स्वच्छ दूध का उत्पादन कैसे करें ?

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जैसा कि हम सभी जानते है कि दूध एक सर्वोत्तम पेय एवं खाद्य पदार्थ है। इसमें भोजन के सभी आवश्यक तत्व जैसे प्रोटीन, शक्कर, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन आदि उचित मात्रा में पाये जाते है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त आवश्यक होते है। इसीलिए दूध को एक सम्पूर्ण आहार कहा गया है।

दूध में पाये जाने वाले उपर्युक्त आवश्यक तत्व मनुष्यों की ही भॉति दूध में पाये जाने वाले सूक्ष्म (आँख से न दिखायी देने वाले) जीवाणुओं की वृद्धि के लिए भी उपयुक्त होते है, जिससे दूध में जीवाणुओं की वृद्धि होते ही दूध शीघ्र खराब होने लगता है। इसे अधिक समय तक साधारण दशा में सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। दूसरे कुछ हानिकारक जीवाणु दूध के माध्यम से दूध पीने वालों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा कर देते हैं। अतः दूध को अधिक समय तक सुरक्षित रखने, गन्दे एवं असुरक्षित दूध की पीने से होने वाली बीमारियों से उपभोक्ताओं को बचाने तथा अधिक आर्थिक लाभ कमाने के उद्देश्य से दूध का उत्पादन साफ तरीकों से करना अत्यन्त आवश्यक है।

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स्वच्छ दूध क्या होती है

वह दूध जो साफ एवं बीमारी रहित जानवरों से, साफ वातावरण में, साफ एवं जीवाणु रहित बर्तन मे, साफ एवं बीमारी रहित ग्वालों द्वार निकाला गया हो तथा जिसमें दिखाई देने वाली गन्दगियों (जैसे गोबर के कण, घास-फूस के तिनके, बाल मच्छर, मक्खियाँ आदि) बिल्कुल न हो तथा न दिखाई देने वाली गन्दगी जैसे सूक्ष्म आकार वाले जीवाणु कम से कम संख्या में हो। दूध में दो प्रकार की गन्दगियाँ पायी जाती है :

आँख से दिखाई देने वाली गन्दगियाँ – जैसे गोबर के कण, घास-फूस के तिनके, बाल धूल के कण, मच्छर, मक्खियाँ आदि। इन्हें साफ कपड़े या छनने से छान कर अलग किया जा सकता है।

ऑख से न दिखाई देने वाली गन्दगियाँ – इसके अन्तर्गत सूक्ष्म आकार वाले जीवाणु आते हैं, जो केवल सूक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वरा ही देखे जा सकते है। इन्हें नष्ट करने के लिए दूध को गरम करना पड़ता है दूध को लम्बे समय तक रखना हो तो इसे ठंडा करके रखना चाहिये।

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गन्दगियों के स्रोत

उपरोक्त गन्दगियों के दूध में प्रवेश करने के मुख्यतः दो स्रोत है:

जानवरों के अयन से : थनों के अन्दर से पाये जाने वाले जीवाणु।

बाहरी वातावरण से :

अ) जानवर के बाहरी शरीर से

ब) जानवर के बंधने के स्थान से

स) दूध के बर्तनों से

द) दूध दुहने वाले ग्वाले से

य) अन्य साधनों से मच्छर, मक्खियों, गोबर व धूल के कणों, बालों इत्यादि से।

हमारे देश में इस समय कुल दूध का उत्पादन 3.3 करोड़ मीट्रिक टन से अधिक हो रहा है जो अधिकतर गाँवों में या शहर की निजी डेरियों में ही उत्पादित किया जाता है, जहां सफाई पर ध्यान न देने के कारण दूध में जीवाणुओं की संख्या बहुत अधिक होती है तथा दिखाई देने वाली गन्दगियाँ जो नहीं होने चाहिए वह भी मौजूद रहती हैं। इसके मुख्य कारण निम्न हैं –

  • गाय के बच्चे को थन से दूध का पिलाना।
  • गाँवों एवं शहरों में गन्दे स्थानों पर दूध निकालना।
  • गन्दे बर्तनों में दूध निकालना एवं रखना।
  • पशुओं को दुहने से पहले ठीक से सफाई न करना।
  • पशुओं को दुहने वाले के हाथ एवं कपड़े साफ न होना।
  • दूध दुहने वाले का बीमार होना।
  • दूध बेचने ले जाते समय पत्तियों, भूसे व कागज आदि से ढकना।
  • देश की जलवायु का गर्म होना।
  • गन्दे पदार्थों से दूध का अपमिश्रण करना।

साफ दूध का उत्पादन स्वास्थ्य एवं आर्थिक लाभ के लिए आवश्यक है अतः ऐसे दूध का उत्पादन करते समय निम्न बातों पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है:

1. दूध देने वाले पशु से सम्बन्धित सावधानियाँ:

  • दूध देने वाला पशु पूर्ण स्वस्थ होना चाहिए। टी.बी., थनैला इत्यादि बीमारियाँ नहीं होनी चाहिए। पशु की जॉच समय-समय पर पशु चिकित्सक से कराते रहना चाहिए।
  • दूध दुहने से पहले पशु के शरीर की अच्छी तरह सफाई कर लेना चाहिए। दुहाई से पहले पशु के शरीर पर खरैरा करके चिपका हुआ गोबर, धूल, कीचड़, घास आदि साफ कर लेना चाहिए। खास तौर से पशु के शरीर के पीछे हिस्से, पेट, अयन, पूंछ व पेट के निचले हिस्से की विशेष सफाई करनी चाहिए।
  • दुहाई से पहले अयन की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए एवं थनों को किसी जीवाणु नाशक के घोल की भीगे हुए कपड़े से पोंछ लिया जाय तो ज्यादा अच्छा होगा।
  • यदि किसी थन से कोई बीमारी हो तो उससे दूध नहीं निकालना चाहिए।
  • दुहाई से पहले प्रत्येक थन की दो चार दूध की धारें जमीन पर गिरा देनी चाहिए या अलग बर्तन में इक्कठा करना चाहिए।

दूध देने वाले पशु के बांधने के स्थान से सम्बन्धित सावधनियाँ :

  • पशु बॉधने का व खड़े होने के स्थान पर्याप्त होना चाहिए।
  • फर्श यदि सम्भव हो तो पक्का होना चाहिए। यदि पक्का नहीं हो तो कच्चा फर्श समतल हो उसमें गड्डे इत्यादि न हो। मूत्र व पानी निकालने की व्यवस्था होनी चाहिये।
  • दूध दुहने से पहले पशु के चारों ओर सफाई कर देनी चाहिए। गोबर, मूत्र हटा देना चाहिए। यदि बिछावन बिछाया गया हो तो दुहाई से पहले उसे हटा देना चाहिए।
  • दूध निकालने वाली जगह की दीवारें, छत आदि साफ होनी चाहिए। उनकी चूने से पुताई करवा लेनी चाहिए तथा फर्श की फिनाईल से धुलाई दो घण्टे पहले कर लेनी चाहिए।

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दूध के बर्तन से सम्बन्धित सावधानियाँ :

  • दूध दुहने का बर्तन साफ होना चाहिए। उसकी सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। दूध के बर्तन को पहले ठण्डे पानी से, फिर सोडा या अन्य जीवाणु नाशक रसायन से मिले गर्म पानी से, फिर सादे खौलते हुए पानी से धोकर धूप में चूल्हे के ऊपर उल्टा रख कर सुखा लेना चाहिए।
  • साफ किए हुए बर्तन पर मच्छर, मक्खियों को नहीं बैठने देना चाहिए तथा कुत्ता, बिल्ली उसे चाट न सके।
  • दूध दुहने के बर्तन का मुंह चौड़ा व सीधा आसमान में खुलने वाला नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे मिट्टी, धूल, गोबर आदि के कण व घास-फूस के तिनके, बाल आदि सीधे दुहाई के समय बर्तन में गिर जायेंगे इसलिए बर्तन सकरे मुंह वाले हो तथा मुंह टेढ़ा होना चाहिए।

दूध दुहने वाले व्यक्ति से सम्बन्धित सावधानियाँ :

  • दूध दुहने वाला व्यक्ति स्वस्थ होना चाहिए तथा उसे किसी प्रकार की कोई बीमारी न हो।
  • उसके हाथों के नाखून कटे होने चाहिए तथा दुहाई से पहले हाथों को अच्छी तरह से साबुन से धो लिया गया हो।
  • ग्वाले या दूध दुहने वाले व्यक्ति के कपड़े साफ होने चाहिए तथा सिर कपड़े से ढका हो।
  • दूध निकालते समय सिर खुजलाना व बात करना, तम्बाकू खाकर थूकना, छींकना, खॉसना आदि गन्दी आदते व्यक्ति में नहीं होनी चाहिए।

अन्य सावधानियाँ :

  • पशुओं को चारा, दाना, दुहाई के समय नहीं देना चाहिए, बल्कि पहले या बाद में दें।
  • दूध में मच्छर, मक्खियों का प्रवेश रोकना चाहिए।
  • ठण्डा करने से दूध में पाये जाने वाले जीवाणुओं की वृद्धि रूक जाती है। दूध को गर्मियों में ठण्डा करने के लिए गाँवों में सबसे सरल तरीका यह कि घर में सबसे ठण्डे स्थान पर जमीन में एक गड्ढा खोद लें और उसमें बालू बिछा दे तथा उसे पानी से तर कर दे और उसके ऊपर दूध का बर्तन जिसका मुँह महीन साफ कपड़े से बँधा हो, उसमें रख दें। समय-समय पर गड्ढे में पानी डालते रहे। ऐसा करने पर आप दूध को अधिक समय तक बिना खराब हुए रख सकते है।
  • दूध को कभी भी बिना गर्म हुए प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

इस प्रकार से उत्पन्न दूध वास्तव में अमूल्य होता है लेकिन यही दूध अगर अस्वच्छ व असामान्य दशाओं में पैदा किया व रखा गया हो तो वही दूध हानिकारक हो जायेगा।

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जानिए कैसे करें दुधारू भैंस की पहचान

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आज के समय में शहर भले ही आगे निकल गए हों। लेकिन ग्रामीण इलाकों में रहने वाले पशुपालक और किसानों की जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं आया है। इनका गुजारा आज भी गाय या भैंस के जरिए दूध बेचकर ही होता है। यही कारण भी है जिसकी वजह से पशुपालक दुधारू भैंस की नस्ल या दुधारू पशु खोजते रहते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि अगर पशु की दूध देने की क्षमता अच्छी नहीं हुई तो पशुपालक अपने परिवार को भी ठीक से नहीं पाल पाएंगे।

इसके साथ ही वह अपनी लगाई हुई धनराशि को भी गंवा बैठेंगे। अगर आप भी एक दुधारू भैंस खरीदना चाहते हैं, तो आपको बता दें कि दुधारू भैंस की पहचान आप कुछ खास तरीकों से कर सकते हैं। आज हम अपने इस लेख में दुधारू भैंस की इन्ही पहचान के ऊपर से पर्दा उठाने वाले हैं। अगर आप दुधारू भैंस के बारे में जानना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को अंत तक पढ़ सकते हैं। 

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कैसे करें दुधारू पशु की पहचान 

किसान और पशुपालक अपनी बचत का एक मोटा हिस्सा पशु खरीदने में लगा देते हैं। ऐसे में अगर वह दुधारू भैंस की नस्ल के बारे में नहीं जानते तो इससे उनके द्वारा लगाई जाने वाली रकम पूरी तरह बर्बाद हो सकती है। 

इस तरह करें दुधारू भैंस की नस्ल की पहचान 

  • दुधारू पशु के शरीर की बनावट पीछे की तरह से चौड़ी और आगे की तरफ से पतली होगी। इस पशु को सामने से देखने पर आपको यह तिकोनी दिखाई देगी। 
  • दुधारू पशु की चमड़ी चिकनी और अधिक चमकदार होती है। इनकी आंखें चमकीली होती हैं और इनकी आंखों पर बेहद कम ही बाल देखने को मिलते हैं। 
  • दुधारू भैंस की नस्ल में मुर्रा को सबसे अधिक बेहतर माना जाता है। इस भैंस की नस्ल न केवल अधिक दूध देती है। बल्कि इसके दूध में फैट और प्रोटीन भी अधिक पाया जाता है। 
  • अधिक दूध देने वाली भैंस के थन थोड़े टेड़े हो सकते हैं और इनके थनो पर सफेद रंग की झलक दिखाई देती है।
  • अगर आप एक अधिक दूध देने वाली भैंस की नस्ल खरीद रहे हैं तो ध्यान रहे कि उसकी दूसरी या तीसरी ब्यात हो। ऐसा इसलिए क्योंकि अच्छी नस्ल की भैंस अपने दूसरे और तीसरे ब्यात में सबसे अधिक दूध देती है। 
  • ज्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल के सभी थन एक समान होंगे और एक ही दूरी पर होंगे। 
  • एक अच्छी नस्ल का पशु लगभग दूसरी ब्यात से लेकर सातवीं ब्यात तक सबसे अधिक दूध देता है। 
  • दुधारू भैंस खरीदते समय अगर आपको ऐसी भैंस मिल रही हो, जिसने मादा बच्चे को जन्म दिया हो, तो यह आपके लिए अधिक फायदेमंद हो सकता है। दरअसल ऐसा होने पर आपको भविष्य के लिए दूसरा दुधारू पशु भी मिल जाता है। 
  • किसी भी पशु को खरीदते समय कम से कम तीन बार उसका दूध दुहते हुए जरूर देखें। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार पशु बेचने वाला व्यक्ति दूध की क्षमता अधिक बताकर भी पशु बेच देता है। 
  • अगर भैंस या गाय खरीद रहे हैं तो उनकी आयु का भी पता जरूर लगाएं। क्योंकि अगर पशु की आयु पूरी होने वाली होगी, तो दुधारू पशु खरीदने के बाद भी आपको नुकसान ही होगा। आपको बता दें कि एक भैंस का जीवनकाल 20 से 22 साल तक का होता है। 
  • भैंस की आयु का अंदाजा आप उनके दांतों और उनके सींग के जरिए लगा सकते हैं। अगर भैंस के आगे के सभी दांत सीधे हो और घीस चुके हों तो यानी उनकी आयु अधिक है। वहीं भैंस के सींग उम्र के साथ अधिक गोल हो जाते हैं। आप इन चीजों को देखकर भैंस की नस्ल की पहचान कर सकते हैं। 
  • भैंस की सेहत को देखकर भी उसकी उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर भैंस शारीरिक रूप से कमजोर दिखाई दे तो हो सकता है कि उसकी उम्र अधिक हो। इसके अलावा आप भैंस बेचने वाले से उसका पशु कार्ड भी मांग सकते हैं। 

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किसान और पशुपालक भाई दुधारू गाय या भैंस की पहचान इस तरह कर सकते हैं। इसके अलावा अगर आपके पास पशु की पहचान का कोई खास तरीका है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं। 

Animall  ब्लॉग की तरह ही आप यह जानकारी Animall App पर भी पढ़ सकते हैं। यही नहीं ऐप के जरिए पशु चिकित्सक से भी बात कर सकते हैं और गाय या भैंस खरीदने बेचने के लिए भी ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस ऐप को आप दिए गए लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं। 

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घरेलू तरीके से भैंस का दूध कैसे बढाये ?

कई लोग अपने गाय और भैंसों से अधिक दूध प्राप्त करने के लिए टीके आदि का सहारा लेतें हैं, यह पहले कारगर तो साबित होता है लेकिन कई बार इसका प्रभाव विपरीत भी पड़ जाता है.

किसान भाइयों आज हम इस लेख के माध्यम से आपको एक ऐसे रामबाण घरेलू उपाय के बारे में बताएंगे जो गाय और भैंस का दूध बढाने में कारगर साबित होता है. उपाय बहुत सरल है और आपको बहुत ही जल्द इसके नतीजे भी मिलने लगेंगे

 

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क्या अजोला से पशुओं में दूध बढ़ा सकते है ?

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अजोला में मौजूद पोषक तत्व पशुओं के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। इसमें लगभग 30 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा होती है साथ ही लाइसिन, अर्जिनीन और मेथियोनीन से भरपूर है। अजोला में लिग्निन की सूक्ष्म मात्रा से पशुओं में पाचन सरलता से होता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि यूरिया की जगह अजोला का प्रयोग किया जाए तो फिर उत्पादन भी अच्छा होता है। क्योंकि इसमें नाइट्रोजन की मात्रा 30 फीसदी होती है, इसके अतिरिक्त खनिज भी अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं।

दूध उत्पादन में उपयोगी अजोला-

दूध उत्पादन में अजोला काफी उपयोगी है। इससे दूध में वसा की मात्रा बढ़ती है। अजोला के चलते दूध का उत्पादन बीस फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। संकर नस्लीय गायों में अजोला की सहायता से खर्च भी कम होता है साथ ही दूध का उत्पादन भी 35 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। इसे राशन के साथ समान अनुपात में मिलाकर पशु को खिलाया जा सकता है। इस प्रकार महंगे राशन से खर्च कम किया जा सकता है।

शुद्ध प्रजाति का इस्तेमाल-

यदि अजोला की शुद्ध प्रजाति का इस्तेमाल किया जाए तो इससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसका अधिक उत्पादन लेने के लिए इसकी कटाई 1 सेमी. पर कर दें। भारत में अजोला की औसत लंबाई 2 से 3 सेमी. तक होती है।

महत्वपूर्ण तथ्य-

यदि अजोला की बात करें तो यह देश में चारा की उपलब्धता कम खर्च में बढ़ाई जा सकती है। इसे अधिक सरलता से बढ़ाया जा सकता है। इसे गाय, भैंस, बकरी आदि के लिए अच्छा चारा के रूप में दिया जा सकता है। इसे तालाब, नदी और गड्ढे में आसानी से उत्पादित किया जा सकता है। अजोला को रबी और खरीफ के मौसम में आसानी से उगा सकते हैं। यह रासायनिक खाद का एक विकल्प के तौर पर है। इसके उपयोग से पशुओं में बांझपन की समस्या में कमी लायी जा सकती है।

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कैसे उगाएं अजोला-

नेशनल रिसोर्स डेवलेपमेंट विधि के अनुसार इसे प्लास्टिक शीट के साथ 2 मी.X 2मी. X 0.2मी का क्षेत्र तैयार कर इसमें 15 किग्रा. तक उपजाऊ मिट्टी डालते हैं। फिर इसे 2 किग्रा. गोबर और 30 ग्राम सुपर फास्फेट डालते हैं। इसके बाद में पानी डालकर इसका स्तर 10 सेमी. तक पहुंचा दिया जाता है। अब अजोला की एक किग्रा. की मात्रा को डालते हैं। देखते ही देखते 10 से 15 दिन बाद अजोला की लगभग आधा किलो मात्रा मिलनी शुरु हो जाती है। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 20 ग्राम सुपर फास्फेट तथा एक किग्रा. की मात्रा हर पांच साल बाद डालनी चाहिए।

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संकर पशुओं से कितनी बार दूध निकालना चाहिए?

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अधिक दूध देने वाले संकर पशुओं से दिन में तीन बार दूध निकालना चाहिये और दूध निकालने के समय में बराबर का अंतर होना चाहिये। अगर पशु कम दूध देता है तो दो बार (सुबह और शाम को) दूध निकालना उचित है, लेकिन इसके बीच भी बराबर समय होना चाहिये। इस से दूध का उत्पादन बढ़ जाता है और निशचिंत समय पर पशु स्वयं दूध निकलवाने के लिए तैयार हो जाता है।

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