अफारे से बचने के लिए आम क्या-क्या उपाय है?

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अफारे से बचने के लिए निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखें:-
(क) चारा खिलाने से पहले पानी पिलाना चाहिए|
(ख) दाना खिलने में अचानक बदलाव न करे|
(ग) गला-सड़ा दाना न दें|
(घ) चारा पूरा पका हुआ हो|
(ङ) पशु को हर रोज़ व्यायाम करवाना चाहिए|

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बछडी(calf) कैसे तैयार करें ?

नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़ा वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।

बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

पानी का महत्व

ध्यान रखें हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग-अलग बरतनों में और अलग-अलग स्थानों में रखें।

खिलाने की व्यवस्था

बछड़े को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है:

  • बछड़े को पूरी तरह दूध पर पालना
  • मक्खन निकाला हुआ दूध देना
  • दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना
  • दूध के विकल्प देना
  • काफ स्टार्टर देना
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गाय भैंस में जूँ, चिचड़ी, कलनी का देसी उपचार कैसे करें ?

पशुओं में कई तरह के रोग तो सामान्य रूप से पहचान में आ जाते हैं। लेकिन अगर पशु के शरीर में जूँ, चिचड़, किलनी आदि लग जाए तो इस स्थिति का पशुपालकों को आसानी से पता नहीं चलता। पशुओं के शरीर पर लगी यह जूं, चिचड़ी निरंतर उनका खून चूसती रहती हैं। इसकी वजह से पशु  तनाव में रहने लगता है और कमजोर भी हो जाता है। इसके अलावा पशु के शरीर से बाल झड़ने लगते हैं और कई बार पशु के बच्चों की जान तक चली जाती है।

इसके साथ ही पशु की दूध उत्पादन क्षमता भी प्रभावित होती है। इन सबके कारण पशुपालकों को आर्थिक नुकसान का सामना भी करना पड़ता है। इसलिए आज हम यह लेख लेकर आए हैं। अपने इस लेख में हम पशुपालकों को बताएंगे कि वह किस तरह जूँ, चिचड़ी और कलनी आदि की समस्या से राहत पा सकते हैं। खास बात यह है कि इसके लिए पशुपालकों को किसी चिकित्सक के पास जाने की आवश्यकता नहीं है। हमारे द्वारा बताए गए उपाय पशुपालक घर पर ही अपना सकते हैं।

किलनी, जूँ और चिचड़ हटाने के घरेलू उपाय 

पशुओं का स्वस्थ रहना पशुपालकों के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन अगर पशुओं को चिचड़, किलनी, और जूँ की समस्या हो जाए, तो इन्हें इस स्थिति से निकालने के केवल दो ही तरीके होते हैं। एक है डॉक्टर से संपर्क करके दवा और इलाज की प्रक्रिया का पालन करना। इसके अलावा दूसरा कुछ घरेलू उपाय को अपनाना। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ घरेलू उपाय के बारे में। 

जानिए कैसे करें गाय के चिचड़ी का इलाज!

खाद्य तेल का उपयोग

गाय या भैंस को चिचड़ी, जूँ या किलनी जैसे कीड़ों की समस्या से बचाने के लिए अलसी का तेल उपयोग में लिया जा सकता है। आप अलसी के तेल के लेप पशु को लगा सकते हैं। इसके अलावा पशुपालक कई तरह के अन्य खाद्य तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

साबुन का घोल 

पशु को यह समस्या अमूमन गंदगी की वजह से होती है। ऐसे में अगर पशुपालक उनकी साफ – सफाई का ध्यान रखें तो इससे पशुओं को चिचड़ी और जूँ आदि की समस्या नहीं होगी। इसके अलावा अगर पशु को यह समस्याएं हो गई है तो पशु को साबुन के गाढ़े घोल से नहला सकते हैं। इस उपाय को पशुपालक सप्ताह में दो बार करें।

आयोडीन का उपयोग

ऐसे पशु जिन्हें यह समस्या हो गई है। उन पशुओं को इस समस्या के प्रकोप से बचाने के लिए पशुपालक आयोडीन का इस्तेमाल कर सकते हैं। जूँ , चिचड़ से राहत दिलाने के लिए गाय या पशु के शरीर पर सप्ताह में दो बार आयोडीन को रगड़ना चाहिए। 

जूँ, चिचड़ के लिए लहसुन 

लहसुन का उपयोग भारत के लगभग हर घर में होता है। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि लहसुन के अंदर कई ऐसे गुण पाए जाते हैं जो खतरनाक परजीवियों से राहत दिलाने में काम आ सकते हैं। जूँ और किलनी से छुटकारा पाने के लिए पशुपालक लहुसन के पाउडर का उपयोग कर सकते हैं। इस पाउडर को पशु के शरीर पर सप्ताह में दो बार लगाना होगा। ऐसा करने से पशु को कुछ हद तक जूँ और चिचड़ से छुटकारा मिल जाएगा। 

एसेंशियल तेल 

इंसानों की कई तरह की शारीरिक समस्याओं से छुटकारा दिलाने में भी एसेंशियल या अस्थिर तेल उपयोग में लिए जाते हैं। लेकिन बहुत ही कम पशुपालक जानते हैं कि पशुओं पर भी इसका उपयोग किया जा सकता है। जूँ, चिचड़ और किलनी होने पर अगर एसेंशियल तेल का उपयोग अन्य खाद्य तेलों के साथ किया जाए, तो इससे पशुओं इन कीड़ों से राहत मिल सकती है। इसके लिए केवल पशुपालकों को एसेंशियल तेल और खाद्य तेल को पशु के शरीर पर रगड़ना होगा।

कीटनाशक का उपयोग 

जूँ, चिचड़ और किलनी से पशुओं को राहत दिलाने के लिए पशुपालक पाइरिथ्रम नामक वानस्पतिक कीटनाशक उपयोग कर सकते हैं। 

चूना और सल्फर

गाय या भैंस को इन जीवों से राहत दिलाने के लिए पशुपालक चूने और सल्फर का उपयोग कर सकते हैं। जूँ, चिचड़ और किलनी से छुटकारा दिलाने के लिए चूना और सल्फर का घोल बनाना होगा। इसे 7 से 10 दिन के अंतराल में पशुओं को लगाना चाहिए। इस उपाय का उपयोग कम से कम 6 बार करना होगा। ऐसा करने से पशु को इन जीवों से छुटकारा मिल सकता है। 

आइवरमेक्टिन इंजेक्शन

पशुओं में किलनी की समस्या बहुत अधिक देखी जाती है। ऐसे में पशुपालक उन्हें आइवरमेक्टिन इंजेक्शन दे सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि यह इंजेक्शन पशुपालक डॉक्टर की सलाह पर ही दें। वहीं अगर पशु को इंजेक्शन दिया गया है तो पशु के दूध का इस्तेमाल कम से कम दो तीन सप्ताह तक न करें। 

जूं, चिचड़ और किलनी की रोकथाम 

पशुपालन का काम काज करने वाले लोगों की लापरवाही के चलते ही यह जीव पैदा होते है। जब पशु के शेड में साफ सफाई नहीं की जाती और पशु के रहने के स्थान पर गंदगी एकत्रित होने लगती है। इसके अलावा जब पशु की साफ सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता। तभी पशु इनकी चपेट में आते हैं। इस स्थिति से पशुओं को बचाने के लिए पशुपालकों को साफ सफाई का ध्यान रखना चाहिए।  

चिचड़, जूँ और किलनी होने के लक्षण

  • इस स्थिति में पशु को लगातार खुजली होती रहती है। 
  • गाय या भैंस के दूध देने की क्षमता घट जाती है। 
  • पशु को भूख लगनी कम हो जाती है। 
  • चमड़ी खराब होने लगती है। 
  • पशु के बाल झड़ने लगते हैं। 
  • गाय या अन्य पशु जब इनकी चपेट में आते हैं तो वह तनाव में रहने लगते हैं। 

किलनी, जूँ और चिचड़ का इलाज 

पशुओं पर यह समस्या दिखाई देने के बाद पशुपालक चाहें तो इससे राहत पाने के लिए घरेलू उपाय अपना सकते हैं। इसके अलावा अगर पशुपालक डॉक्टर से भी संपर्क कर उनकी राय लेना चाहें तो ले सकते हैं। पशुपालक डॉक्टर से ऑनलाइन संपर्क करने के लिए Animall App डाउनलोड  कर सकते हैं। 

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जानिए क्या है राजस्थान पशु बीमा योजना के लाभ और योग्यता

पशुपालन के जरिए गुजारा करने वाले लोगों के जीवन से चुनौतियों और समस्याओं को समाप्त करने के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चलाती रहती हैं। यूं तो पशुपालकों के सामने ढेरों समस्याएँ रोजाना मुंह बाए खड़ी रहती हैं। लेकिन इनमें से सबसे बड़ी समस्या पशुपालन करने वालों के समक्ष तब खड़ी होती है। जब पशु की मौत हो जाती है। ऐसे में जब पशु की मौत हो जाती है, तो इसकी वजह से पशुपालक को बड़ी मात्रा में आर्थिक नुकसान होता है। 

इसी नुकसान से बचाने के लिए राजस्थान सरकार की ओर से एक योजना शुरू की गई है। इस योजना का नाम है भामाशाह पशु बीमा योजना राजस्थान। इस योजना के तहत पशु की मौत पर पशुपालक को एक तय राशि दी जाती है। ताकि पशुपालक के नुकसान को कम किया जा सके। लेकिन इस योजना का लाभ लेने के लिए पशुपालक को अपनी पात्रता सिद्ध करनी होगी। आइए जानते हैं इसी भामाशाह पशु बीमा योजना से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।

भामाशाह पशु बीमा योजना का उद्देश्य

राजस्थान सरकार द्वारा चलाई जा रही इस योजना का उद्देश्य  पशुपालकों की आय बढ़ाना है। आपको बता दें कि प्रदेश में रहने वाले पशुपालक अक्सर अधिक पशु नहीं खरीदते क्योंकि गर्मी या रोग की वजह से पशु की जान जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। पशुपालन करने वालों का यह डर दूर किया जा सके और वह बड़े पैमाने पर पशुपालन कर सके। इसके लिए ही यह योजना शुरू की गई है। 

राजस्थान पशु बीमा योजना की पात्रता

इस योजना का आवेदन करने के लिए आवेदनकर्ता को अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी। राज्य सरकार द्वारा इस योजना में आवेदन करने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

  • योजना में आवेदन करने वाले व्यक्ति का पशुपालक होना अनिवार्य है। 
  • पशुपालन करने वाले व्यक्ति के पास पशु होने चाहिए। 
  • पशुपालन करने वाला व्यक्ति राजस्थान का निवासी होना चाहिए। 
  • योजना में आवेदन करने वाले व्यक्ति की आयु 18 साल से अधिक होनी चाहिए। 

पशु बीमा योजना के फायदे 

किसान या पशुपालन से जुड़े हुए हजारों लोगों को इस योजना का लाभ कई तरह से हो सकता है। इस योजना से जुड़े लाभों की सूची हम आपको नीचे विस्तार से बता रहे हैं।

  1. इस योजना के जरिए महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। 
  2. देश के आत्मनिर्भर भारत की मुहिम को गति मिलेगी। 
  3. लाभार्थी के बैंक खातों में योजना का पैसा ट्रांसफर किया जाएगा। 
  4. पशुओं की मौत होने पर पशुपालक को बीमित राशि दे दी जाएगी। 
  5. राजस्थान में दूध का व्यापार तेजी से बढ़ने लगेगा। 
  6. भारत की दुग्ध उत्पादन क्षमता बेहतर होगी। 

पशु बीमा योजना में आवेदन का तरीका

राजस्थान में जो भी पशुपालन करने वाले लोग इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं। वह इस योजना के लिए संबंधित वेबसाइट या कार्यालय में जा सकते हैं। योजना हेतु सभी जरूरी दस्तावेज आपको फॉर्म के साथ ही संलग्न करने होंगे। अगर आपके दस्तावेज और सभी जानकारी सही पाई गई तो आपके पशु का बीमा हो जाएगा। 

आशा करते हमारे द्वारा दी गई भामाशाह पशु बीमा योजना से जुड़ी जानकारी आपको पसंद आई होगी। अब अगर आप योजना का लाभ उठाना चाहते हैं तो आप आवेदन कर सकते हैं। इस तरह की योजना के लिए आप हमारे ब्लॉग के साथ – साथ Animall App को भी डाउनलोड कर सकते हैं। ऐप डाउनलोड करने के बाद आपके लिए पशु खरीदना और बेचना आसान हो जाएगा। इसके अलावा पशु के बीमार पड़ने पर आप तुरंत चिकित्सक से सहायता ले सकते हैं। ऐप डाउनलोड करने के लिए इस विकल्प का चुनाव करें। 

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पशु में गर्भपात होने से कैसे बचाये?

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1.नए पशु को फार्म में लाने से पहले बीमारी की जांच अवश्य करवाएं एवं उन्हें कम से कम एक माह तक अलग रखें।
2.4 से 6 माह की बछिया को ब्रुसेल्ला अबॉरटस स्ट्रेन 19 का टीका अवश्य लगवाएं।
3.पशु के गर्भपात होने पर उसके भ्रूण, जेर व गर्भनाल को गड्ढा खोद कर उचित तरीके से दबाएं व गर्भपात वाले स्थान को किसी भी कीटाणु नाशक घोल अथवा फिनाइल से साफ़ करें।
4.पशुओं के दूध खून की नियमित जांच करवाएं व पशु चकित्सक की सलाह लें।
6.गाभिन पशु को संतुलित आहार, विटामिन एवं खनिज उचित मात्रा में दें।
7.गर्भपात की स्थिति में पशु को चिन्हित कर पशु चिकित्सक की सलाह से पैथोलॉजी के माध्यम से उचित निदान करा कर उपचार करवाएं।
8.पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग कर गर्भपात की समस्या से बचा जा सकता है।

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