यदि हरा चारा पर्यापत मात्रा में उपलब्ध न हो तो क्या दाने की मात्रा बढाई जा सकती है?

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हाँ, यदि हरा चारा पर्यापत मात्रा में उपलब्ध न हो तो दाने की मात्रा बढाई जा सकती है|

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नवजात बछडियों की देखभाल कैसे करनी चाहिए ?

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पशु पालकों कोदय्री फार्मिंग से पूरा लाभ उठाने के लिए नवजात बछडियों की उचित देखभाल व पालन-पोषण करके उनकी मृत्यु डर घटना आवश्यक है| नवजात बछडियों को स्वत रखने तथा उनकी मृत्यु डर कम करने के लिए हमें निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए:

1.गाय अथवा भैंस के ब्याने के तुरन्त बाद बच्चे के नाक व मुंह से श्लैष्मा व झिल्ली को साफ कर देना चाहिए जिससे बच्चे के शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से हो सके|
2.बच्चे की नाभि को ऊपर से 1/2 इंच छोडकर किसी साफ कैंची से काट देना चाहिए तथा उस पर टिंचर आयोडीन लगानी चाहिए|
3.जन्म के 2 घंटे के अन्दर बच्चे को माँ का पहला दूध (खीस) अवश्य पिलाना चाहिए| खीस एक प्रकार का गढा दूध होता है जिसमें साधारण दूध की अपेक्षा विटामिन्स, खनिज तथा प्रोटीन्स की मात्रा अधिक होती है| इसमें रोग निरोधक पदार्थ जिन्हें एन्टीवाडीज कहते हैं भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं|एन्तिबडीज नवजात बच्चे को रोग ग्रस्त होने से बचाती है|खीस में दस्तावर गुण भी होते हैं जिससे नवजात बच्चे की आंतों में जन्म से पहले का जमा मल (म्युकोनियम) बाहर निकल जाता है तथा उसका पेट साफ हो जाता है| खीस को बच्चे के पैदा होने के 4-5 दिन तक नियमित अंतराल पर अपने शरीर के बजन के दसवें भाग के बराबर पिलाना चाहिए| अधिक मात्र में खीस पिलाने से बच्चे को दस्त लग सकते हैं|
4.यदि किसी कारणवश (जैसे माँ की अकस्मात् मृत्यु अथवा माँ का अचानक बीमार पड़ जाना आदि) खीस उपलब्ध न हो तो किसी और पशु की खीस को प्रयोग किया जा सकता है| और यदि खिन और भी यह उपलब्ध न हो तो नवजात बच्चे को निम्नलिखित मिश्रण दिन में 3-4 बार दिया जा सकता है| 300 मि.ली. पानी को उबाल कर ठंडा करके उसमें एक अंडा फेंट लें| इसमें 600 मि.ली.साधारण दूध व आधा चमच अंडी का तेल मिलाएं| फिर इस मिश्रण में एक चम्मच फिश लिवर ओयल तथा 80मि.ग्रा.औरियोमायसीन पाउडर मिलाएं| इस मिश्रण को देने से बच्चे को कुछ लाभ हो सकता है लेकिन फिर भी यह प्राकृतिक खीस की तुलना नहीं कर सकता क्योंकि प्राकृतिक खीस में पाई जाने वाली एंटीबाड़ीज नवजात बच्चे को रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है| खीस पीने के दो घंटे के अन्दर बच्चा म्युकोनियम (पहला मल) निकाल देता है लेकिन ऐसा न होने पर बच्चे को एक चम्मच सोडियम बाईकार्बोनेट को एक लीटर गुनगुने पानी में घोल कर एनीमा दिया जा सकता है|
5.कई बार नवजात बच्चे में जन्म से ही मल द्वार नहीं होता इसे एंट्रेसिया एनाई कहते हैं| यह एक जन्म जात बिमारी है तथा इसके कारण बच्चा मल विसर्जन नहीं कर सकता और वह बाद में मृत्यु का शिकार हो जाता हैं| इस बीमारी को एक छोटी सी शल्य क्रिया द्वारा ठीक किया जा सकता है| मल द्वार के स्थान पर एक +के आकार का चीर दिया जाता है तथा शल्य क्रिया द्वारा मल द्वार म्ब्नाक्र उसको मलाशय (रेक्टम) से जोड़ दिया जात है जिससे बच्चा मल विसर्जन करने लगता है| यह कार्य पशुपालक को स्वयं न करके नजदीकी पशु चिकित्सालय में करना चाहिए क्योंकि कई बार इसमें जटिलतायें पैदा हो जाती है|
6.कभी-कभी बच्छियों में जन्म से ही चार थनों के अलावा अतिरिक्त संख्या में थन पाए जाते है| अतिरिक्त थनों को जन्म के कुछ दिन बाद जीवाणु रहित की हुई कैंची से काट कर निकाल देना चाहिए| इस क्रिया में सामान्यत: खून नहीं निकलता| अतिरिक्त थनों को न काटने से बच्छी के गाय बनने पर उससे दूध निकालते समय कठिनाई होती है|
7.यदि पशु पालक बच्चे को माँ से अलग रखकर पालने की पद्यति को अपनाना चाहता है तो उसे बच्चे को शुरू से ही बर्तन में दूध पीना सिखाना चाहिए तथा उसे मन से जन्म से ही अलग कर देना चाहिए|इस पद्यति में बहुत सफाई तथा सावधानियों की आवश्यकता होती है जिनके बिना बच्चों में अनेक बिमारियों के होने की सम्भावना बढ़ जाती है|8.नवजात बच्चों को बड़े पशुओं से अलग एक बड़े में रखना चाहिए ताकि उन्हें चोट लगने का खतरा न रहे| इसके अतिरिक्त उनका सर्दी व गर्मीं से भी पूरा बचाव रखना आवश्यक है|

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कौन से संक्रामक रोग पशुओं में गर्भपात का कारण बनते है?

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पशुओं में गर्भपात के लिये बहुत से जीवाणु एवं विषाणु उत्तरदायी होते हैं। गर्भपात गर्भवस्था के विभिन्न चरणों में संभव है। प्रमुख जीवाणु एवं विषाणु जो गर्भपात का कारक है: ब्रूसेला,लेप्टोस्पाइरा, कैलमाइडिया एवम् IBR , PPR विषाणु इत्यादि।

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ब्यात के बाद पशु को कब गाभिन करवाना चाहिए?

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किसान और पशुपालकों की आय का एक बड़ा हिस्सा पशु से प्राप्त दूध से ही होता है। यही कारण भी है जिसकी वजह से पशुपालक गाय भैंस को जल्दी गाभिन कराने के तरीके खोजते रहते हैं। बिना यह समझें कि पशु को गाभिन कराने का एक सही समय होता है। वहीं अगर पशु पहले से ही ब्यात में गाभिन हो चुका है, तो अगला समय और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। 

आज हम अपने इस लेख में पशुपालक भाइयों को इसी से जुड़ी कुछ जानकारिया देने वाले हैं। हम जानते हैं कि पशुओं के जरिए प्राप्त दूध, दही, धी आदि से ही पशुपालक आय अर्जित करते हैं। लेकिन फिर भी पशु की उत्पादकता और जीवनकाल को बढ़ाने के लिए पशुपालकों को उनके गाभिन करवाने का सही समय पता होना चाहिए।

जल्दी – जल्दी गर्भधारण कराने के नुकसान

पशुपालन से जुड़े लोग अक्सर आय को बढ़ाने के लिए पशु को बार – बार या जल्दी – जल्दी गाभिन कराने लगते हैं। जिसकी वजह से पशु का गर्भपात तो होता ही है। बल्कि कई बार पशु पूरी तरह बांझपन का भी शिकार हो जाता है। ऐसे में पशुपालकों को इस मामलें में किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। बल्कि पशुओं को गाभिन कराने से पहले उनकी शारीरिक स्थिति की जांच करा लेनी चाहिए। अगर पशु का शरीर स्वस्थ है और वह गर्भधारण करने के लिए तैयार है तो ही पशु को गाभिन कराना चाहिए।  

पशु को गाभिन कराने का सही समय 

किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ब्यात के तुरंत बाद पशु को गाभिन कराना न केवल बेकार है। बल्कि बहुत नुसानदायक भी है। इसकी वजह से पशु का गर्भपात हो सकता है। इसलिए पशुपालन से जुड़े लोग ब्यात के बाद कम से कम 2 महीने तक पशु को गाभिन बिल्कुल न कराएं। ब्यात के बाद पशु की एक या दो हीट को छोड़ देना चाहिए। इसके बाद आने वाली तीसरी हीट में आप पशु को गाभिन करा सकते हैं। गाभिन कराने का सस्ता और सटीक तरीका कृत्रिम गर्भाधान ही है। 

गाभिन कराने से पहले सावधानियां 

किसान या पशुपालक भाई अक्सर ब्यात के बाद पशु को गाभिन कराने का उचित समय तो तय कर लेते हैं। लेकिन पशु की शारीरिक स्थिति पर बिल्कुल भी गौर नहीं करते। पशुपालकों को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि गर्भावस्था के दौरान पशु की देखभाल में की गई लापरवाही। अगले गर्भकाल पर असर डाल सकती है। इसलिए किसी भी स्थिति में गर्भावस्था के अंदर पशु को सही आहार और पेय पदार्थ देने चाहिए। 

हम उम्मीद करतें हैं कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी से आप संतुष्ट होंगे। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो अपने दोस्तों या पशुपालक साथियों के साथ जरूर शेयर करें। वहीं इसी तरह की जानकारी को पढ़ने के लिए पशुपालक भाई हमारी Animall App भी डाउनलोड कर सकते हैं। ऐप डाउनलोड करने से पशु को बेचना और खरीदना भी आसान हो जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐप के जरिए पशु खरीदे और बेचे जाते हैं। इसके अलावा ऐप के माध्यम से तुरंत चिकित्सीय सहायता ली जा सकती है। हमारी एनिमॉल ऐप को डाउनलोड करने के लिए इस लिंक का चुनाव करें। 

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भारत में दूध उत्पादन की क्या स्थिति है?

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भारत में लगभग 7.4 करोड़ टन दूध उत्पादन क्षमता है जो कि विश्व में सर्वाधिक है| परन्तु प्रति व्यक्ति दूध उपलब्ध एवं प्रति गाय दूध उत्पादन में हम विकसित देशों से बहुत पीछे है| इसके प्रमुख कारण निम्न है:-
(क) कम दूध देने वाली नस्लें|
(ख) चारे व दाने की कमी|
(ग) अपर्याप्त देख रेख व पशुओं में रोगों की प्रसंग|

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