गर्मियों में गर्भाधान के लिए भैंसों का रखरखाव कैसे करें?

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देश के बहुत से हिस्सों में तापमान का पारा चढ़ता जा रहा है। ऐसे में जिन क्षेत्रों में अधिक गर्मी हो गई है, वहां के पशुपालकों को थोड़ा सावधान होना होगा। खासतौर से वह पशुपालक जिनके घरों में भैंस पाली जा रही है। आपको बता दें कि गर्मियों के दौरान भैंस का ध्यान अधिक रखने की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि भैंस का रंग अधिकतर काला होता है और उनके शरीर से गर्मी आसानी से नहीं  निकलती। जिसकी वजह से उन्हें कई तरह की दिक्कत हो सकती हैं।

पशुपालक भाइयों को उस भैंस का ध्यान अधिक रखना होगा जो गर्भावस्था की स्थिति में है। क्योंकि गर्भावस्था के दौरान अगर शरीर से गर्मी न निकले तो इसकी वजह से प्रसव से जुड़ी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। आज हम अपने इस लेख में पशुपालक भाइयों को बताएंगे कि वह किस तरह गर्मियों में गर्भावस्था में भैंस की देखरेख कर सकते हैं।

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भैंस के शरीर में गर्मी बढ़ने से क्या होता है 

किसान और पशुपालन से जुड़े लोगों को बता दें कि जब भैंस के शरीर में गर्मी अधिक बढ़ जाती है, तो इसकी वजह से एस्ट्रोजन हार्मोन में कमी आ जाती है। जिसके कारण मद के लक्षणों का पता नहीं चल पाता और पशु के शरीर में गर्मी अधिक बढ़ने की वजह से गर्भ भी नहीं ठहरता। जानकारों की मानें तो अगर भैंस के शरीर का तापमान 0.9 डिग्री फारेनहाइट हो तो गर्भाधान की दर 13 प्रतिशत तक घट सकती है। पशु को इस स्थिति से बचाने के लिए गर्मियों के दौरान खास इंतजाम तो करने ही चाहिए। इसके अलावा पशु के मद चक्र की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। अगर ऐसा न हो तो पशु को गाभिन करा पाना मुश्किल हो सकता है।

गर्मियों में भैंस का रखरखाव किस तरह करें 

पशुपालन से जुड़े लोगों को गर्मियों और सर्दियों में पशु की देखभाल अलग – अलग तरीके से करनी चाहिए। इसमें चारे से लेकर कई तरह के बदलाव जरूरी होते हैं। अगर मौसम के हिसाब से पशु की देखरेख न की जाए तो पशु के गाभिन होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। इसके अलावा पशु की उत्पादकता भी कम हो जाती है। आइए चलिए जानते हैं कि गर्मियों के दौरान भैंस की देखरेख कैसे कर सकते हैं। 

  • देश के वह क्षेत्र जहां तापमान बढ़ रहा है या जहां गर्मी बहुत अधिक है। वहां पशुपालकों के लिए पशु को लू से बचाना बहुत जरूरी होता है। इसमें भैंस का ध्यान अधिक रखने की जरूरत है। क्योंकि उसका रंग काला होता है और खाल मोटी होती है। जिसकी वजह से शरीर से गर्मी बाहर नहीं निकलती और भैंस के रोम छिद्र भी कम होते हैं। जिसकी वजह से उसे पसीना भी कम ही आता है। 
  • एक पशुपालक को अपनी भैंस को नहलाने का बेहतर इंतजाम कराना चाहिए। अगर हो सके तो पशुओं को नदी या नहर के पानी में कुछ देर के लिए छोड़ देना चाहिए। इससे पशु के शरीर की गर्मी कुछ हद तक कम हो जाती है। वहीं अगर नदी या नहर न हो तो पशु को 3 से 4 दिन में अच्छी तरह नहलाना चाहिए। 
  • भैंस को गर्मियों के दौरान ऐसा आहार देना चाहिए जो हल्का हो और जिसकी तासीर ठंडी हो। अगर पशु को ऐसा आहार दिया जाता है, तो न केवल पशु के शरीर में ठंडक बनी रहती है। बल्कि पाचन क्रिया भी बेहतर हो जाती है। जिसकी वजह से पशु को भोजन पचाने में अधिक मेहनत नहीं कर पड़ती। 
  • पशु के लिए एक ऐसे शेड का निर्माण करना चाहिए जहां हवा की आवा जाही बेहतर हो। इसके अलावा शेड में पीने के पानी की व्यवस्था भी होनी चाहिए। इसके साथ ही पशु के ऊपर सीधा धूप या सूरज की रोशनी न पड़े इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए। 

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