. They are often used for trotting vehicles and doing other fieldwork for the farmers because of their immense body strength.

The Bargur cows are generally brown in colour with white patches over the upper surface of their body. But in many cases, they are white with brown patches on top. They are normally reared in herds in the Bargur region by the Kannada-speaking Lingayats.

Bargur cow prices in India can vary based on various conditions, however, they are popular because they belong to the forest region and are thus very good in trotting and other drought-related abilities. They have high endurance and their milk is said to have medicinal value.  

How To Identify A Bargur Cow?

These cows are recognized by their body colour and their physique. They are healthy and thus have the ability to bear drought-like circumstances. Their horns are thick and light brown in colour. They grow closer from the root and each other. The horns of Bargur cows are sharply tipped and curved backwards. They are also white coloured with the opposite markings of brown patches on their body.

Milk Production & Lactation:

The average milk yield per lactation of a Bargur cow is about 350kg. It can range from 2250kg to 1304 kg. Their milk is believed to have high medicinal value and is considered suitable for health. Besides, the milk of the Bargur cow is easily digestible compared to other breeds.

These cows are kept in a shaded area together known as “Pattys” and are looked after by the tribal labourers from the Lingayats community.

How to maintain Bargur Cow? 

Like all animals, they require suitable weather conditions to function at their best. Make sure they are kept under concrete walls or tin shade shelter to defend themselves from heavy rainfall, sunlight, snowfall, parasites, and frost. The house should be properly oxygenated and a clean air and water facility must be there. Cleaning should be done regularly to avoid the spreading of parasites and incubation of mosquitoes and as well as viruses.  Give them proper nutrient supplements like –  Protein, Calcium, Vitamin A, and Phosphorus with their food. Manage them properly and provide proper care whenever the cow gets pregnant. Good management practices will result in a healthy calf and also gives a high milk yield.

Where can I get Bargur Cow?

If you are looking to purchase Bargur Cow, pick up your mobile phone, go to the play store, and download the “Animall” app. Register yourself by verifying your phone number and then tap on the cow section where you will find different-different breeds of cow. Then filter out the Bargur cow breed, calving, and milk capacity, and then select the best cow from the options available.

Bring home the best Bargur cow by following these 3 easy steps.

  • Enter your district or village name or Pincode.
  • After entering, tap on the cow section. Here choose the breed of Bargur cow and select the calving and milk capacity as per your preference.
  • Now you will start seeing all the cows around you. You can then select any cow of your preference. Go ahead and bring your most preferred Bargur cow to your home.

How to list my Bargur Cow for sale?

If you wish to sell your Bargur cow, then for that also you need to install our “Animall” app. First, you need to register yourself and then go to the sell animals section. After that, enter the milk capacity, rate, and price of your Bargur cow. After you are done filling in all the required details, your cow will be registered on the “Animall” app. Anyone interested in purchasing your cow will call you directly.

Apart from selling and purchasing cattle, you can also get all the necessary information related to all the cattle by installing our app. If your cow is not keeping well then you can directly talk to veterinary doctors through our app. You can get the verified cattle at the best quality and affordable rates and that too without paying any commission to any middleman.

Common Diseases & Treatments:

There are various diseases which can trouble your Bargur cow, so it is always better to take precautions. The details of the diseases and their treatments are mentioned below:-  

  • White Muscle Disease: Disease responsible for causing stiffness in the baby Bargur cows which may lead to damage of various organs and then death is known as white muscle disease. They are found in cattle suffering from a deficiency of selenium. They can be treated by providing antibiotics to the calves on time.
  • Lameness: Foot lameness is one of the most common diseases in these breeds. As they are agricultural cattle and often used for trotting, and sometimes they have to walk miles and miles. It can be treated by the use of anti-inflammatory drugs on the cattle.
  • Digestive system disease: Diseases related to the digestive system like acidic indigestion, simple indigestion, etc.
  • Treatment of acidic indigestion: Avoid feeding acidic fodder to animals. During the start of this disease, feed animals saline elements like baking soda and medicines which will help to energize  their liver.
  • Treatment of simple indigestion: Feed them spices which will help them to increase their hunger. Provide them feed which digests easily.
  • Enteritis/Calf scours/ Diarrhoea: In this disease first, the excessive loss of water occurs then acidosis and dehydration and then the cattle die. The disease mainly occurs when cattle drink unclean water, when they are in unclean hygiene conditions, and when they are fed poorly. 
  • Treatment:   proper ventilation and dry bedding are required.

 These cows are only found in the hilly region and are known for their unique horns and endurance. They are mostly used for agriculture work as well as trotting for the travellers. Bargur cows are a very important breed and therefore only families with professional breeders keep them

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Here is everything you need to know about Hallikar Cow

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HALLIKAR COW

Originating from the state of Karnataka in India, the Hallikar cow got its name from the “Hallikar” community in the same region of Karnataka that is famous for the cattle rearing of this breed. These cattle are abundantly found in the Mysore, Hassan, Mandya, and Tumkur districts of South Karnataka.

They can be easily recognized because of the unique shape of their horns. Bending backwards on the vertical side, the horns of Hallikar cows are long and pointed. They are one of the two cattle breeds in Karnataka that are famous for being reared and taken care of by the royal patronage of Mysore. The other breed is Amrit Mahal, a breed said to have originated by crossing the Hallikar cow itself.

Hallikar cow price in India depends on various factors, such as health, age, etc. However, they are valued for being draught cows. They graze in the nearby fields and feed green fodder of finger millet, grass, pearl millet, sorghum, etc. They are specially bred for doing the physical labour in the field and pulling carts. One of the special things about this breed is that Hallikar cows have been commemorated by the Government of India by creating post stamps and stickers in the name of the cow. Read more

 

How To Identify A Hallikar Cow?

Among the many features, the one thing that makes a Hallikar cow stand out in the crowd is the shape of its horns. These horns are pointed and long and are vertically bent backwards giving the breed a good height when measured altogether. They are medium-sized in body and moderate in height when measured from the shoulders and the males of this breed have large humps on their back. They are found in white to light grey as well as dark grey colours.

 

Milk Production & Lactation

Hallikar cows are not known to be great milkers when compared with some other breeds, however, they produce fairly enough milk. The average milk lactation of a Hallikar cow can be somewhere around 542kg. It can range from 227kg to 1134kg. The fat content in the Hallikar cow milk is about 5.7%. Read more

 

How to maintain the Hallikar cow?

Like all animals, they require suitable weather conditions to function at their best. Make sure they are kept under concrete walls or tin shade shelter to defend themselves from heavy rainfall, sunlight, snowfall, parasites, and frost. The house should be properly oxygenated and a clean air and water facility must be there. Cleaning should be done regularly to avoid the spreading of parasites and incubation of mosquitoes and as well as viruses.  Give them proper nutrient supplements like –  Protein, Calcium, Vitamin A, and Phosphorus with their food. Manage them properly and provide proper care whenever the cow gets pregnant. A good management system will ensure a healthy calf and also produces a high milk yield.

 

Where can I get Hallikar cow?

If you are looking to purchase Hallikar cow, pick up your mobile phone, go to the play store, and download the “Animall” app. Register yourself by verifying your phone number and then tap on the cow section where you will find different-different breeds of cow. Then filter out the Hallikar cow breed, calving, and milk capacity, and then select the best cow from the options available.

Bring home the best Hallikar cow by following these 3 easy steps.

  • Enter your district or village name or Pincode.
  • After entering, tap on the cow section. Here choose the breed of Hallikar cow and select the calving and milk capacity as per your preference.
  • Now you will start seeing all the cows around you. You can then select any cow of your preference. Go ahead and bring your most preferred Hallikar cow to your home.

 

How to list my Hallikar cow for sale?

 If you wish to sell your Hallikar cow, then for that also you need to install our “Animall” app. First, you need to register yourself and then go to the sell animals section. After that, enter the milk capacity, rate, and price of your Hallikar cow. After you are done filling in all the required details, your cow will be registered on the “Animall” app. Anyone interested in purchasing your cow will call you directly.

Apart from selling and purchasing cattle, you can also get all the necessary information related to all the cattle by installing our app. If your cow is not keeping well then you can directly talk to veterinary doctors through our app. You can get the verified cattle at the best quality and affordable rates and that too without paying any commission to any middleman. Read more 

 

Common Diseases & Treatments

 Various diseases can trouble your Hallikar cow, so it is always better to take precautions. The details of the diseases and their treatments are mentioned below:- 

  • Reproductive Tract Infections: Diseases like BVD (Bovine Virus Diarrhoea), IBR (Infectious Bovine Rhinotracheitis), etc. are some of the diseases that these cattle suffer from. These diseases are not easy to treat and often lead to death in the cows. The best way to control the disease is by injecting them with antibiotics and keeping them in quarantine.
  • Lameness: Foot lameness is one of the most common diseases in these breeds. As they are a draught breed their feet are most important and they have to walk miles sometimes. It can be treated by the use of anti-inflammatory drugs on the cattle.
  • Digestive system disease: Diseases related to the digestive system like acidic indigestion, simple indigestion, etc.

 

  • Treatment of acidic indigestion: Avoid feeding acidic fodder to animals. During the start of this disease, feed animals saline elements like baking soda and medicines which will help to energize their liver.
  • Treatment of simple indigestion: Feed them spices which will help them to increase their hunger. Provide them feed which digests easily.

 

  • Enteritis/Calf scours/ Diarrhoea: In this disease first, the excessive loss of water occurs then acidosis and dehydration and then the cattle die. The disease mainly occurs when cattle drink unclean water, when they are in unclean hygiene conditions, and when they are fed poorly.
  • Treatment:   proper ventilation and dry bedding are required.
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 Jaundice –

 

Types of Jaundice:

  •  Jaundice because of closure of lymph nerves 
  •  poisonous jaundice or Intrahepatic – due to liver disease 
  • Hemolytic jaundice or Pre hepatic – due to destruction of red blood cells.

   Treatment of Jaundice :

  • First, you need to find out the cause of poisonous jaundice.
  • The animals that have blood pest diseases and infections, keep them away from other animals.
  • Give salt solution, glucose, calcium gluconate solution, Vitamin A and C, and along with that give antibiotic medicines. 
  • Give animals liver tonic along with fatless and green fodder. 
  • During the deficiency of phosphorus, feed them sodium acid monophosphate.

 

These cows are also known as “Mysore” cows and are regarded as the best draught cattle in the Southern region of our country. They are maintained by professional breeders as well as cultivators. Hallikar cows are considered to be one of the top draft cow breeds in the country.
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