संक्रामक रोग मुखयतः संक्रामक रोगवाहको के सीधे समपर्क में आने से संक्रमित खाद्य पदार्थों पेय वसतुओं और इसके अलावा संक्रमित वयक्ति एवमं पशु भी इन रोगों को स्वसथ वयक्तियों एवमं पशुओं को संक्रमित करने में शयक होते हैं।
जिस क्षेत्र में यह रोग होता है वहाँ के पशुपालक अपने 4 मास से 3 वर्ष के सभी गौ जाति के पशुओं को इस रोग के बचाव का टीका अवश्य लगवाएँ। इस टीके का असर 6 माह तक रहता है। मई में यह टीका अवश्य लगवा लेना चाहिये। भेड़ों में उन कतरने या बच्चा देने से पहले यह टिका लगवा लेने चाहिये।
(क) पशुओं को चारा डालने से पहले ही पानी पिलाना चाहिये।
(ख) भोजन में अचानक परिवर्तन नहीं करना चाहिये।
(ग) गेहूं, मकाई या दूसरे अनाज अधिक मात्रा में खाने को नहीं देने चाहिये।
(घ) हर चारा पूरी तरह पकने पर ही पशुओं को खाने देना चाहिये।
(ड़) पशुओं को प्रतिदिन कुछ समय के लिये खुला छोड़ना चाहिये।
इस रोग की वजह से बछड़े को सुस्ती, खाने में अरुचि, दस्त हो जाते हैं। व इस रोग की आशंका होते ही तुरन्त पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
गर्मी के मध्य या अंतिम काल में कृत्रिम गर्भाधान करना से चाहिए।
पशुओं में अक्सर गर्मी सांयकाल 6 बजे से प्रातः 6 बजे 14, के मध्य आती है।
भैंस अधिकतर अगस्त से जनवरी तथा गाय अधिकतर जनवरी से अगस्त माह के मध्य गर्मी पर आती है वैसे उत्तम वैज्ञानिक ढंग से पालन पोषण से वर्ष भर में गर्मी में आ सकती है।
कृत्रिम गर्भाधान के तुरन्त उपरान्त पशुको मत दौड़ायें।
बच्चा देने के बाद से तीन माह के अन्दर पुनः गर्भित करायें।
कृत्रिम गर्भाधान के समय शांत वातावरण हो तथा पशु को तनाव मुक्त रखें।
कृत्रिम गर्भाधान करने के पहले व बाद में पशु को छाया में रखें।
पशु को सुबह व सायंकाल के वक्त ही गर्भधारण करवाएं।