निकट के पशु चिकित्सा अधिकारी से सम्पर्क करना चाहिए। उसके पेट कीड़े भी हो सकते हैं। जिसका उपचार अति आवश्यक है।
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उसकी जांच किसी नज़दीक के पशु चिकित्सक से करवायें। उसके गर्भशय में कोई समस्या हो सकती है या खान पान में कमियां हो सकती है।
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का प्रसार निदेशालय समय समय पर भेड़ बकरी पालकों के लिए ट्रेनिंग आयोजित करता है तथा पशु विज्ञान महाविद्यालय पालमपुर में आकर अपनी समस्याओं का निवारण कर सकते है।
ऐसा देखा गया है कि गद्दी भाई पने पशुओं को घास चराने के अलावा कुछ भी नहीं खिला पाते हैं, हालांकि देखा गया है कि ऊँचे चरागाहों में जाने के बाद भेड़ बकरियों में नमक की कमी हो जाती है। अतः दो ग्राम प्रति भेड़ प्रतिदिन के हिसाब से सप्ताह में दो बार नमक अवश्य देना चाहिए।
हरे चारे जैसे मक्की, जवी, चरी इत्यादि का एक इंच से दो इंच का कुतरा कर लें। ऐसे चारों में पानी का अंश 65 से 70 प्रतिशत होना चाहिए। 50 वर्ग फुट का एक गड्डा मिट्टी को खोद कर या जमीन के ऊपर बना लें जिसकी क्षमता 500 से 600 किलो ग्राम कुत्तरा घास साईलेस की चाहिए। गड्डे के नीचे फर्श वह दीवारों की अच्छी तरह मिट्टी व गोबर से लिपाई पुताई कर लें तथा सूखी घास या परिल की एक इंच मोती परत लगा दें ताकि मिट्टी साईलेस से न् लगे। फिर इसे 50 वर्ग फुट के गड्डे में 500 से 600 किलो ग्राम हरे चारे का कुतरा 25 किलो ग्राम शीरा व 1.5 किलो यूरिया मिश्रण परतों में लगातार दबाकर भर दें ताकि हवा रहित हो जाये घास की तह को गड्डे से लगभग 1 से 1.5 फुट ऊपर अर्ध चन्द्र के समान बना लें। ऊपर से ताकि गड्डे के अंदर पानी व वा ना जा सके। इस मिश्रण को 45 से 50 दिन तक गड्डे के अंदर रहने दें। इस प्रकार से साईलेस तैयार हो जाता है जिसे हम पशु की आवश्यकता अनुसार गड्डे से निकलकर दे सकते हैं।