जानिए मानसून में पशुओं के लिए कौन से टीके लगवाना है जरूरी

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मानसून का समय इंसानों के लिए जितना सुकून देने वाला होता है। उतना ही खतरनाक ये पशुओं के लिए होता है। इस दौरान पशुओं को कई तरह के रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। यही कारण भी है जिसकी वजह से पशुपालन से जुड़े लोग मानसून के मौसम से नफरत करते हैं। दरअसल इस दौरान मौसम में नमी रहती है। जिसके चलते बहुत से परजीवी पैदा हो जाते हैं जो पशुओं को न केवल बीमार कर देते हैं। बल्कि कई रोगों की वजह से तो पशुओं की मौत तक हो जाती है।

पशुओं को इन्हीं रोगों से बचाने के लिए और पशुपालकों की इस समस्या का निपटारा करने के लिए हम ये लेख और वीडियो लेकर आए हैं। आज हम पशुपालकों को बताएंगे कि मानसून के दौरान पशुओं को रोग से बचाने के लिए कौन से टीके लगवाने चाहिए और किस तरह पशुओं को रोग से बचाकर रखना चाहिए। अगर आप ये जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पर अंत तक बने रह सकते हैं।

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मानसून में पशुओं को होने वाले रोग

मानसून के दौरान पशुओं को कई रोग होने की संभावना होती है। जिसके कई अलग – अलग कारण हो सकते हैं। 

बंद पड़ना मानसून में पशु जब अधिक गीला चारा खा लेते हैं तो इसकी वजह से पशु मल का त्याग नहीं कर पाते। जिसकी वजह से वह खाना पीना भी बंद कर देते हैं। ऐसे में पशुओं की उत्पादकता भी कमजोर पड़ जाती है। 

थनैला ये रोग अक्सर दुधारू पशुओं में ही होता है। इसमें पशु के थनों में सूजन आ जाती है। जिसकी वजह से उनका आकार बढ़ जाता है और पशु के थनों से दूध की जगह खून और पस आने लगता है। 

गलघोंटू ये रोग सबसे खतरनाक रोगों में से है। इसकी वजह से पशुओं की मौत 1 से 2 दिन के अंदर ही हो जाती है। 

लंगड़ा बुखार – ये रोग पशु को गीली मिट्टी में पैदा होने वाले जीव की वजह से या किसी संक्रमित पशु की चपेट में आने की वजह से होता है। इस रोग का उपचार लगभग नामुमकिन ही है। 

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मानसून में कौन से बीमारियों का टीकाकरण जरूरी 

किसान भाइयों को बता दें कि मानसून से पहले पशुओं को गलघोंटू, थनैला और लंगड़े बुखार का टीकाकरण करवा लेना चाहिए। ये टीके पशु को इन रोगों की चपेट में आने से बचाते हैं। इन टीकाकरण को कराने के लिए आप अपने राज्य या क्षेत्र के पशुपालन विभाग में संपर्क कर सकते हैं। 

मानसून में पशुओं को इन रोगों से बचाने के अन्य तरीके 

  • मानसून के दौरान पशु को सही मात्रा में आहार दें, ताकि पोषक तत्वों की कमी पूरी हो सके। 
  • पशुओं के आस पास साफ सफाई रखें ताकि लंगड़े बुखार की चपेट में न आ जाएं। 
  • पशुओं को दूषित आहार पानी न पिलाएं। इसकी वजह से पशु गंभीर रोग की चपेट में आ सकता है। 
  • पशु के शेड में नमी न होने दें और कच्चे फर्श पर तो बिल्कुल भी न छोड़ें। आपको बता दें कि बारिश के दौरान गिली मिट्टी में बहुत से परजीवी पैदा हो जाता हैं, जो पशु को अपनी चपेट में ले सकते हैं। 

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मानसून में पशु को दाद, खाज, खुजली की समस्या से बचाने का तरीका और उपचार

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पशुपालकों की जिंदगी को खुशियों से भरने और उनकी समस्याओं का अंत करने के लिए ही एनिमॉल की शुरुआत की गई है। हम पशुपालकों को बेहतर नस्ल की गाय भैंस कम दामों में मुहैया कराते हैं। इसके अलावा हमारी कोशिश यही रहती है कि अपने लेख और वीडियो के जरिए पशुपालकों की दूसरी समस्याओं का अंत करें। मानसून के दौरान अक्सर पशुपालकों और पशुओं की कई समस्याएं आती हैं। जिनमें से एक है दाद खाज खुजली की समस्या। 

मानसून के दौरान पशुओं में दाद खाज खुजली की समस्या उनकी उत्पादकता को प्रभावित कर देती हैं। इसके साथ ही वह शारीरिक रूप से काफी परेशान रहने लगते हैं। आज हम अपनी वीडियो और लेख के जरिए पशुपालक भाइयों की इन समस्याओं का अंत करेंगे। अगर आप अपने पशु को दाद खाज खुजली से बचाना चाहते हैं या उनके उपचार के तरीके खोज रहे हैं, तो हमारे इस लेख को अंत तक पढ़ें। आप चाहें तो नीचे दी गई हमारी वीडियो भी देख सकते हैं।

मानसून में क्यों होती हैं दाद खाज खुजली की समस्या

मानसून के दौरान पशुओं को ये समस्या होने के कई कारण हो सकते हैं। इस समय मौसम में नमी रहती है और कुछ परजीवी पैदा हो जाते हैं जिसके संपर्क में आने से पशु को दाद, खाज, खुजली की समस्या पैदा हो जाती है। इस चरम रोग का सबसे मुख्य कारण गंदगी है। अगर पशु के आस पास बहुत गंदगी एकत्रित हो जाए तो ये रोग पशु को हो सकता है। 

मानसून में पशु को दाद खाज से बचाने का तरीका 

किसान और पशुपालक भाई मानसून के दौरान अगर कुछ सावधानिया बरतें तो इन सावधानियों के चलते पशु को दाद खाज खुजली की समस्या होने की संभावना कम हो जाती है। ये सावधानियां कुछ इस प्रकार हैं। 

  • सबसे पहले पशु गीली मिट्टी या घास में न छोड़ें। 
  • पशु को मानसून के दौरान नीम के पानी से नहलाया जाना चाहिए। 
  • पशुशाला की साफ सफाई में फिनाइल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 
  • पशु को बारिश में भीगने नहीं देना चाहिए। 
  • पशुओं को कीड़े आदि से बचाकर रखना चाहिए। 

दाद खाज खुजली के उपचार और जटिलता

पशुपालक भाइयों को बता दें कि दाद खुजली की होने पर पशु की त्वचा पर घाव दिखाई देने लगते हैं। इनमें बहुत तेज खुजली होती है, जिसकी वजह से पशु इनमें खुजली करते हैं। जिसके चलते घाव से खून तक निकलने लगता है।  पशु की इस समस्या को ठीक करने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। जो हम आपको बताने वाले हैं।

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उपाय नंबर 1 

इसके लिए पशुपालक भाइयों को कुछ सामग्रियों को पंसारी की दुकान से लाना होगा। इनके नाम हैं  

  • सत पुदीना
  • सत अजवाइन 
  • भीमसेनी कपूर
  • नारियल तेल

नारियल तेल 200 ग्राम और बाकी सभी चीजें 50 ग्राम लेकर इन्हें अच्छी तरह मिलाकर धूप में 2 घंटे सुखा दें।

अब पशु के घाव या प्रभावित स्थान पर इसे रोजाना लगाएं। यह लेप लगाने से पशु 7 से दिन में पूरी तरह ठीक हो सकता है।

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दाद खाज खुजली के उपाय नंबर 2

अगर पशु को लंबे समय से दाद खाज खुजली परेशान कर रही है तो 200 ग्राम चिरायता, 200 ग्राम पुदीना और 200 ग्राम सौंफ ले। इन्हें अच्छी तरह पीसकर पशु को रोजाना खिलाएं। 

बताए गए उपाय के साथ खिलाई गई ये औषधि आपके पशु को जल्दी ही ठीक कर देगी। पशु को अगर इनसे आराम न पड़े तो बिना वक्त गवाएं डॉक्टर से संपर्क करें। आप हमरी एनिमॉल ऐप के जरिए डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। 

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जानिए क्या है मानसून में थनैला रोग फैलने की वजह, लक्षण और उपचार (वीडियो)

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मानसून के दौरान पशुपालक भाइयों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसकी वजह से वह खासे परेशान हो जाते हैं। पशुपालक भाइयों को इसी समस्या का समाधान आज हम लेकर आए हैं। हमारे इस लेख में हम पशुपालक भाइयों को मानसून में होने वाले थनैला रोग के बारे में बताएंगे।

हम कोशिश करेंगे कि पशुपालक भाइयों को थनैला रोग के कारण, लक्षण, उपचार और बचाव की जानकारी से अवगत कराएं। अगर आप एक पशुपालक हैं और मानसून के दौरान पशुओं को थनैला से बचाकर रखना चाहते हैं तो हमारे इस लेख पर अंत तक बने रहें।

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क्या है थनैला रोग 

थनैला रोग बारिश के दिनों में दुधारू पशुओं को हो सकता है। थनैला रोग की वजह कुछ बैक्टीरिया या बाहरी जीव होते हैं जिनके नाम कुछ इस प्रकार हैं।

  • स्टैफाइलोकोकस
  • स्ट्रेप्टोकोकस 
  • माइकोप्लाज्मा
  • कोराइनीबैक्टिरीयम
  • इ.कोलाई,
  • फफूंद 

मानसून में क्यों फैलता है थनैला रोग

  • मौसम में नमी होती है ज्यादातर समय फर्श गीला रहता है। जिसकी वजह से पशु के थनों में परजीवी प्रवेश कर जाते हैं। इसकी वजह से थनैला हो सकता है। 
  • जब पशुपालक भाई दूध दुहने में अंगूठा अंदर की तरफ रखते हैं तो पशु के थनों में गांठ पड़ जाती है, जिसकी वजह से थन खुले रह जाते हैं और बारिश के दिनों में पैदा हुए परजीवी के चलते थनैला की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • बारिश के दौरान अगर पशु के थनों पर चोट लग जाए तो घाव नहीं भरता और थनैला की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

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मानसून में थनैला के लक्षणों की पहचान का तरीका

  • थनैला में पशु के थनों में गांठ हो जाती है। 
  • पशु के थन का आकार सामान्य से अधिक बड़ा हो जाता है। 
  • थनों को दबाने पर दूध की जगह खून या पस निकलने लगता है। 
  • पशु के थनों में दर्द रहने लगता है। 
  • थन से फटा हुआ या दूषित दूध निकलने लगता है।

मानसून में थनैला के उपचार और सावधानियां

  • पशु को थनैला होने पर उसे हरा धनिया खिलाया जाना चाहिए।
  • थनैला की स्थिति में पशु को केले के अंदर कुछ कपूर डालकर खिलाया जा सकता है।
  • थनैला रोग होने पर सबसे पहले पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। 
  • रोग के होने पर पशु के नीचे धुआं या गर्म आंच नहीं दिखानी चाहिए। 
  • रोग के हो जाने पर पशु को किसी तरह की बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं देनी चाहिए। 
  • थनैला के लक्षण दिखने पर पशु के दूध की जांच करानी चाहिए। 

मानसून में पशुओं को थनैला से कैसे बचाएं

  • मानसून के दिनों में पशु के रहने के स्थान को गीला न रहने दें।
  • थनों में चोट या गांठ पड़ने पर डॉक्टर की सहायता तुरंत लेनी चाहिए। 
  • पशु को खुरदरे और गीले फर्श पर नहीं छोड़ना चाहिए। 
  • पशु को खुले में चरने के लिए या बैठने के लिए न छोड़ें। 
  • पशु के थनों की सफाई नीम के गर्म पानी से करनी चाहिए।  

अगर आप इसी जानकारी को वीडियो के माध्यम से समझना चाहते हैं, तो नीचे दी गई वीडियो को देख सकते हैं और हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब भी कर सकते हैं। इसके अलावा हमारी एनिमॉल ऐप को डाउनलोड कर आप गाय और भैंस खरीद एवं बेच भी सकते हैं। ऐप को डाउनलोड करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

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मानसून में होने वाले खुरपका मुहंपका रोग के लक्षण और घरेलू उपाय।

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मानसून के दौरान पशुओं के बीमार पड़ने का खतरा सबसे अधिक रहता है। बारिश के दिनों में कई तरह के परजीवी पैदा हो जाते हैं, जो पशुओं को अपनी चपेट में ले लेते हैं। आज हम मानसून के दौरान पशुओं में होने वाले खुरपका मुंहपका रोग के बारे में बताने वाले हैं। 

यह रोग यूं तो बेहद साधारण होता है, लेकिन यह काफी संक्रामक है और रोगी पशु से स्वस्थ पशु में भी बहुत तेजी से फैलता है। आज हम अपने इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि मानसून में खुरपका मुहंपका होने की संभावना अधिक हो जाती है। इसके अलावा खुरपका के लक्षण और उपचार से जुड़ी जानकारी भी हासिल करेंगे। 

खुरपका मुहंपका रोग क्या है 

यह चार पैरों वाले जीवों में होने वाला एक रोग है, जिसे अंग्रेजी भाषा में फुट एंड माउथ डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के अंदर पशु के पैरों और मुंह में घाव बन जाते हैं। जिसकी वजह से पशु को न केवल चलने में बल्कि खाने पीने में भी खासी दिक्कत होने लगती है। इस रोग की वजह से पशु अक्सर कमजोर हो जाते हैं और लंगड़ा कर चलने लगते हैं। आइए अब खुरपका मुंहपका रोग से जुड़ी कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल करें।  

खुरपका मुहंपका रोग के लक्षण 

मानसून के समय इस रोग के होने की संभावना काफी अधिक हो जाती है।  यूं तो यह रोग मुंह और पैरों से जुड़ा है। लेकिन कई बार यह रोग पशु के थनों तक को प्रभावित कर देता है। इस रोग की वजह से पशुओं के खुर और मुंह में गंभीर घाव बन जाते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं जो कुछ इस प्रकार हैं। 

  1. खुरपका मुहंपका में पशु के शरीर का तापमान काफी बढ़ जाता है और यह दो से तीन दिन तक बढ़ा रहता है। 
  2. पशु के मुंह से लार निकलती है जो चिपचिपी, गाढ़ी और झागदार हो जाती है। 
  3. मुहंपका के अंदर पशु के मुंह में छाले हो जाते हैं. जिसकी वजह से पशु सही तरह से खान पान नहीं कर पाते। 
  4. खुरपका की स्थिति में कई बार पशु बहुत ज्यादा लंगड़ा कर चलते हैं और कई बार तो चल ही नहीं पाते।
  5. इस रोग के चलते पशु की दूध उत्पादन क्षमता घट जाती है।

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खुरपका मुंहपका रोग से बचाने के तरीके

  • मानसून में पशु के पैरों की समय समय पर सफाई करते रहें। 
  • पशु को मानसून के समय खुले में चरने के लिए न छोड़ें। 
  • गाय भैंस को संक्रमित पशुओं से पूरी तरह दूर रखें। 
  • संक्रमित गाय भैंस के साथ आहार और पानी न पिलाएं। 
  • जिस स्थान पर पशु रहता हो वहां गंदगी पैदा होने से रोकें और समय – समय पर सफाई करते रहें। 

खुरपका मुहंपका रोग के घरेलू उपाय और इलाज 

खुरपका मुहंपका रोग से पशु का इलाज करने के लिए इस रोग के लक्षणों की जानकारी होनी चाहिए। अगर पशुपालकों ने रोग की पहचा कर ली है तो वे अपने पशुओं पर घरेलू उपाय आजमा सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि किसी भी घरेलू उपाय के जिरए यह समस्या ठीक हो जाए। ये कहना थोड़ा मुश्किल है। इसलिए रोग का उपचार के लिए डॉक्टर की राय जरूर ले।

  1. अगर आपका पशु खुरपका मुंहपका रोग से पीड़ित हो तो ऐसे में उनके घाव पर लाल दवा लगाई जा सकती है। 
  2. खुरपका मुंहपका रोग से राहत दिलाने के लिए पशु को मोठ की रोटी बनाकर खिलाई जा सकती है। 
  3. पशु को खुरपका मुहंपका रोग होने पर पशुपालक भाई पशु को सूखा चारा खिलाएं। 
  4. इन सबके अलावा पशुपालक भाई खुरपका मुहंपका रोग का इलाज करवाने के लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर पाएं। 

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गाय को दस्त होने के कारन, लक्षण और उसका इलाज

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ये काफी आम बात है कि गाय को दस्त की शिकायत हो रही है। जब भी गाय को ये बीमारी होगी तो वो काफी पतला गोबर करेगी। ऐसे में बार-बार गाय को पतला गोबर आएगा, तो उसका शरीर काफी कमजोर हो सकता है। गाय को दस्त होने के पीछे का मुख्य कारण पशु की पाचन क्रिया खराब होना या फिर पेट में किसी तरह का संक्रमण होने की वजह से होता है। हालांकि ज्यादा गर्मी लगने की वजह से भी पशु को ये बीमारी हो सकती है।

पिचकारी की तरह पतला गोबर निकलना दस्त का मुख्य लक्षण होता है। इसके अलावा गाय के स्वास्थ्य के अनुसार भी कुछ अन्य लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि बुखार, कमजोरी, घास ना खाना। इससे बचने के लिए ज्यादा कछ नहीं करना होता है बस साधारण सफाई अपना कर और उसके खाने के संबंधित सही जानकारी लेकर गाय को दस्त से बचाया जा सकता है।

अगर गाय को दस्त हो जाता है तो उसका इलाज घरेलू उपायों से भी किया जा सकता है। हालांकि गंभीर स्थिति में डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है और डॉक्टर कारण और लक्षणों के मुताबिक अलग अलग दवाएं देते हैं। दवाओं के साथ-साथ शरीर में पानी और पोषक तत्वों को पूरा करने के लिए भी तरीके अपनाए जाते हैं।

बीमारियों से बचाए रखने के लिए गाय का टीका कब लगाना चाहिए

गाय को दस्त होना वैसे तो एक आम स्थिति है, लेकिन कई बार ये गंभीर हो जाती है। जिस कारण इसकी सेहत पर गंभीर असर होता है। गाय को कई प्रकार के दस्त होते हैं, जिनमें के कुछ अन्य जानवरों में फैलने वाले भी होते हैं।

गाय को दस्त के लक्षण

गाय का गोबर काफी पतला आता है या फिर उसमें किसी तरह का द्रव मिला हुआ होता है। इसके अलावा इस रोग में गाय में कई अन्य लक्षण भी देखें जा सकते हैं, जो गाय के स्वास्थ्य और रोग के अंदरूनी कारणों पर निर्भर करते हैं। इसके अलावा गाय को दस्त होने की स्थिति में कई लक्षण देखें जाते हैं।

  • पिचकारी की तरह गोबर आना
  • गोबर में द्रव या फिर झाग आना
  • बदबूदार गोबर का आना
  • हर थोड़ी देर बाद गोबर आना
  • गाय के बैठे हुए में ही गोबर निकल जाना
  • गोबर में खून आना

गाय को कब्ज होने की स्थिति में उसका शरीर काफी ज्यादा प्रभावित होता है। जिस वजह से उसे कई समस्याएं हो सकती है। इन समस्याओं के आधार पर पशु को अन्य लक्षण भी आ सकते हैं।

  • शरीर में कमजोरी का आ जाना, जिस कारण पशु पूरा दिन बैठा रहता है
  • गाय को बुखार हो जाना
  • पशु की आंखों से पानी निकलना
  • जरूरत से ज्यादा ठंड लगना
  • शरीर में कंपन होना
  • पेट की हड्डियां दिखाई देना

डॉक्टर को कब दिखाएं

आमतौर पर दस्त का इलाज घर पर ही किया जाता है, लेकिन अगर एक दिन से ज्यादा होने पर और अगर घरेलू उपाय काम नहीं कर रहे हैं, तो डॉक्टर से बात करें।

किन कारणों से होता है गाय को दस्त रोग

गाय को दस्त लगने के कारण बहुत ही आम हो सकते हैं, जैसे कि ज्यादा हराई खाना या फिर गर्मी लग जाना। जबकि अगर डॉक्टर की माने तो उनके मुताबिक पशु को दस्त होने के 2 कारण होते हैं, जिनमें पाचन संबंधी रोग और अलग अलग तरह के संक्रमण शामिल होते हैं। 

गाय को पाचन से जुड़ी समस्याओं के कारण भी दस्त होते हैं, और इनके कारण है – 

  • ज्यादा हराई खिलाना
  • ज्यादा मात्रा में फीड, चना, या फिर चारा खिलाना
  • गंदा पानी पिलाना
  • पुराना या सड़ा हुआ चारा खिलाना
  • गंदे पानी में उगी घास चराना
  • कीटनाशकों और रसायनों वाली घास खिलाना
  • ज्यादा संख्या में बिनोला या उसकी खल खा लेना

गाय को दस्त कई बार कुछ तरह की दवाओं की वजह से भी हो जाता है। इन दवाइयों में ज्यादातर गाय की त्वचा पर कीड़ों को मारने की दवाएं होती है, वहीं दूध बढ़ाने वाली दवाएं और बाकी गर्म दवाएं भी गाय को दस्त की शिकायत दे सकती है। 

संक्रमण

अगर आपकी गाय को दस्त की बीमारी हो गई है, तो उसके पीछे पेट में होने वाले संक्रमण भी होते हैं। जिसमें आमतौर पर वायरल इंफेक्शन शामिल होता है। गाय को दस्त होने का कारण बनने वाले वायरल इंफेक्शन को बोवाइन वायरल डायरिया कहते हैं। ये रोग ज्यादातर संक्रमित पशु के संपर्क में आने की वजह से ही होता है। नीचे लिखें तरीकों से गाय इस रोग के संपर्क में आती है-

  • संक्रमित जानवर की लार, जुगाली के संपर्क में आने से
  • एक ही बर्तन में पानी पीने से
  • एक ही खुरली में घास खाने से
  • संक्रमित पशु के आस-पास रहने की वजह से

हम अपने जानवरों को संक्रामक रोगों से कैसे बचा सकते है?

गाय को दस्त लगने से कैसे बचाएं

गाय को कई कारणों से दस्त हो सकता है, जिनमें से कुछ मामलों में बचाव किया जा सकता है, लेकिन कई बार रोकथाम मुश्किल हो जाती है। दस्त से बचाव के तरीके उनके कारणों पर निर्भर करते हैं। आप नीचे लिखें तरीकों से दस्त से बचाव कर सकते हैं – 

– गाय को ताजी और साफ घास चराएं

– गंदे पानी में उगी या फिर बासी घास खिलाने से बचें

– सर्दियों में ज्यादा हराई न दें अदर दें तो सूखा भूसा भी उसमें मिलाते रहें

– साफ और ताजा पानी पीने के लिए दें

– फीड, अनाज, दाना, खल सभी चीजों की मात्रा का खास ध्यान रखें, इस बारे में चाहें तो पशु चिकित्सक से बात करें

– गाय को गर्मी ना लगने दें और तेज धूप के दिनों में उसे बांधें नहीं और हवादार जगह पर रखें

– गाय को दिन में कई बार ताजा पानी पिलाएं

– उसकी लार और बाकी द्रवों को तुरंत ही नष्ट कर दें ताकि बाकी जानवर उसके संपर्क में ना आ सकें

 

गाय को दस्त होने का इलाज कैसे करें

गाय को दस्त की बीमारी होने पर सबसे पहले उसके कारणों और रोग की गंभीरता समझनी बेहद जरूरी है। अगर दस्त की समस्या ज्यादा गंभीर ना हो तो घरेलू उपाय भी कर सकते हैं। लेकिन अगर दस्त ठीक नहीं हो रहे हैं तो डॉक्टर से राय लेने के लिए जरा भी नहीं हिचकिचाएं। डॉक्टर इस दौरान गाय को ठंडी चीजें खिलाने की सलाह दे सकते हैं, जैसे सरसों की खल, सरसों का तेल, दही आदि।

साथ ही इस वक्त में गाय को गर्म चीजें देने से परहेज करने के लिए भी डॉक्टर कह सकता है। अगर गाय को वायरल बोवाइन हो गया है तो चिकित्सक गाय के लक्षण और परेशानी को समझ कर दवा देगा। आमतौर पर डॉक्टर रिहाइड्रेशन फ्लूइड, अलग तरह के खनिज और पोषक तत्व देते हैं। जो कि शरीर में पानी और जरूरी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करते हैं। साथ ही ये दस्त को भी नियंत्रण में रखते हैं।

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