ग्याभिन अवस्था में पशु और बच्चे दोनों को अधिक खुराक कि आवश्यकता होती है।
अतः ब्याने से तीन माह पहले पशु का दूध निकालना बंद कर देना चाहिये, ताकि आगे ब्यांत में भी भरपूर दूध मिल सके।
(क) नाभि का सड़ना
(ख) सफेद दस्त।
(ग) न्यूमोनिया
(घ) पेट के कीड़े
(ड़) पैराटाईफाइड़
तेज़ बुखार, लाल आँखें , गले में गर्म/दर्द वाली सूजन गले से छाती तक होना, नाक से लाल/।झागदार स्त्राव का होना।
इस बीमारी की रोकथाम हेतु, पशुओं को निरोधक टीका अवश्य लगाना चाहिये। ये टीका नवजात पशुओं में तीन सप्ताह की उम्र में पहला टीका, तीन मास की उम्र में दूसरा टीका और उस के बाद हर छः महीने में टीका लगाते रहना चाहिये।
ये रोग गायों-भैसों में ब्याने के 2-4 सप्ताह के अंदर ज्यादा होता है ओर गर्भवस्था के आखरी दोनों में भी हो सकता है। भैसों में ये रोग अधिक होता है। ओर इसे आम भाषा में लहू मूतना भी कहते है। ये रोग शरीर में फास्फोरस तत्व की कमी से होता है। जिस क्षेत्र कि मिट्टी में इस तत्व कि कमी होती है वहाँ चारे में भी ये तत्व कम पाया जाता है। अतः पशु के शरीर में भी ये कमी आ जाती है। फस्फोरस की कमी उन पशुओं में अधिक होती है जिनको केवल सूखी घास, सूखा चारा या पुराल खिला कर पाला जाता है।