जानिए क्या है सोलर पावर से चलने वाले ट्रैक्टर के फायदे और इसके अन्य इस्तेमाल।

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कृषि से जुड़े हुए लोगों के लिए कई संसाधन बेहद जरूरी होते हैं। इन्हीं में से एक है, ट्रैक्टर। ट्रैक्टर के जरिए किसान कई तरह के काम करते हैं और खेती की दुनिया में ट्रैक्टर का इस्तेमाल बहुत बड़े स्तर पर किया जाता है। लेकिन आबादी का एक तबका ऐसा भी है जो ट्रैक्टर का इस्तेमाल तो करना चाहता है। पर कर नहीं पाता। इसके पीछे की मुख्य वजह है ट्रैक्टर और डीजल की बढ़ती कीमत। ऐसे में बाजार में एक नया और बेहतरीन ट्रैक्टर आया है।

इस ट्रैक्टर की खास बात ये है कि इसे चलने के लिए न तो पेट्रोल की जरूरत है और ना ही डीजल की। ये ट्रैक्टर पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर काम करता है। यही नहीं इसे किसी स्ट्रीट लाइट की रोशनी के नीचे भी आसानी से चार्ज किया जा सकता है। आज अपने इस लेख और वीडियो के अंदर हम इसी ट्रैक्टर से जुड़ी जानकारी साझा करने वाले हैं। ये जानकारी अगर आप भी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रह सकते हैं।  

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क्या है सौर ऊर्जा और इससे चलने वाला ट्रैक्टर 

 

सौर ऊर्जा या सोलर पावर आज के युग की ऐसी तकनीक है। जिसके जरिए सूरज की रोशनी से बिजली बनती है। इसी बिजली को एक बैटरी में स्टोर किया जाता है। जिसके जरिए फिर उपकरण आदि चल पाते हैं। सौर ऊर्जा से चलने वाले ट्रैक्टर भी इसी तकनीक पर काम करता है। ट्रैक्टर पर लगे चार सोलर पैनल सूरज से रोशनी लेकर उसे ऊर्जा में तब्दील कर देते हैं। यही ऊर्जा फिर इनवर्टर की बैटरी में एकत्रित हो जाती है। इसके बाद ही खेती के काम इस ट्रैक्टर के माध्यम से किए जा सकते हैं। 

किसने बनाया है ट्रैक्टर 


इस ट्रैक्टर का निर्माण सौर इन ऑटोसोल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड ने किया है। ये एक भारतीय कंपनी है जो खेती से जुड़े और सौर ऊर्जा से चलने वाले कई तरह के उपकरण बनाती है। इस कंपनी द्वारा तैयार किए गए इस ट्रैक्टर से वो सभी काम आसानी से किए जा सकते हैं जो डीजल से चलने वाले ट्रैक्टर से होते हैं।

सौर ट्रैक्टर के स्पेसिफिकेशन 

सौर ऊर्जा से चलने वाले इस ट्रैक्टर का आकार दिखने में भले ही छोटा हो। लेकिन ये 1 टन की हाइड्रोलिक और 1.8 टन की पुलिंग क्षमता रखता है। इस ट्रैक्टर में दी गई बैटरी 3015 वॉट्स है। ट्रैक्टर के ऊपर चार सोलर पैनल लगे हैं जो सूरज की रोशनी या स्ट्रीट लाइट के जरिए ऊर्जा जुटाते हैं और बैटरी को चार्ज करते हैं। इसके अलावा आपको बता दें कि ये ट्रैक्टर 1260 वाट्स की पावर जनरेट कर सकता है। 

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सौर ऊर्जा से चलने वाले ट्रैक्टर के फायदे 

किसान और पशुपालन करने वाले लोगों के खर्च से लेकर उनकी उत्पादकता को बढ़ाने में सोलर पावर से चलने वाला ट्रैक्टर इस्तेमाल किया जा सकता है। आइए विस्तार से जानते हैं सौर ऊर्जा से चलने वाले ट्रैक्टर के फायदे। 

  • इस ट्रैक्टर को चलाने के लिए किसी तरह के ईंधन की जरूरत नहीं है।
  • ट्रैक्टर के जरिए ध्वनि और वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। 
  • इस ट्रैक्टर पर लगे सोलर पैनल 20 से 25 साल तक आसानी से चल सकते हैं। 
  • इस ट्रैक्टर के जरिए खेत में मौजूद वॉटर पंप चलाया जा सकता है। जिससे फसल को पानी समय पर मिल जाता है। 
  • ट्रैक्टर के माध्यम से घर की बिजली से चलने वाले उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे ट्यूब, बल्ब, फ्रिज, आदि। 
  • आपातकालीन स्थिति में इस ट्रैक्टर को किसी स्ट्रीट लाइट के नीचे भी चार्ज किया जा सकता है। 
  • पेट्रोल या डीजल पर होने वाला खर्च भी सौर ऊर्जा के जरिए कम किया जा सकता है। 
  • देश को पेट्रोल डीजल बाहर से कम ही मंगाने की आवश्यकता होगी। 

ट्रैक्टर की लागत 

इस ट्रैक्टर की कीमत क्या है ये आपको इस कंपनी की आधिकारिक साइट पर जाकर ही पता चलेगा। इस साइट पर जाकर ट्रैक्टर का चुनाव करें और साइट के साथ जुड़ें। ऐसा करने पर आप आसानी से जान जाएंगे कि ट्रैक्टर की लागत क्या है। इसके अलावा बताया जा रहा है कि ट्रैक्टर की कीमत डीजल के ट्रैक्टर के मुकाबले थोड़ी अधिक हो सकती है। 

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जानिए क्यों है गधी के दूध की कीमत 7000 रुपए लीटर और क्या हैं इसके फायदे।

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देश में डेयरी का व्यापार करने वाले लाखों लोग है। लेकिन आज भी बहुत से लोग इस व्यापार में इतनी आय अर्जित नहीं कर पाते। लेकिन ये लोग अगर थोड़ा सा दिमाग लगाएं तो रोजाना के 7000 से लेकर 50000 रुपए तक कमा सकते हैं। ऐसा करने के लिए उन्हें बस गधी को पालने का काम करना होगा। इसके जरिए वे आसानी से अच्छी खासी आय कमा सकते हैं। 

आपको बता दें कि गधी के दूध की मांग आज बाजार में बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। गधी के दूध के जरिए कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं। यही कारण है कि गधी के दूध की मांग अधिक भी है, और इसकी कीमत 7000 रुपए लीटर तक है। अगर आप गधी के दूध के फायदे से लेकर इससे जुड़ी जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें। 

गधी पालने के फायदे 


हम सभी ने अक्सर गधे या गधी को बोझा ढोते हुए ही देखा है। ये भी कारण है जिसकी वजह से गधी के दूध पर आम आदमी का ध्यान कभी नहीं जाता। लेकिन जानकार बताते हैं कि गधी के दूध के अंदर गाय और भैंस के दूध के मुकाबले अधिक विटामिन सी पाया जाता है। इसके अलावा गधी के दूध में रेटिनोल पाया जाता है।

ये एक ऐसा गुण है जिसके जरिए एंटी एजिंग उत्पाद बनाए जाते हैं। इसके अलावा गधे मूत्र में कई मेडिसिनल गुण भी मौजूद होते हैं। इन सबके अलावा गधे की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। इसके अलावा ये एक मोटी आय का जरिया भी बन सकते हैं। ये सभी आधार समझाने के लिए काफी है कि गधी को पालने का काम क्यों किया जाना चाहिए। 

गधी के दूध के गुण और इसके दूध के फायदे 

गधी के दूध में कई ऐसे गुण मौजूद होते हैं, जो गाय या भैंस के दूध में भी नहीं होते। नीचे हम आपको विस्तार से बता रहे हैं कि गधी के दूध के फायदे क्या – क्या हो सकते हैं। 

  • गधी के दूध के अंदर गाय और भैंस के दूध के मुकाबले 4 गुना ज्यादा विटामिन सी होता है। 
  • ऐसे बच्चे या वयस्क जो लैक्टोज इंटॉलरेंस हैं वो गधी का दूध पी सकते हैं। आपको बता दें कि लैक्टोज इंटॉलरेंस
  • एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को गाय भैंस का दूध और उससे बने उत्पादों का सेवन नहीं कर सकते। 
  • गधी के दूध में विटामिन ए, सी, ई, डी और कई तरह के अमीनो एसिड पाए जाते हैं। 
  • गधी के दूध में रेटिनोल पाया जाता है जो एंटी एजिंग उत्पाद बनाने के काम आता है। 
  • गधी के दूध में एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी फंगल गुण पाए जाते हैं। 
  • स्किन से जुड़ी समस्याओं से राहत पाने के लिए गधी के दूध का इस्तेमाल किया जा सकता है। 

गधी की दूध देने की क्षमता 

गधी के दूध देने की क्षमता बहुत हद तक उसकी नस्ल पर निर्भर करती है। लेकिन अमूमन एक गधी दिनभर में आधे लीटर से लेकर डेढ़ लीटर तक दूध दे सकती है।

गधी के दूध को व्यापार में लागत 

आप गधी के दूध का व्यापार 50 हजार रुपये से शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा आप कितने बड़े स्तर पर ये व्यापार करना चाहते हैं यही व्यापार की लागत तय करेगी। यानी की अगर आप 10 गधी का फार्म बनाना चाहते हैं तो इसकी लागत उसके हिसाब से बढ़ जाएगी। आप जितने बड़े स्तर पर निवेश करते हैं उसी हिसाब से आपको इसका रिटर्न मिल जाएगा। 

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एरोपोनिक्स तकनीक और कुछ संसाधनों से घर में ही हो सकती है केसर की खेती।

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कृषि का सही ज्ञान और खेती का सही चुनाव किसानों की आय को भी बढ़ा सकता है और बाजार की मांग को भी पूरा कर सकता है। ऐसे में आप केसर को ही ले लीजिए। केसर की कीमत चांदी से ज्यादा है। लेकिन बावजूद इसके बहुत कम लोग हैं जो केसर की खेती करने की सोचते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उन्हें लगता है कि केसर की खेती के लिए कश्मीर में जाना होगा। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आप केसर की खेती अब घर पर भी कर सकते हैं। इसे एक बंद कमरे में किया जा सकता है।

आज हम एरोपोनिक्स तकनीक के जरिए होने वाली केसर की खेती के बारे में सूचित करेंगे। इसके अलावा हम आपको बता दें कि कुछ लोग अमेरिकी केसर की खेती करते हैं और उसे साधारण केसर ही समझते हैं। लेकिन ये केसर बिल्कुल अलग है। आइए विस्तार से जानते हैं कि केसर की खेती आप किस तरह घर के किसी बंद कमरे में कर सकते हैं। अगर आप इसकी खेती से जुड़ी किसी भी प्रकार की जानकारी हासिल करना चाहते हैं, तो हमारे लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें।

कैसे होती है बंद कमरे में केसर की खेती 

कृषि से जुड़े हुए लोग इस बात से भली भांति परिचित हैं, कि केसर की खेती कश्मीर जैसे ठंडे तापमान में की जाती है। ऐसे में जब केसर की खेती किसी कमरे में करनी होती है, तो इसमें कई संसाधनों की आवश्यकता होती है। ये संसाधन न केवल तापमान को नियंत्रित करते हैं। बल्कि फसल को पोषक तत्व पहुंचाने में भी सहायता करते हैं। आपको बता दें कि एरोपोनिक्स तकनीक के जरिए ही केसर की खेती करते हैं। 

केसर की खेती के फायदे 

केसर एक दुर्लभ और बेहद महंगी सामग्री है। इसका उपयोग कई खाद्य सामग्री में किया जाता है। इसके साथ ही भारत के अलावा दुनिया के अलग – अलग कोने में केसर की मांग काफी अधिक है। आइए विस्तार से समझते हैं कि केसर के फायदे क्या हैं और इसे क्यों लगाना चाहिए। 

  1. केसर की मांग दुनिया भर में है। इसलिए इसकी खेती कर आसानी से आय अर्जित कर सकते हैं। 
  2. केसर की कीमत 3 लाख रुपए किलो से लेकर 7 लाख रुपए किलो तक होती है। 
  3. केसर का सेवन आम घरों में भी होता है और इसे एक – एक ग्राम करके भी बेचा जा सकता है। 
  4. केसर का उपयोग कई कॉस्मेटिक कंपनियां करती है। आप चाहें तो केसर की खेती कर इन्हें अपनी पूरी फसल बेच सकते हैं।
  5. इससे केसर की मांग को पूरा किया जा सकेगा।
  6. केसर की खेती कर रोजगार के अधिक अवसर पैदा किए जा सकते हैं।

केसर की खेती में लगने वाले संसाधन 

केसर की खेती के लिए आपको कुछ खास तरीके के संसाधनों की जरूरत होती है। इन संसाधनों के बिना केसर की खेती किसी बंद कमरे में नहीं की जा सकती। 

  • चिलर मशीन 
  • ह्यूमिडिफायर
  • एसी 
  • लकड़ी की ट्रे
  • एलईडी लाइट 
  • मिस्ट
  • केसर के बीज

केसर की खेती में लागत

इन सभी चीजों पर आपको अपनी जगह के हिसाब से 5 से 7 लाख रुपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं। लेकिन अगर सही तरीके से इस खेती को किया जाए तो इससे तीन ही महीने में 15 से 21 लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं। यानी महज तीन महीने के बाद ही निवेश की गई राशि से कई गुना रकम आप हासिल कर पाएंगे। 

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क्या है Electric Bull? इलेक्ट्रिक बुल के फायदे और इससे जुड़ी संपूर्ण जानकारी

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हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन आज भी देश में 90 प्रतिशत के आस पास छोटे किसान है। ये वो किसान हैं जिनके पास भूमि का बहुत छोटा सा हिस्सा है। इसी छोटे से हिस्से पर की गई खेती के जरिए किसान अपना गुजारा करते हैं। इन किसानों के पास इतना पैसा नहीं होता कि ये आधुनिक मशीन खरीद लें। ऐसे में इनके दिन का बड़ा हिस्सा खेती से जुड़ी चीजों में ही निकल जाता है।

लेकिन अब बाजार में ऐसी कई मशीनें आ गई है, जो न केवल किसानों के काम को आसान कर देंगी। बल्कि इसे वो खरीद भी पाएंगे. हम बात कर रहे हैं, एक ऐसी ही मशीन के बारे में जिसे इलेक्ट्रिक बुल कहा जाता है। ये इलेक्ट्रिक बुल किसानों के कई तरह के काम आसानी से कर सकता है। आइए आज इस लेख और वीडियो के जरिए इस इलेक्ट्रिक बुल से जुड़ी जानकारी हासिल करते हैं। 

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क्या है ये Electric Bull 

ये एक बिजली से चलने वाली आधुनिक मशीन है, जिसका उपयोग खेती से जुड़े कामों में किया जाता है। इस मशीन का निर्माण महाराष्ट्र की कृषि गति कंपनी ने किया है। इस मशीन के जरिए जुताई, गुड़ाई, कीटनाशक छिड़काव जैसे काम आसानी से किए जा सकते हैं। इसे आप एक मिनी ट्रैक्टर भी मान सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये ट्रैक्टर से होने वाले सभी काम आसानी से कर सकता है और इसकी कीमत भी काफी कम है। 

क्यों रखा गया मशीन का नाम इलेक्ट्रिक बुल 

महाराष्ट्र के तुकाराम ने और उनकी पत्नी ने मिलकर ही ये मशीन बनाई है। उनका कहना है कि आज भी भारत के अंदर मध्यमवर्गीय किसान या छोटे किसान खेती में फसल की जुताई के लिए ट्रैक्टर नहीं खरीद पाते। इसलिए उन्होंने एक ऐसी मशीन बनाने का फैसला किया जो बैल और ट्रैक्टर के काम कर पाए और इसकी कीमत भी कम हो। इसलिए भी इसका नाम इलेक्ट्रिक बुल रखा गया है, क्योंकि ये बुल या बैल के सारे काम कर सकता है। इसके साथ ही ये बिजली से चलता है इसलिए इसके आगे इलेक्ट्रिक बुल कहा गया है। 

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इलेक्ट्रिक बुल के फायदे 

इस बुल के कई फायदे हैं जो आर्थिक रूप से भी देखने को मिल सकते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि इस इलेक्ट्रिक बुल के फायदे क्या हैं। 

  • ये मशीन आकार में बेहद छोटी है और बिजली से चलती है। 
  • इस मशीन के जरिए बैल और ट्रैक्टर से होने वाले ज्यादातर काम किए जा सकते हैं। 
  • मशीन के जरिए खेत को जोतने का काम कुछ ही देर में किया जा सकता है। 
  • ये इलेक्ट्रिक बुल चार्ज होने में दो घंटे लेती है और 6 घंटे तक काम कर सकती है। 
  • इसे गुड़ाई का काम भी आसानी से किया जा सकता है। 
  • इलेक्ट्रिक बुल के अंदर कुछ ऐसे फीचर्स भी दिए गए हैं, जिसके जरिए कीटनाशक छिड़काव भी किया जा सकता है। 
  • एक तरफ जहां ट्रैक्टर को खरीदने के लिए 7 लाख रुपए से ज्यादा खर्च करने होते हैं। वहीं इसकी लागत करीब 2,75000 तक है। 
  • इलेक्ट्रिक बुल का आकार छोटा है इसलिए इसे आसानी से कहीं भी रखा जा सकता है। 
  • इस इलेक्ट्रिक बुल को किराए पर देकर किसान भाई रोजाना 500 से 600 रुपए तक कमा सकते हैं। 

इलेक्ट्रिक बुल कहां से खरीदें 

अगर किसान भाई इस इलेक्ट्रिक बुल को खरीदना चाहते हैं तो वह कृषि गति की साइट पर जाकर इसे आसानी से खरीद सकते हैं। हमने आपको पहले भी बताया है कि इस बुल की कीमत 2 लाख 75 हजार रुपए तक है। 

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Biofloc से मछली पालन करना हुआ आसान। घर से ही कर सकते हैं शुरु।

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मत्स्य पालन करना भारत में हमेशा ही एक अच्छा विकल्प माना जाता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि भारत में 35 मिलियन मीट्रिक टन मछलियों की मांग है। लेकिन आज भी इस मांग को पूरा करने के लिए भारत को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए आज हम एक ऐसी तकनीक लेकर आपके सामने आए हैं। जिसके जरिए आप अपने घर से ही मछली पालन करना शुरू कर सकते हैं। 

हम बात कर रहे हैं बायोफ्लॉक तकनीक के बारे में। इस तकनीक के जरिए घर में या बाहर कहीं टैंक बनाकर भी मछली पालन किया जा सकता है। इसके साथ ही टनों मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है। अगर आप बायोफ्लॉक तकनीक से जुड़ी किसी भी प्रकार की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पर बने रहें, या फिर हमारी वीडियो भी देख सकते हैं। 

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क्या है बायोफ्लॉक तकनीक 

बायोफ्लॉक तकनीक का इजाद इंडोनेशिया में किया गया था। इस तकनीक में तारपोलिन के टैंक में मछलियों को पाला जाता है। इसमें एयरेशन सिस्टम की मदद से मछलियों को ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है।  इसके अलावा इस तकनीक में सबसे खास चीज ये है कि इसमें मछलियों के मल को साफ करके प्रोटीन में तब्दील किया जाता है। बाद में जब ये मल प्रोटीन में तब्दील हो जाता है तो मछलियां इसी मल को खा जाती हैं। इससे मछलियों का आकार तेजी से बढ़ता है और उनका वजन भी बढ़ता है। 

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बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के फायदे 

बायोफ्लॉक तकनीक के कई ऐसे फायदे हैं, जिसकी वजह से इस तकनीक को तेजी से अपनाया जा रहा है। अब हम आपको नीचे कुछ ऐसे ही फायदों के बारे में विस्तार से बताएंगे। 

  • इस तकनीक के जरिए मछली पालन में खर्च कम होता है। 
  • बायोफ्लॉक तकनीक के जरिए मछली पालन करने में पानी की खपत कम होती है। 
  • इस तरह मछली पालन करने में मछलियों के चोरी होने का खतरा कम रहता है। 
  • एक तरफ जहां एक एकड़ के तालाब में 5 टन मछलियों का ही उत्पादन हो सकता है। वहीं तारपोलिन या सीमेंट एक स्क्वैर फुट के टैंक से ही 2.5 टन मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है। 

बायोफ्लॉक तकनीक के लिए संसाधन

  1. इसमें मछली पालन के लिए सीमेंट या तारपोलिन का टैंक बनाया जाता है। 
  2. मछलियों को ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए एयरेशन सिस्टम की जरूरत होती है। 
  3. बायोफ्लॉक में बिजली का होना जरूरी है। इसमें आप घर की बिजली या सोलर पैनल भी लगा सकते हैं। 
  4. मछली पालन के लिए मत्स्य बीज जरूरी होता है। 
  5. शेड का निर्माण ऐसा होना चाहिए जिससे मछलियों को धूप मिले। 
  6. जिस जगह मछली पालन हो वहां के तापमान को 28 से 30 तक रखना चाहिए। इस तापमान को बनाए रखने के लिए मछली पालन सीमेंट में करें। 

बायोफ्लॉक में आने वाली लागत 

बायोफ्लॉक तकनीक में आने वाला खर्च निर्भर करता है कि आप कितने बड़े स्तर पर  मछली पालन करना चाहते हैं। लेकिन एक छोटे स्तर पर भी मछली पालन करने के लिए आपको 50 से 60 हजार रुपए तक खर्च करने होंगे। 

इस तकनीक मछली पालन की आय 

इस तकनीक के जरिए मछली पालन करने से आपकी आय काफी हद तक बढ़ सकती है। इस तकनीक के जरिए आप अगर अच्छा निवेश करते हैं तो आप सालाना लाखों रुपए तक कमा सकते हैं। आ इस कारोबार की शुरुआत अपने घर से ही कर सकते हैं। 

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