Murrah Buffalo: Identification, Buying and Selling

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मुर्रा भैंस

हरियाणा में पाये जाने वाले इस  दुधारू देसी भैंस के बारे में जानिए। 

मूलतः हरियाणा में पायी जानी वाली मुर्रा नस्ल भैंस की सर्वश्रेष्ठ प्रजातियों में से एक है 

मुर्रा।  साल भर में 10 महीने तक आसानी से दूध देने के कारण  डेयरी किसान इसे पसंद करते हैं ।  बल्कि हरियाणा में एक कहावत भी काफी प्रचलित है “ जिसके घर मुर्रा उसका ऊँचा तुर्रा “।  इसी कहावत से इस भैंस के लोकप्रियता का पता चलता है। और पढ़ें

मुर्रा भैंस की पहचान 

इस नस्ल की भैंस का रंग पूरा काला होता हैमुर्रा भैंस का प्रजनन क्षेत्र गुरुग्राम, हिसार,जींद और रोहतक जिले हैंनर मुर्रा भैंसों का औसत  वजन 567 किलो का होता हैवहीँ मादा मुर्रा भैंसों का औसत वजन 516 किलो होता हैइस नस्ल के भैंसों की दुग्ध काल उत्पादकता 1003 से 2057 किलोग्राम है इनका ब्यात अंतराल 423 से 597 दिनों का है इनके दूध का औसत फैट 7.3% है

मुर्रा भैंसों में A.I की पूरी प्रक्रिया 

मुर्रा भैंसों में ये लक्षण दिखे तो A.I कराएं .

अगर आप अपने भैंस  को खुले में अन्य भैंस  के साथ रखते हैं तो हीट में आने का पता चल पाएगा। वो दूसरे पशुओं पर चढ़ने की कोशिश करेगा।  जब भैंस  एक दूसरे पर चढ़ने लगे तो उसके 24 घण्टे बाद  कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए।   

यदि भैंस दूध देने के समय में  दूध देने से कतराती है तो समझे की आपकी मुर्रा भैंस  साइलेंट हीट में आ गयी  है।  अगर आपकी मुर्रा भैंस सफ़ेद रंग का गाढ़ा तांता दे रही है तो ये हीट में आने के लक्षण हैं।  जब मुर्रा में  भैंस पारदर्शी (आर पार दिखने वाले)तातें दे रही हो तो इसका मतलब है कि वो हीट में आ चुकी है। बार बार पेशाब करना, नाक को उपर नीचे सूँघते रहना ये सभी आपके भैंस के हीट में आने के लक्षण हैं।

हीट में आने के दौरान मादा मुर्रा  भैंस नर भैंस की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं।

गाय भैंस के हीट को तीन भागों में बाँटा गया है ये हैं प्रारम्भिक अवस्था, मध्यव्स्था और  अन्तिम अवस्था भैंस  सामान्य तौर पर हर 18 से 21 दिन के बाद हीट में आते हैं भेंसों में ब्याने के लगभग डेढ़ माह के बाद यह चक्र दोबारा शुरू हो जाता है

अगर आपकी मुर्रा भैंस ये लक्षण दिखाती हैं तो समझ लें कि वो हीट में हैं। इसे बाद आप नजदीकी पशु चिकित्सक से मिले और प्रमाणित कंपनी से A.I  बिना पशु जानकार के A.I  कराने पर गर्भ न ठहरने का खतरा बना रहता है। और पढ़ें 

मुर्रा भैंस का दूध 

दुधारू भैंसों की सूची में पहला स्थान मुर्रा भैंसों का आता है।  अच्छा  चारा और बढ़िया देखरेख करने पर मुर्रा प्रतिदिन 15 से 20 लीटर दूध  निकाल देती है। इसके दूध में 7 प्रतिशत तक फैट देखने को मिलता है।  इन्ही गुणों के कारण मुर्रा भैंस डिमांड में रहती हैं। 

Animall से ख़रीदे मुर्रा भैंस .

Animall ऐप से आसानी से  दुधारू मुर्रा भैंस खरीद सकते हैं ।  सबसे पहले अपने मोबाइल फ़ोन में गाय-भैंस वाला Animall ऐप डाउनलोड करें। इसके अपना फ़ोन नंबर डाल कर भैंस खरीदने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाये। और पढ़ें

इन तीन आसान तरीकों से ख़रीदे नयी मुर्रा भैंस।

  1. अपने गाँव या जिले का नाम या पिनकोड डालें।पिनकोड डालने के बाद, भैंस पर दबाएँ ।pin
  2. यहाँ पहले स्थान पर मुर्रा भैंस दिखाई देगा।इसी भैंस पर क्लिक करें।bhes
  3. यहाँ आप नस्ल के साथ साथ अपने मन के अनुसार दूध क्षमता और ब्यात का का चुनाव भी कर सकते है।Step3

ये लीजिए अपने आसपास के सारे दुधारू मुर्रा भैंस दिखने लगी हैं। इनमे से अपने पसंद का पशु चुनकर ख़रीदार से बात कर घर ले जायें नया पशुधन।

मुर्रा भैंस बेचनी ऐसे Animall ऐप पर अपना पशु बेचें।

इन सरल तरीकों को अपनाकर मुर्रा भैंस Animall ऐप पर बेचें ऐसे Animall ऐप से तुरंत  मुर्रा भैंस बेचें । ऊपर लिखे गये तरीके से Animall ऐप में खुद को रजिस्टर कर लें ।  इसके बाद पशु बेचें पर दबाएँ । इस बटन पर दबाते ही आपको आप अपने मुर्रा भैंस की दूध क्षमता, ब्यात और कीमत लिख सकते हैं।   अपने मुर्रा भैंस की इन सभी जानकारियाँ डालने के बाद आपका पशु ऐप पर दर्ज हो जायेगा ।   आपकी मुर्रा ऐप पर दर्ज होने के बाद ख़रीदार आपको भैंस के लिए कॉल करेंगे। और पढ़ें

मुर्रा भैंस में होने वाली कुछ प्रमुख बीमारियाँ .

  • सर्रा रोग 

सर्रा बीमारी क्या है?

यह एक परजीवी से होने वाला रोग है। ट्रिपैनोसोमा  ईवासाई नामक सूक्ष्म परजीवी से ये बीमारी फैलता है।

इस बीमारी के फैलने से भैंस की उत्पादन क्षमता में भारी कमी आती है। इस बीमारी से तुरंत भैंसों  की मृत्यु हो जाती है जिससे पशुपालकों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। सबसे पहले साल 1885 में इस बीमारी को देखा गया था।

एक भैंस से दूसरे में सर्रा बीमारी कैसे फैलता है? 

मान लीजिए अगर कोई भैंस  सर्रा बीमारी से ग्रसित है अगर मक्खी उसका खून चूसकर स्वस्थ भैंस  को काट लेगा तो उसे ये बीमारी फेल जाएगी। विज्ञान में सर्रा रोग के लिए जिम्मेदार मक्खी को टेबनेस मक्खी  कहते हैं।

भारत में पशुओं को काटने वाले मक्खी को लोग डांस मक्खी के नाम से जानते हैं।

मुर्रा भैंस में सर्रा रोग के क्या लक्षण हैं ? 

  • रुक रुक कर बुखार आना।
  • बार बार पेशाब करना।
  • भैंस गोल गोल चक्कर काटने लगते हैं।
  • भूख कम लगना।
  • मुंह से लार गिरना।
  • आंख और नाक से पानी गिरना।

मुर्रा भैंसों  में सर्रा रोग के लक्षण को ऐसे पहचाने?

दुधारू मुर्रा भैंसों का  का दूध कम हो जाता है । मुर्रा भैंस धीरे धीरे कमज़ोर होते चले जाते हैं। कई बार भैंस का पिछला भाग लकवाग्रस्त हो जाता है। कई पशुओं के आंख में सफेदी आने लगता है। पशुओं के निचले भाग में सूजन आने लगता है।

  • मुर्रा भैस में होने वाले  गला घोटूं रोग के बारे में जान लीजिये.

एच एस यानि गलाघोंटू रोग क्या है?

बैक्टीरिया को जरिए पशुओं के स्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला बीमारी को एच एस रोग कहा जाता है।

आमतौर गाय भैंस में ये बीमारी देखने को मिलती है। बरसात के मौसम में ये बीमारी अधिक देखी जाती है। सड़ा हुआ और दूषित पशु चारे खाने से इस बीमारी के कारण मुर्रा भैंस बीमार हो जाती हैं।

अगर ये लक्षण दिखे तो समझ जाएं मुर्रा भैंस  को गलाघोंटू रोग है।

  • गर्दन और मुंह में सूजन। 
  • तेज बुखार।
  • मुंह से लार टपकना।
  • पशु चारा खाना बंद कर देगा।
  • सांस लेने में दिक्कत होगी।
  • जीभ बाहर निकाल कर सांस लेगा।
  • घर्र घर्र की आवाज करेगा।

अगर भैंस  को  गलाघोंटू रोग है तो ये न करें।

मुर्रा भैंस को बरसाती घास न खिलाएं। तालाब और खुले स्थान पर जमा पानी न पिलाएं। पशु के रहने के स्थान को साफ रखें। एच एस रोग से ग्रसित पशु को बाकियों से अलग रखें।

गला घोटूं रोग  यानि एच एस  रोग का कौन सा टीका मुर्रा भैंसों  को कब लगाना चाहिये?

गला  घोंटू  से भैंसों  को बचाने के लिए हर साल टीका लगवाया जाता है. गला घोंटू  रोग के लिए  रक्षा ट्राई वैक नामक टीके का उपयोग होता है . यह टीका तीन से पांच 5 एमएल चमड़ी के नीचे लगाया जाता है. छह महीने से अधिक उम्र के मवेशियों को पशु पालन विभाग मुफ़्त में ये टीका लगाती है.  लेकिन अगर आप इसे निजी दवा दुकान से खरीद रहें है तो इसकी कीमत करीब तीन सौ रुपय के पास आएगी.

नए ख़रीदे गए मुर्रा भैंस के ऐसे देखभाल करें.

नए खरीदे गए मुर्रा भैंस  को कम से कम 3 सफ्ताह के लिए बाकी पशुओं से अलग रखना चाहिए.  खरीदे गए मुर्रा भैंस का दूध  बाकी मवेशियों से अलग निकालें. इसी दौरान अपने मुर्रा भैंस  में ब्रुसेला और टीबी जैसी बिमारियों की जांच करा,जरूरी टीके लगवाएं. नए खरीदे गये मुर्रा भैंस  को कीड़े की दवाई भी दें. जहाँ पशुओं को रखा है वहां साफ सफाई करते रहें.  इससे संक्रमण फैलने का खतरा नहीं रहता है. और पढ़ें

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 देसी गायों की जानकारी

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देसी नस्ल के गायों की खूबी

देसी गाय प्राकृतिक गुणों से भरपूर है। आदि काल से देसी गायें भारत की संस्कृति का हिस्सा रही हैं। हर घर में इन्हे इंसानों जैसा मान सम्मान मिलता रहा है। पशु गणना के अनुसार पूरे भारत में 14 करोड़ से अधिक गायें हैं। इसमें गिर, राठी थारपारकर, साहीवाल, कांकरेज, हरियाणा आदि देसी नस्लें शामिल हैं।

आपको ये सारी नस्ल की गायें खरीदनी है तो Animall ऐप अपने फोन में डालें। यहां आपके आसपास के सारे पशु मिल जाएंगे। देसी नस्ल की गायें भारतीय मौसम के अनुकूल आराम से सकती है। आसान शब्दों में कम लागत में अधिक मुनाफा डेयरी किसान इन गायों के जरिए कमा सकते हैं। पशु आहार और रख रखाव के लिए किफायती दाम पर इन नस्लों का पालन किया जा सकता है। ये देसी नस्ल की गायें प्रति ब्यात 1500 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं। शुरूआत में एक दो गाय के साथ भी डेयरी किसान दूध बेच कर घर की आमदनी बढ़ा सकते हैं। धीरे धीरे गायों की संख्या बढ़ाकर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं।

संकर नस्ल की गायों की खूबी

संकर नस्ल की गायों को दूध उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से भारत लाया गया। यूरोप और अमेरिका से ये भारत आएं। जर्सी और एच. एफ जैसे नस्ल इसमें शामिल हैं। संकर नस्ल की गायें प्रतिदिन 8 से 25 लीटर के बीच दूध देती हैं। संकर नस्ल में एच. एफ गाय प्रति ब्यात 7200 से 9200 किलोग्राम के बीच दूध देती है। वहीं जर्सी गाय प्रति ब्यात 7000 से 9000 किलोग्राम दूध देती है।

अगर डेयरी बिजनेस को बड़ा कर अच्छा मुनाफा कमाना चाहते है तो Animall ऐप से संकर नस्ल की गाय ख़रीद सकते हैं। यहां आसपास के सारे दूधारू गाय बिकने के लिए उपलब्ध है। बस एक कॉल से घर बैठे बैठे गाय खरीद सकते हैं।

देसी नस्ल की प्रमुख गायें.

  • साहीवाल

साहीवाल नस्ल के गायों का  मूल जन्म स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में है।  साहीवाल नस्ल की गायें प्रति ब्यात 1400 से 3175 लीटर दूध देने की क्षमता रखती हैं। जबकि प्रतिदिन  दूध देने की क्षमता 10 से 16 लीटर प्रतिदिन हैएक साहीवाल  गाय सालभर में  10 महीने तक दूध सकती है | इन्ही गुणों के कारण  डेयरी बिजनेस के लिए साहीवाल भारत के किसानों की पसंदीदा गायों में से एक है।  दिखने में  माथा चौड़ा  होता है,सींग काफी छोटे होते हैंवहीँ चमड़ी की बात करें तो इनकी चमड़ी काफी मोटी और सख्त होती हैजबकि टाँगे छोटी और बाकी शेष शरीर लंबा होता है। ।  

ढीली चमड़ी के कारण कुछ लोग इस नस्ल की गाय को लोला के नाम से जानते हैं। देसी नस्ल के साहीवाल  गायों का वजन 300 से 500 किलोग्राम के बीच पाया जाता है यह गाय आम तौर पर लाल या गहरे भूरे रंग में पाई जाती है इनके शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी मौजूद होते हैं 

अपने आसपास की दुधारू  साहीवाल  नस्ल की गायें अब Animall ऐप पर भी उपलब्ध हैं। अपने फोन में ऐप इंस्टॉल कर घर बैठे बैठे इन गायों की खरीद बिक्री कर सकते है। 

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  • राठी 

देसी नस्ल की गायों में हमारे किसानों के बीच लोकप्रिय है राठी गाय। कम चारा खा कर भी अधिक दूध देती है राठी गाय। इस नस्ल के गायों की बनावट मध्यम आकार और अच्छी किस्म की होती है। राठी नस्ल के पशुओं का ललाट धंसा हुआ होता हैवहीँ सींगे छोटी होती और त्वचा ढीली होती हैराठी नस्ल के पशुओं की पूंछ काली और छोटी होती है जो टखने के नीचे तक पहुंच जाती है। 

एक देसी नस्ल की  राठी गाय का  औसत वजन 280 से 300 किलो तक होता है। वही अगर बात दूध की करें तो एक  देसी नस्ल की गाय राठी आपको प्रतिदिन 6 से 8 लीटर तक दूध निकाल सकती है। मतलब आपके बिजनेस और घर दोनों स्थिति में राठी गाय दूध की कमी महसूस नही होने देगी। अगर आप दूध फैट यानि वसा जानना चाहते हैं तो देसी नस्ल  राठी गायों के दूध में फैट  की मात्रा 5% से भी अधिक मिलेगा।  Animall ऐप पर आपको बहुत सी देसी नस्ल की  दुधारू राठी गायें मिल जायेंगी। 

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  • गिर 

इस नस्ल के गायों का जन्म स्थान गुजरात है। गिर भारत की सबसे पुरानी देसी नस्लों में से एक है।  गिर गायों का माथा चौड़ा होता है और शरीर गठीला होता है।  गिर गाय एक ब्यात में 1600 से  3100  लीटर दूध देती है।  नर गिर गायों का औसत वजन 540 किलोग्राम के आसपास रहता है तो वहीं मादा गिर गायों का औसत वजन 310 किलोग्राम रहता है। 

गिर गाय का रंग

80% से अधिक गिर गायें लाल रंग की होती हैं। लाल रंग के गिर गायों पर उजला धब्बा देखने को मिलता है, वहीं कुछ इलाकों में उजले रंग के गिर गायों पर लाल रंग का धब्बा भी देखने को मिलता है।

देश में सबसे अधिक गिर गायों की संख्या गुजरात में है। दूसरे स्थान पर राजस्थान और तीसरे स्थान पर महाराष्ट्र हैं। इनमें से किसी भी राज्यों में दुधारू देसी नस्ल की गिर गाय खरीदने के लिए Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

गिर गाय की पहचान  

गिर गायों को उनकी सींगें अलग पहचान दिलाती हैं। इनकी सीगें घुमावदार होती हैं। ध्यान से देखने पर सींगें अर्ध चांद जैसी आकृति जैसी दिखती हैं। गिर नस्ल के 

गिर गाय दूध

एक साल में औसतन देसी नस्ल के गिर गाय 3000 लीटर दूध देने की क्षमता रखती हैं। वहीं साल के 300 दिन आप इनका दूध निकाल सकते है। इस देसी नस्ल के गाय को  डेयरी बिजनेस के नजरिए से काफ़ी अच्छा माना जाता है।

gir cow

  •  थारपारकर गाय

डेयरी किसानों के बीच ये देसी नस्ल की गाय काफ़ी पसंद की जाती है। थारपारकर नस्ल की गाय मुख्यतः राजस्थान में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम हुई राजस्थान स्थित थार रेगिस्तान के नाम पर रखा गया। राजस्थान के अलावा नस्ल की गायें गुजरात के कच्छ इलाके में पाई जाती है।

थारपारकर नस्ल की गायें गर्म स्थानों में भी आसानी से रहने की लिए जानी जाती हैं। राजस्थान में गर्म स्थानों में किसान इस देसी नस्ल को आसानी से रखते हैं।

थारपारकर गाय की पहचान

इस नस्ल के गायों का औसत दर्जे का लंबा चेहरा, चौड़ा मस्तक तथा उभरा हुआ ललाट होता है। सींग मध्यम दर्जे के होते हैं। पशुओं का थन विकसित होता है। दुग्ध शिराएं थनों पर स्पष्ट दिखाई देती है। वहीं काले झंवर वाली पूंछ ऐड़ी तक पहुंचती है। 

थारपारकर गायों का दूध

प्रति ब्यात थारपारकर गायें 1400 लीटर दूध देने की क्षमता रखती हैं। थारपारकर गायों के दूध में 5 प्रतिशत वसा पाया जाता है। आपके आसपास की दुधारू थारपारकर गायें Animall ऐप पर उपलब्ध हैं। अपने फ़ोन में ऐप डालकर आप दुधारू थारपारकर गाय खरीद सकते हैं।

tharparkar cow

  •  रेड सिन्धी 

इस देसी नस्ल के गाय का मूल जन्म स्थान पाकिस्तान का सिंध प्रांत है। रेड सिंधी गायों को मलीर या लाल सिंधी भी कहते हैं। अधिक दूध देने की वजह से डेयरी किसान इसे अपने घर या फार्म पर रखते हैं।

रेड सिंधी गाय की पहचान 

लाल सिंधी गाय देखने में त्रिकोणीय आकार के होते हैं। सिर औसत आकार का होता है तथा विकसित होता है। इस नस्ल की गायों का रंग गहरा लाल होता है।

वहीं देसी नस्ल की रेड सिंधी गायों के थनों की बात करें तो यह काफी विकसित होते हैं। देसी नस्ल की एक रेड सिंधी गाय प्रति ब्यात 1500 से 5400 लीटर दूध देने की क्षमता रखता है।

  • हरियाणा गाय  

इस देसी नस्ल की गाय हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसानों के बीच लोकप्रिय है। देसी नस्ल की हरियाणा गाय सफेद रंग की होती है। छोटे कान और चमकीली आंखें , चपटा माथा, लंबी और पतली टांगे इसकी पहचान हैं। देसी नस्ल की गाय प्रति ब्यात 1500 लीटर दूध देती हैं।  वहीं  एक देसी नस्ल की  हरियाणा गाय का औसत भार 350 से 400 किलोग्राम के बीच होता है। प्रतिदिन एक गाय 10 से 15 लीटर दूध देती करती है। डेयरी बिजनेस के नजरिए से देखें तो देसी नस्ल की हरियाणा नस्ल की देसी गायें अच्छा मुनाफा देती हैं। अपने आसपास की दुधारू हरियाणा नस्ल की गायें अब Animall ऐप पर भी उपलब्ध हैं। अपने फोन में ऐप इंस्टॉल कर घर बैठे बैठे देसी गायों की खरीद बिक्री कर सकते है। 

Red sindhi Cow

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दुधारू पशुओं के 10 प्रमुख रोग और उनके उपचार.

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ब्रुसेला बीमारी 

ब्रूसेला बीमारी क्या है ?

बैक्टेरिया से होने वाला यह बीमारी गाय भैंस में गर्भपात का कारण बनता हैइस बीमारी के कारण पशुओं में गर्भावस्था के आखरी तिमाही में गर्भपात होता हैये बीमारी पशुओं से इंसानों में भी फैलता हैइस बीमारी के कारण हर साल 300 करोड़ से अधिक का नुक्सान हमारे देश के पशुपालक उठाते हैं

इंसानों में होने वाले ब्रूसेला बीमारी के क्या लक्षण हैं?

  • बुखार आना
  • वजन का लगातार कम होना
  • कमर दर्द की शिकायत
  • रात में पसीना आना
  • डेयरी फार्म पर समय बिताने वाले पशु पालक और पशु चिकित्सकों इस बीमारी का खतरा बना रहता है

ब्रुसेला  बीमारी के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। ब्रुसेला बीमारी के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें|

 सर्रा रोग 

सर्रा बीमारी क्या है?

यह एक परजीवी से होने वाला रोग है।ट्रिपैनोसोमा  ईवासाई नामक सूक्ष्म परजीवी से ये बीमारी फैलता है।इस बीमारी के फैलने से पशुओं की उत्पादन क्षमता में भारी कमी आती है।तुरंत ही पशुओं की मृत्यु हो जाती है जिससे पशुपालकों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है।सबसे पहले साल 1885 में इस बीमारी को देखा गया था।

एक पशु से दूसरे में सर्रा बीमारी कैसे फैलता है?  

मान लीजिए अगर कोई पशु सर्रा बीमारी से ग्रसित है अगर मक्खी उसका खून चूसकर स्वस्थ पशु को काट लेगा तो उसे ये बीमारी फेल जाएगी। पशु विज्ञान में सर्रा रोग के लिए जिम्मेदार मक्खी को टेबनेस मक्खी  कहते हैं। भारत में पशुओं को काटने वाले मक्खी को लोग डांस मक्खी के नाम से जानते हैं।

गाय भैंस में सर्रा रोग के क्या लक्षण हैं ?

  • रुक रुक कर बुखार आना।
  • बार बार पेशाब करना।
  • गाय भैंस गोल गोल चक्कर काटने लगते हैं।
  • भूख कम लगना।
  • मुंह से लार गिरना।
  • आंख और नाक से पानी गिरना।

पशुओं में सर्रा रोग के लक्षण को ऐसे पहचाने? 

  • दुधारू पशुओं का दूध कम हो जाना।
  • गाय भैंस धीरे धीरे कमज़ोर होते चले जाते हैं।
  • कई बार गाय भैंस का पिछला भाग लकवाग्रस्त हो जाता है।
  • कई पशुओं के आंख में सफेदी आने लगता है।
  • पशुओं के निचले भाग में सूजन आने लगता है।
  • सर्रा बीमारी के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।
  • सर्रा  बीमारी के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

 थिलेरिया बीमारी 

थिलेरिया बीमारी क्या है ?

परजीवियों से गाय भैंस में फैलने वाला एक जानलेवा बीमारी है। इस बीमारी से ग्रसित पशुओं के मरने की संभावना 90 प्रतिशत से भी अधिक रहती है। ये बीमारी गर्मी और वर्षा ऋतु में चीचड़े का कारण फैलता है। थिलेरिया पशुओं के प्रजनन क्षमता पर भी असर डालता है।

गाय भैंस में थिलेरिया बीमारी के क्या लक्षण हैं?

  • शरीर के तापमान में बढ़ोतरी।
  • सांस और हृदय गति का बढ़ना ।
  • नाक और आंख से पानी आना।
  • भूख कम लगना, जिससे पशु कमज़ोर हो जाते हैं।

पशुओं में थिलेरिया बीमारी के ये लक्षण जानें।

  • गाय-भैंस के शरीर में रक्त की कमी। 
  • पशुओं को दस्त की शिकायत रहती है।
  • गाय भैंस का दूध उत्पादन कम हो जाता है।
  • पशुओं में पीलिया का भी लक्षण देखा जाता है।

 गाय भैंस को थिलेरिया रोग से बचाने के लिए ये तैयारी कर लें |

  • समय समय पर गाय भैंस के शरीर पर किलनी मारने की दवा छिड़के।
  • पशु के रहने के स्थान पर किलनी मारने की दवा का छिड़काव करें।
  • तीन महीने होने पर रक्षावेक- टी नाम का टीका लगवाएं। 

थिलेरिया बीमारी से ग्रसित पशुओं के इलाज के लिए कौन सा टीका लगाया जाता है?

थिलेरिया बीमारी के लिए Butalex नामक सुई दी जाती है। बाजार में इस दवाई की कीमत 1500 रुपए से शुरु होती है। पशुओं को इसके दो टीके लगते हैं।

थिलेरिया बीमारी के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। थिलेरिया  बीमारी के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

 चिचड़ी और किलनी बीमारी

चिचड़ी और किलनी बीमारी क्या है ?

परजीवियों से फैलने वाला रोग  गाय भैंस को प्रभावित करते हैं। ये परजीवी पशु के शरीर का खून चूसते हैं। इस बीमारी से पशुओं के दूध में कमी देखने को मिलता है। इसी रोग के कारण हीं  पशुओं के बाल भी झड़ते हैं। 

गाय भैंस में चिचड़ी और किलनी रोग क्या नुक्सान पहुंचाता है?

  • पशुओं की चमड़ी खराब होने लगती है|
  • गाय भैंस में मानसिक तनाव भी रहता है।
  • इस बीमारी से खासकर भैंस के बच्चों में पैदा होने के पहले मृत्य का खतरा बना रहता है।

इन छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो पशुओं को चिचड़ी नहीं होगा!!

  • पशुओं के बैठने स्थान को साफ रखें।
  • प्रतिदिन पानी से पशुओं को धोएं।
  • गर्मी के मौसम पशुओं को हवादार जगह पर रखें। क्योंकि गर्मी के मौसम में ये बीमारी अधिक देखने को मिलता है।

चिचड़ी और किलनी रोग  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

चिचड़ी और किलनी  बीमारी के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

घोंघा रोग 

पशुओं में घोंघा यानी लीवर फ्लूक रोग क्या है?

यह एक परजीवी के कारण पशुओं में फैलने वाला बीमारी है। फैसियोला (परजीवी के एक प्रकार) के कारण ये फैलता है। यही परजीवी पशुओं के लीवर को नुक्सान पहुंचाता है। और पढ़ें

गाय- भैंस में घोंघा रोग के क्या लक्षण हैं?

  • कम भूख लगना।
  • पाचन क्रिया बिगड़ने से कब्ज की शिकायत रहती है
  • पतला दस्त भी होता है।
  • 30 से 40 प्रतिशत दूध उत्पादन में कमी।

पशुओं में होने वाले घोंघा रोग के क्या लक्षण हैं?

  • पशुओं में कमज़ोरी की शिकायत।
  • पशु के रोएं भीगे भीगे रहते हैं।
  • जबड़े के नीचले भाग में सूजन।
  • एक बछिया बयाने के बाद दूसरे ब्यात में आने में समय लगता है।

इन बातों का ध्यान रखेंगे तो पशु में घोंघा रोग नही होगा।

  • पशुओं के खाने की जगह पानी जमा न होने दें।
  • खुले तालाब का पानी पशुओं को नही पिलाना चाहिए। क्योंकि जहां बहुत दिनों तक पानी जमा रहता है वहां घोंघा पनपने लगते हैं।
  • समय समय पर घोंघा मारने वाले रसायनों का उपयोग करना चाहिए।
  • इस रोग से बचाने के लिए हर वर्ष पशुओं को कृमिनाशक दवाई देना चाहिए।

घोंघा रोग  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

घोंघा रोग  के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

मिल्क फीवर 

दूध ज्वर यानी मिल्क फीवर क्या है ?

गाय-भैंसों में कैल्शियम की कमी के कारण होने वाले रोग को दूध ज्वर यानी मिल्क फीवर कहा जाता है। यह बीमारी बयाने के दो दिन से लेकर पंद्रह दिनों तक होता है। दुधारू नस्ल की गाय भैंस में यह बीमारी अधिक देखने को मिलता है।

गाय भैंस में कैल्शियम की कमी कैसे होती है ?

  • गाय भैंस के बच्चा देने के बाद शरीर से कोलेस्ट्रम बाहर निकल आता हैं।
  • कोलेस्ट्रम कैल्शियम का खजाना है , इसमें रक्त से 15 गुना तक अधिक कैल्शियम होता है।
  • ऊपर से यदि बयाने के बाद गाय भैंस को कम आहार दिया जाए तो कैल्शियम में और कमी आ जाती है।

दुधारू पशुओं में कैल्शियम की कमी को कैसे दूर करें?

अगर पशु के शरीर में मैग्नीशियम और फॉस्फोरस का संतुलन सही नही होने से  कैल्शियम की कमी देखी जाती है। महीने में 20 से 25 दिन तक पशु आहार में कैल्शियम मिलाकर देने से कैल्शियम की कमी नही होगी। बाजार से खरीदे गए फॉस्फोरस युक्त कैल्शियम पशुओं के लिए सही माना जाता है। और पढ़ें

पशु चिकित्सक की सलाह पर आप सुई भी लगा सकते हैं।

मिल्क फीवर के क्या लक्षण हैं?

  • सिर हिलाना।
  • जीभ बाहर निकालना।
  • पशु के शरीर का तापमान का बढ़ जाना।
  • दांत किटकिटाना।
  • शरीर के कुछ भाग में लकवा के लक्षण।
  • पशु के पैरों में अकड़न।

पशुओं में जब मिल्क फीवर यानी दूध ज्वर बढ़ जाए तो ये लक्षण दिखेंगे!!

  • पशु गर्दन मोड़कर बैठेगा।
  • गर्दन के पिछले भाग को जमीन पर मोड़कर बैठेगा।
  • पशु का शरीर ठंडा हो जाएगा।
  • आंखें सुख जाएंगी।
  • पशु के आंखों की पुतलियां बड़ी नजर आएंगी।
  • पशु को कब्ज की शिकायत रहेगी।

पशुओं में मिल्क फीवर की आखिरी अवस्था के लक्षण।

ये मिल्क फीवर का आखिरी अवस्था के लक्षण हैं।

  • इसमें अवस्था में पशु बेहोशी की हालत में लेटा रहता है।
  • पशु का शरीर का तापमान काफी कम हो जाता है।
  • पशु की हृदय ध्वनि सुनाई नही देगी।
  • कभी कभी पशु के मुंह से खाया हुआ चारा निकलने लगेगा।
  • कभी कभी पशु के मुंह से गोबर भी निकलने लगता है।

ये तरीके अपनाकर अपने मिल्क फीवर से अपने गाय भैंस का करें बचाव!!

  • दुधारु गाय भैंस को ब्याने से एक महीने पहले अच्छा मिनरल मिक्सचर देना शुरू करें।
  • ब्याने से दो महीने पहले दूध निकालना छोड़ दें।
  • गाय भैंस के ब्याने के तीन दिन तक खीस न निकालें।
  • बहुत अधिक कैल्शियम भी न दें, मिनरल मिक्सचर में  सौ ग्राम कैल्शियम मिलाकर प्रतिदिन दे सकते हैं।
  • कुछ भी गलत दिखे तो तुरंत किसी पशु चिकित्सक से मिले।
  • मिल्क फीवर बीमारी  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।
  • घोंघा रोग  के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

गल घोटूं रोग 

एच एस यानि गलघोंटू रोग क्या है?

बैक्टीरिया को जरिए पशुओं के स्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला बीमारी को एच एस रोग कहा जाता है। आमतौर गाय भैंस में ये बीमारी देखने को मिलती है। बरसात के मौसम में ये बीमारी अधिक देखी जाती है। सड़ा हुआ और दूषित पशु चारे खाने से इस बीमारी के फैलने की संभावना रहती है। 

अगर ये लक्षण दिखे तो समझ जाएं पशु को गलाघोंटू रोग है।

  • गर्दन और मुंह में सूजन।
  • तेज बुखार।
  • मुंह से लार टपकना।
  • पशु चारा खाना बंद कर देगा।
  • सांस लेने में दिक्कत होगी।
  • जीभ बाहर निकाल कर सांस लेगा।
  • घर्र घर्र की आवाज करेगा।

अगर पशु को  गलाघोंटू रोग है तो ये न करें।

  • गाय भैंस को बरसाती घास न खिलाएं।
  • तालाब और खुले स्थान पर जमा पानी न पिलाएं।
  • पशु के रहने के स्थान को साफ रखें।
  • एच एस रोग से ग्रसित पशु को बाकियों से अलग रखें।

गला घोटूं रोग  यानि एच एस  रोग का कौन सा टीका पशुओं को कब कब लगाना चाहिये?

गला  घोंटू  से पशुओं को बचाने के लिए हर साल टीका लगवाया जाता है गला घोंटू  रोग के लिए  रक्षा ट्राई वैक नामक टीके का उपयोग होता हैयह टीका तीन से पांच 5 एमएल चमड़ी के नीचे लगाया जाता हैछह महीने से अधिक उम्र के मवेशियों को पशु पालन विभाग मुफ़्त में ये टीका लगाती हैलेकिन अगर आप इसे निजी दवा दुकान से खरीद रहें है तो इसकी कीमत करीब तीन सौ रुपय के पास आएगीगला  घोंटू  रोग के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। गला  घोंटू  रोग के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

गिल्टी रोग

एंथ्रेक्स यानी गिल्टी रोग क्या है ?

ये संक्रमण से पशुओं में फैलने वाली एक बीमारी है। मिट्टी या दूषित चारा खाने से ये बीमारी दुधारु पशुओं में फैलती है। चूंकि यह बैक्टीरिया से फैलने वाला रोग है इसलिए इसका बैक्टीरिया कई सालों तक जीवित रह सकता है। और पढ़ें

एंथ्रेक्स बीमारी के बारे में जाने ये बातें।

एंथ्रेक्स से सिर्फ जानवरों को ही खतरा नही है। पशु से ये बीमारी इंसानों में भी हो सकता है। जिस स्थान पर ये बीमारी फैलता है वहां दोबारा फैलने का खतरा बना रहता है। एंथ्रेक्स बीमारी को जहरी बुखार,पिलबढ़वा, बिसहरिया और गिल्टी रोग आदि नाम से जाना जाता है।

एंथ्रेक्स बीमारी के लक्षण क्या हैं?

  • पशु सुस्त हो जाता है।
  • जुगाली करना बंद कर देता है।
  • तेज बुखार की शिकायत रहती है।
  • पशु का पेट फूल जाता है।
  • नाक और मल मूत्र द्वार से खून निकलने लगता है।

एंथ्रेक्स बीमारी से मरने वाले पशुओं के साथ क्या करना चाहिए?

पशु की मृत्यु के बाद छह सात फुट गहरे जमीन में चुना डाल  कर पशु को गाड़ दें। इस बीमारी से मरने वाले पशुओं के खाल की खरीद बिक्री नही करनी चाहिए। एंथ्रेक्स बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं के साथ नही रखें। और पढ़ें

एंथ्रेक्स बीमारी को इतना खतरनाक क्यों माना जाता है?

इसके जीवाणु 200 सालों तक जीवित रह सकते हैं। ये बीमारी हवा और पानी के जरिए भी फैल सकता है। एक ही समय में ये बीमारी पशु और इंसान दोनों को प्रभावित कर सकता है।

एंथ्रेक्स बीमारी का कौन सा टीका बाजार में उपलब्ध है?

इस रोग से बचाव के लिए रक्षा एंथ्रेक्स नामक टीका बाजार में उपलब्ध हैचार महीने या उससे अधिक उम्र के पशुओं को हीं ये टीका लगवाना चाहिएप्रभावित इलाकों में सालाना ये टीका लगवाना चाहिएगले के हिस्से में 1ml का डोज देना चाहिएगिल्टी  रोग के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। गिल्टी  रोग के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

लंगड़ा बुखार

लंगड़ा बुखार क्या है?

 यह जीवाणु से पशुओं में फ़ैलने वाला रोग हैगाय भैंस में यह बीमारी आमतौर पर बरसात में देखी जाती हैयह बीमारी 10 महीने से 2 साल उम्र के पशुओं में अधिकतर देखी जाती हैऔर पढ़ें

लंगड़ा बुखार बीमारी के क्या लक्षण हैं?

  • तेज बुखार रहता है
  • कन्धों और गर्दन  पर सुजन रहती है
  • गाय भैंस लंगडाकर चलते हैं
  • सुजन वाले भाग में घाव भी देखने को मिलता है
  • पशु खाना पीना बंद कर देता है

लंगड़ा  बुखार से पशुओं को कैसे बचाएँ?

इस बीमारी से ग्रसित पशु को बाकी से अलग रखेंपशुओं के छह माह होने पर पहला टीका लगायें पशुओं को बरसाती घास न खिलाएंखुले तालाब और पोखरों का पानी न पिलायें

लंगड़ा बुखार बीमारी के लिए कौन सा टीका पशुओं को लगाया जाता है?

  • इस बीमारी के लिए रक्षा एच एस+ बी क्यू नामक टीका लगाया जाता है
  • वर्ष में एक बार पशु के चमड़ी के नीचे यह टीका लगाया जाता है
  • छह महीने से ऊपर के ही पशुओं को यह टीका लगाना चाहिये

लंगड़ा बुखार  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

लंगड़ा बुखार  रोग के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

थनैला रोग

थनैला रोग क्या है?

एक संक्रामक रोग है जो दुधारू पशुओं में देखने को देखने को मिलता है| यह रोग एक पशु से दुसरे पशु में फैलता हैरोगाणु पशु के थन में प्रवेश करते हैजिससे संक्रमण फैलना शुरु होता हैसंतुलित आहार न देने से भी ये रोग हो सकता है

किन गलतियों के कारण थनैला रोग फैलता है?

  • दूध निकालते वक्त हाथों का गंदा होना
  • पशु के थनों में चोट लगना
  • अनियमित रूप से दूध दुहना
  • पशुओं का गंदे जगह पर रहना

पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए ये करें.

  • साफ़ बर्तन में ही दूध निकाले
  • दूध दुहने से पहले अच्छे तरीके से हाथ साफ करें
  • दूध दुहने के बाद अच्छे से पशु के थन को साफ करें

 किट से होती है थनैला रोग की जांच!!

कई तरह के किट से इस बीमारी की जांच की जाती हैकिट में चारों थनों से दूध की बूंदें गिराई जांच की जाती हैएक किट से कई पशुओं की जांच की जा सकती है बाजार में टीटासूल और डी लेवल मास्टाइटिस जैसे किट उपलब्ध है

अपने पशुओं में थनैला रोग कैसे पहचाने?

  • थनों में सुजन दिखेगा
  • दूध में खारापन आने लगता है
  • दूध देने से कतराती है
  • दूध का रंग पीला होने लगता है
  • दूध में खून के छिचड़े आने लगता है
  • थन में गांठ आना शुरू हो जाता है

थनैला बीमारी  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

थनैला  रोग के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें

 

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सबसे ज्यादा दूध देने वाली गाय के 10 नस्ल

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क्या आप जानते हैं कि दूध उत्पादन के मामले में भारत विश्व में सबसे बड़ा देश हैं। साल 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 4.2% हिस्सा सिर्फ दूध उत्पादन पर निर्भर करता है। सकल घरेलू उत्पाद को किसी भी देश की अर्थव्यवस्था मापने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साल 2020 में डेरी उद्योग 11,357 अरब रुपयों का था। भारत में हर साल 20 करोड़ टन दूध का उत्पादन किया जाता है। लेकिन फिर भी हमारे किसान और दूध उत्पादन से जुड़े लोगों की हालत कुछ खास अच्छी नहीं है। इसी डेरी उद्योग में और किसानों की जिंदगी में सुधार करने की कोशिश कर रहा है Animall. 

भारत में डेरी फार्मिंग को बेहतर बनाया जाने और इससे जुड़े किसानों की जीविका को सुधारा जाए। इस उद्देश्य के साथ Animall पर आप गाय/ भैंस की खरीद तो कर ही सकते हैं, साथ ही आप अपने पशु की बेहतर सेहत, कैसे अपने पशु को ज्यादा दूधारू बनाएं की जानकारी भी हासिल कर सकेंगे। इतना ही नहीं भारत में सबसे ज्यादा दूध देने वाली गाय के बारे में भी आप जान सकेंगे।

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भारत में ऑनलाइन गाय कैसे खरीदें?

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इन्टरनेट के माध्यम से अब भारत के किसान  ऑनलाइन गाय खरीद रहे हैं। इसका तरीका बहुत ही आसान है। एक मिनट के अन्दर Animall ऐप के माध्यम से अपने लिए हजारों गायों में से एक दुधारू गाय चुन सकते हैं। आइये विस्तार से भारत में ऑनलाइन गाय खरीदने का तरीका जानते हैं।

सबसे पहले हम अपने इन्टरनेट पर जाकर Animall ऐप ढूंढेंगे। यहाँ  हमे कुछ ऐसा दिखेगा।

यहाँ सबसे ऊपर लिखे हुए गाय-भैंस वाला ऐप पर दबायेंगे।  गाय-भैंस वाला ऐप पर दबाने के बाद हम सीधे यहाँ पहुंचेंगे।

App Image

यहाँ पर आने के के बाद Animall ऐप अपने मोबाइल में डाल सकते हैं।  अपने मोबाइल में ऐप डालने के लिए आपको इंस्टाल बटन दबाना होगा।  ऐसा करते हीं गाय-भैंस वाला Animall ऐप आपके मोबाइल में डाउनलोड हो जायेगा।  अब आप घर बैठे बैठे अपने आसपास के हजारों दुधारू पशु ढूंढ सकते हैं। यहाँ आपको गिर, साहीवाल, एच.एफ , दोगली, अमेरिकन, राठी , थारपारकर, कांकरेज, लाल सिन्धी, नागौरी ,और देसी सहित मनपसंद गाय मिलेगी।

 

 

 ऐसे  Animall ऐप से मात्र  10 मिनट में  गाय खरीदें ।

 

90 लाख से अधिक किसानों की पसंद Animall ऐप में मात्र 10 मिनट में आप आप ऑनलाइन गाय खरीद सकते हैं। आइये बहुत ही सरल तरीके से गाय खरीदने का तरीका जानते है ।

  • मोबाइल नंबर डालकर ऑनलाइन गाय खरीदें.ऑनलाइन गाय खरीदने के लिए Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें। ऐप इनस्टॉल करने  के बाद सबसे पहले अपना मोबाइल नंबर डालकर अपने नाम का अकाउंट बना लें। अकाउंट तैयार होने के बाद आपके आसपास की सारी दुधारू पशुओं कुछ इस तरह से   दिखने लगेंगी।

Login App

पशु फ़िल्टर लगाकर तुरंत खरीद पाएँगे

अपने लिए गाय खोजने के लिए  ऐप पर मौजूद पशु फ़िल्टर का उपयोग करें।

Animall ऐप पर उपलब्ध पशु फ़िल्टर के साथ आप चुन पाएंगे गाय की नस्ल,गाय की दूध क्षमता जैसी जानकारी । पशु फ़िल्टर लगाकर  कई सारे दुधारू नस्लों  में से अपने पसंद की नस्ल चुनकर खरीद सकते हैं।  साधारण शब्दों में कहें तो कई हजार पशुओं वाला पशु मेला अब आपके फ़ोन में हैं।  बटन दबाएँ और गाय घर ले जाएँ। आपको प्रतिदिन कितना लीटर दूध देने वाली गाय लेनी हैं इसके लिए भी आप Animall ऐप का पशु फ़िल्टर लगा सकते हैं।  फ़िल्टर लगाने के बाद आपके मोबाइल में दिखेंगी कई सारी दुधारू गायें।  अब बस क्लिक करें और बेचने वाले से बात कर अपने घर लें लायें टॉप दुधारू गाय।

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 ऐसे लगायें पशु फ़िल्टर:

  • घर से 30 किलोमीटर से लेकर 200 किलोमीटर तक की सारी गायें Animall ऐप पर खरीद सकते है

भारत में ऑनलाइन गाय खरीदने का सबसे आसान तरीका Animall ऐप ।  यहाँ आप अपने घर से 30 किलोमीटर से 200 किलोमीटर की गायें पसंद कर खरीद सकते हैं। पहले , दूसरे और तीसरे ब्यात की दुधारू नस्ल की सारी गायें यहाँ बिकने के लिए उपलब्ध हैं। किलोमीटर का फ़िल्टर आपको हमेशा टॉप पशु खरीदने की सुविधा देता है।

  • नस्ल का चुनाव कर ख़रीदे टॉप पशु।

आमतौर पर जब आप पशु मेला या पशु मंडी जाते हैं तो आप तीन -चार से अधिक नस्लों की गाय नही देख पाते हैं। लेकिन यहाँ जब आप गाय खरीदेंगे तो एक साथ कई सारे नस्लों का चुनाव कर सकते हैं।  गिर, साहीवाल, एच.एफ , दोगली, अमेरिकन, राठी , थारपारकर, कांकरेज, लाल सिन्धी, नागौरी ,और देसी सहित ढेर सारे नस्लों का चुनाव यहाँ कर सकते हैं ।

Breed

  •   जितना दूध देने वाली गाय चाहिए उतनी मिलेगी यहाँ।

Animall ऐप पशु फ़िल्टर लगाकर हर रेंज में दूध देने वाली गाय खरीदें। आप यहाँ जीरो से 10 लीटर , 10 से 15 लीटर, 15 से 20 लीटर या   बीस लीटर से अभी अधिक दूध देने वाली टॉप नस्ल की गाय खोज सकते हैं।

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ये पशु फ़िल्टर लगाकर Animall ऐप से  अपने पसंद की गाय घर ले जायें।

  • पसंद आने पर कर बेचने वालों से बात कर खरीदें गाय

अबतक आपने दूध, ब्यात नस्ल देख लिया है। अब बात पक्की करने के लिए ऐप पशु बेचने वालों के दिए गए नंबर पर कॉल कर गाय बेचने वालों से बात करें।  Animall ऐप पर हर पशु के नीचे बेचने वालों के नाम और नंबर दिए रहते हैं।

Call

Animall ऐप ये सब करने के लिए आपको 10 मिनट से कम समय भी लगेगा । अब दूर दूर तक गाय ढूंढने के बजाय घर बैठे बैठे ही ऑनलाइन गाय खरीदें।

 

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