जानिए कब साइलेज बन जाता है पशु की उत्पादकता का दुश्मन। Silage

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डेयरी जगत से जुड़े पशुपालक इस बात को भली भातिं जानते हैं कि पशुओं के लिए हरा चारा कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन देश के हर हिस्से में पूरे साल हरा चारा मौजूद नहीं होता। ऐसे में पशुपालक या तो पशु को केवल भूसा देने लगते हैं, या फिर साइलेज देते हैं। साइलेज पशुओं को स्वाद भी लगता है और इसके फायदे भी अधिक होते हैं। 

लेकिन बावजूद इसके कई बार साइलेज की वजह से पशु की दूध उत्पादन क्षमता और फैट कम होने लगता है। आज हम इसी समस्या के ऊपर विस्तार से चर्चा करेंगे। अगर आप भी जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों साइलेज की  वजह से पशु के दूध की गुणवत्ता कम हो जाती है, तो आप हमार एसि लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें।

क्या है साइलेज 

साइलेज पशुओं के लिए वो आहार है जो हरे चारे का एक बेहतरीन विकल्प है। लेकिन यही विकल्प अक्सर पशुओं की उत्पादकता और दूध की गुणवत्ता का दुशमन बन जाता है। ऐसा कई कारणों की वजह से हो सकता है। जैसे साइलेज का सही न होना, साइलेज की अधिक मात्रा और साइलेज के साथ अन्य चीजों को मैनेज न करना। 

क्यों दिया जाता है साइलेज

आपको बता दें कि पूरे साल पशुओं का हरा चारा खिला पाना लगभग नामुमकिन है। ऐसे में पशु को सभी पोषक तत्व मुहैया कराने के लिए साइलेज का सहारा लिया जाता है। साइलेज बाजार से भी खरीदा जा सकता है और इसे खुद भी तैयार किया जा सकता है। आपको बता दें कि साइलेज एक ऐसा आहार है जिसमें हरे चारे के सभी पोषक तत्व एवं गुण मौजूद होते हैं। यानी कि इसका इस्तेमाल इसलिए ही किया जाता है कि पशु को सभी गुण और पोषक तत्व मिल जाएं जो उसे हरे चारे से मिलते हैं। इसके साथ ही साइलेज का स्वाद भी पशुओं को काफी पसंद आता है। 

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क्यों या कब नुकसान पहुंचाता है साइलेज 

अब सवाल उठता है कि आखिर ये नुकसानदायक कब हो जाता है। तो आपको बता दें कि जब साइलेज बनाया जाता है तो इसमें घुलनशील कार्बोहाइड्रेट  के अंदर किनुअन होता है जिससे लैक्टिक एसिड पैदा होता है। ये पशु के रूमन का पीएच स्तर गिरने लगता है। 

वहीं जब आप साइलेज के साथ अनाज या अन्य पदार्थ देते हैं तो इसका स्तर और भी अधिक गिर जाता है। यही कारण भी है जिसकी वजह से पशु के दूध की गुणवत्ता और उत्पादकता घटने लगती है। 

साइलेज के साथ मीठा सोडा दिलाएगा राहत 

अगर पशु को इस स्थिति से बचाना है तो साइलेज के साथ 50 ग्राम मीठा सोडा उसे खिलाएं। इससे ये पीएच स्तर कम नहीं होगा और पशु को होने वाली समस्या का सामना भी नहीं करना पड़ेगा। अगर पशुपालक भाई रोजाना पशु को 50 ग्राम मीठा सोडा नहीं दे सकते तो उन्हें एक दिन छोड़कर भी ये मीठा सोडा दे सकते हैं। अगर नियमित रूप से पशुओं को साइलेज के साथ मीठा सोडा दिया जाए तो वे पूरी तरह स्वस्थ रहेंगे। 

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जानिए क्या है Downer Cow Syndrome और कैसे होता है इसका उपचार।

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डेयरी जगत और इस उद्योग को बल देने में छोटे पशुपालकों का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। लेकिन कई बार इन पशुपालकों पर बहुत सी समस्याएं आन पड़ती है। जिनमें से सबसे खतरनाक होती है पशु के बीमार पड़ने की या उसे किसी तरह की दिक्कत होने की। ऐसी ही एक दिक्कत है जो गाय और भैंस में देखी जाती है। जिसे डाउनर काऊ सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है। 

इस स्थिति में मौजूद पशु अक्सर अपने खड़े होने की क्षमता खो देता है। ऐसे में पशु कई बार अनुपयोगी तक हो जाता है। आज हम यही जानेंगे कि आखिर क्यों ऐसा होता है और इस डाउनर काऊ सिंड्रोम समस्या का क्या उपचार किया जा सकता है। अगर आप एक पशुपालक हैं और गाय या भैंस पालते हैं तो ये लेख और वीडियो आप इस पर अंत तक बने रहें। इससे आपको इस समस्या का कारण और उपचार दोनों पता चल जाएंगे। 

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किस नस्ल की गाय में होता है डाउनर काऊ सिंड्रोम 

यूं तो डाउनर काऊ सिंड्रोम की समस्या गाय और भैंस में देखी जा सकती है। लेकिन ज्यादातर ये समस्या एचएफ नस्ल की गाय और उन गायों में होती है जिसके अंदर एचएफ नस्ल के सीमेन का इस्तेमाल किया गया हो। 

कब होता है डाउनर काऊ सिंड्रोम 

ये स्थिति एचएफ गाय में ब्याने के बाद पैदा होती है। वह भी तब जब गाय के शरीर में फास्फोरस और प्रोटीन और कैल्शियम की कमी हो जाए। इस बीमारी को ठीक करने के लिए शुरुआती लक्षणों की पहचान होना बहुत ज्यादा जरूरी है। 

डाउनर काऊ सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं 

जब किसी गाय को डाउनर काओ सिंड्रोम की समस्या होती है तो वह अधिक देर तक खड़ी नहीं रह पाती और खाना पीना भी ठीक से नहीं करती। अगर आपको ये लक्षण गाय में नजर आए तो सावधान हो जाएं और तुरंत इसकी उपचार प्रक्रिया प्रारंभ कर दें। 

लक्षण दिखने पर पशुपालक क्या करें 

  • गाय को कुछ – कुछ देर में हिलाते डुलाते रहें। 
  • गाय के लिए ऐसी व्यवस्था करें कि वह किसी चीज के सहारे खड़ी रहे। 
  • गाय के नीचे एक मुलायम बिस्तर या भूसा बिछा दें और समय समय पर इसकी सफाई करते रहें। 
  • गाय को तालाब के पानी में ले जाएं ताकि गाय पैरों की  मूवमेंट करती रहे। 
  • अगर गाय को कैल्शियम और फास्फोरस के डोज दे रहे हैं तो ये काम बिना डॉक्टर की सलाह पर ही करें। 
  • इन सब के अलावा गाय के खाने पीने का सही तरह ध्यान रखें और उनका दूध समय – समय पर निकालते रहे। इसके अलावा दूध दुहने के बाद थनों की अच्छी तरह सफाई करें। 

गाय को इस रोग से बचाने के लिए गर्भावस्था से लेकर प्रसव के समय तक गाय के आहार को अच्छा रखें और अगर पशु को मिल्क फीवर आदि की समस्या है तो इसका तुरंत इलाज कराएं। आपके द्वारा उठाए गए ये छोटे छोटे कदम आपकी गाय को स्वस्थ रखेंगे। 

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जानिए कैसे कड़कनाथ मुर्गी के पालन से बदल सकती है पशुपालकों की किस्मत।

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पशुपालन करने वाले लोगों को अगर एक अच्छी आय अर्जित करनी है तो इसके लिए सबसे जरूरी है कि वो ऐसे पशु या पक्षियों को पालें, जिनकी कीमत और मांग अधिक है। ऐसे लोगों के लिए मुर्गी पालन बहुत फायदेमंद रहता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये कम लागत से शुरू हो सकता है और इसमें कई तरह से मुनाफा कमाया जा सकता है। वहीं अगर मुर्गी पालन में कड़कनाथ नस्ल की मुर्गी पालना शुरू कर दिया जाए तो इससे मुनाफा दोगुना भी हो सकता है। 

आज हम आपको अपने इस लेख में कड़कनाथ मुर्गी पालन से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं। अगर आप इस जानकारी को सही तरह से समझते हैं और फिर कड़कनाथ मुर्गी पालन करते हैं तो इससे आपकी आय दोगुनी हो सकती है। मुर्गी पालन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए आप हमारे इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें।

पॉली हाउस फार्मिंग तकनीक से बदलेगी किसानों की किस्मत और बढ़ेगी आय

कड़कनाथ मुर्गी से होने वाली आय 

कड़कनाथ मुर्गी एक खास किस्म की मुर्गी है, जिसे पालने के और इसका सेवन करने के कई फायदे हैं। ऐसे पशुपालक जिनके पास जगह की खासी कमी है उन लोगों के लिए ये व्यवसाय बहुत फायदेमंद हो सकता है। 

  • ये मुर्गी पूरी तरह काले रंग की होती है और इस मुर्गी का मांस भी काले रंग का ही होता है। 
  • हम आपको बता दें कि अगर आप एक कड़कनाथ मुर्गी को बेचते हैं तो इसके जरिए 3000 से 4000 रुपए कमा सकते हैं।  
  • वहीं केवल इस मुर्गी के एक किलो मास की कीमत करीब 750 रुपए से लेकर 1200 रुपए तक है। वहीं कड़कनाथ मुर्गी के अंडे की कीमत करीब 35 रुपए से लेकर 60 रुपए तक है। 

मुर्गी पालन में आने वाली लागत और संसाधन

वहीं इसे पालने का खर्च भी एक साधारण मुर्गी जितना ही है। बस आपको इसके लिए एक हवादार और खुली जगह की आवश्यकता होगी। यानी की आप एक ऐसा शेड बनाए जहां मुर्गियां आसानी से रह सकें और यहां हवा की आवा जाही भी अच्छी हो। 

ध्यान रहे कि इन मुर्गियों को विकास के लिए एक गर्म जगह की जरूरत है। ऐसे में सर्दियों के दौरान इनके आस पास गर्मी बनाए रखने के लिए हैलोजन लाइट का इस्तेमाल करें

जानिए Goat Farming या बकरी पालन में निवेश, संसाधन और आय के बारे में।

क्यों है ये मुर्गी इतनी महंगी 

अब बात करें कि आखिर क्यों ये कड़कनाथ मुर्गी इतनी महंगी है। आपको बता दें कि एक साधारण मुर्गी के मुकाबले इस मुर्गी के मास में फैट बेहद कम होता है और प्रोटीन बहुत ज्यादा होता है। इसके अलावा इस मुर्गी के फैट में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी बहुत कम होती है। वहीं इसे पचाने में भी शरीर को अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। ये सभी कारण है जो इसे बाजार में महंगा बनाते हैं।

मुर्गी पालन पर लोन और सब्सिडी कैसे लें

अगर आप ये मुर्गी पालन करना चाहते हैं तो सरकार राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत इसमें सब्सिडी और लोन भी ले सकते हैं। इसके लिए आपको अपने नजदीकी पशुपालन विभाग में जाकर जानकारी एकत्रित करनी होगी और सभी दस्तावेज संलग्न करने होंगे।

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पॉली हाउस फार्मिंग तकनीक से बदलेगी किसानों की किस्मत और बढ़ेगी आय

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क्या आप खेती की दुनिया से जुड़े हैं अगर हां तो शायद आपने पॉली हाउस फार्मिंग के बारे में जरूर सुना होगा। अगर आप इस तकनीक के बारे में नहीं जानते तो बता दें कि पॉली हाउस फार्मिंग को प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस तकनीक के जरिए खेती करने से फसल प्राकृतिक मार से बहुत हद तक सुरक्षित रहती है। 

आज हम आपको अपने इस लेख और वीडियो के जरिए बताएंगे कि आखिर किस तरह पॉली हाउस फार्मिंग की जाती है। इसमें किन साधनों की जरूरत होगी और किस तरह फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सकता है। अगर आप पॉली हाउस फार्मिंग से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी हासिल करना चाहते हैं आप हमारे इस लेख और वीडियो पर बने रहें। 

ये भी पढ़ें: जानिए Goat Farming या बकरी पालन में निवेश, संसाधन और आय के बारे में।

क्या है पॉली हाउस फार्मिंग और इसे करने का तरीका 

  • पॉली हाउस फार्मिंग एक ऐसा तरीका है जिसमें खेती की जमीन के ऊपर एक पॉलिथीन का शेड बनाया जाता है। 
  • इसके बाद इसमें फसल के बीज न डालकर फसल के पौधों को अलग से तैयार करके फसल पर तैयार किए गए बैड पर लगाया जाता है। इन पौधों के बीच में अक्सर 40 सेमी की दूरी बनाई जाती है। ताकि सभी पौधे सही तरीके से पनपते रहें। 
  • इसके साथ ही पौधों को बड़ा होने पर किसी धागे के सहारे सीधा रखने का प्रयास किया जाता है। 
  • इन सबके अलावा पॉली हाउस फार्मिंग में तापमान नियंत्रित करने का इंतजाम होता है। 
  • हवा की आवा जाही बनी रहे ये इंतजाम किया जाता है। 
  • मॉइस्चर, फर्टिलाइजर, और इरिगेशन सिस्टम भी लगाया जाता है।ये भी पढ़ें: पशुशाला बनाने के बारे में प्रमुख निर्देश क्या है?

पॉली हाउस फार्मिंग के फायदे

  • इसके जरिए फसल की उत्पादकता अधिक रहती है। 
  • फसल मौसम और कीड़ों की मार से बची रहती है। 
  • पॉली हाउस के जरिए ऑफ सीजन सब्जियों और फलों की खेती की जा सकती है। 
  • पॉली हाउस पर किया गया एक बार का निवेश 10 साल तक आसानी से चल जाता है। 

कितनी है पॉली हाउस फार्मिंग की लागत 

अब बात करें पॉली हाउस की लागत की तो इसके सेट अप में करीब लाखों का खर्च आ जाता है। लेकिन अगर दिमाग लगाकर खुद से काम किया जाए तो यही लागत हजारों में भी रह सकती है। 

किसान भाइयों को ध्यान में रख कर निवेश करना चाहिए। ऐसे में अगर आप पॉली हाउस का सेटअप करने की सोच रहे हैं तो सभी चीजों की कीमत को जोड़कर प्लान बनाकर ही इसे लगवाएं।

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दुनिया की सबसे महंगी कॉफी की खेती का तरीका। सिवेट कैट कॉफी।

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खेती की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले किसान अक्सर कुछ गलतियां कर देते हैं। जिसकी वजह से या तो उनकी फसल कोई खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाता या फिर उन्हें उनकी फसल के सही दाम नहीं मिलते। ऐसे में अगर किसान भाई थोड़ा समझदारी से काम ले तो वो इन दोनों समस्याओं से बच सकते है। आज हम लेकर आए हैं किसानों के लिए दुनिया की सबसे महंगी कॉफी की जानकारी।

इस कॉफी को उगाने के साथ बाजार में उतारने के लिए सिवेट कैट या बीलाऊ बिल्ली की जरूरत भी होती है। शायद आप सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर किसी फसल के उत्पादन के लिए बिल्ली की क्या जरूरत है। आज हम आपको इसी सिवेट कैट कॉफी के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। अगर आप इस तरह की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें। 

क्यों है सिवेट कैट कॉफी इतनी महंगी 

सिवेट कैट कॉफी को दुनिया की सबसे महंगी कॉफी भी कहा जाता है। आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस कॉफी की कीमत करीब 20 से 25 हजार रुपए किलो है। दरअसल ये कॉफी बिल्ली की पॉटी के जरिए तैयार की जाती है। इस कॉफी को बनाने के लिए किसान कॉफी की बैरीज के पौधे लगाते हैं। इन्हीं पौधों पर लगे हुए फलों को ये सिवेट कैट खा लेती हैं। 


इसमें ये बिल्ली बैरीज को तो खा लेती है। लेकिन इसके बीज को नहीं पचा पाती। यही बीज बिल्ली के मल के जरिए बाहर आ जाते हैं। इसमें मल को साफ करके बीज अलग किए जाते हैं और इसी से कॉफी तैयार की जाती है। ये भी एक कारण है जिसकी वजह से इस कॉफी की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 20 से 25 हजार रुपए किलो है। 

सिवेट कैट कॉफी की खेती कहां होती है 

भारत के अंदर सिवेट कैट कॉफी की खेती कुर्ग में की जाती है। इस कॉफी की खेती को करने के लिए एक खास किस्म की जलवायु की आवश्यकता होती है। लेकिन अगर किसान भाई किसी तकनीक का सहारा लेना चाहें तो वो ऐसा कर सकते हैं। ऐसा करके वे इसकी खेती कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि इसमें ये सिवेट कैट की जरूरत होती है और इसी के मल के जरिए ये तैयार होती है। 

क्यों है ये कॉफी इतनी महंगी 

सिवेट कैट कॉफी इसलिए अधिक महंगी होती है क्योंकि इसे तैयार करने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसमें बिल्ली ने बैरीज खाकर मल कहां पर त्यागती है ये कोई नहीं जानता। जिसके चलते इसके मल को ढूंढने में समय जाता है। यही भी कारण है कि इसकी कीमत इतनी अधिक है। वहीं मल को एकत्रित करने के बाद बीजों की गुणवत्ता के हिसाब से ही कॉफी को बनाया जाता है। जिन बीजों की गुणवत्ता अच्छी नहीं है। उन्हें फेंक दिया जाता है। 

भारतीय बाजार की कीमत 

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भले ही सिवेट कैट कॉफी की कीमत 20 से 25 हजार रुपए किलो है। लेकिन भारत के अंदर इसकी कीमत 5 से 8 हजार रुपए किलो ही है। वहीं बताया जाता है कि सिवेट कैट कॉफी का स्वाद लोगों को बेहद पसंद आता है। 

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