जानिए क्या है राजस्थान पशु बीमा योजना के लाभ और योग्यता

पशुपालन के जरिए गुजारा करने वाले लोगों के जीवन से चुनौतियों और समस्याओं को समाप्त करने के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चलाती रहती हैं। यूं तो पशुपालकों के सामने ढेरों समस्याएँ रोजाना मुंह बाए खड़ी रहती हैं। लेकिन इनमें से सबसे बड़ी समस्या पशुपालन करने वालों के समक्ष तब खड़ी होती है। जब पशु की मौत हो जाती है। ऐसे में जब पशु की मौत हो जाती है, तो इसकी वजह से पशुपालक को बड़ी मात्रा में आर्थिक नुकसान होता है। 

इसी नुकसान से बचाने के लिए राजस्थान सरकार की ओर से एक योजना शुरू की गई है। इस योजना का नाम है भामाशाह पशु बीमा योजना राजस्थान। इस योजना के तहत पशु की मौत पर पशुपालक को एक तय राशि दी जाती है। ताकि पशुपालक के नुकसान को कम किया जा सके। लेकिन इस योजना का लाभ लेने के लिए पशुपालक को अपनी पात्रता सिद्ध करनी होगी। आइए जानते हैं इसी भामाशाह पशु बीमा योजना से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।

भामाशाह पशु बीमा योजना का उद्देश्य

राजस्थान सरकार द्वारा चलाई जा रही इस योजना का उद्देश्य  पशुपालकों की आय बढ़ाना है। आपको बता दें कि प्रदेश में रहने वाले पशुपालक अक्सर अधिक पशु नहीं खरीदते क्योंकि गर्मी या रोग की वजह से पशु की जान जाने का खतरा हमेशा बना रहता है। पशुपालन करने वालों का यह डर दूर किया जा सके और वह बड़े पैमाने पर पशुपालन कर सके। इसके लिए ही यह योजना शुरू की गई है। 

राजस्थान पशु बीमा योजना की पात्रता

इस योजना का आवेदन करने के लिए आवेदनकर्ता को अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी। राज्य सरकार द्वारा इस योजना में आवेदन करने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

  • योजना में आवेदन करने वाले व्यक्ति का पशुपालक होना अनिवार्य है। 
  • पशुपालन करने वाले व्यक्ति के पास पशु होने चाहिए। 
  • पशुपालन करने वाला व्यक्ति राजस्थान का निवासी होना चाहिए। 
  • योजना में आवेदन करने वाले व्यक्ति की आयु 18 साल से अधिक होनी चाहिए। 

पशु बीमा योजना के फायदे 

किसान या पशुपालन से जुड़े हुए हजारों लोगों को इस योजना का लाभ कई तरह से हो सकता है। इस योजना से जुड़े लाभों की सूची हम आपको नीचे विस्तार से बता रहे हैं।

  1. इस योजना के जरिए महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। 
  2. देश के आत्मनिर्भर भारत की मुहिम को गति मिलेगी। 
  3. लाभार्थी के बैंक खातों में योजना का पैसा ट्रांसफर किया जाएगा। 
  4. पशुओं की मौत होने पर पशुपालक को बीमित राशि दे दी जाएगी। 
  5. राजस्थान में दूध का व्यापार तेजी से बढ़ने लगेगा। 
  6. भारत की दुग्ध उत्पादन क्षमता बेहतर होगी। 

पशु बीमा योजना में आवेदन का तरीका

राजस्थान में जो भी पशुपालन करने वाले लोग इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं। वह इस योजना के लिए संबंधित वेबसाइट या कार्यालय में जा सकते हैं। योजना हेतु सभी जरूरी दस्तावेज आपको फॉर्म के साथ ही संलग्न करने होंगे। अगर आपके दस्तावेज और सभी जानकारी सही पाई गई तो आपके पशु का बीमा हो जाएगा। 

आशा करते हमारे द्वारा दी गई भामाशाह पशु बीमा योजना से जुड़ी जानकारी आपको पसंद आई होगी। अब अगर आप योजना का लाभ उठाना चाहते हैं तो आप आवेदन कर सकते हैं। इस तरह की योजना के लिए आप हमारे ब्लॉग के साथ – साथ Animall App को भी डाउनलोड कर सकते हैं। ऐप डाउनलोड करने के बाद आपके लिए पशु खरीदना और बेचना आसान हो जाएगा। इसके अलावा पशु के बीमार पड़ने पर आप तुरंत चिकित्सक से सहायता ले सकते हैं। ऐप डाउनलोड करने के लिए इस विकल्प का चुनाव करें। 

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जानिये क्या है गाय को होने वाले थनैला रोग के घरेलू उपचार!

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एक दुधारू गाय या भैंस किसान और पशुपालक की आय का जरिया होती है। लेकिन कई बार यह पशु कुछ खतरनाक रोग से संक्रमित हो जाते हैं। जिसका असर पशुधन पर होता है। ऐसा ही एक रोग थनैला भी है। गाय को होने वाला थनैला रोग बहुत खतरनाक होता है। इस रोग के चलते गाय के दूध देने की क्षमता प्रभावित हो जाती है और कई बार गाय के थन को काटने तक की नौबत आ जाती है। ऐसे में किसान और पशुपालक गाय को होने वाले थनैला रोग के घरेलू उपचार की खोज में लग जाते हैं।

अगर आप भी एक पशुपालक हैं और गाय के थनैला रोग के घरेलू उपाय खोज रहे हैं तो आप सही स्थान पर आए हैं। आज हम अपने इस लेख में गाय को होने वाला थनैला रोग के घरेलू उपचार से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देंगे। इसके अलावा यह भी बताएंगे कि आप किस तरह अपनी गाय को थनैला रोग से बचाकर रख सकते हैं। थनैला रोग के घरेलू उपाय के बारे में जानने के लिए लेख पर अंत तक बने रहें। 

क्या है गाय को होने वाला थनैला रोग

थनैला दुधारू पशुओं को होने वाला एक रोग है। इस रोग के दौरान पशु के थनों का आकार बड़ा हो जाता है और इनमें सूजन आ जाती है। इसके अलावा गाय और भैंस के थनों में गांठ पड़ने लगती है एवं पस जम जाता है। यही नहीं दूध का रास्ता भी संकरा हो जाता है और दूध के स्थान से पस एवं दूषित दूध निकलने लगता है। इस दौरान पशु का व्यवहार पूरी तरह बदल जाता है। 

थनैला रोग के लक्षण

गाय को पूरी तरह स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि आप उसके व्यवहार को सही प्रकार से समझें। अगर गाय के व्यवहार में किसी तरह का बदलाव आ रहा है तो सतर्क हो जाएं। गाय के थनैला रोग के कुछ लक्षण हैं जो आसानी से पहचाने जा सकते हैं, जैसे – 

  • थन का आकार बढ़ना
  • थनों में सूजन आ जाना 
  • थन में गांठ पड़ जाना 
  • गाय का बेचैन रहना और चिल्लाना
  • गाय के थन से दूध में खून या पस निकलना
  • थनों का रास्ता संकरा हो जाना
  • थनों में दर्द रहना
  • थनैला होने पर गाय सही तरह से चारा नहीं खाती

गाय को थनैला रोग होने का कारण

गाय या अन्य दुधारू पशु को थनैला रोग कई कारणों की वजह से हो सकता है, जैसे – 

  1. अगर पशु का दूध निकालते समय हाथों को ठीक से साफ न किया गया हो तो यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है 
  2. थनैला रोग विषाणु, जीवाणु, माइकोप्लाजमा तथा कवक की वजह से हो सकता है
  3. अगर गाय संक्रमित पशु के संपर्क में आती है तो भी थनैला रोग हो सकता है
  4. गाय का दूध पूरी तरह से न निकालने की स्थिति में दूध थनों में रह जाता है। जिसकी वजह से भी थनैला हो सकता है
  5. पशु के रहने के स्थान की सफाई न होने की स्थिति में भी थनैला हो सकता है
  6. थन में चोट लगने या किसी अन्य संक्रमण की वजह से थनैला हो सकता है

गाय के थनैला रोग के घरेलू उपचार

थनैला एक बेहद संक्रामक रोग है। ऐसे में अगर गाय इस रोग से संक्रमित हो जाए तो इसका उपचार समय पर होना बहुत जरूरी है। अगर समय पर थनैला रोग का उपचार न किया जाए तो यह अधिक खतरनाक हो सकता है। इसकी वजह से गाय के थन तक काटने पड़ सकते हैं। इसलिए गाय को थनैला से राहत दिलाने के लिए लक्षणों की पहचान जल्द से जल्द हो जानी चाहिए। इसके अलावा अगर गाय को थनैला है तो कुछ घरेलू उपाय भी आजमाए जा सकते हैं। गाय को थनैला से राहत दिलाने वाले इन उपायों के बारे में हम आपको नीचे विस्तार से बता रहे हैं।

गाय को होने वाले थनैला रोग के उपाय

  1. थनैला रोग होने पर अरंडी तेल को 4 बार छानकर अच्छी तरह से गाय के थनों की मालिश करें। ऐसा करने से गाय को राहत मिल सकती है। 
  2. इस रोग के होने पर गाय को कुछ दिन तक आधा किलो दही और गुड़ खाने में सुबह शाम दे सकते हैं। 
  3. गाय को पोस्ता का फल और नीम की पत्ती की भाप दी जाए तो इससे भी थनैला में आराम हो सकता है। 
  4. थनैला के दौरान गंधक की धूनी दिए जाने पर गाय को लाभ हो सकता है।
  5. नीम के पत्तों को पानी में उबालकर इसके पानी से थनों की नियमित रूप से सिकाई की जाए, तो पशु की हालत में सुधार हो सकता है। 
  6. थनैला होने पर हल्दी, सेंधा नमक को पीसकर घी मिलाएं। इसके बाद पशु के थनों पर दूध निकालने से पहले और दूध निकालने के बाद लगाएं। इसके साथ ही मसाज भी करें। ऐसा करने से पशु को इससे राहत मिल सकती है। 
  7. नीम के उबले हुए पानी से गाय के थनों की सिकाई करनी चाहिए। ऐसा करने से पशु को थनैला की समस्या से राहत मिल सकती है। 
  8. गाय को थनैला होने पर गाय का घी,काली मिर्च आधा छटाक और नींबू का रस लें। इन तीनों को मिलाएं और पशु को नियीमित रूप से हिलाते रहें। ऐसा करने से पशु को थनैला से कुछ हद तक राहत मिल जाएगी। 
  9. गाय के दूध में खून आने पर रोजाना उसे पत्थरचट्टा की धूनी देनी चाहिए। 
  10. दूध में खून आने पर गाय को केले में कपूर की गोली डालकर दी जा सकती है। ऐसा करने से गाय का खून रुक जाएगा। 

गाय के थनैला रोग के जो उपचार आपको बताए गए हैं। यह इस रोग का ठोस इलाज नहीं है। इन उपायों को आप आजमा कर गाय को कुछ हद तक फायदा पहुंचा सकते हैं। लेकिन अगर गाय की स्थिति में किसी तरह का सुधार न हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

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पशु पालन के बारे में जानकारी या ट्रेनिंग कहाँ से प्राप्त करें।

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कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का प्रसार निदेशालय समय समय पर भेड़ बकरी पालकों के लिए ट्रेनिंग आयोजित करता है तथा पशु विज्ञान महाविद्यालय पालमपुर में आकर अपनी समस्याओं का निवारण कर सकते है।

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क्या टीकाकरण सुरक्षित हैं? इसके दुष्प्रभाव क्या हैं?

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जी हाँ, टीकाकरण पूर्णरूप से सुरक्षित हैं। टीकों के उत्पादन में पूर्ण सावधानी बरती जाती है। तथा इनकी क्षमता, गुणवत्ता एवं सुरक्षा सम्बंधी परीक्षण किये जाते है, तत्पश्चात ही इन्हें उपयोग हेतु भेजा जाता है। मद्धिम ज्वर अथवा टीकाकरणस्थान पर हल्की सूजन य्दाक्य हो जाति है जोकि स्वयै दिनों में नियंत्रित हो जाति है। किसी भी शंका समाधान के लिये पशुचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिये।

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संक्रामक किसानों/पशुपालकों की आर्थिक स्थिती को कैसे प्रभावित करते है?

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मुख्यतः विभिन्न संक्रामक रोग पशुओं के विभिन्न अंगों को प्रभावित करके अंततः कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है। भेड़-बकरियों में उन का उत्पादन प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त ये रोग मास उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता को कम करते है। इसके अतिरिक्त ये रोग गर्भपात एवं प्रजनन क्षमता को कम करता हैं।

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