जानिए क्या है गौशाला की सफाई करने की विधि

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ऐसा कहा जाता है कि सबसे ज्यादा कीटाणु और बीमारियां गंदगी में ही पनपती हैं। यह बात इंसानों पर ही नहीं, बल्कि पशुओं पर भी लागू होती है। अगर आप अपने पशुओं के शेड या गौशाला की सफाई नहीं करवाते या करते, तो इसकी वजह से आपका पशु कई तरह के रोगों की चपेट में आ सकता है। गंदगी के चलते पशुओं को कई खतरनाक रोग लग जाते हैं, जिसकी वजह से न केवल पशु की दूध उत्पादन क्षमता कमजोर हो जाती है। बल्कि कई बार तो पशुओं की मौत तक हो जाती है।

इसलिए पशुपालक और किसान भाइयों को यह पता होना चाहिए कि गौशाला या पशु के शेड की सफाई किस तरह की जानी चाहिए। अगर आप पशुपालक हैं और जानना चाहते हैं कि शेड की सफाई किस तरह की जाए, तो आप हमारे इस लेख को अंत तक पढ़ सकते हैं।

गौशाला की सफाई की विधि जानिए 

ग्रामीण क्षेत्रों और शहरों में चलाई जा रही बड़ी डेयरी में अक्सर गंदगी देखने को मिलती हैं। डेयरी के मालिक गाय भैंस का दूध बेचकर मोटी कमाई तो कर लेते हैं। लेकिन गौशाला की साफ सफाई का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते। जिसकी वजह से पशु जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए अब हम आपको बताएंगे कि किस तरह गौशाला की सफाई करनी चाहिए। इसके अलावा पशुओं से जुड़ी कुछ सावधानियों का जिक्र भी करेंगे।

देसी और विदेशी पशु की गौशाला

एक पशुपालक होने के नाते यह आपको पता होना चाहिए, कि देसी गाय या भैंस को विदेशी गाय और भैंस के साथ बिल्कुल नहीं रखना चाहिए। दरअसल विदेशी गाय या भैंस में चिचड़ी और किलनी लगने की संभावना अधिक होती है। वहीं देसी गाय या भैंस में चिचड़ी और किलनी इतनी आसानी से नहीं लगती।

लेकिन अगर देसी और विदेशी पशुओं को साथ में बांध दिया जाए, तो इससे इन दोनों को ही चिचड़ी और किलनी लग सकती हैं। इसलिए किसी भी स्थिति में देसी और विदेशी नस्ल के पशु को एक साथ न रखें। अगर आप ऐसा करते हैं तो इससे पशु कई खतरनाक परजीवियों से बचा रह सकता है।

गौशाला की सफाई का तरीका 

गौशाला की सफाई का काम तब अधिक आसान हो जाता है। जब उसका निर्माण सही तरीके से किया गया हो। आइए जानते हैं शेड की सफाई किस तरह की जा सकती है। 

  1. गाय के गोबर को हमेशा जल्दी से जल्दी हटा देना चाहिए। अगर पशु का गोबर अधिक देर तक बाड़े में रहता है, तो ऐसे में उसमें कीड़े लगने की संभावना रहती है। इसके अलावा गोबर पशु के शरीर और थन पर लग सकता है। जिसकी वजह से थनैला और अन्य रोग भी पैदा हो सकते हैं। 
  2. गौशाला में स्वस्थ और रोगी पशुओं को अलग – अलग स्थान पर रखना चाहिए। इसके साथ ही रोगी पशु का झूठा पानी स्वस्थ पशु को नहीं देना चाहिए। 
  3. शेड के अंदर सुबह और शाम के समय झाड़ू जरूर लगवाएं। ऐसा करने पर अगर बाड़े में मौजूद कीड़े वहां से साफ हो जाएंगे। 
  4. गौशाला में दूध निकालने का एक अलग स्थान बनाकर रखें और कोशिश करें कि वहां की सफाई ज्यादा अच्छे से हो।
  5. गौशाला की सफाई में सप्ताह में दो से तीन बार फिनाइल आदि का उपयोग करें। 
  6. गौशाला की सफाई के साथ – साथ पशुओं की भी साफ सफाई करते रहें। उन्हें नहलाने की व्यवस्था करें।  

शुपालक भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शेड की सफाई करके ही पशुओं को स्वस्थ रखा जा सकता है। इसलिए शेड की और पशुओं की साफ – सफाई समय – समय पर करवाते रहें।

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जानिए क्या है भैंस के पेशाब से खून आने का कारण और इसका इलाज

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गाय का दूध अधिक ज्यादा अच्छा है या फिर भैंस का, इस बात पर अक्सर बहस होती रहती है। लेकिन आज भी अधिकतर लोगों को भैंस का दूध ही पसंद आता है। यह भी एक कारण है कि भैंस के दूध की मांग काफी अधिक है। भैंस के दूध के सेवन का लाभ इंसान तो ले रहे हैं। लेकिन कई बार भैंस से अधिक दूध प्राप्त करने के लिए या उनकी देखभाल में कुछ गलतियां हो जाती हैं। जिसकी वजह से भैंस को कुछ रोग हो जाते हैं। 

आज हम भैंस को होने वाली ऐसी ही एक समस्या के बारे में बात करेंगे। दरअसल हम बात कर रहे हैं भैंस के पेशाब से खून आने की। पशु के पेशाब से इस तरह खून आना केवल एक बीमारी नहीं है। बल्कि यह कई बीमारियों या रोगों का संकेत हो सकता है। आज हम अपने इस लेख में पशु के पेशाब से खून आने की इसी समस्या को समझेंगे और इसके उपचार के बारे में जानेंगे। अगर आपकी भैंस या गाय को भी इस तरह की समस्या है तो आप लेख में बताए गए उपचार को अपनाकर अपनी इस समस्या से राहत पा सकते हैं। 

भैंस के पेशाब से खून आना क्या है 

भैंस के पेशाब से खून आने की समस्या को मेडिकल भाषा में हेमाट्यूरिया  के नाम से जाना जाता है। इस समस्या के दौरान पशु के पेशाब से खून आता है, जो अपने आप किसी खतरनाक बीमारी का लक्षण हो सकता है। 

भैंस के पेशाब में खून आने के कारण 

अगर आप एक पशुपालक हैं और आपको आपके पशु के पेशाब में खून नजर आता है तो यह एक गंभीर स्थिति भी हो सकती है। आपको बता दें कि पेशाब से खून कई रोग या स्थिति के कारण आ सकता है जो कुछ इस प्रकार हैं। 

  • पेशाब में खून आने की वजह किडनी का संक्रमण हो सकता है। 
  • अगर पशु के मूत्राशय में किसी तरह की चोट लग जाए तो भी पशु के पेशाब से खून आ सकता है। 
  • भैंस के शरीर पर लगी चिचड़ी, जूं  भी पेशाब से आने वाले खून का कारण हो सकती है। 
  • भैंस के शरीर पर बैबोसिया बेविस नाम का परजीवी पाया जाता है, जो भैंस के अंदरूनी अंगों में संक्रमण पैदा कर देता है। जिसकी वजह से भैंस के पेशाब में खून आने लगता है। 
  • पशु को खराब आहार और पानी पिलाने की वजह से भी यह रोग हो सकता है। 
  • अगर भैंस गर्भवती है तो अंत के महीनों के दौरान पशु के पेशाब में खून आ सकता है। 
  • भैंस की ब्यांत के एक या दो दिन के बाद भी पेशाब में खून आ सकता है। 

भैंस के पेशाब में खून आने का इलाज 

आपको बता दें कि आमतौर पर भैंस के पेशाब से खून केवल एक या दो बार ही आता है। अगर यह एक या दो बार ही हुआ है तो भैंस को उपचार की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन अगर पेशाब से लगातार और कई दिनों तक खून आ रहा है, तो ऐसे में इसका इलाज कराना जरूरी हो जाता है। इलाज कब करना है और क्या करना है यह बहुत हद तक पशु की स्थिति और पेशाब में खून आने की वजह पर निर्भर करता है। लेकिन राहत की बात यह है कि भैंस के पेशाब में खून आने की समस्या को दवाओं के जरिए ठीक किया जा सकता है। 

भैंस के पेशाब में खून आने से बचाव का तरीका 

भैंस के पेशाब से खून कई कारणों की वजह से आ सकता है। ऐसे में पशु को इस स्थिति कैसे बचाना है यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन पशु को सही आहार देकर और देख-रेख के जरिए इस समस्या को पैदा होने से कुछ हद तक रोका जा सकता है। 

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जानिए क्या है लंगड़ा बुखार होने की वजह, लक्षण और उपचार

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बारिश के मौसम का लुत्फ हम इंसान भले ही लेते हो। लेकिन यह मौसम पशुओं के लिए इतना अच्छा नहीं होता। ऐसा इसलिए भी क्योंकि बारिश के दौरान मिट्टी में नमी आ जाती है। जिसकी वजह से बहुत से परजीवी या जीवाणु मिट्टी में पैदा होने लगते हैं। यह जीवाणु पशुओं को बहुत से रोगों की चपेट में ले लेते हैं। आज हम बारिश के दौरान होने वाले ऐसे ही रोग के बारे में जानकारी साझा करेंगे। बारिश के दौरान ब्लैक क्वार्टर या लंगड़ा बुखार होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। यह रोग पशु के शरीर में कई गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है। अपने इस लेख में हम जानेंगे आखिर लंगड़ा बुखार कैसे फैलता है, इसके कारण क्या है या फिर लंगड़ा बुखार के लक्षण क्या है। अगर आप एक पशुपालक हैं तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि लंगड़ा बुखार क्या है और इसका उपचार क्या है। 

लंगड़ा बुखार या ब्लैक क्वार्टर कैसे फैलता है 

लंगड़ा बुखार बारिश के दिनों में मिट्टी के जरिए पैदा होता है। इस रोग के पीछे जिस जीवाणु का हाथ होता है, उसका नाम क्लोस्ट्रीडियम चौवई है। आपको बता दें कि यह जीवाणु ऐसे बीजाणुओं को पैदा करता है, जो सालों तक मिट्टी में जीवित रह सकते हैं। यह गीली मिट्टी से किसी घाव के जरिए फैलता है। इसके अलावा अगर किसी पशु की मौत लंगड़े बुखार की वजह से हुई हो और दूसरे पशु के उसके संपर्क में आ जाएं तो वह भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। आमतौर पर यह रोग 6 – 24 महीने की उम्र के पशुओं को ही अपनी चपेट में लेता है। 

लंगड़ा बुखार के लक्षण 

अगर पशु लंगड़े बुखार की चपेट में आ गया है, तो इसके कुछ लक्षण आपको देखने को मिल सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं। 

  1. पशु को जब लंगड़ा बुखार हो जाता है तो उसके शरीर का तापमान 107 फैरनहाइट तक पहुंच जाता है। यानी पशु को इस दौरान बहुत तेज बुखार हो जाता है
  2. लंगड़े बुखार के दौरान पशु खाना पीना पूरी तरह छोड़ देता है
  3. लंगड़े बुखार की वजह से पशु के अगले या पिछले पैरों में सूजन आ जाती है। जिसकी वजह से वह लंगड़ा कर चलने लगता है
  4. लंगड़े बुखार के दौरान पशु के पैरों में बहुत ज्यादा दर्द रहने लगता है
  5. पशु के पिछले पैरों में घुटनों से ऊपर सूजन आ जाती है। वहीं अगर इसमें सूजन कम करने के लिए चीरा लगाया जाए, तो इसमें पशु के पैरों से खून निकलने लगता है
  6. लंगड़ा बुखार होने पर सूजन कमर, कंधे तक पहुंच सकती है
  7. लंगड़ा बुखार होने के बाद कई बार पशु दो या तीन दिन में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है

लंगड़े बुखार का उपचार 

लंगड़ा बुखार एक ऐसा रोग है, जिसके होने पर इसका उपचार करना थोड़ा मुश्किल है। इसलिए इस रोग से पशु को बचा कर रखना ही एकमात्र विकल्प है। इसके अलावा अगर पशु को यह रोग हो जाता है और सूजन अधिक हो जाती है, तो पशु को चीरा लगाकर उसे इससे राहत दिलाई जा सकती है। हालांकि इसकी संभावना भी कम है। इन सबके अलावा कई बार पशुओं को कुछ दवाएं भी दी जाती हैं, ताकि पशु को दर्द से राहत मिले और इस रोग से छुटकारा मिल सके। 

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बछड़े – बछड़ियों में नाभि का सड़ना क्या है? इसका उपचार और बचाव जानिए

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ऐसा कहा जाता है कि जितना सुरक्षित बच्चा मां के गर्भ में होता है, उतना सुरक्षित कहीं और नहीं हो सकता। ऐसा ही पशुओं के साथ भी होता है। आमतौर पर जब गाय गर्भवती होती है, तो पशुपालक उसका ध्यान बराबर रखते हैं। लेकिन जब प्रसव हो जाता है, तो इसके बाद बछड़े या बछिया पर ध्यान ही नहीं देते। जिसके चलते कई बार बछड़े या बछिया कई रोग या समस्याओं की चपेट में आ जाते हैं।  इनमें से एक समस्या जो आमतौर पर देखने को मिलती है वह है बछिया की नाभि का सड़ना।

बछड़े या बछिया को जब यह समस्या हो जाती है तो उन्हें बहुत पीड़ा से गुजरना पड़ता है। ऐसे में पशुपालकों को भी समझ नहीं आता कि इस समस्या का क्या किया जाए। पशुपालन करने वाले  लोगों की इसी समस्या का अंत आज हम करने वाले हैं। अपने इस लेख में हम आपको बछिया की नाभि सड़ने की वजह और इसके उपचार से जुड़ी जानकारी देंगे। इस समस्या से जुड़ी संपूर्ण जानकारियां हासिल करने के लिए लेख पर अंत तक बने रहें।

क्या है बछड़े (बछिया) की नाभि का सड़ना ?

जिस तरह एक इंसान के बच्चे का जन्म के बाद उसका ध्यान रखना और उसकी साफ सफाई करना बहुत जरूरी होता है। उसी तरह गाय के बछड़े और बछिया की सफाई करना भी जरूरी होता है। लेकिन जब बछिया के जन्म के बाद उसकी नाभि की सफाई नहीं की जाती, तो ऐसे में उसकी नाभि में मवाद पड़ने लग जाती है।

यही नहीं समय पर इस समस्या का उपचार न करने पर नाभि में पड़ी पस के चलते सूजन आ जाती है और बछिया को बहुत दर्द रहने लगता है। इसके अलावा कई बार स्थिति अधिक गंभीर होने पर बछड़ा या बछिया सुस्त हो जाता है और लंगड़ाकर चलने लगता है। 

बछिया की नाभि सड़ने पर उपचार 

अगर आपकी गाय की बछिया या बछड़े की नाभि सड़ गई है, तो इसका उपचार समय रहते करना बहुत जरूरी है। इसका उपचार करने के लिए आप बछिया की नाभि को एक कीटनाशक से साफ करें और टिंक्चर आयोडीन लगाते रहें। ऐसा आपको तब तक करना होगा जब तक बछिया की नाभि पूरी तरह न सुख जाए। ध्यान रहे कि सफाई किए बिना यह घाव ठीक नहीं होगा। इसलिए इसमें किसी भी तरह की लापरवाही न बरतें। 

नाभि सड़ने से बचाने का तरीका 

गाय के प्रसव के तुरंत बाद बछिया की नाभि को सही तरह से सफाई करें। इसके लिए आप किसी तरह के तरल पदार्थ या पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा जब तक बछिया की नाभि न सूख जाए तब तक उनका अधिक ध्यान रखें। 

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जानिए कैसी होनी चाहिए एक गाभिन गाय की खुराक!

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एक सही आहार इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं के लिए भी जरूरी होता है। अगर गाभिन गाय या भैंस को सही खुराक दी जाए तो इससे न केवल प्रसव की अवस्था बेहतर होती है। बल्कि गाय का होने वाला बछड़ा भी स्वस्थ रहता है और गाय की दूध उत्पादन क्षमता भी बढ़ जाती है। शायद आप समझ गए होंगे कि गाभिन गाय की खुराक के बारे में जानकारी होना कितना ज्यादा जरूरी है।

अगर आपको नहीं पता कि गाभिन गाय की खुराक क्या होनी चाहिए, तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं। आज हम अपने इस लेख में आपको गाभिन गाय की खुराक से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देंगे। अगर आप भी एक पशुपालक हैं और गाभिन गाय को क्या आहार दें, यह जानना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

गाभिन गाय की देखरेख का तरीका 

गाय के गाभिन होने पर उसकी देखरेख सही तरह से होनी बेहद जरूरी है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि गाय जब गर्भधारण करती है, तो उसके शरीर में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं। जिसकी वजह से वह बाकी पशुओं से भी दूर रहने लगती है। इस दौरान अगर गाय की देखरेख में लापरवाही न बरती जाए, तो इससे गर्भ में पल रहे बछड़े की सेहत बिगड़ सकती है और कई बार तो गर्भ में ही बछड़े की मौत हो जाती है। 

ऐसे में गाय के रहने की व्यवस्था सही तरह होनी जरूरी है। पशुपालक सबसे पहले गाभिन पशु के लिए एक अलग स्थान या शेड बनाएं। इसके अलावा शेड में हवा आती रहे इसका इंतजाम करें। इसके अलावा शेड का निर्माण इस तरह कराएं कि पशु पर धूप और बारिश न पड़े।

गाभिन गाय की खुराक कैसी होनी चाहिए

एक पशुपालक को अपनी आय बढ़ाने के लिए गाभिन गाय को सही खुराक देना बहुत जरूरी है। गाय के गर्भकाल के दौरान उसके शरीर को अलग – अलग समय पर कई पोषक तत्वों और खनिज पदार्थों की जरूरत होती है। हम आपको बताते हैं कि गाभिन गाय को किस माह में कितनी और क्या खुराक देनी चाहिए। 

  • गाय के गाभिन होने के शुरुआती तीन महीने बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान गाय की खुराक में खनिज लवण प्रोटीन की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए
  • गाभिन गाय के तीन महीने पूरे होने के बाद का समय गर्भ में पल रहे बछड़े के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। इसलिए 3 से 6 महीने के बीच गाय को प्रोटीन अधिक मात्रा में दिया जाना चाहिए। इसके अलावा गाय की खुराक में विटामिन और खनिज लवण को भी जोड़ देना चाहिए
  • 6 महीने के बाद का समय गाभिन गाय के लिए बेहद नाजुक होता है। इस दौरान पशु को पाचक प्रोटीन, 10 से 12 ग्राम तक कैल्शियम और 7 से 8 ग्राम तक फास्फोरस दें। इसके अलावा गाय को नियमित रूप से विटामिन और मिनरल्स जरूर दें
  • गाय को खुराक में कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए दाने के साथ कैल्शियम कार्बोनेट भी जरूर दें
  • गाभिन गाय को 25 से 30 किलो हरा और 2 से 4 किलो सूखा चारा रोजाना जरूर दें
  • गाय को रोजाना कम से कम 50 ग्राम नमक का सेवन जरूर कराएं
  • गाभिन गाय के दूध उत्पादन हेतु उन्हें प्रसव से कुछ समय पहले चारे में चोकर मिलाकर खिलाएं

गाभिन पशु के साथ बरतें ये सावधानियां

  1. गाभिन गाय को कभी भी ऐसे स्थान पर न रखें जहां अधिक शोर हो
  2. गाय के गाभिन होने के पश्चात उसके आहार में कोई भी बड़ा बदलाव करने से पहले डॉक्टर से राय ले
  3. गाय के प्रसव से 60 दिन पहले से गाय का दूध निकालना पूरी तरह बंद कर दें
  4. गाभिन गाय के बैठने और खड़े होने के लिए उन्हें उचित स्थान प्रदान करें

हमारे किसान और पशुपालक भाई इसी तरह की महत्वपूर्ण जानकारी हमारी Animall App के जरिए भी हासिल कर सकते हैं। यही नहीं पशु के बीमारी से संबंधित दवा और इलाज के बारे में सीधा डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं। वही अगर गाय या भैंस बेचनी है तो वह भी आप आसानी से कर सकते हैं। ऐप डाउनलोड करें अभी

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