दुधारू पशुओं के 10 प्रमुख रोग और उनके उपचार.

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ब्रुसेला बीमारी 

ब्रूसेला बीमारी क्या है ?

बैक्टेरिया से होने वाला यह बीमारी गाय भैंस में गर्भपात का कारण बनता हैइस बीमारी के कारण पशुओं में गर्भावस्था के आखरी तिमाही में गर्भपात होता हैये बीमारी पशुओं से इंसानों में भी फैलता हैइस बीमारी के कारण हर साल 300 करोड़ से अधिक का नुक्सान हमारे देश के पशुपालक उठाते हैं

इंसानों में होने वाले ब्रूसेला बीमारी के क्या लक्षण हैं?

  • बुखार आना
  • वजन का लगातार कम होना
  • कमर दर्द की शिकायत
  • रात में पसीना आना
  • डेयरी फार्म पर समय बिताने वाले पशु पालक और पशु चिकित्सकों इस बीमारी का खतरा बना रहता है

ब्रुसेला  बीमारी के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। ब्रुसेला बीमारी के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें|

 सर्रा रोग 

सर्रा बीमारी क्या है?

यह एक परजीवी से होने वाला रोग है।ट्रिपैनोसोमा  ईवासाई नामक सूक्ष्म परजीवी से ये बीमारी फैलता है।इस बीमारी के फैलने से पशुओं की उत्पादन क्षमता में भारी कमी आती है।तुरंत ही पशुओं की मृत्यु हो जाती है जिससे पशुपालकों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है।सबसे पहले साल 1885 में इस बीमारी को देखा गया था।

एक पशु से दूसरे में सर्रा बीमारी कैसे फैलता है?  

मान लीजिए अगर कोई पशु सर्रा बीमारी से ग्रसित है अगर मक्खी उसका खून चूसकर स्वस्थ पशु को काट लेगा तो उसे ये बीमारी फेल जाएगी। पशु विज्ञान में सर्रा रोग के लिए जिम्मेदार मक्खी को टेबनेस मक्खी  कहते हैं। भारत में पशुओं को काटने वाले मक्खी को लोग डांस मक्खी के नाम से जानते हैं।

गाय भैंस में सर्रा रोग के क्या लक्षण हैं ?

  • रुक रुक कर बुखार आना।
  • बार बार पेशाब करना।
  • गाय भैंस गोल गोल चक्कर काटने लगते हैं।
  • भूख कम लगना।
  • मुंह से लार गिरना।
  • आंख और नाक से पानी गिरना।

पशुओं में सर्रा रोग के लक्षण को ऐसे पहचाने? 

  • दुधारू पशुओं का दूध कम हो जाना।
  • गाय भैंस धीरे धीरे कमज़ोर होते चले जाते हैं।
  • कई बार गाय भैंस का पिछला भाग लकवाग्रस्त हो जाता है।
  • कई पशुओं के आंख में सफेदी आने लगता है।
  • पशुओं के निचले भाग में सूजन आने लगता है।
  • सर्रा बीमारी के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।
  • सर्रा  बीमारी के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

 थिलेरिया बीमारी 

थिलेरिया बीमारी क्या है ?

परजीवियों से गाय भैंस में फैलने वाला एक जानलेवा बीमारी है। इस बीमारी से ग्रसित पशुओं के मरने की संभावना 90 प्रतिशत से भी अधिक रहती है। ये बीमारी गर्मी और वर्षा ऋतु में चीचड़े का कारण फैलता है। थिलेरिया पशुओं के प्रजनन क्षमता पर भी असर डालता है।

गाय भैंस में थिलेरिया बीमारी के क्या लक्षण हैं?

  • शरीर के तापमान में बढ़ोतरी।
  • सांस और हृदय गति का बढ़ना ।
  • नाक और आंख से पानी आना।
  • भूख कम लगना, जिससे पशु कमज़ोर हो जाते हैं।

पशुओं में थिलेरिया बीमारी के ये लक्षण जानें।

  • गाय-भैंस के शरीर में रक्त की कमी। 
  • पशुओं को दस्त की शिकायत रहती है।
  • गाय भैंस का दूध उत्पादन कम हो जाता है।
  • पशुओं में पीलिया का भी लक्षण देखा जाता है।

 गाय भैंस को थिलेरिया रोग से बचाने के लिए ये तैयारी कर लें |

  • समय समय पर गाय भैंस के शरीर पर किलनी मारने की दवा छिड़के।
  • पशु के रहने के स्थान पर किलनी मारने की दवा का छिड़काव करें।
  • तीन महीने होने पर रक्षावेक- टी नाम का टीका लगवाएं। 

थिलेरिया बीमारी से ग्रसित पशुओं के इलाज के लिए कौन सा टीका लगाया जाता है?

थिलेरिया बीमारी के लिए Butalex नामक सुई दी जाती है। बाजार में इस दवाई की कीमत 1500 रुपए से शुरु होती है। पशुओं को इसके दो टीके लगते हैं।

थिलेरिया बीमारी के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। थिलेरिया  बीमारी के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

 चिचड़ी और किलनी बीमारी

चिचड़ी और किलनी बीमारी क्या है ?

परजीवियों से फैलने वाला रोग  गाय भैंस को प्रभावित करते हैं। ये परजीवी पशु के शरीर का खून चूसते हैं। इस बीमारी से पशुओं के दूध में कमी देखने को मिलता है। इसी रोग के कारण हीं  पशुओं के बाल भी झड़ते हैं। 

गाय भैंस में चिचड़ी और किलनी रोग क्या नुक्सान पहुंचाता है?

  • पशुओं की चमड़ी खराब होने लगती है|
  • गाय भैंस में मानसिक तनाव भी रहता है।
  • इस बीमारी से खासकर भैंस के बच्चों में पैदा होने के पहले मृत्य का खतरा बना रहता है।

इन छोटी बातों का ध्यान रखेंगे तो पशुओं को चिचड़ी नहीं होगा!!

  • पशुओं के बैठने स्थान को साफ रखें।
  • प्रतिदिन पानी से पशुओं को धोएं।
  • गर्मी के मौसम पशुओं को हवादार जगह पर रखें। क्योंकि गर्मी के मौसम में ये बीमारी अधिक देखने को मिलता है।

चिचड़ी और किलनी रोग  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

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घोंघा रोग 

पशुओं में घोंघा यानी लीवर फ्लूक रोग क्या है?

यह एक परजीवी के कारण पशुओं में फैलने वाला बीमारी है। फैसियोला (परजीवी के एक प्रकार) के कारण ये फैलता है। यही परजीवी पशुओं के लीवर को नुक्सान पहुंचाता है। और पढ़ें

गाय- भैंस में घोंघा रोग के क्या लक्षण हैं?

  • कम भूख लगना।
  • पाचन क्रिया बिगड़ने से कब्ज की शिकायत रहती है
  • पतला दस्त भी होता है।
  • 30 से 40 प्रतिशत दूध उत्पादन में कमी।

पशुओं में होने वाले घोंघा रोग के क्या लक्षण हैं?

  • पशुओं में कमज़ोरी की शिकायत।
  • पशु के रोएं भीगे भीगे रहते हैं।
  • जबड़े के नीचले भाग में सूजन।
  • एक बछिया बयाने के बाद दूसरे ब्यात में आने में समय लगता है।

इन बातों का ध्यान रखेंगे तो पशु में घोंघा रोग नही होगा।

  • पशुओं के खाने की जगह पानी जमा न होने दें।
  • खुले तालाब का पानी पशुओं को नही पिलाना चाहिए। क्योंकि जहां बहुत दिनों तक पानी जमा रहता है वहां घोंघा पनपने लगते हैं।
  • समय समय पर घोंघा मारने वाले रसायनों का उपयोग करना चाहिए।
  • इस रोग से बचाने के लिए हर वर्ष पशुओं को कृमिनाशक दवाई देना चाहिए।

घोंघा रोग  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

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मिल्क फीवर 

दूध ज्वर यानी मिल्क फीवर क्या है ?

गाय-भैंसों में कैल्शियम की कमी के कारण होने वाले रोग को दूध ज्वर यानी मिल्क फीवर कहा जाता है। यह बीमारी बयाने के दो दिन से लेकर पंद्रह दिनों तक होता है। दुधारू नस्ल की गाय भैंस में यह बीमारी अधिक देखने को मिलता है।

गाय भैंस में कैल्शियम की कमी कैसे होती है ?

  • गाय भैंस के बच्चा देने के बाद शरीर से कोलेस्ट्रम बाहर निकल आता हैं।
  • कोलेस्ट्रम कैल्शियम का खजाना है , इसमें रक्त से 15 गुना तक अधिक कैल्शियम होता है।
  • ऊपर से यदि बयाने के बाद गाय भैंस को कम आहार दिया जाए तो कैल्शियम में और कमी आ जाती है।

दुधारू पशुओं में कैल्शियम की कमी को कैसे दूर करें?

अगर पशु के शरीर में मैग्नीशियम और फॉस्फोरस का संतुलन सही नही होने से  कैल्शियम की कमी देखी जाती है। महीने में 20 से 25 दिन तक पशु आहार में कैल्शियम मिलाकर देने से कैल्शियम की कमी नही होगी। बाजार से खरीदे गए फॉस्फोरस युक्त कैल्शियम पशुओं के लिए सही माना जाता है। और पढ़ें

पशु चिकित्सक की सलाह पर आप सुई भी लगा सकते हैं।

मिल्क फीवर के क्या लक्षण हैं?

  • सिर हिलाना।
  • जीभ बाहर निकालना।
  • पशु के शरीर का तापमान का बढ़ जाना।
  • दांत किटकिटाना।
  • शरीर के कुछ भाग में लकवा के लक्षण।
  • पशु के पैरों में अकड़न।

पशुओं में जब मिल्क फीवर यानी दूध ज्वर बढ़ जाए तो ये लक्षण दिखेंगे!!

  • पशु गर्दन मोड़कर बैठेगा।
  • गर्दन के पिछले भाग को जमीन पर मोड़कर बैठेगा।
  • पशु का शरीर ठंडा हो जाएगा।
  • आंखें सुख जाएंगी।
  • पशु के आंखों की पुतलियां बड़ी नजर आएंगी।
  • पशु को कब्ज की शिकायत रहेगी।

पशुओं में मिल्क फीवर की आखिरी अवस्था के लक्षण।

ये मिल्क फीवर का आखिरी अवस्था के लक्षण हैं।

  • इसमें अवस्था में पशु बेहोशी की हालत में लेटा रहता है।
  • पशु का शरीर का तापमान काफी कम हो जाता है।
  • पशु की हृदय ध्वनि सुनाई नही देगी।
  • कभी कभी पशु के मुंह से खाया हुआ चारा निकलने लगेगा।
  • कभी कभी पशु के मुंह से गोबर भी निकलने लगता है।

ये तरीके अपनाकर अपने मिल्क फीवर से अपने गाय भैंस का करें बचाव!!

  • दुधारु गाय भैंस को ब्याने से एक महीने पहले अच्छा मिनरल मिक्सचर देना शुरू करें।
  • ब्याने से दो महीने पहले दूध निकालना छोड़ दें।
  • गाय भैंस के ब्याने के तीन दिन तक खीस न निकालें।
  • बहुत अधिक कैल्शियम भी न दें, मिनरल मिक्सचर में  सौ ग्राम कैल्शियम मिलाकर प्रतिदिन दे सकते हैं।
  • कुछ भी गलत दिखे तो तुरंत किसी पशु चिकित्सक से मिले।
  • मिल्क फीवर बीमारी  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।
  • घोंघा रोग  के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

गल घोटूं रोग 

एच एस यानि गलघोंटू रोग क्या है?

बैक्टीरिया को जरिए पशुओं के स्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला बीमारी को एच एस रोग कहा जाता है। आमतौर गाय भैंस में ये बीमारी देखने को मिलती है। बरसात के मौसम में ये बीमारी अधिक देखी जाती है। सड़ा हुआ और दूषित पशु चारे खाने से इस बीमारी के फैलने की संभावना रहती है। 

अगर ये लक्षण दिखे तो समझ जाएं पशु को गलाघोंटू रोग है।

  • गर्दन और मुंह में सूजन।
  • तेज बुखार।
  • मुंह से लार टपकना।
  • पशु चारा खाना बंद कर देगा।
  • सांस लेने में दिक्कत होगी।
  • जीभ बाहर निकाल कर सांस लेगा।
  • घर्र घर्र की आवाज करेगा।

अगर पशु को  गलाघोंटू रोग है तो ये न करें।

  • गाय भैंस को बरसाती घास न खिलाएं।
  • तालाब और खुले स्थान पर जमा पानी न पिलाएं।
  • पशु के रहने के स्थान को साफ रखें।
  • एच एस रोग से ग्रसित पशु को बाकियों से अलग रखें।

गला घोटूं रोग  यानि एच एस  रोग का कौन सा टीका पशुओं को कब कब लगाना चाहिये?

गला  घोंटू  से पशुओं को बचाने के लिए हर साल टीका लगवाया जाता है गला घोंटू  रोग के लिए  रक्षा ट्राई वैक नामक टीके का उपयोग होता हैयह टीका तीन से पांच 5 एमएल चमड़ी के नीचे लगाया जाता हैछह महीने से अधिक उम्र के मवेशियों को पशु पालन विभाग मुफ़्त में ये टीका लगाती हैलेकिन अगर आप इसे निजी दवा दुकान से खरीद रहें है तो इसकी कीमत करीब तीन सौ रुपय के पास आएगीगला  घोंटू  रोग के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। गला  घोंटू  रोग के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

गिल्टी रोग

एंथ्रेक्स यानी गिल्टी रोग क्या है ?

ये संक्रमण से पशुओं में फैलने वाली एक बीमारी है। मिट्टी या दूषित चारा खाने से ये बीमारी दुधारु पशुओं में फैलती है। चूंकि यह बैक्टीरिया से फैलने वाला रोग है इसलिए इसका बैक्टीरिया कई सालों तक जीवित रह सकता है। और पढ़ें

एंथ्रेक्स बीमारी के बारे में जाने ये बातें।

एंथ्रेक्स से सिर्फ जानवरों को ही खतरा नही है। पशु से ये बीमारी इंसानों में भी हो सकता है। जिस स्थान पर ये बीमारी फैलता है वहां दोबारा फैलने का खतरा बना रहता है। एंथ्रेक्स बीमारी को जहरी बुखार,पिलबढ़वा, बिसहरिया और गिल्टी रोग आदि नाम से जाना जाता है।

एंथ्रेक्स बीमारी के लक्षण क्या हैं?

  • पशु सुस्त हो जाता है।
  • जुगाली करना बंद कर देता है।
  • तेज बुखार की शिकायत रहती है।
  • पशु का पेट फूल जाता है।
  • नाक और मल मूत्र द्वार से खून निकलने लगता है।

एंथ्रेक्स बीमारी से मरने वाले पशुओं के साथ क्या करना चाहिए?

पशु की मृत्यु के बाद छह सात फुट गहरे जमीन में चुना डाल  कर पशु को गाड़ दें। इस बीमारी से मरने वाले पशुओं के खाल की खरीद बिक्री नही करनी चाहिए। एंथ्रेक्स बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं के साथ नही रखें। और पढ़ें

एंथ्रेक्स बीमारी को इतना खतरनाक क्यों माना जाता है?

इसके जीवाणु 200 सालों तक जीवित रह सकते हैं। ये बीमारी हवा और पानी के जरिए भी फैल सकता है। एक ही समय में ये बीमारी पशु और इंसान दोनों को प्रभावित कर सकता है।

एंथ्रेक्स बीमारी का कौन सा टीका बाजार में उपलब्ध है?

इस रोग से बचाव के लिए रक्षा एंथ्रेक्स नामक टीका बाजार में उपलब्ध हैचार महीने या उससे अधिक उम्र के पशुओं को हीं ये टीका लगवाना चाहिएप्रभावित इलाकों में सालाना ये टीका लगवाना चाहिएगले के हिस्से में 1ml का डोज देना चाहिएगिल्टी  रोग के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें। गिल्टी  रोग के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें।

लंगड़ा बुखार

लंगड़ा बुखार क्या है?

 यह जीवाणु से पशुओं में फ़ैलने वाला रोग हैगाय भैंस में यह बीमारी आमतौर पर बरसात में देखी जाती हैयह बीमारी 10 महीने से 2 साल उम्र के पशुओं में अधिकतर देखी जाती हैऔर पढ़ें

लंगड़ा बुखार बीमारी के क्या लक्षण हैं?

  • तेज बुखार रहता है
  • कन्धों और गर्दन  पर सुजन रहती है
  • गाय भैंस लंगडाकर चलते हैं
  • सुजन वाले भाग में घाव भी देखने को मिलता है
  • पशु खाना पीना बंद कर देता है

लंगड़ा  बुखार से पशुओं को कैसे बचाएँ?

इस बीमारी से ग्रसित पशु को बाकी से अलग रखेंपशुओं के छह माह होने पर पहला टीका लगायें पशुओं को बरसाती घास न खिलाएंखुले तालाब और पोखरों का पानी न पिलायें

लंगड़ा बुखार बीमारी के लिए कौन सा टीका पशुओं को लगाया जाता है?

  • इस बीमारी के लिए रक्षा एच एस+ बी क्यू नामक टीका लगाया जाता है
  • वर्ष में एक बार पशु के चमड़ी के नीचे यह टीका लगाया जाता है
  • छह महीने से ऊपर के ही पशुओं को यह टीका लगाना चाहिये

लंगड़ा बुखार  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

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थनैला रोग

थनैला रोग क्या है?

एक संक्रामक रोग है जो दुधारू पशुओं में देखने को देखने को मिलता है| यह रोग एक पशु से दुसरे पशु में फैलता हैरोगाणु पशु के थन में प्रवेश करते हैजिससे संक्रमण फैलना शुरु होता हैसंतुलित आहार न देने से भी ये रोग हो सकता है

किन गलतियों के कारण थनैला रोग फैलता है?

  • दूध निकालते वक्त हाथों का गंदा होना
  • पशु के थनों में चोट लगना
  • अनियमित रूप से दूध दुहना
  • पशुओं का गंदे जगह पर रहना

पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए ये करें.

  • साफ़ बर्तन में ही दूध निकाले
  • दूध दुहने से पहले अच्छे तरीके से हाथ साफ करें
  • दूध दुहने के बाद अच्छे से पशु के थन को साफ करें

 किट से होती है थनैला रोग की जांच!!

कई तरह के किट से इस बीमारी की जांच की जाती हैकिट में चारों थनों से दूध की बूंदें गिराई जांच की जाती हैएक किट से कई पशुओं की जांच की जा सकती है बाजार में टीटासूल और डी लेवल मास्टाइटिस जैसे किट उपलब्ध है

अपने पशुओं में थनैला रोग कैसे पहचाने?

  • थनों में सुजन दिखेगा
  • दूध में खारापन आने लगता है
  • दूध देने से कतराती है
  • दूध का रंग पीला होने लगता है
  • दूध में खून के छिचड़े आने लगता है
  • थन में गांठ आना शुरू हो जाता है

थनैला बीमारी  के गंभीर लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सा सलाह जरुर लें।

थनैला  रोग के बारे में और अधिक जानने के लिए गाय-भैंस वाला  Animall ऐप अपने फ़ोन में डालें

 

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