पशुओं में बांझपन का उपचार क्या है ?

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ब्रीडिंग कामोत्तेजना अवधि के दौरान की जानी चाहिए.
जो पशु कामोत्तेजना नहीं दिखाते हैं या जिन्हें चक्र नहीं आ रहा हो, उनकी जाँच कर इलाज किया जाना चाहिए.
कीड़ों से प्रभावित होने पर छः महीने में एक बार पशुओं का डीवर्मिंग के उनका स्वास्थ्य ठीक रखा जाना चाहिए. सर्वाधिक डीवर्मिंग में एक छोटा सा निवेश, डेरी उत्पाद प्राप्त करने में अधिक लाभ ला सकता है.
पशुओं को ऊर्जा के साथ प्रोटीन, खनिज और विटामिन की आपूर्ति करने वाला एक अच्छी तरह से संतुलित आहार दिया जाना चाहिए. यह गर्भाधान की दर में वृद्धि करता है, स्वस्थ गर्भावस्था, सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करता है, संक्रमण की घटनाओं को कम और एक स्वस्थ बछड़ा होने में मदद करता है.
अच्छे पोषण के साथ युवा मादा बछड़ों की देखभाल उन्हें 230-250 किलोग्राम इष्टतम शरीर के वजन के साथ सही समय में यौवन प्राप्त करने में मदद करता है, जो प्रजनन और इस तरह बेहतर गर्भाधान के लिए उपयुक्त होता है.
गर्भावस्था के दौरान हरे चारे की पर्याप्त मात्रा देने से नवजात बछड़ों को अंधेपन से बचाया जा सकता है और (जन्म के बाद) नाल को बरकरार रखा जा सकता है.
बछड़े के जन्मजात दोष और संक्रमण से बचने के लिए सामान्य रूप से सेवा लेते समय सांड के प्रजनन इतिहास की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है.
स्वास्थ्यकर परिस्थितियों में गायों की सेवा करने और बछड़े पैदा करने से गर्भाशय के संक्रमण से बड़े पैमाने पर बचा जा सकता है.
गर्भाधान के 60-90 दिनों के बाद गर्भावस्था की पुष्टि के लिए जानवरों की जाँच योग्य पशु चिकित्सकों द्वारा कराई जानी चाहिए.
जब गर्भाधान होता है, तो गर्भावस्था के दौरान मादा यौन उदासीनता की अवधि में प्रवेश करती है (नियमित कामोत्तेजना का प्रदर्शन नहीं करती). गाय के लिए गर्भावस्था अवधि लगभग 285 दिनों की होती है और भैंसों के लिए, 300 दिनों की.
गर्भावस्था के अंतिम चरण के दौरान अनुचित तनाव और परिवहन से परहेज किया जाना चाहिए.
गर्भवती पशु को बेहतर खिलाई-पिलाई प्रबंधन और प्रसव देखभाल के लिए सामान्य झुंड से दूर रखना चाहिए.
गर्भवती जानवरों का प्रसव से दो महीने पहले पूरी तरह से दूध निकाल लेना चाहिए और उन्हें पर्याप्त पोषण और व्यायाम दिया जाना चाहिए. इससे माँ के स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिलती है, औसत वजन के साथ एक स्वस्थ बछड़े का प्रजनन होता है, रोगों में कमी होती है और यौन चक्र की शीघ्र वापसी होती है.

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पशुओं में बांझपन का कारण क्या है ?

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बांझपन के कारण कई हैं और वे जटिल हो सकते हैं. बांझपन या गर्भ धारण कर एक बच्चे को जन्म देने में विफलता, मादा में कुपोषण, संक्रमण, जन्मजात दोषों, प्रबंधन त्रुटियों और अंडाणुओं या हार्मोनों के असंतुलन के कारण हो सकती है.

यौन चक्र

गायों और भैंसों दोनों का यौन (कामोत्तेजना) 18-21 दिन में एक बार 18-24 घंटे के लिए होता है. लेकिन भैंस में, चक्र गुपचुप तरीके से होता है और किसानों के लिए एक बड़ी समस्या प्रस्तुत करता है. किसानों के अल-सुबह से देर रात तक 4-5 बार जानवरों की सघन निगरानी करनी चाहिए. उत्तेजना का गलत अनुमान बांझपन के स्तर में वृद्धि कर सकता है. उत्तेजित पशुओं में दृश्य लक्षणों का अनुमान लगाना काफी कौशलपूर्ण बात है. जो किसान अच्छा रिकॉर्ड बनाए रखते हैं और जानवरों के हरकतें देखने में अधिक समय बिताते हैं, बेहतर परिणाम प्राप्त करते हैं.

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नवजात बछडियों की देखभाल कैसे करनी चाहिए ?

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पशु पालकों कोदय्री फार्मिंग से पूरा लाभ उठाने के लिए नवजात बछडियों की उचित देखभाल व पालन-पोषण करके उनकी मृत्यु डर घटना आवश्यक है| नवजात बछडियों को स्वत रखने तथा उनकी मृत्यु डर कम करने के लिए हमें निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए:

1.गाय अथवा भैंस के ब्याने के तुरन्त बाद बच्चे के नाक व मुंह से श्लैष्मा व झिल्ली को साफ कर देना चाहिए जिससे बच्चे के शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से हो सके|
2.बच्चे की नाभि को ऊपर से 1/2 इंच छोडकर किसी साफ कैंची से काट देना चाहिए तथा उस पर टिंचर आयोडीन लगानी चाहिए|
3.जन्म के 2 घंटे के अन्दर बच्चे को माँ का पहला दूध (खीस) अवश्य पिलाना चाहिए| खीस एक प्रकार का गढा दूध होता है जिसमें साधारण दूध की अपेक्षा विटामिन्स, खनिज तथा प्रोटीन्स की मात्रा अधिक होती है| इसमें रोग निरोधक पदार्थ जिन्हें एन्टीवाडीज कहते हैं भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं|एन्तिबडीज नवजात बच्चे को रोग ग्रस्त होने से बचाती है|खीस में दस्तावर गुण भी होते हैं जिससे नवजात बच्चे की आंतों में जन्म से पहले का जमा मल (म्युकोनियम) बाहर निकल जाता है तथा उसका पेट साफ हो जाता है| खीस को बच्चे के पैदा होने के 4-5 दिन तक नियमित अंतराल पर अपने शरीर के बजन के दसवें भाग के बराबर पिलाना चाहिए| अधिक मात्र में खीस पिलाने से बच्चे को दस्त लग सकते हैं|
4.यदि किसी कारणवश (जैसे माँ की अकस्मात् मृत्यु अथवा माँ का अचानक बीमार पड़ जाना आदि) खीस उपलब्ध न हो तो किसी और पशु की खीस को प्रयोग किया जा सकता है| और यदि खिन और भी यह उपलब्ध न हो तो नवजात बच्चे को निम्नलिखित मिश्रण दिन में 3-4 बार दिया जा सकता है| 300 मि.ली. पानी को उबाल कर ठंडा करके उसमें एक अंडा फेंट लें| इसमें 600 मि.ली.साधारण दूध व आधा चमच अंडी का तेल मिलाएं| फिर इस मिश्रण में एक चम्मच फिश लिवर ओयल तथा 80मि.ग्रा.औरियोमायसीन पाउडर मिलाएं| इस मिश्रण को देने से बच्चे को कुछ लाभ हो सकता है लेकिन फिर भी यह प्राकृतिक खीस की तुलना नहीं कर सकता क्योंकि प्राकृतिक खीस में पाई जाने वाली एंटीबाड़ीज नवजात बच्चे को रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है| खीस पीने के दो घंटे के अन्दर बच्चा म्युकोनियम (पहला मल) निकाल देता है लेकिन ऐसा न होने पर बच्चे को एक चम्मच सोडियम बाईकार्बोनेट को एक लीटर गुनगुने पानी में घोल कर एनीमा दिया जा सकता है|
5.कई बार नवजात बच्चे में जन्म से ही मल द्वार नहीं होता इसे एंट्रेसिया एनाई कहते हैं| यह एक जन्म जात बिमारी है तथा इसके कारण बच्चा मल विसर्जन नहीं कर सकता और वह बाद में मृत्यु का शिकार हो जाता हैं| इस बीमारी को एक छोटी सी शल्य क्रिया द्वारा ठीक किया जा सकता है| मल द्वार के स्थान पर एक +के आकार का चीर दिया जाता है तथा शल्य क्रिया द्वारा मल द्वार म्ब्नाक्र उसको मलाशय (रेक्टम) से जोड़ दिया जात है जिससे बच्चा मल विसर्जन करने लगता है| यह कार्य पशुपालक को स्वयं न करके नजदीकी पशु चिकित्सालय में करना चाहिए क्योंकि कई बार इसमें जटिलतायें पैदा हो जाती है|
6.कभी-कभी बच्छियों में जन्म से ही चार थनों के अलावा अतिरिक्त संख्या में थन पाए जाते है| अतिरिक्त थनों को जन्म के कुछ दिन बाद जीवाणु रहित की हुई कैंची से काट कर निकाल देना चाहिए| इस क्रिया में सामान्यत: खून नहीं निकलता| अतिरिक्त थनों को न काटने से बच्छी के गाय बनने पर उससे दूध निकालते समय कठिनाई होती है|
7.यदि पशु पालक बच्चे को माँ से अलग रखकर पालने की पद्यति को अपनाना चाहता है तो उसे बच्चे को शुरू से ही बर्तन में दूध पीना सिखाना चाहिए तथा उसे मन से जन्म से ही अलग कर देना चाहिए|इस पद्यति में बहुत सफाई तथा सावधानियों की आवश्यकता होती है जिनके बिना बच्चों में अनेक बिमारियों के होने की सम्भावना बढ़ जाती है|8.नवजात बच्चों को बड़े पशुओं से अलग एक बड़े में रखना चाहिए ताकि उन्हें चोट लगने का खतरा न रहे| इसके अतिरिक्त उनका सर्दी व गर्मीं से भी पूरा बचाव रखना आवश्यक है|

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बार बार कृत्रिम गर्भ का टीका लगाने के बावजूद पशु के गर्भधारण न कर पाने का उपाय

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इसका मुख्य कारण पशुओं को असंतुलित खुराक की उपलब्धता व सन्तुलित आहार का न मिल पाना व रोगग्रस्त होने के कारण हो सकता है। ऐसे में पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।

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जानिए कैसी होनी चाहिए एक गाभिन गाय की खुराक!

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एक सही आहार इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं के लिए भी जरूरी होता है। अगर गाभिन गाय या भैंस को सही खुराक दी जाए तो इससे न केवल प्रसव की अवस्था बेहतर होती है। बल्कि गाय का होने वाला बछड़ा भी स्वस्थ रहता है और गाय की दूध उत्पादन क्षमता भी बढ़ जाती है। शायद आप समझ गए होंगे कि गाभिन गाय की खुराक के बारे में जानकारी होना कितना ज्यादा जरूरी है।

अगर आपको नहीं पता कि गाभिन गाय की खुराक क्या होनी चाहिए, तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं। आज हम अपने इस लेख में आपको गाभिन गाय की खुराक से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देंगे। अगर आप भी एक पशुपालक हैं और गाभिन गाय को क्या आहार दें, यह जानना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

गाभिन गाय की देखरेख का तरीका 

गाय के गाभिन होने पर उसकी देखरेख सही तरह से होनी बेहद जरूरी है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि गाय जब गर्भधारण करती है, तो उसके शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं। जिसकी वजह से वह बाकी पशुओं से भी दूर रहने लगती है। इस दौरान अगर गाय की देखरेख में लापरवाही न बरती जाए, तो इससे गर्भ में पल रहे बछड़े की सेहत बिगड़ सकती है और कई बार तो गर्भ में ही बछड़े की मौत हो जाती है। 

ऐसे में गाय के रहने की व्यवस्था सही तरह होनी जरूरी है। पशुपालक सबसे पहले गाभिन पशु के लिए एक अलग स्थान या शेड बनाएं। इसके अलावा शेड में हवा आती रहे इसका इंतजाम करें। इसके अलावा शेड का निर्माण इस तरह कराएं कि पशु पर धूप और बारिश न पड़े।

गाभिन गाय की खुराक कैसी होनी चाहिए

एक पशुपालक को अपनी आय बढ़ाने के लिए गाभिन गाय को सही खुराक देना बहुत जरूरी है। गाय के गर्भकाल के दौरान उसके शरीर को अलग – अलग समय पर कई पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की जरूरत होती है। हम आपको बताते हैं कि गाभिन गाय को किस माह में कितनी और क्या खुराक देनी चाहिए। 

  • गाय के गाभिन होने के शुरुआती तीन महीने बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान गाय की खुराक में खनिज लवण प्रोटीन की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए
  • गाभिन गाय के तीन महीने पूरे होने के बाद का समय गर्भ में पल रहे बछड़े के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। इसलिए 3 से 6 महीने के बीच गाय को प्रोटीन अधिक मात्रा में दिया जाना चाहिए। इसके अलावा गाय की खुराक में विटामिन और खनिज लवण को भी जोड़ देना चाहिए
  • 6 महीने के बाद का समय गाभिन गाय के लिए बेहद नाजुक होता है। इस दौरान पशु को पाचक प्रोटीन, 10 से 12 ग्राम तक कैल्शियम और 7 से 8 ग्राम तक फास्फोरस दें। इसके अलावा गाय को नियमित रूप से विटामिन और मिनरल्स जरूर दें
  • गाय को खुराक में कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए दाने के साथ कैल्शियम कार्बोनेट भी जरूर दें
  • गाभिन गाय को 25 से 30 किलो हरा और 2 से 4 किलो सूखा चारा रोजाना जरूर दें
  • गाय को रोजाना कम से कम 50 ग्राम नमक का सेवन जरूर कराएं
  • गाभिन गाय के दूध उत्पादन हेतु उन्हें प्रसव से कुछ समय पहले चारे में चोकर मिलाकर खिलाएं

गाभिन पशु के साथ बरतें ये सावधानियां

  1. गाभिन गाय को कभी भी ऐसे स्थान पर न रखें जहां अधिक शोर हो
  2. गाय के गाभिन होने के पश्चात उसके आहार में कोई भी बड़ा बदलाव करने से पहले डॉक्टर से राय ले
  3. गाय के प्रसव से 60 दिन पहले से गाय का दूध निकालना पूरी तरह बंद कर दें
  4. गाभिन गाय के बैठने और खड़े होने के लिए उन्हें उचित स्थान प्रदान करें

हमारे किसान और पशुपालक भाई इसी तरह की महत्वपूर्ण जानकारी हमारी Animall App के जरिए भी हासिल कर सकते हैं। यही नहीं पशु के बीमारी से संबंधित दवा और इलाज के बारे में सीधा डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं। वही अगर गाय या भैंस बेचनी है तो वह भी आप आसानी से कर सकते हैं। ऐप डाउनलोड करें अभी

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