यहां पढ़े कंगायम गाय से जुड़ी संपूर्ण जानकारी।

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देश में पशुपालन के जरिए गुजारा करने वाले लोगों को अक्सर ऐसी गाय की जरूरत होती है, जो दूध भी सही मात्रा में दे और परिवहन व सिंचाई के भी काम आ सकें। इसलिए आज हम लेकर आए है कंगायम गाय। यह गाय न केवल दूध देने की क्षमता रखती है। बल्कि इसके जरिए सामान ढुलाई और सिंचाई के काम भी आसानी से कर लेती है। आपको बता दें कि कंगायम गाय का नाम तमिलनाडु  के इरोड जिले के कंगायम तालुका पर ही रखा गया है।

कंगायम गाय को बहुत से लोग कंगनाड और कोंगु के नाम से भी जानते हैं। आज हम अपने इस लेख में कंगायम गाय से जुड़ी पूरी जानकारी आपके साथ बांटने वाले हैं। अगर आप कंगायम गाय खरीदने पर विचार बना रहे हैं। इसके अलावा बिना किसी सिरदर्द के कंगायम गाय को खरीदना या बेचना चाहते हैं, तो इसका भी आसान तरीका हम आपको बताएंगे। आप हमारी ही Animall App के द्वारा कंगायम गाय या अन्य गाय खरीद और बेच सकते हैं।

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कंगायम गाय की पहचान कैसे करें 

कंगायम गाय जन्म के साथ लाल रंग की होती हैं। लेकिन पैदा होने के 6 महीने बाद इनका रंग स्लेटी या फिर सफेद हो जाता है।कंगायम गाय के सिर पर बड़े – बड़े सींग होते हैं और यह बाहर की तरफ खुले हुए और काफी नोकिले होते हैं। वहीं कंगायम बैल का रंग अधिकतर स्लेटी रहता है और इनके सिर से लेकर पीठ पर कूबड़ तक का रंग काला होता है। इसके अलावा इन बैलों के पैरों से ऊपर का रंग भी काला ही होता है। 

यह कंगायम गाय मध्यम आकार की होती हैं और इनकी अधिकतम ऊंचाई 124.6 सेमी तक ही होती है। इसके अलावा इस नस्ल की गाय को इनके घुटनों पर पड़े काले धब्बे के जरिए भी पहचाना जा सकता है। इसके अलावा इनकी आंखें पूरी तरह काली होती है। कंगायम गाय का अधिकतम वजन 380 किलो तक हो सकता है। वहीं इस नस्ल के बैल का वजन 540 किलो होता है। 

 

कंगायम गाय का दूध और विशेषताएं 

कंगायम गाय का उपयोग यूं तो परिवहन और सिंचाई के लिए किया जाता है। लेकिन  फिर भी यह गाय एक ब्यात में 540 किलो तक दूध दे सकती है। इसके साथ ही कंगायम गाय के दूध में 1.7 से लेकर 7.7 प्रतिशत तक फैट पाया जाता है। इस नस्ल की गाय और बैल बहुत मजबूत सहनशक्ति रखते हैं। इसके साथ ही इस नस्ल की गाय और बैल दोनों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काफी अच्छी होती है। यही नहीं इस गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग भी किया जा सकता है। 

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कंगायम गाय की देखरेख कैसे करें 

कंगायम गाय एक गर्म क्षेत्र में रहने वाली गाय है। लेकिन इस नस्ल की गाय को खुले में या धूप में नहीं रखना चाहिए। गाय को सेहतमंद रखने के लिए उनके आहार का खास ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा गाय को रखने के लिए एक ऐसे शेड का निर्माण करना चाहिए। जिसके जरिए वह धूप, बारिश और गर्म हवा से बच सकें। इसके साथ गाय के इस शेड में पानी और हवा का इंतजाम भी होना चाहिए। गाय के द्वारा किए गए मल और मूत्र को समय – समय पर साफ करना चाहिए। अगर गाय की देखभाल करने में इन बातों का ख्याल रखा जाए, तभी गाय सुरक्षित और स्वस्थ रहेगी। 

 

कंगायम गाय का चारा 

कंगायम गाय एक मध्यम आकार की गाय है। ऐसे में इस गाय को अधिक मात्रा में भोजन की जरूरत होती है। इसलिए कंगायम गाय को एक समय पर 4 से 5 किलो तक चारा देना जरूरी होता है। गाय को चारे के रूप में हरी घास, साग, गेहूं, ज्वार, जौ आदि देना चाहिए। इसके अलावा हरे चारे को तूड़े के साथ मिलाकर भी दे सकते हैं। गाय को बचा हुआ आटा, सब्जी आदि भी दी जा सकती है। लेकिन बस इस बात का ध्यान रखें कि गाय को अधिक भारी चारा न दे। वरना इससे गाय को बदहजमी जैसी समस्या भी हो सकती है। 

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कंगायम गाय को लगाए जाने वाले टीके 

गाय या दुधारू पशुओं को कई रोग होने की संभावना बनी रहती है। ऐसे में गाय को पहले से ही कुछ बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं। इनमें जब गाय 6 महीने की हो तो उसे ब्रूसेला का टीका दिया जाता है। इसके अलावा गाय को मुंह खुर और गलघोटू का टीका भी दी जाता है। इसके साथ ही गाय से जुड़े कई दूसरे रोग भी होते हैं। जिनसे बचाए रखने के लिए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। 

 

कंगायम गाय को होने वाले रोग और उनका इलाज 

कंगायम गाय की इम्यूनिटी या प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है और यह कम ही बीमार पड़ती है। लेकिन पशुओं को कई बार कुछ भयंकर बीमारियां अपनी चपेट में ले लेती हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ बीमारियों के बारे में, जो कंगायम गाय को हो सकती है। इसके अलावा किस तरह इन बीमारियों से छुटकारा और बचाव किया जा सकता है। यह भी जानते हैं। 

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ब्लैक क्वार्टर रोग और इसका इलाज 

ब्लैक क्वार्टर एक खतरनाक जीवाणु हैं जो बारिश के दौरान मिट्टी में पैदा होता है। ऐसे में जब पशु ब्लैक क्वार्टर से संक्रमित हो जाता है तो इसकी वजह से पशु को तेज बुखार हो जाता है। इसके अलावा कई बार इस रोग में पशु का सांस तक ले पाना मुश्किल हो जाता है। 

हालांकि यह बीमारी उन पशुओं में ही देखी जाती है। जिनकी उम्र 6 महीने से लेकर 24 महीने तक होती है। 

ब्लैक क्वार्टर का उपचार

यह एक खतरनाक जीवाणु है और इसके हो जाने पर पेनसिलिन टीका दिया जाता है। लेकिन यह टीका पीड़ित पशु पर तभी काम कर सकता है, जब इस रोग का पता शुरुआत में ही चल गया हो। इसके अलावा अगर रोग में घाव गहरा हो जाए तो पशु की ड्रेसिंग भी नियमित रूप से करानी होती है। 

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सर्रा रोग और इसके उपचार 

कंगायम गाय को सर्रा रोग होने का खतरा भी अधिक रहता है। आपको बता दें कि सर्रा रोग के दौरान पशु को बार – बार बुखार होने लगता है। इसके अलावा पशु को अधिक पेशाब आता है। इसके साथ ही भूख भी कम लगती है और मुंह से लार गिरने लग जाती है। यही नहीं  कई बार इस रोग में आंख और नाक से पानी भी गिरने लगता है। 

सर्रा रोग का उपचार 

सर्रा रोग का उपचार  करने के लिए सबसे पहले पशु के आस पास चूने का छिड़काव किया जाना चाहिए। इसके अलावा पशु को गुड़ भी दिया जा सकता है। इसके साथ ही कंगायम गाय के सर्रा रोग होने के तीन घंटे बाद उनके सिर पर पानी डालना चाहिए। 

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थनैला बीमारी और उसके उपचार 

थनैला रोग आमतौर पर केवल अधिक दूध देने वाली गाय को  ही होता है। लेकिन कई बार यह कम दूध देने वाली गाय को भी हो जाता है। इस रोग के दौरान गाय के थनों में सूजन आ जाती है और इनमें दर्द भी होने लगता है। साथ ही दूध निकालने के दौरान दूध से पस और खून भी बहने लगता है। यही नहीं गाय के दूध निकालने का रास्ता भी संकरा हो जाता है। 

थनैला के उपचार की प्रक्रिया

यह रोग अमूमन पशुालकों की लापरवाही के चलते भी पैदा हो जाता है। ऐसे में इस रोग से केवल पशु को बचाया ही जा सकता है। क्योंकि अगर एक बार यह रोग हो जाता है, तो कई बार पशुओं के थन तक काटने की जरूरत पड़ जाती है। थनैला का समय पर पता लगाने के लिए पशु के थनों पर नजर बनाकर रखनी चाहिए। इसके अलावा समय – समय पर दूध की जांच करना भी अनिवार्य है।  

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 Animall ऐप पर कैसे खरीदें गाय

कंगायम गाय खरीदने के लिए आपको केवल Animall App डाउनलोड करनी होगी। इस ऐप को डाउनलोड करने के लिए दिए गए विकल्प पर  जाएं। Click Here

 

  1. ऐप डाउनलोड होने के बाद आप अपना मोबाइल नंबर डालें।
  1. इसके बाद आपको अपने अनुसार भाषा का चुनाव करना है। 

 

  1. भाषा का चुनाव करने के बाद ऐप इस्तेमाल की जा सकती है। अब आप यहां से पशु खरीद या बेच सकते हैं। साथ ही पशु से जुड़ी सभी जानकारी भी देख सकते हैं। 
  1. अब आप गाय खरीदने के विकल्प पर क्लिक करें। 

 

  1. इसके  बाद आपके सामने जो भी गाय खरीदी जा सकती है। उनकी सूची आ जाएगी। 
  2. अब अगर सूची में से ही आपको कोई पशु पसंद आ गया हो, तो आप यहां से खरीद सकते हैं। लेकिन अगर आपको पशु में कुछ खास नस्ल और गुण चाहिए तो आप फिल्टर लगाकर अपने अनुसार सूची बना सकते हैं। 
  3. अब आप अपने लिए गाय का चुनाव कर सकते हैं। 
  1. इसके बाद आप गाय की जानकारी हासिल करने के लिए गाय बेचने वाले व्यक्ति से फोन पर बात कर सकते हैं। साथ ही गाय की कीमत भी कम करा सकते हैं। 

 

ऐप पर कैसे बेचें पशु

  1. अगर गाय को बेचना चाहते हैं, तो यह भी आप इस ऐप के जरिए कर सकते हैं। गाय बेचने के लिए आप सबसे पहले ऐप के नीचे देखें। यहां आपको पशु बेचने का विकल्प दिखाई दे जाएगा। सहायता के लिए नीचे दिया गया चित्र देखें।
  1. इसके बाद आपको गाय या पशु से जुड़ी सभी जानकारियों को बताना होगा। 
  2. इस तरह आपका पशु ऐप में लिस्ट हो जाएगा और जिस भी व्यक्ति को गाय खरीदनी होगी। वह आपसे संपर्क कर लेगा। 
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सोनपुर पशु मेला: भारत के सबसे बड़ा मेला के बारे में जाने

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बिहार के सोनपुर जिले में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के वक्त यानी की नवंबर- दिसंबर महीनों में भारत का सबसे बड़ा पशुमेला लगता है। भारत का ही नहीं बल्कि सोनपुर पशु मेला पूरे एशिया का सबसे बड़ा पशुमेला कहलाता है। इसे मेले को हरिहर क्षेत्र मेला के नाम से भी जाना जाता है। वहीं लोकल लोग इसे छत्तर मेला भी कहते हैं। सोनपुर बिहार की राजधानी पटना से 25 किलोमीटर दूर है। इस पशु मेले ने पूरे देश में पशु मेलों को एक अलग ही पहान दी है।

 

सोनपुर मेले से जुड़ा इतिहास

पुरानी मान्यताएं हैं कि ये मेला एक वक्त पर जंगी हाथियों का केंद्र होता था। यहां से चंद्रगुप्त मौर्य, अकबर, वीर कुंवर सिंह ने हाथी यहीं से खरीदें थे। इतना ही नहीं कहा जाता है कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर पैदा हुए। बिहार के कोणहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो ग्राह ने उसे मुंह में पकड़ लिया। गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए लगातार लड़ता रहा। पानी में रहने के बाद भी ग्राह उसे पानी के अंदर नहीं खींच पाया। गज और ग्राह का ये युद्ध इतना रोमांचकारी हो गया था कि समस्त देवता इस युद्ध को देखने के लिए वहां आ गए।

इस युद्ध में गज कमजोर पड़ रहा था। उसने भगवान विष्णु से अपनी जान बचाने की प्रार्थना की। बाद में कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के युद्ध को रोका। गज और ग्राह में कौन विजयी हुआ और कौन हारा ये आज तक किसी को पता नहीं चला। कौन हारा के चलते ही उस स्थान का नाम कोणहारा घाट रखा गया है। उसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का मंदिर है। इसलिए उस स्थान को हरिहर क्षेत्र भी कहते हैं।

वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि हरिहरनाथ मंदिर का निर्माण भगवान राम ने सीता स्वयंवर के लिए जाते वक्त अपने हाथों से किया था। इसकी मरम्मत राजा मानसिंह ने कराई थी। मुगलकाल में राजा रामनारायण ने इस मंदिर को एक व्यापक रूप दिया।

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सोनपुर मेले के आकर्षण

सोनपुर मेले में आपको लाखों की संख्या में पशु देखने को मिलते हैं, जो वहां पर बिकने के लिए आए होते हैं। देश भर से पशु बेचने वाले अपने-अपने पशुओं को लेकर इस मेले में पहुंचते हैं। हर साल इस मेले में हजारों पशु खरीदें और बेचे जाते हैं।

इसके अलावा मिट्टी के बर्तन और खिलौने, हस्तकला की वस्तुएं, हस्त निर्मित कपड़ें और आभूषण भी इस मेले के प्रमुख आकर्षण हैं।

ये जगह दुधारू पशुओं के लिए बेहतरीन है। सोनपुर मेला भारत का एकमात्र मेला है, जहां पर इन पशुओं की बिक्री इतनी भारी मात्रा में होती है। बिक्री के लिए इन पशुओं को बहुत ही बारीकी से सजाकर खड़ा किया जाता है। पशुओं के करतब भी आपको यहां पर देखने को मिल जाएंगे, जो पर्यटकों को काफी लुभाते हैं।

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सरकार भी लेती है पूरा हिस्सा

इसके अलावा इस मेले में बिहार सरकार के द्वारा कई प्रदर्शनियां भी लगाई जाती हैं। जिसके जरिये लोगों को उनके स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी जरूरी चीजों की जानकारी दी जाती है। इन प्रदर्शनियों में किसानों के हित में किए जा रहे काम, किसानों के लिए अलग अलग संगठनों द्वारा बनाए गए नए कृषि उपकरणों की भी प्रदर्शनी लगाई जाती है।

यहां पर आने वाले पर्यटकों के लिए मनोरंजन की भी पूरी व्यवस्था की जाती है। इसमें नौटंकी, पारंपरिक संगीत नाटक, मैजिक शो, सर्कस जैसे मनोरंजक कार्य शामिल है। इन्हें देख कर पर्यटक काफी अच्छा महसूस करते हैं।

सोनपुर पशुमेले में झूले, खेल, मौत का कुआं, सहित और भी कई मनोरंजन के इंतजाम किए जाते हैं। ये पशुमेला लगभग 5 से 6 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला होता है। यहां पर कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। जिनमें दंगल तक होते हैं। इस पशुमेले के जरिये सरकार भी ये कोशिश करती है कि यहां आने वाले लोगों को बिहार की संस्कृति के बारे में बताया जा सके। 

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सोनपुर में क्या करें

  • सोनपुर में जब आप पशु मेला देखने के लिए जाए, तो आप हरिहरनाथ मंदिर के दर्शन भी जरूर करें। इस मंदिर में भगवान शिव और विष्णु दोनों की प्रतिमाएं है। कार्तिक पुर्णिमा के दिन देश के अलग अलग हिस्सों से लोग यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं। साथ ही लोग गंगा और गंडक में डुबकी भी लगाते हैं।
  • सोनपुर में जब आप जा रहे हैं तो पशु मेला देखना तो भूलकर भी नहीं छोड़ सकते हैं। यहां पर बहुत से पशु अलग अलग नस्लों के आपको खरीदने और बेचने के लिए मिल जाते हैं।
  • सोनपुर सिर्फ पशु मेले के लिए ही नहीं बल्कि वहां पर होने वाले खेलकूद के लिए भी काफी मशहूर है। यहां पर कुश्ती, दंगल, क्रिकेट, फुटबॉल, हैंडबॉल, रस्सा-कश्शी, रग्बी, कबड्डी जैसे खेलों का आयोजन किया जाता है। ये खेल पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए होते हैं।
  • आप सोनपुर में गंगा आरती का भी आनंद ले सकते हैं। ये आरती गंगा और गंडक नदी संगम पर होती है। शाम के वक्त जब घाट दीयों से जगमग होता है तो वो बेहद ही सुंदर नजर आता है।

 

कैसे पहुंचें सोनपुर

फ्लाइट के माध्यम से कैसे जाएं सोनपुर

सोनपुर बिहार की राजधानी पटना से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां पर पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले पटना जाना पड़ेगा। भारत के लगभग सभी बड़ शहरों जैसे कि कोलकाता, मुंबई और दिल्ली से पटना के लिए सीधी फ्लाइट जाती है। और आप इन शहरों तक बहुत ही आसानी से पहुंच सकते हैं।

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ट्रेन के माध्यम से कैसे पहुंचे सोनपुर

पटना उत्तर भारत का एक बहुत ही बड़ा रेलवे जंक्शन है, इसलिए आप ट्रेन के जरिए सोनपुर बहुत ही आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां पर भारत के लगभग हर बड़े शहर से ट्रेन आती है।

सड़क के जरिये कैसे पहुंचे सोनपुर

अगर आप सड़क मार्ग से सोनपुर जाना चाहते हैं, तो उसमें आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी। अच्छे खासे हाईवे से जुड़े सोनपुर तक आप आसानी से पहुंच सकते हैं। आप दिल्ली, लखनऊ, देहरादून से बेहद ही आसानी से सड़क यात्रा कर सकते हैं।

सोनपुर में ठहरने के लिए भी टूरिस्ट विलेज बने हुए हैं जो आपको बेहद ही अच्छे दामों पर मिल जाएंगे और आपको किसी तरह की ठहरने में भी परेशानी नहीं होगी।

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Gir Cow: Identification, Milk And Purchase Information

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“Gir Cow” is one of the most popular varieties among the humped category of cattle breeds in India. The breed is native to India and belongs to the Kathiawar region of Gujarat. Apart from Gujrat, the Gir breed of cow is also reared in different states of India and is known by different names such as Surti, Sorthi, Desan, Bhodali, Kathiawari, etc depending upon the location. Known for its milk production and adaptability, this cow breed is reared by the tribes found in the state of Gujarat. This breed is considered pure and is probably one of the oldest breeds found in India. The cow’s milk, urine, ghee, and dung are sold at a good rate. Read more

 

Because of their special qualities, many countries like the United States of America, Venezuela, Brazil, and Mexico import these breeds. Brazil offers this breed an international presence. Brazil supplies upgraded cattle semen and embryos of Indian-origin cattle to various countries across the world. All over the world, the breed is best known for its dairy production capacity. The natural mating technique is mostly preferred for rearing this breed rather than artificial insemination.

How to identify Gir Cow?

Gir Cow Breed is highly adaptable and can adjust to any habitat conditions. Gir cows are classified into two breeds – Devmani and Swarna Kapila are both advanced breeds. They are mainly red in colour and have long ears and a large forehead. Their horns are big and curved with a huge hump.

Milk Production and Lactation

Gir cow can produce up to 50 litres of milk every day. That is why the popularity of this cattle is booming in the animal husbandry sector. Many schemes are also implemented to protect and increase their numbers. Once they were solely found in Gujarat, but at present, they are common in states like Uttar Pradesh, Rajasthan, Madhya Pradesh, and Haryana.

Gir cow milk yield per lactation is on an average around 1590 kilos. During the first calving process by these cows, an average of 1600 kilos of milk per lactation is produced. For mature cows, it can increase to around 1800 kilos for each lactation. The milk is healthier and enjoys a huge market demand due to the presence of whey protein and casein in it. The fat quantity is somewhere between 4.7 to 5 per cent. Read more

How to maintain Gir Cow?

Generally, concrete walls or tin shade shelter is used to save the cow from strong snowfall, heavy rainfall, sunlight, parasites, and frost. The house should be properly oxygenated and a clean air facility must be there. Cleaning should be done regularly to avoid the spreading of parasites and incubation of mosquitoes and as well as viruses.  Give them proper nutrient supplements like – Protein, Calcium, Vitamin A, and Phosphorus with their food. Manage them properly and provide proper care whenever the cow gets pregnant. Good management practices will result in a healthy calf and also gives a high milk yield. Read more

 

Diseases that commonly affect Gir Cows and their treatment

Many diseases can cause serious illness to your Gir cow. Diseases that commonly affect Gir cows are:-

Digestive system disease

Diseases related to the digestive system like acidic indigestion, simple indigestion, saline indigestion, constipation,  bloody diarrhoea, and acidity. Read more

Treatment of acidic indigestion:

 Avoid feeding acidic fodder to animals.

During the start of this disease, feed animals saline elements like baking soda and medicines which will help to energize their liver.

Treatment of simple indigestion:

Feed them spices which will help them to increase their hunger.

Provide them feed which digests easily. 

Treatment of saline indigestion:

 During the preliminary stage of the disease, give light acid such as 5% acetic acid @5-10ml per animal weight or approx 750ml vinegar to cure the disease.

If a brain stroke is occurring and nothing can be seen after giving medicine 2-3 times, then the doctor should do the rumenotomy operation.

Treatment of constipation:

For heavy animals, the scrape of ginger powder@30gm and solution of Magnesium sulphate@800gm is given to animals through the mouth.

In the initial stage give them flax oil@500 ml and don’t let them have dry fodder as a feed and give them more water.

Treatment of bloody diarrhoea:

 Give sulpha medicines through vaccinations or mouth and along with that give more amount of water and glucose@5%.

Sulpha medicines, antibiotics, opiates, iron elements, or tennoform can also be given to get rid of diarrhoea.

Treatment of acidity

If this disease is seen repeatedly in animals then activated charcoal, Dettol water, and 40% formalin@15-30 ml should be given.

Turpentine oil@30-60ml, extract of mustard/flax oil @500ml or asafoetida (heeng)@60ml is given to animals (don’t let them consume too much turpentine oil, this can lead to stomach issues).

Look at the condition and type of disease of the animal, and consult the vet through our app.

Lead poisoning 

The calf is dull and sunken abdominal pain is the major symptom of lead poisoning. It usually occurs when they lick the painted tarpaulins, metalwork, lead batteries, etc.

Treatment

A dose of calcium versenate @25% is given twice a day to cure lead poisoning in sub-acute cases.

Enteritis/Calf scours/ Diarrhoea

In this disease first, the excessive loss of water occurs then acidosis and dehydration and then the cattle die. The disease mainly occurs due to drinking unclean water, unclean hygiene conditions, and poor feeding systems.

Treatment   

proper ventilation and dry bedding are required.

 

Where can I get Gir cow?

If you are looking to purchase Gir cow, then right away pick up your mobile phone and go to the play store, and download the “Animall” app. Register yourself by verifying your phone number and then tap on the cow section where you will find different-different breeds of cow. Then filter out Gir cow breed, calving, and milk capacity, and then select the best cow from the options available.

Bring home the best Gir cow by following these 3 easy steps.

Enter your district or village name or Pincode.

After entering, tap on the cow section. Here choose the breed of Gir cow and select the calving and milk capacity as per your preference.

Now you will start seeing all the cows around you. You can then select any cow of your preference. Go ahead and bring your most preferred Gir cow to your home.

 

How to list my Gir cow for sale?

If you wish to sell your Gir cow, then for that also you can install our“Animall” app. First, you need to register yourself and then go to the sell animals section. After that, enter the milk capacity, rate, and price of your Gir cow. After you are done filling in all the required details, your cow will be registered on the “Animall” app. Anyone interested in purchasing your cow will call you directly.

Apart from selling and purchasing cattle, you can also get all the necessary information related to all the cattle by installing our app. If your cow is not keeping well then you can directly talk to veterinary doctors through our app. You can get the verified cattle at the best quality and affordable rates and that too without paying any commission to any middleman. Read more

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गाय को दस्त होने के कारन, लक्षण और उसका इलाज

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ये काफी आम बात है कि गाय को दस्त की शिकायत हो रही है। जब भी गाय को ये बीमारी होगी तो वो काफी पतला गोबर करेगी। ऐसे में बार-बार गाय को पतला गोबर आएगा, तो उसका शरीर काफी कमजोर हो सकता है। गाय को दस्त होने के पीछे का मुख्य कारण पशु की पाचन क्रिया खराब होना या फिर पेट में किसी तरह का संक्रमण होने की वजह से होता है। हालांकि ज्यादा गर्मी लगने की वजह से भी पशु को ये बीमारी हो सकती है।

पिचकारी की तरह पतला गोबर निकलना दस्त का मुख्य लक्षण होता है। इसके अलावा गाय के स्वास्थ्य के अनुसार भी कुछ अन्य लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि बुखार, कमजोरी, घास ना खाना। इससे बचने के लिए ज्यादा कछ नहीं करना होता है बस साधारण सफाई अपना कर और उसके खाने के संबंधित सही जानकारी लेकर गाय को दस्त से बचाया जा सकता है।

अगर गाय को दस्त हो जाता है तो उसका इलाज घरेलू उपायों से भी किया जा सकता है। हालांकि गंभीर स्थिति में डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है और डॉक्टर कारण और लक्षणों के मुताबिक अलग अलग दवाएं देते हैं। दवाओं के साथ-साथ शरीर में पानी और पोषक तत्वों को पूरा करने के लिए भी तरीके अपनाए जाते हैं।

बीमारियों से बचाए रखने के लिए गाय का टीका कब लगाना चाहिए

गाय को दस्त होना वैसे तो एक आम स्थिति है, लेकिन कई बार ये गंभीर हो जाती है। जिस कारण इसकी सेहत पर गंभीर असर होता है। गाय को कई प्रकार के दस्त होते हैं, जिनमें के कुछ अन्य जानवरों में फैलने वाले भी होते हैं।

गाय को दस्त के लक्षण

गाय का गोबर काफी पतला आता है या फिर उसमें किसी तरह का द्रव मिला हुआ होता है। इसके अलावा इस रोग में गाय में कई अन्य लक्षण भी देखें जा सकते हैं, जो गाय के स्वास्थ्य और रोग के अंदरूनी कारणों पर निर्भर करते हैं। इसके अलावा गाय को दस्त होने की स्थिति में कई लक्षण देखें जाते हैं।

  • पिचकारी की तरह गोबर आना
  • गोबर में द्रव या फिर झाग आना
  • बदबूदार गोबर का आना
  • हर थोड़ी देर बाद गोबर आना
  • गाय के बैठे हुए में ही गोबर निकल जाना
  • गोबर में खून आना

गाय को कब्ज होने की स्थिति में उसका शरीर काफी ज्यादा प्रभावित होता है। जिस वजह से उसे कई समस्याएं हो सकती है। इन समस्याओं के आधार पर पशु को अन्य लक्षण भी आ सकते हैं।

  • शरीर में कमजोरी का आ जाना, जिस कारण पशु पूरा दिन बैठा रहता है
  • गाय को बुखार हो जाना
  • पशु की आंखों से पानी निकलना
  • जरूरत से ज्यादा ठंड लगना
  • शरीर में कंपन होना
  • पेट की हड्डियां दिखाई देना

डॉक्टर को कब दिखाएं

आमतौर पर दस्त का इलाज घर पर ही किया जाता है, लेकिन अगर एक दिन से ज्यादा होने पर और अगर घरेलू उपाय काम नहीं कर रहे हैं, तो डॉक्टर से बात करें।

किन कारणों से होता है गाय को दस्त रोग

गाय को दस्त लगने के कारण बहुत ही आम हो सकते हैं, जैसे कि ज्यादा हराई खाना या फिर गर्मी लग जाना। जबकि अगर डॉक्टर की माने तो उनके मुताबिक पशु को दस्त होने के 2 कारण होते हैं, जिनमें पाचन संबंधी रोग और अलग अलग तरह के संक्रमण शामिल होते हैं। 

गाय को पाचन से जुड़ी समस्याओं के कारण भी दस्त होते हैं, और इनके कारण है – 

  • ज्यादा हराई खिलाना
  • ज्यादा मात्रा में फीड, चना, या फिर चारा खिलाना
  • गंदा पानी पिलाना
  • पुराना या सड़ा हुआ चारा खिलाना
  • गंदे पानी में उगी घास चराना
  • कीटनाशकों और रसायनों वाली घास खिलाना
  • ज्यादा संख्या में बिनोला या उसकी खल खा लेना

गाय को दस्त कई बार कुछ तरह की दवाओं की वजह से भी हो जाता है। इन दवाइयों में ज्यादातर गाय की त्वचा पर कीड़ों को मारने की दवाएं होती है, वहीं दूध बढ़ाने वाली दवाएं और बाकी गर्म दवाएं भी गाय को दस्त की शिकायत दे सकती है। 

संक्रमण

अगर आपकी गाय को दस्त की बीमारी हो गई है, तो उसके पीछे पेट में होने वाले संक्रमण भी होते हैं। जिसमें आमतौर पर वायरल इंफेक्शन शामिल होता है। गाय को दस्त होने का कारण बनने वाले वायरल इंफेक्शन को बोवाइन वायरल डायरिया कहते हैं। ये रोग ज्यादातर संक्रमित पशु के संपर्क में आने की वजह से ही होता है। नीचे लिखें तरीकों से गाय इस रोग के संपर्क में आती है-

  • संक्रमित जानवर की लार, जुगाली के संपर्क में आने से
  • एक ही बर्तन में पानी पीने से
  • एक ही खुरली में घास खाने से
  • संक्रमित पशु के आस-पास रहने की वजह से

हम अपने जानवरों को संक्रामक रोगों से कैसे बचा सकते है?

गाय को दस्त लगने से कैसे बचाएं

गाय को कई कारणों से दस्त हो सकता है, जिनमें से कुछ मामलों में बचाव किया जा सकता है, लेकिन कई बार रोकथाम मुश्किल हो जाती है। दस्त से बचाव के तरीके उनके कारणों पर निर्भर करते हैं। आप नीचे लिखें तरीकों से दस्त से बचाव कर सकते हैं – 

– गाय को ताजी और साफ घास चराएं

– गंदे पानी में उगी या फिर बासी घास खिलाने से बचें

– सर्दियों में ज्यादा हराई न दें अदर दें तो सूखा भूसा भी उसमें मिलाते रहें

– साफ और ताजा पानी पीने के लिए दें

– फीड, अनाज, दाना, खल सभी चीजों की मात्रा का खास ध्यान रखें, इस बारे में चाहें तो पशु चिकित्सक से बात करें

– गाय को गर्मी ना लगने दें और तेज धूप के दिनों में उसे बांधें नहीं और हवादार जगह पर रखें

– गाय को दिन में कई बार ताजा पानी पिलाएं

– उसकी लार और बाकी द्रवों को तुरंत ही नष्ट कर दें ताकि बाकी जानवर उसके संपर्क में ना आ सकें

 

गाय को दस्त होने का इलाज कैसे करें

गाय को दस्त की बीमारी होने पर सबसे पहले उसके कारणों और रोग की गंभीरता समझनी बेहद जरूरी है। अगर दस्त की समस्या ज्यादा गंभीर ना हो तो घरेलू उपाय भी कर सकते हैं। लेकिन अगर दस्त ठीक नहीं हो रहे हैं तो डॉक्टर से राय लेने के लिए जरा भी नहीं हिचकिचाएं। डॉक्टर इस दौरान गाय को ठंडी चीजें खिलाने की सलाह दे सकते हैं, जैसे सरसों की खल, सरसों का तेल, दही आदि।

साथ ही इस वक्त में गाय को गर्म चीजें देने से परहेज करने के लिए भी डॉक्टर कह सकता है। अगर गाय को वायरल बोवाइन हो गया है तो चिकित्सक गाय के लक्षण और परेशानी को समझ कर दवा देगा। आमतौर पर डॉक्टर रिहाइड्रेशन फ्लूइड, अलग तरह के खनिज और पोषक तत्व देते हैं। जो कि शरीर में पानी और जरूरी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करते हैं। साथ ही ये दस्त को भी नियंत्रण में रखते हैं।

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बीमारियों से बचाए रखने के लिए गाय का टीका कब लगाना चाहिए

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भारत देश में गाय को महज एक पशु नहीं, बल्कि माता के तौर पर भी देखा जाता है। गाय का उपयोग न केवल दूध निकालने और खेती के लिए किया जाता है। बल्कि हिंदू धर्म के वाचक इस पशु की पूजा भी करते हैं। यही कारण भी है कि गाय की सेहत का ध्यान रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई गाय का टीका का अभियान भी चलया जाता है। 

आपको बता दें कि जिस तरह से किसी शिशु का समय – समय पर टीकाकरण कराना जरूरी होता है। उसी तरह गाय का टीकाकरण भी बहुत जरूरी होता है। आज हम आपको अपने इस लेख में गाय के टीकाकरण से जुड़ी तमाम जानकारियां साझा करेंगे। इसके साथ ही आप पशुपालकों को यह भी समझाएंगे कि आखिर क्यों गाय का टीकाकरण आवश्यक है। अगर आप भी एक पशुपालक हैं और गाय के टीकाकरण से जुड़ी किसी प्रकार की जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख पर अंत तक बने रहें। 

गाय का टीकाकरण क्यों है महत्वपूर्ण

हम सभी जानते हैं कि पशुपालकों के लिए गाय केवल खेती बाड़ी का ही जरिया नहीं है। बल्कि गाय के द्वारा प्राप्त दूध, घी आदि बेचकर भी पशुपालक पैसा कमाते हैं। ऐसे में अगर गाय अस्वस्थ हो जाए तो इससे उनकी दूध देने की क्षमता पर असर पड़ता है। इसके अलावा कई बार गाय कुछ ऐसे रोगों से संक्रमित हो जाती है। 

जिसमें उनके थनों तक को काटना पड़ता है। यही नहीं कई बार कुछ रोगों के चलते गाय की मौत तक हो जाती है। गाय की मृत्यु होने पर या उनके बीमार होने पर गाय के जरिए कमाई जाने वाली आय कम हो जाती है। इसके अलावा पशुपालकों की खेती बाड़ी का काम भी सही तरह से नहीं हो पाता। ऐसे में गाय को खतरनाक रोगों से बचाने के लिए और उन्हें  स्वस्थ बनाए रखने के लिए उन्हें टीके लगवाना जरूरी हो जाता है। 

गाय को लगाए जाने वाले टीके 

गाय एक दुधारू पशु है जिसे समय – समय पर कई टीके देने की आवश्यकता होती है। अब हम ऐसे ही कुछ सामान्य टीकों के बारे में जानेंगे, जो गाय को समय समय पर दिलवाने चाहिए।

गाय को दिया जाने वाला गलघोटू टीका 

गलघोटू रोग एक संक्रामक और खतरनाक रोग है। जिसके दौरान गाय के मुंह से लार गिरती है और सांस लेने में भी दिक्कत होती है। ऐसे में गाय को गलघोटू रोग से बचाने के लिए इन्हें साल में दो बार टीके लगवाए जाते हैं। इस टीके में 5 एमएल एलम दवा होती है, जो चमड़ी के ठीक नीचे इंजेक्ट की जाती है। यूं तो आमतौर पर गलघोटू का टीका जून और दिसंबर के दौरान घर – घर जाकर मुफ्त में  लगाया जाता है। लेकिन अगर कोई पशुपालक अपनी सुविधा के अनुसार गाय का  टीकाकरण कराना चाहते  हैं, तो ऐसा वह कर सकते हैं। लेकिन इसमें डॉक्टर की राय लेना बहुत जरूरी है। 

मुंह खुर (एफ.एम.डी) 

मुंह खुर एक बहुत संक्रामक और खतरनाक रोग है। इस रोग के दौरान पशु के मसूड़ों के पास छोटे – छोटे दाने हो जाते हैं। यह दाने कुछ समय में बड़े छाले और घाव का रूप ले लेते हैं। इसके अलावा कई बार पशु के मुंह में भयंकर दर्द रहने लगता है। जिसकी वजह से वह कुछ खा पी भी नहीं पाता। इस संक्रामक रोग से गाय को बचाए रखने के लिए मुंह खुर का टीका लगाया जाता है। यह टीका पशु को साल में दो बार मई एवं नवंबर में दिया जाता है। आपको बता दें कि पशुओं को मुंह खुर से बचाए रखने के लिए सरकार टीकाकरण का मुफ्त अभियान बड़े स्तर पर चलाती है। इस अभियान में गाय को टेट्रावेलेंट नामक दवा के टीके का 5 एमएल डोज दिया जाता है। यह गाय की चमड़ी के नीचे दिया जाता है।

संक्रामक गर्भपात का टीकाकरण 

गाय और भैंस के गर्भापात की स्थिति ब्रूसेलोसिस नामक जीवाणु के चलते होती है। इस स्थिति में पशु के गर्भधारण करने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है और अधिकतर 6 से 8 वे महीने के दौरान गाय का गर्भपात भी हो जाता है। गाय को इस खतरनाक रोग से बचाए रखने के लिए उसके जन्म के 6 महीने से लेकर 8 महीने की आयु के बीच गाय को यह टीका दिया जाता है। गाय को दिए जाने वाले इस टीके का नाम कोटन -19 स्ट्रेन है। गाय को यह टीका चमड़ी के नीचे दिया जाता है। इसकी मात्रा केवल 5 एमएल ही होती है। 

लंगड़ा बुखार 

लंगड़ा बुखार जिसे लोग काला बुखार के नाम से भी जानते हैं। आपको बता दें कि यह रोग अमूमन गाय भैंस जैसे अधिक वजन वाले जीवों को ही होता है। ऐसे में पशु को लंगड़े बुखार की समस्या से बचाने के लिए समय पर एलम नामक दवा का टीका दिया जाता है। यह टीका पशु को केवल 5 एमएल ही होता है। इसके अलावा लंगड़े बुखार का ह टीका पशु को हर 6 महीने में एक बार दिया जाता है।

गाय के लिए चलाए जाने वाले टीकाकरण अभियान 

हमने जैसा कि आपको बताया था कि देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी पशुपालन के जरिए ही अपना गुजारा करता है। ऐसे में इन पशुओं की देखरेख ठीक से हो और पशु लंबे समय तक स्वस्थ रहें। इसके लिए कई टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं। ऐसे ही कुछ टीकाकरण अभियान हैं जो सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं। इस टीकाकरण अभियान में गाय को गलघोटू, लंगड़ा बुखार, और मुंह खुर जैसे रोगों से बचाने के लिए मुफ्त टीकाकरण देश भरे में हो रहे हैं। 

 

गाय को लगाए जाने वाले सामान्य टीके 

रोग  टीका  डोज टीकाकरण का समय 
गलघोटू एलम  5 एम एल  हर 6 महीने में 
मुंह खुर टेट्रावेलेंट  5 एम एल 6 महीने या इससे कम आयु में
लंगड़ा बुखार  एलम 5 एम एल हर 6 महीने में
संक्रामक गर्भपात कोटन -19 स्ट्रेन 5 एम एल 6 से 8 माह की आयु में

 

गाय को होने वाले अन्य रोग और टीके 

ब्लैक क्वार्टर और इलाज 

यह रोग गाय को बारिश के दिनों में मिट्टी की वजह से होता है। इस रोग के दौरान पशु को तेज बुखार हो जाता है और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। यह रोग होने पर इसकी शुरुआत में ही पशु को पेनिसिलिन का टीका दिया जाता है। 

एनाप्लाजमोसिस और इलाज 

यह रोग गाय को एनाप्लाजमा मार्जिनल जीवाणु के कारण होता है। इस रोग के दौरान पशु के शरीर से खून निकलने लगता है। जिसकी वजह से खून की कमी भी होने लगती है। इस रोग से राहत दिलाने के लिए पशु को अकार्डीकल दवा दी चाहती है। 

थनैला रोग और इलाज

थनैला रोग गाय के थनों से जुड़ा हुआ है। इस दौरान पशु के थन का आकार बड़ा हो जाता है और गाय के दूध निकालने का रास्ता छोटा हो जाता है। इसके अलावा दूध के साथ पस और खून भी निकलने लगता है। थनैला रोग का उपचार केवल समय रहते ही किया जा सकता है। पशु को इस रोग से बचाने के लिए समय – समय पर डॉक्टर से दूध की जांच कराएं। 

तिल्ली रोग और इलाज

तिल्ली रोग पशु को खराब खाना पीना देने से होता है। इस रोग के दौरान पशु शरीर से लुक जैसा रक्त बहने लगता है। इसके अलावा पशु को बुखार भी होता है और शरीर भी अकड़ने लगता है। इस रोग का इलाज केवल यही है कि पशु को खाना पीना साफ सुथरा दिया जाए।

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