दुधारू पशु के दूध को सुखाना क्यों जरूरी है?

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गर्भवस्था के समय दोनों माँ व पेट में पल रहे बच्चे को अधिक पोषाहार की आवश्यकता होती है इसलिए पशु को व्याने से तीन महीने पहले दूध सुखा देना/छोड़ देना चाहिए इससे पशु की आदर्श दूध उत्पादक क्षमता सुनिश्चित होती है|

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पशुशाला की धुलाई सफाई के लिये क्या परामर्श है?

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पशुशाला को हर रोज़ पानी से झाड़ू द्वारा साफ़ कर देना चाहिये। इस से गोबर व मूत्र की गंदगी दूर हो जाती है।
पानी से धोने के बाद एक बाल्टी पानी में 5ग्राम लाल दवाई (पोटाशियम पर्मंग्नते) या 50 मिली लीटर फिनाईल डाल कर धोना चाहिये । इस से जीवाणु ,जूं, किलनी तथा विषाणु इत्यादि मर जाते हैं, पशुओं की बीमारियां नहीं फैलती और स्वच्छ दूध उत्पादन में मदद मिलती है।

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अफारे से बचने के लिए आम क्या-क्या उपाय है?

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अफारे से बचने के लिए निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखें:-
(क) चारा खिलाने से पहले पानी पिलाना चाहिए|
(ख) दाना खिलने में अचानक बदलाव न करे|
(ग) गला-सड़ा दाना न दें|
(घ) चारा पूरा पका हुआ हो|
(ङ) पशु को हर रोज़ व्यायाम करवाना चाहिए|

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पशुओं के प्रमुख रोग और उनके उपचार क्या है ?

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पशुओं को स्वस्थ रखने और रोग से बचाने के लिए कई मुहिम चलाई जाती है। इसमें सरकार से लेकर कई निजी संस्थान पशुओं से जुड़ी बीमारियों की जानकारियां साझा करती हैं। इन मुहिम का लक्ष्य होता है कि पशुपालकों को आर्थिक नुकसान से बचाना और पशुओं को स्वस्थ रखना। लेकिन फिर भी कई बार सरकार या निजी संस्थान की बात पशुपालकों तक नहीं पहुंच पाती और पशु गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। 

आज हम आपको पशुओं से जुड़ी ऐसी ही कुछ मुख्य बीमारियों के बारे में बताने वाले हैं। जिनके होने से पशुपालक को नुकसान हो सकता है। अगर आप एक पशुपालक हैं और अपने पशुओं को इन गंभीर रोग से बचाना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पर अंत तक जरूर पढ़ें।  

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पशुओं में होने वाले प्रमुख रोग और उपचार 

पशुओं में ऐसे कई रोग हैं जिनका असर पशुपालकों की आय पर पड़ता है। नीचे हम आपको ऐसे ही रोगों से जुड़ी जानकारी देने वाले हैं। लेकिन इससे पहले हम आपको रोगों के बारे में बताएं। पहले यह जान लीजिए कि पशुओं में कितने तरह के रोग पाए जाते हैं। 

  • संक्रामक रोग यह बहुत तेजी से फैलते हैं।
  • आम रोग जो सभी पशुओं को मौसम बदलने या आहार की वजह से हो सकते हैं। 
  • परजीवी रोग जो जीवाणुओं और परजीवियों से हो सकते हैं। 

संक्रामक रोग और उसके इलाज 

ऐसी बीमारियां जो छुआछूत की वजह से फैलती हैं। उन्हें ही संक्रामक रोग कहा जाता है। ऐसे रोगों से बचाए रखने के लिए पशुओं को संक्रमित पशुओं से दूर रखना चाहिए। इसके अलावा पशु ज्यादातर किसी छुआछूत की बीमारी की चपेट में तब आते हैं जब उनकी साफ सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसके अलावा पशु को खुले में चराने के दौरान भी पशु किसी ऐसी चीज के संपर्क में आ जाता है, जो जीवाणुओं से भरी है। तब भी पशु रोग का शिकार हो जाता है। इसलिए  किसी भी संक्रामक रोग से पशु को बचाने के लिए उनके खाने पीने से लेकर उनकी साफ सफाई का ध्यान रखा जाना चाहिए।  

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गलघोटू रोग के लक्षण और इलाज 

यह रोग अमूमन भैंस और सूअर में दिखाई देती है। यह रोग अक्सर पशुओं को बरसात के दौरान परेशान करता है।

गलघोंटू रोग के लक्षण – इस रोग के होने पर पशु के ऊपर कुछ लक्षण दिखाई दे सकते हैं जैसे – तापमान बढ़ना, सुस्त होना, गले में सूजन, गले में दर्द रहना आदि। 

गलघोटू इलाज – गलघोटू का इलाज करने के लिए सबसे जरूरी है, कि इस रोग के होते ही डॉक्टर से संपर्क करें। वहीं पशु को इस रोग से बचाने के लिए बरसात से पहले जरूरी टीकाकरण कराएं।

ब्लैक क्वार्टर रोग के लक्षण और इलाज

यह रोग भी पशुओं में बरसात के दौरान ही देखने को मिलता है। आपको बता दें कि यह रोग अधिकतर 18 महीने से छोटी आयु के पशु को होता है। इसके अलावा आम लोगों के बीच ब्लैक क्वार्टर को सुजवा के नाम से भी जाना जाता है। 

ब्लैक क्वार्टर के लक्षण – यह रोग होने पर पशु के कूल्हों में सूजन आने लगती है। इसके अलावा कई बार पशु लंगड़ा कर चलने लगता है। वहीं कई बार सूजन पशु के अलग – अलग हिस्सों में फैलने लग जाती है। इसके अलावा पशु के शरीर का तापमान 104 से 106 डिग्री तक  पहुंच जाता है। 

ब्लैक क्वार्टर का इलाज – इस रोग से संक्रमित पशु को तुरंत चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। इसके अलावा पशु को ब्लैक क्वार्टर रोग से बचाने के लिए बारिश के मौसम से पहले रोग निरोधक टीका भी जरूर लगवाएं। 

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प्लीहा रोग के लक्षण और इलाज 

पशुओं में पैदा होने वाला यह रोग बेहद खतरनाक है। इस रोग के दौरान पशु की अचानक मौत तक हो जाती है। गाय भैंस के अलावा भेड़, बकरी और घोड़े जैसे पशु भी इस रोग के शिकार हो सकते हैं। 

प्लीहा के लक्षण – यह एक ऐसा रोग है जिसमें पशु के शरीर का तापमान 106 से 107 डिग्री तक पहुंच जाता है। इसके अलावा पशु की नाक पूरी तरह से बंद होती है। जिसकी वजह से उसकी मौत हो जाती है। यही नहीं प्लीहा रोग की वजह से शरीर के कई हिस्सों पर सूजन भी आने लगती है। 

प्लीहा के इलाज – इस रोग के होने पर पशुपालक को तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा पशुओं को समय पर रोग निरोधक टीके लगवाने चाहिए। तभी इस रोग से बचा जा सकता है। 

मुंहपका रोग के लक्षण और इलाज

यह रोग बहुत से पशुपालकों को काफी नुकसान पहुंचाता है। भले ही इस रोग के दौरान पशु की मृत्यु की संभावना बेहद कम होती है। लेकिन पशु इस रोग के दौरान कमजोर हो जाता है और उसकी उत्पादक क्षमता बेहद कमजोर हो जाती है। 

मुंहपका के लक्षण – मुंहपका रोग के समय पशु को तेज बुखार हो जाता है। पशु इस दौरान खाने पीने में कोई रुचि नहीं लेता। इसके अलावा पशु के शरीर पर कुछ दाने भी दिखाई दे सकते हैं। 

मुंहपका का इलाज – इस रोग के दौरान पशु के मुंह और पैरों को फिटकरी से धोना चाहिए। इसके अलावा नीम के पत्ते या तुलसी के पत्ते भी इस रोग में इस्तेमाल किए जा सकते हैं।  इस रोग से बचाए जाने के लिए आप पशु को हर 6 महीने में मुंहपका का टीका लगवाएं। ताकि पशु को यह रोग हो ही नहीं। 

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थनैला रोग के लक्षण और इलाज 

थनैला रोग ज्यादातर दुधारू पशुओं को होता है। इस रोग की वजह से पशु को भयंकर पीड़ा का सामना करना पड़ता है। यह रोग पशु को तब लगता है जब या तो पशु का दूध पूरी तरह न निकाला जाए या फिर पशु को गंदगी वाले स्थान पर बांध दिया जाए। इसके अलावा अगर पशु के थन में किसी तरह की चोट लग जाए तो भी यह थनैला का कारण बन सकता है।

थनैला रोग के लक्षण – इस रोग के दौरान पशु के थनों  का आकार बढ़ जाता है और इनमें सूजन आ जाती है। इस सूजन की वजह से पशु के थनों में बेहद दर्द होता है। इसके अलावा दूध दुहने के दौरान पशु के थनों से खून या पस भी निकलने लगता है और दूध निकालने का रास्ता संकरा हो जाता है।

थनैला का इलाज – पशुपालक भाइयों को बता दें कि इस रोग के दौरान पशु के थनों की सिकाई करनी चाहिए। इसके अलावा डॉक्टर से भी संपर्क करना चाहिए। थनैला को पशु से बचाने के लिए पशु की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें। अगर थनों का आकार बढ़ता दिखाई दे तो तुरंत इलाज के लिए डॉक्टर से संपर्क करें। 

संक्रामक गर्भपात के लक्षण और इलाज

गाय भैंस में होने वाली यह समस्या पशुपालकों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाती है। संक्रामक गर्भपात की वजह से हर साल डेयरी उद्योग को भी खासा नुकसान उठाना पड़ता है। 

संक्रामक गर्भपात के लक्षण – गर्भपात होने से पहले पशु की स्थिति बेहद समान ही प्रतीत होती है। लेकिन अचानक पशु को बेचैनी होती है और उसके योनिमुख तरल पदार्थ बहने लगता है। अमूमन यह लक्षण पशु के गर्भ धारण करने के 5 से 6 महीने बाद ही देखने को मिलते हैं। इसके बाद पशु का गर्भपात हो जाता है। 

संक्रामक गर्भपात के इलाज – पशु को संक्रामक गर्भपात के इलाज के लिए पशु की सफाई समय – समय पर करनी चाहिए। अगर पशु का गर्भपात हो गया हो तो उसके अंगों की सफाई सही तरह से करनी चाहिए। 

हमने अपने इस लेख में पशुओं को होने वाले कुछ मुख्य रोगों के बारे में जानकारी दे दी है। अगर आप इसी तरह की जानकारी हासिल करना चाहते हैं, तो हमारी Animall App को डाउनलोड कर सकते हैं। हमारी इस ऐप से आप पशु बेच और खरीद भी सकते हैं। इसके अलावा पशु चिकित्सक की सहायता भी पाई जा सकती है। अगर आप इस ऐप को डाउनलोड करना चाहते हैं तो इस विकल्प पर क्लिक करें।  

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बछडी(calf) कैसे तैयार करें ?

नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़ा वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।

बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

पानी का महत्व

ध्यान रखें हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग-अलग बरतनों में और अलग-अलग स्थानों में रखें।

खिलाने की व्यवस्था

बछड़े को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है:

  • बछड़े को पूरी तरह दूध पर पालना
  • मक्खन निकाला हुआ दूध देना
  • दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना
  • दूध के विकल्प देना
  • काफ स्टार्टर देना
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