गाय के थनों में छेद और लालिमा का है ये अचूक उपाय।

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एक पशुपालक के लिए उसकी गाय या भैंस उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में अगर पशुओं को किसी तरह की समस्या हो जाती है तो पशुपालक भाई अक्सर बहुत ज्यादा डर जाते हैं। आज हम एक ऐसी ही समस्या के बारे में बात करने वाले हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं गाय के थन में होने वाले छेद के बारे में । कई बार देखा जाता है कि गाय के थन के ऊपरी भाग या साइड पर गाय के थन में सूजन, लालिमा और छेद हो जाते हैं। 

पशुपालक भाई इस समस्या में बेहद घबरा जाते हैं और महंगी – महंगी दवाएं इस्तेमाल करने लगते हैं। लेकिन समस्या ऐसी की ऐसी ही रह जाती है। आज हम इस समस्या का उपचार पशुपालक भाइयों को बताने वाले हैं। अगर आप भी इस तरह की समस्या से इजात पाना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें।  

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क्यों होते हैं ये छेद

पशुओं के थनों में ये छेद किसी कीड़े के काटने या किसी घाव के गहरा होने पर हो जाते हैं। कई बार बारिश के दिनों में गिली मिट्टी पर बैठने की वजह से भी ये घाव हो सकते हैं। ऐसे में अगर आप अपने पशु की इस समस्या से बचना चाहते हैं, तो पशु को साफ सुथरी जगह पर रखें। साथ ही उनके घावों को उभरने का समय भी न दें और समय पर उपचार कराएं। 

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क्यों महंगी दवा या इलाज नहीं आता काम 


इस तरह के घाव अमूमन इसलिए आसानी से ठीक नहीं होते क्योंकि इन छेदों में कीड़े पैदा हो जाते हैं और कोई भी दवा इस तरह से काम नहीं करती की ये कीड़े इसमें मर जाए और घाव भर जाए। इसके लिए सीधा कीड़ों को मारने का प्रबंध करना होता है। जब ये प्रबंध नहीं किया जाता तो कीड़े जीवित रहते हैं और पशु का घाव उभरता रहता है। 

कैसे करें इस घाव का इलाज 

इस तरह के घाव से पशु को उभारने के लिए आप आरती कपूर की गोलियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। आपको बता दें कि ये कपूर की गोलियां न केवल पशु के थनों की सूजन को कम कर सकती हैं। बल्कि इन कीड़ों को भी मार सकती हैं। इसके लिए आपको सबसे पहले कपूर की गोलियों को चूर्ण बना लेना है। जैसे ही ये चूर्ण तैयार हो तो इसे पशुओं के उस छेद में भर देना है जहां लालिमा या सूजन है। इसके कुछ ही दिनों बाद आप पाएंगे कि सूजन और लालिमा पूरी तरह से गायब हो चुकी है। 

जब ये लालिमा और सूजन बंद हो जाए और कीड़े मर जाएं तो आप घाव को भरने के लिए किसी भी तरह के ऑइंटमेंट का इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा करने से घाव पूरी तरह से भर जाएगा और आपका पशु पहले की तरह स्वस्थ हो जाएगा। 

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जानिए गाय को गर्भावस्था में ड्राई करना क्यों है जरूरी?

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देश में पशुपालन करने वाले लोग अक्सर अपने पशुओं को लेकर कुछ लापरवाही बरतने लगते हैं। जिसकी वजह से न केवल पशुपालकों को नुकसान होता है। बल्कि पशुओं की सेहत और उत्पादकता भी इसकी वजह से खराब होने लगती है। आज हम अपने पशुपालक भाइयों को गाय से जुड़ी एक ऐसी ही जानकारी देने वाले हैं। जिसके जरिए वो अपने पशु को स्वस्थ भी रख पाएंगे और उनकी उत्पादकता को भी बढ़ा पाएंगे। दरअसल हम बात कर रहे हैं गाय को ड्राई करने की। 

आपको बता दें कि जब गाय गर्भावस्था में दूध देती है तो इसमें 7 से 8 महीने के बाद गाय का दूध सुखा देना बेहद जरूरी होता है। जब ऐसा नहीं किया जाता, तो पशु की सेहत भी खराब होती है और उसकी उत्पादकता भी खराब होने लगती है। अगर आपकी गाय भी प्रसव के करीब पहुंच गई है, तो ये लेख और वीडियो आपके लिए बेहद कारगर हो सकता है। अगर आप भी गाय को ड्राई करने के महत्व को जानना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख और वीडियो पर अंत तक बने रहें। 

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गाय को ड्राई करना क्यों जरूरी 

ऐसे बहुत से पशुपालक भाई हैं। जो अक्सर गाय की गर्भावस्था में तब तक उसका दूध निकालते रहते हैं, जब तक गाय दोबारा से बछड़े को जन्म न दे दे। इस तरह गाय की न केवल उत्पादकता खराब हो सकती है। बल्कि गाय की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो जाती है। इससे गाय बार – बार बीमार पड़ने लगती है और कई बार तो गाय का गर्भपात तक हो जाता है। ये कुछ जरूरी वजह है, जिसके चलते पशुपालकों को गाय को ड्राई होने का समय देना चाहिए। ताकि उनकी उत्पादकता बेहतर हो। 

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गाय का दूध निकालना कब बंद करें 

जब गाय गर्भावस्था के अपने आखिरी समय में हो तो इस दौरान उसका दूध निकालना बंद कर देना चाहिए और उसके थनों को ड्राई होने का समय देना चाहिए । इससे गाय के वो सेल पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, जो शरीर में दूध बनाते हैं। ऐसे में जब आप गाय के 7वें 8वें महीने तक भी दूध निकालना बंद नहीं करते तो इससे इन सेल्स को रिपेयर होने का समय नहीं मिलता जिससे गाय दूध कम देती है। 

वहीं जब आप गाय का दूध निकालना इस समय पर बंद कर देते हैं तो इससे उसके दूध बनाने वाले सेल रिपेयर हो जाते हैं। गाय की इम्यूनिटी बेहतर होती है। गाय के लंगड़े होने का खतरा नहीं रहता। 

गाय को ड्राई करने के लिए क्या करना चाहिए

अब जब आपको गाय को ड्राई करना हो तो इसके लिए आप उन्हें 12 से 18 घंटे तक पानी न दें। इसके अलावा CEPRAVIN, IVERMEC नामक दवा डॉक्टर की सलाह पर दें। इससे गाय के पेट में कीड़े नहीं होंगे और बछड़ा भी पूरी तरह से स्वस्थ पैदा होगा। अगर ये दवाएं समय रहते न दी जाए तो बछड़ा गाय के गर्भ में ही कीड़ों की वजह से  मर भी सकता है।

इसके अलावा गाय को रोजाना प्रसव के कुछ समय पहले तक डॉक्टर की सलाह पर ही नौसादर खिलाएं और मैक्सवेल खिलाएं। ऐसा करने से पशु के शरीर को कैल्शियम मिलता रहेगा और बछड़े की कूल्हे की हड्डियां मजबूत होंगी। जिसके बाद प्रसव के समय बछड़ा आसानी से गर्भ से निकल सकेगा वहीं गाय की हड्डियां फ्लेक्सीबल भी हो जाएंगी। 

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मानसून में रोगी पशु की देखभाल का तरीका और जरूरी सावधानियां।

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ऐसा अक्सर कहा जाता है कि इलाज से बेहतर बचाव है। ये बात इंसानों पर ही नहीं  बल्कि अन्य जीवों  पर भी लागू होती है। इंसान तो अपनी समझ के मुताबिक रोग से बचाव और इलाज दोनों ही करा लेते हैं। लेकिन  पशु ऐसा करने में सक्षम नहीं होते। ऐसे में इस बात की पूरी जिम्मेदारी पशुपालकों के सिर पर होती है। वहीं जब मौसम बदलता है तो पशु के रोग की चपेट में आने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।

ऐसे में अगर पशु रोग की चपेट में आ गया है, तो पशु  की देखभाल करने के लिए कुछ जरूरी इंतजाम करने अनिवार्य हो जाते हैं। आज हम अपने इस लेख और वीडियो के जरिए पशुपालक भाइयों को इसी दुविधा का अंत करने वाले हैं। हमारे इस लेख में हम बताएंगे कि एक रोगी पशु की देखभाल में क्या करना चाहिए और क्या नहीं। अगर आप इस तरह की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पर अंत तक बने रहें। 

मानसून में पशु को होने वाले रोग

मानसून के दौरान पशु खुरपका मुहंपका, लंगड़ा बुखार, थनैला, दाद खाज खुजली जैसे कई रोगों से संक्रमित हो जाते हैं। ऐसे में रोगी पशु की देखभाल कैसे करनी चाहिए और इस दौरान किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए। ये आपको पता होना चाहिए।

मानसून में रोगी पशु की देखभाल का तरीका

  • मानसून  में अगर पशु किसी भी रोग की चपेट में आ जाए तो ऐसे में सबसे पहले पशुपालकों को पशु के स्वस्थ पशुओं से दूर बांधना चाहिए और रोगी पशु के खानपान की व्यवस्था अलग से करनी चाहिए। 
  • इसके अलावा पशु को कौन सा रोग हुआ है या वो किस तरह की जीवाणुओं से संक्रमित है। इसके बारे में पता करना चाहिए।
  • इसके लिए पशुपालक भाई किसी डॉक्टर या जानकार की सलाह ले सकते हैं। 
  • एक बार पता चल जाए कि पशु को कौन सा रोग हुआ है तो पशुपालक भाई को इससे संबंधित उपचार प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। 
  • इसके अलावा पशुपालक भाई चाहे तो उपचार प्रक्रिया के साथ घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। 
  • मानसून के दौरान अगर पशु रोग की गिरफ्त में आ गया है तो पशुपालक भाइयों को कुछ अन्य काम भी करने होंगे। 
  • इसमें सबसे पहला है कि पशु को बारिश से बचाए रखने के लिए एक सही शेड में रखें। 
  • पशु के आस पास गीला या गंदगी बिल्कुल भी न रहने दें. 
  • पशु को सही समय और सही मात्रा में हरा चारा और सूखा चारा दें। 
  • पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो जाए इसके लिए प्रोटीन, विटामिन सी, जिंक युक्त आहार खिलाएं। 
  • पशु को समय – समय पर डॉक्टर को दिखाते रहें।  
  • पशु को पीने का पानी समय – समय पर देते रहें। 
  • मानसून के दौरान पशु को नीम के पानी से नहलाना चाहिए। 
  • पशु को थनैला जैसा रोग होने पर उसके दूध का उपयोग न करें

मानसून के दौरान कुछ अन्य बातों का ध्यान जरूर रखें। 

  • स्वस्थ पशु को रोगी पशु के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए। 
  • रोगी पशु का झूठा आहार या पानी स्वस्थ पशु को नहीं देना चाहिए। 
  • पशुओं को इस दौरान खुले में चरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। 
  • पशुओं का मानसून से पहले टीकाकरण करवा लेना चाहिए। 
  • मानसून से पहले पशुशाला की मरम्मत करा लेनी चाहिए। 
  • बारिश का पानी और अन्य कचरा पशुओं के आस पास एकत्रित न हो इसका ख्याल रखना चाहिए। 
  • अगर पशु को रोग किसी चोट की वजह से हुआ है तो पशु के घाव का इलाज कराएं

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मानसून में पशु की बंद पड़ने की समस्या की वजह, लक्षण और उपाय

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किसान भाई और पशुपालन करने वाले लोगों को मानसून के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मानसून में न केवल पशु की उत्पादकता घट जाती है। बल्कि इस मौसम के दौरान गाय भैंस को कई तरह के रोग भी सताने लगते हैं। आज हम ऐसे ही एक रोग के बारे में पशुपालकों को बताने वाले हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं बंद पड़ने की समस्या के बारे में। 

ये एक ऐसी स्थिति है जिसमें पशु गोबर नहीं कर पाता और केवल पेशाब ही करता रहता है। ये समस्या कई बार पशु की जान तक ले लेती है। आज हम इस रोग के होने के पीछे की वजह से लेकर इसके लक्षण और इसके उपचार के बारे में जानेंगे। अगर आप भी एक पशुपालक हैं तो ये लेख और वीडियो आपके काफी काम आ सकती है। आइए चलिए जानते हैं बंद पड़ने के उपाय, कारण और लक्षण के बारे में। 

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बंद पड़ना क्या है 

पशुपालन करने वाले बहुत से लोगों ने समस्या अनुभव की होगी। इस दौरान पशु गोबर का त्याग नहीं कर पाता। जिसके चलते पशु का पेट भारी होने लगता है और वह जुगाली भी नहीं कर पाता। पशु को अगर ये समस्या 5 दिन तक बनी रहें तो इसकी वजह से पशु की जान तक चली जाती है। आइए जानते हैं आखिर पशुओं में कब ये समस्या पैदा होती है।   

पशु में बंद पड़ने की समस्या के कारण 

मानसून या अन्य मौसम के दौरान ये पशुओं में बंद पड़ने की दिक्कत पैदा हो जाती है। इस दिक्कत के कुछ कारण हो सकते हैं जो कुछ इस प्रकार हैं। 

  • पशु को गीला चारा खिलाने की वजह से बंद पड़ने की समस्या पैदा हो जाती है। 
  • मानसून के दौरान मेथी खिलाने से भी पशु को ये दिक्कत हो सकती है। 
  • पशु को अधिक मात्रा में हरा चारा खिलाने की वजह से ये दिक्कत पैदा हो सकती है। 

बंद पड़ने के लक्षण

जब पशु को बंद पड़ने की दिक्कत होती है तो वह गोबर नहीं कर पाता और पेशाब ही करता रहता है। इसके अलावा बंद पड़ने पर पशु जुगाली करना भी छोड़ देता है। वहीं अगर 5 दिन तक पशु पर ध्यान न दिया जाए तो इसकी वजह से पशु की मौत भी हो सकती है। 

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पशु का बंद पड़ने का उपाय और उपचार 

अगर ये समस्या पशु के साथ हो गई है तो इस समस्या से राहत दिलाने के लिए आपके पास कुछ गिने चुने तरीके हैं। इनमें से पहला और सबसे जरूरी है डॉक्टर से राय लेना। दूसरा है कि आप कुछ घरेलू उपाय अपना सकते हैं। ऐसे ही एक उपाय से हम आपको रूबरू कराने वाले हैं। इस उपाय को आप चाहें तो वीडियो के माध्यम से भी समझ सकते हैं। 

बंद पड़ने की समस्या के उपाय के लिए सामग्री

  • मुसब्बर 30 ग्राम 
  • दालचीनी 100 ग्राम
  • अजवाइन  100 ग्राम 

उपाय तैयार करने की विधि

इन तीनों चीजों को एक लीटर पानी में मिलाकर गर्म कर दें। जब पानी आधा रह जाएं तो इसमें 200 ग्राम गुड़ मिला दें। 

पशु के उपाय की प्रक्रिया

जब यह सामग्री अच्छी तरह मिलकर तैयार हो जाए तो ठंडा होने के पश्चात  पशु को नाल या डर्के से पशु को दे दें। इस उपाय को अपनाने से पशु को 30 मिनट से लेकर 60 मिनट तक में राहत मिल जाएगी और वह अपना गोबर त्याग पाएगा। 

अगर पशु को इस उपाय से राहत न हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और पशु का उपचार कराएं। 

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जानिए मानसून में होने वाले गलघोंटू रोग के कारण, लक्षण, बचाव और उपचार के तरीके

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बारिश के दौरान पशुपालक दोहरी चुनौतियों से जूझते हुए दिखाई देते हैं। इसमें एक समस्या पशुपालकों को होती है पशु की उत्पादकता को लेकर और दूसरी होती है पशु से जुड़ी बीमारियों को लेकर। आज हम मानसून में पशुओं को होने वाले ऐसे ही रोग गलघोंटू के बारे में बताने वाले हैं। 

ये एक संक्रामक रोग है जिसके होने पर पशु की मौत 24 घंटे के अंदर – अंदर हो जाती है। आज हम अपने इस लेख और वीडियो में आपको बताएंगे कि गलघोटू रोग के कारण, लक्षण और उपाय के बारे में जानकारी देंगे। अगर आप मानसून में होने वाले इस गलघोंटू रोग से जुड़ी किसी प्रकार की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप हमारे इस लेख पर अंत तक बने रह सकते हैं।  

गलघोंटू रोग के कारक 

गलघोंटू रोग मानसून के दौरान बहुत तेजी से अपने पैर पसारता है। आपको बता दें कि ये रोग पशु को पास्चुरेला मल्टोसिडा नामक जीवाणु की चपेट में आने की वजह से होता है। इस रोग के दौरान पशु के सांस की ऊपर वाली नली बुरी तरह प्रभावित होती है। 

गलघोंटू रोग के लक्षण क्या है 

इस रोग के होने पर पशु के ऊपर इसके कई लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं। 

  • गलघोंटू रोग में पशु को तेज बुखार होने लगता है। 
  • इस रोग के दौरान पशु की आंखे लाल रहने लगती है। 
  • इस रोग के होने पर पशु को सांस लेने में खासी दिक्कत होती है।
  • यही नहीं गलघोंटू के दौरान पशु की नाक बहने लगती है और उसकी छाती में बेहद दर्द हो जाता है।

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गलघोंटू रोग से पशु को बचाने का तरीका 

कहा जाता है न कि किसी भी रोग के उपचार से बेहतर बचाव होता है। ये बात इंसान और पशु दोनों पर ही लागू होती है। ऐसे में अब हम आपको बताते हैं कि पशु को गलघोंटू रोग से बचाए रखने के लिए आपको क्या करना चाहिए। 

  • मानसून के मौसम से पहले पशु को गलघोटू रोग का टीकाकरण करवाना चाहिए। 
  • पशु के रहने के स्थान की साफ सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए।
  • पशु को खुले में चरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।

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गलघोटू रोग का उपचार या उपाय 

ये एक बेहद संक्रामक रोग है, ऐसे में इस रोग के उपाय करने में जरा भी वक्त गवाना भारी पड़ सकता है। इसलिए कोशिश करें कि रोग के लक्षणों की पहचान होते ही किसी चिकित्सक से सहायता ले। पशु चिकित्सक इस दौरान पशु को एंटीबायोटिक दवा दे सकता है। लेकिन इस रोग से ठीक होने की संभावना तब भी बेहद कम है। 

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https://youtu.be/soWP0TQzGOE

 

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