गलघोंटू रोग आमतौर पर बरसात के मौसम में होता है| ज्यादा बिमारी फैलने का खतरा गर्म व अधिक आर्धरता वाले क्षेत्रों में रहता है| इसे (ब्लेक लैग) के नाम से भी जाना जाता है|
विषय
यदि समय पर अफारे का ईलाज नहीं किया गया तो पशु मर जाता है| निम्नलिखित उपाय सहायक है:-
(क) पशु को खिलाना बंद कर देना चाहिए व पशुचिकित्सक को सम्पर्क करना चाहिए|
(ख) नाल देते समय पशु की जीभ नहीं पकड़नी चाहिए|
(ग) पशु को बैठने नहीं देना चाहिए उसे थोड़ा-थोड़ा चलाना चाहिए|
(घ) जब पशु में अफारे के लक्षण समाप्त हो जाए उसके बाद 2-3 दिनों में धीरे-धीरे पशु को चारा देना चाहिए|
पेट के कीड़ों से ग्रस्ति नवजात सुस्त, खाने में कम रूचि, दस्त लगना आदि लक्षण होते हैं तथा सही ईलाज के लिए नज़दीक के पशु चिकित्सक को सम्पर्क करें|
यह बिमारी आम तौर पर 2 सप्ताह से 3 महीने के बीच की आयु वाले नवजात को होती है| यह उन गौशालाओं में ज्यादा होती है जो तंग है व स्वास्थ्यकर नहीं है| मुख्य लक्षणों में तेज़ बुखार, दाना खाने में रुची न होना, मुंह सूखा, सुस्ती, गोबर पीला या मिट्टी के रंग का व दुर्गन्ध| यदि आपको इस बिमारी का आभास हो तो तुरन्त नज़दीक के पशु चिकित्सक को सम्पर्क करें|
आमतौर पर नवजात इससे ग्रस्ति होते है यह अन्तह क्रीमी के कारण होती है मुख्यत: एसकेदिदज| जिसके कारण जानवर कमज़ोर,सुस्त तथा भूख में कमी होती है| इससे बचाव के लिए साफ पानी की व्यवस्था, बिमार नवजात को स्वस्थ से अलग रखना आवश्यक है| क्रीमी एक से दूसरे जानवर को अण्डों के द्वारा फैलते है जोकि बिमार पशु के गोबर में होते हैं|