मुर्रा भैंस
हरियाणा में पाये जाने वाले इस दुधारू देसी भैंस के बारे में जानिए।
मूलतः हरियाणा में पायी जानी वाली मुर्रा नस्ल भैंस की सर्वश्रेष्ठ प्रजातियों में से एक है
मुर्रा। साल भर में 10 महीने तक आसानी से दूध देने के कारण डेयरी किसान इसे पसंद करते हैं । बल्कि हरियाणा में एक कहावत भी काफी प्रचलित है “ जिसके घर मुर्रा उसका ऊँचा तुर्रा “। इसी कहावत से इस भैंस के लोकप्रियता का पता चलता है। और पढ़ें
मुर्रा भैंस की पहचान
इस नस्ल की भैंस का रंग पूरा काला होता है। मुर्रा भैंस का प्रजनन क्षेत्र गुरुग्राम, हिसार,जींद और रोहतक जिले हैं। नर मुर्रा भैंसों का औसत वजन 567 किलो का होता है। वहीँ मादा मुर्रा भैंसों का औसत वजन 516 किलो होता है। इस नस्ल के भैंसों की दुग्ध काल उत्पादकता 1003 से 2057 किलोग्राम है। इनका ब्यात अंतराल 423 से 597 दिनों का है। इनके दूध का औसत फैट 7.3% है
मुर्रा भैंसों में A.I की पूरी प्रक्रिया
मुर्रा भैंसों में ये लक्षण दिखे तो A.I कराएं .
अगर आप अपने भैंस को खुले में अन्य भैंस के साथ रखते हैं तो हीट में आने का पता चल पाएगा। वो दूसरे पशुओं पर चढ़ने की कोशिश करेगा। जब भैंस एक दूसरे पर चढ़ने लगे तो उसके 24 घण्टे बाद कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए।
यदि भैंस दूध देने के समय में दूध देने से कतराती है तो समझे की आपकी मुर्रा भैंस साइलेंट हीट में आ गयी है। अगर आपकी मुर्रा भैंस सफ़ेद रंग का गाढ़ा तांता दे रही है तो ये हीट में आने के लक्षण हैं। जब मुर्रा में भैंस पारदर्शी (आर पार दिखने वाले)तातें दे रही हो तो इसका मतलब है कि वो हीट में आ चुकी है। बार बार पेशाब करना, नाक को उपर नीचे सूँघते रहना ये सभी आपके भैंस के हीट में आने के लक्षण हैं।
हीट में आने के दौरान मादा मुर्रा भैंस नर भैंस की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं।
गाय भैंस के हीट को तीन भागों में बाँटा गया है। ये हैं प्रारम्भिक अवस्था, मध्यव्स्था और अन्तिम अवस्था। भैंस सामान्य तौर पर हर 18 से 21 दिन के बाद हीट में आते हैं। भेंसों में ब्याने के लगभग डेढ़ माह के बाद यह चक्र दोबारा शुरू हो जाता है।
अगर आपकी मुर्रा भैंस ये लक्षण दिखाती हैं तो समझ लें कि वो हीट में हैं। इसे बाद आप नजदीकी पशु चिकित्सक से मिले और प्रमाणित कंपनी से A.I बिना पशु जानकार के A.I कराने पर गर्भ न ठहरने का खतरा बना रहता है। और पढ़ें
मुर्रा भैंस का दूध
दुधारू भैंसों की सूची में पहला स्थान मुर्रा भैंसों का आता है। अच्छा चारा और बढ़िया देखरेख करने पर मुर्रा प्रतिदिन 15 से 20 लीटर दूध निकाल देती है। इसके दूध में 7 प्रतिशत तक फैट देखने को मिलता है। इन्ही गुणों के कारण मुर्रा भैंस डिमांड में रहती हैं।
Animall से ख़रीदे मुर्रा भैंस .
Animall ऐप से आसानी से दुधारू मुर्रा भैंस खरीद सकते हैं । सबसे पहले अपने मोबाइल फ़ोन में गाय-भैंस वाला Animall ऐप डाउनलोड करें। इसके अपना फ़ोन नंबर डाल कर भैंस खरीदने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाये। और पढ़ें
इन तीन आसान तरीकों से ख़रीदे नयी मुर्रा भैंस।
- अपने गाँव या जिले का नाम या पिनकोड डालें।पिनकोड डालने के बाद, भैंस पर दबाएँ ।
- यहाँ पहले स्थान पर मुर्रा भैंस दिखाई देगा।इसी भैंस पर क्लिक करें।
- यहाँ आप नस्ल के साथ साथ अपने मन के अनुसार दूध क्षमता और ब्यात का का चुनाव भी कर सकते है।
ये लीजिए अपने आसपास के सारे दुधारू मुर्रा भैंस दिखने लगी हैं। इनमे से अपने पसंद का पशु चुनकर ख़रीदार से बात कर घर ले जायें नया पशुधन।
मुर्रा भैंस बेचनी ऐसे Animall ऐप पर अपना पशु बेचें।
इन सरल तरीकों को अपनाकर मुर्रा भैंस Animall ऐप पर बेचें। ऐसे Animall ऐप से तुरंत मुर्रा भैंस बेचें । ऊपर लिखे गये तरीके से Animall ऐप में खुद को रजिस्टर कर लें । इसके बाद पशु बेचें पर दबाएँ । इस बटन पर दबाते ही आपको आप अपने मुर्रा भैंस की दूध क्षमता, ब्यात और कीमत लिख सकते हैं। अपने मुर्रा भैंस की इन सभी जानकारियाँ डालने के बाद आपका पशु ऐप पर दर्ज हो जायेगा । आपकी मुर्रा ऐप पर दर्ज होने के बाद ख़रीदार आपको भैंस के लिए कॉल करेंगे। और पढ़ें
मुर्रा भैंस में होने वाली कुछ प्रमुख बीमारियाँ .
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सर्रा रोग
सर्रा बीमारी क्या है?
यह एक परजीवी से होने वाला रोग है। ट्रिपैनोसोमा ईवासाई नामक सूक्ष्म परजीवी से ये बीमारी फैलता है।
इस बीमारी के फैलने से भैंस की उत्पादन क्षमता में भारी कमी आती है। इस बीमारी से तुरंत भैंसों की मृत्यु हो जाती है जिससे पशुपालकों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। सबसे पहले साल 1885 में इस बीमारी को देखा गया था।
एक भैंस से दूसरे में सर्रा बीमारी कैसे फैलता है?
मान लीजिए अगर कोई भैंस सर्रा बीमारी से ग्रसित है अगर मक्खी उसका खून चूसकर स्वस्थ भैंस को काट लेगा तो उसे ये बीमारी फेल जाएगी। विज्ञान में सर्रा रोग के लिए जिम्मेदार मक्खी को टेबनेस मक्खी कहते हैं।
भारत में पशुओं को काटने वाले मक्खी को लोग डांस मक्खी के नाम से जानते हैं।
मुर्रा भैंस में सर्रा रोग के क्या लक्षण हैं ?
- रुक रुक कर बुखार आना।
- बार बार पेशाब करना।
- भैंस गोल गोल चक्कर काटने लगते हैं।
- भूख कम लगना।
- मुंह से लार गिरना।
- आंख और नाक से पानी गिरना।
मुर्रा भैंसों में सर्रा रोग के लक्षण को ऐसे पहचाने?
दुधारू मुर्रा भैंसों का का दूध कम हो जाता है । मुर्रा भैंस धीरे धीरे कमज़ोर होते चले जाते हैं। कई बार भैंस का पिछला भाग लकवाग्रस्त हो जाता है। कई पशुओं के आंख में सफेदी आने लगता है। पशुओं के निचले भाग में सूजन आने लगता है।
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मुर्रा भैस में होने वाले गला घोटूं रोग के बारे में जान लीजिये.
एच एस यानि गलाघोंटू रोग क्या है?
बैक्टीरिया को जरिए पशुओं के स्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला बीमारी को एच एस रोग कहा जाता है।
आमतौर गाय भैंस में ये बीमारी देखने को मिलती है। बरसात के मौसम में ये बीमारी अधिक देखी जाती है। सड़ा हुआ और दूषित पशु चारे खाने से इस बीमारी के कारण मुर्रा भैंस बीमार हो जाती हैं।
अगर ये लक्षण दिखे तो समझ जाएं मुर्रा भैंस को गलाघोंटू रोग है।
- गर्दन और मुंह में सूजन।
- तेज बुखार।
- मुंह से लार टपकना।
- पशु चारा खाना बंद कर देगा।
- सांस लेने में दिक्कत होगी।
- जीभ बाहर निकाल कर सांस लेगा।
- घर्र घर्र की आवाज करेगा।
अगर भैंस को गलाघोंटू रोग है तो ये न करें।
मुर्रा भैंस को बरसाती घास न खिलाएं। तालाब और खुले स्थान पर जमा पानी न पिलाएं। पशु के रहने के स्थान को साफ रखें। एच एस रोग से ग्रसित पशु को बाकियों से अलग रखें।
गला घोटूं रोग यानि एच एस रोग का कौन सा टीका मुर्रा भैंसों को कब लगाना चाहिये?
गला घोंटू से भैंसों को बचाने के लिए हर साल टीका लगवाया जाता है. गला घोंटू रोग के लिए रक्षा ट्राई वैक नामक टीके का उपयोग होता है . यह टीका तीन से पांच 5 एमएल चमड़ी के नीचे लगाया जाता है. छह महीने से अधिक उम्र के मवेशियों को पशु पालन विभाग मुफ़्त में ये टीका लगाती है. लेकिन अगर आप इसे निजी दवा दुकान से खरीद रहें है तो इसकी कीमत करीब तीन सौ रुपय के पास आएगी.
नए ख़रीदे गए मुर्रा भैंस के ऐसे देखभाल करें.
नए खरीदे गए मुर्रा भैंस को कम से कम 3 सफ्ताह के लिए बाकी पशुओं से अलग रखना चाहिए. खरीदे गए मुर्रा भैंस का दूध बाकी मवेशियों से अलग निकालें. इसी दौरान अपने मुर्रा भैंस में ब्रुसेला और टीबी जैसी बिमारियों की जांच करा,जरूरी टीके लगवाएं. नए खरीदे गये मुर्रा भैंस को कीड़े की दवाई भी दें. जहाँ पशुओं को रखा है वहां साफ सफाई करते रहें. इससे संक्रमण फैलने का खतरा नहीं रहता है. और पढ़ें
